Aug १७, २०१९ १५:३९ Asia/Kolkata

हमने बताया था कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की धरती पर सद्दाम सरकार के हमले और कुछ क्षेत्रों पर क़ब्ज़े के एक साल बाद किस तरह ईरानी जियालों ने सामेनुल अइम्मा नामक आप्रेशन सितम्बर 1981 में किया।

यह आप्रेशन महत्वपूर्ण और स्ट्रैटेजिक शहर आबादान की घेराबंदी तोड़ने के लिए किया गया। आबादान शहर अरवंद नदी के तट पर स्थित है। जहां ईरान की सबसे बड़ी रिफ़ाइनरी थी। सद्दाम की सेना ने ख़ुर्रमशहर पर हमला किया। 34 दिनों तक इस शहर के लोगों ने हमलावर सेना का मुक़ाबला किया और अंत में इस शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके बाद इराक़ी सेना आबादान शहर पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश में लग गई। मगर ईरानी फ़ोर्सेज़ और स्वयंसेवी बलों की सूझबूझ की वजह से यह शहर इराक़ी सेना के क़ब्ज़े में जाने से बच गया। लेकिन झड़पों के दौरान इस शहर की ओर जाने वाले रास्ते पर इराक़ी सेना का क़ब्ज़ा हो गया और इराक़ी सेना ने इस शहर की घेराबंदी कर ली। ईरान पर सद्दाम शासन के हमले के पहले साल में बहुत बड़े पैमाने पर राजनैतिक और सामरिक परिवर्तन देखने में आए। ईरान में नई नई क्रान्ति आई थी अतः स्थिरता पूरी तरह बहाल नहीं हुई थी। राजनैतिक, आर्थिक, सुरक्षा और सामरिक हालात में पूरी तरह स्थाइत्व नहीं आ पाया था। सद्दाम भी यही सोच रहा था कि क्रान्ति के बाद ईरान में आंतरिक रूप से कुछ उथल पुथल वाले हालात हैं अतः हमला करके आसानी से अपने लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है।

मगर हुआ यह कि इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी गणतंत्र ईरान हर प्रकार की सामरिक और आर्थिक साज़िशों से निपटते हुए आगे बढ़ने लगा और देश में राजनैतिक स्थिरता आ गई। ईरानी राष्ट्र ने बड़ी सूझबूझ के साथ हर प्रकार की कमी और कठिनाई को दूर किया और ईरान के युवाओं ने हमलावर इराक़ी सेना को धूल चटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एसे हालात में आबादान का परिवेष्टन तोड़ना और इराक़ी सेना के क़ब्ज़े में चले जाने वाले इलाक़ों को आज़ाद कराने के लिए महत्वपूर्ण प्राथमिकता बन गया।

सामेनुल अइम्मा आपरेशन में जो सफलताएं मिलीं उनसे ईरानी फ़ोर्सेज़े के बारे में दुशमन के सारे अनुमान ढेर हो गए और दुशमन को अपनी सुरक्षा का डर सताने लगा। इससे पहले तक दुशमन सेना क़ब्ज़े में ले लिए गए ईरानी इलाक़ों में बड़े चैन से तैनात थी। इस आप्रेशन से यह भी पता चल गया कि हमलावर सेना की कमज़ोरियां क्या हैं। इस आप्रेशन के नतीजे में यह हुआ कि स्वयंसेवी बलों और पारम्परिक सेनाओं ने मिलकर बिल्कुल नई टैक्निक पर काम किया। सेना और पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स के बीच समन्वय बढ़ा और पारम्परिक सेना को स्वयंसेवी बलों की क्षमताओं पर भरोसा बढ़ा।

सामेनुल अइम्मा आपरेशन से मिलने वाली सफलताओं के आधार पर सेना और पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स के कमांडरों ने आप्रेशनल स्ट्रैटेजी बनाने के लिए संयुक्त बैठकें शुरू कर दीं। इन बैठकों का यह नतीजा निकला कि पंद्रह आप्रेशनों की योजना तैयार हो गई। इन आप्रेशनों का नाम कर्बला-1 से कर्बला-12 तक रखा गया और यह योजनाएं सर्वोच्च रक्षा परिषद के सामने पेश की गंई। सर्वोच्च रक्षा परिषद के समक्ष जो महत्वपूर्ण बिंदु पेश किए गए इनमें एक बिंदु यह भी था कि समस्त संसाधनों और क्षमताओं को प्रयोग करने के लिए फ़ोर्सेज का केन्द्रीकरण किया जाना चाहिए। दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि दुशमन सेना को ध्वस्त करके उसे अपनी धरती से बाहर भगाया जाए। इस पर सेना और पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स दोनों ने विशेष रूप से बल दिया। निर्णायक हमले करने के लिए वांछित आप्रेशनों की योजनाबंदी इस तरह की गई थी कि इनमें कम से कम सैनिकों और जवानों को प्रयोग करने की ज़रूरत पड़े और किसी भी इलाक़े को आज़ाद कराने के बाद कम से कम सैनिकों की मदद से उस इलाक़े की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली जाए ताकि नए आप्रेशन करने के लिए पर्याप्त संख्या में सैनिक मौजूद रहें और ताज़ा दम सैनिकों की भी कोई कमी न हो। सामेनुल अइम्मा आपरेशन की सफलता के बाद सेना और पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स का समन्वय बढ़ा तो सहयोग भी बढ़ा और दोनों ने मिलकर युद्ध की बिल्कुल अदभुत रणनीतियां तैयार कर लीं। सेना और पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स के बीच समन्वय और सहयोग का एक नतीजा यह हुआ कि इस संदर्भ में जो गलतफ़हमी और अफवाह फैलाई जा रही थी वह सब बेअसर हो गई।

शहीद हसन बाक़ेरी

यह सब कुछ हसन बाक़ेरी जैसे युवा तथा कुशल और बलिदानी कमांडरों की महत्वपूर्ण भूमिका से संभव हुआ। इन युवा कमांडरों ने सामेनुल अइम्मा आपरेशन के तत्काल बाद लगातार कई आप्रेशन पूरी सफलता के साथ अंजाम दिए। हसन बाक़ेरी इन आप्रेशनों के प्रमुख योजनाकारों में थे। जैस जैसे समय बीता रक्षा आयोग में उनका क़द ऊंचा हो गया और उन्होंने अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया।

हसन बाक़ेरी ने सिपाह नाम के महत्वपूर्ण और नवगठित संगठन को मज़बूत बनाने में मूल्यवान योगदान दिया। सिपाहे पासदारान के वरिष्ठ कमांडरों में से एक जनरल ग़ुलाम अली रशीद हैं जो हसन बाक़ेरी के क़रीबी साथियों में हैं। उन्होंने युद्ध के वर्षों में अपनी शहादत तक जनरल हसन बाक़ेरी के साथ मिलकर बहुत काम किया। वह हसन बाक़ेरी की कमांडिंग योग्यता के बारे में बताते हैं कि युद्ध के शुरुआती महीनों में जो भी उन्हें देखता यक़ीन नहीं कर सकता था कि आगे चलकर एक साल से भी कम समय में यह युवा एक माहिर कमांडर और रणनीतिकार बन जाएगा। जंग के मोर्चों पर कुछ महीने बिता लेने के बाद हसन बाक़ेरी की अदभुत क्षमता एक सैनिक आप्रेशन के दौरान उभरी जिसका नाम था फ़रमान्देह कुल्लेक़ोवा, ख़ुमैनी रूहे  ख़ुदा। इस आप्रेशन में साढ़े तीन किलोमीटर की प्रगति और मिट्टी के बंकर बना लेने के बाद आप्रेशन के कमांडर रहीम सफ़वी के घायल हो जाने की वजह से हसन बाक़ेरी ने कमान संभाली। दुशमन ने इन बंकरों को तोड़ने के लिए पूरी ताक़त लगा दी लेकिन हसन बाक़ेरी की सूझबूझ और साहसी फ़ैसलों की वजह से आठ दिन तक दुशमन को कोई सफलता नहीं मिल पाई। इसी आप्रेशन में हसन बाक़ेरी ने साबित कर दिया कि वह महान और हैरतअंगेज़ कमांडर हैं। उन्होंने चार महत्वपूर्ण आप्रेशनों सामेनुल अइम्मा आपरेशन, तरीक़ुल कुद्स आप्रेशन, फ़त्हुल मुबीन आप्रेशन और बैतुल मूक़द्दस आप्रेशन में दुशमन को पीछे ढकेलने और दुशमन की सेना में खलबली मचा देने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। ग़ुलाम अली रशीद शहीद हसन बाक़ेरी के बारे में अपनी पुरानी यादें बयान करते हुए कहते हैं कि जंग का मैदान क्षमताओं के निखरने और प्रतिबिंबित होने का मैदान है। शहीद हसन बाक़ेरी की अदभुत क्षमता जंग के मैदान में उभर कर सामने आई। उनके ऊपर युद्ध संबंधी इन्फ़्रास्ट्रक्चर की स्थापना की ज़िम्मेदारी थी। इनमें सिपाह की इंटेलीजेन्स और आप्रेशनल इन्फ़्रास्ट्रक्चर भी शामिल था। उनकी दक्षता और प्रेरणादायक स्वभाव की वजह से शहीद शफीअज़ादे जैसे युवाओं ने भी संगठनात्मक क्षमताओं के मैदान में अपनी जौहर दिखाए और सिपाह के अलग अलग विभागों की जंग के दौरान ही स्थापना की गई। उनके वैचारिक और व्यवहारिक उपायों के नतीजे में सिपाहे पासदारान को अलग अलग आयामों से विकास मिला। सैयद यहया रहीम सफ़वी जो आठ वर्षीय युद्ध के काल के महत्वपूर्ण कमांडर हैं और सिपाहे पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स के प्रमुख भी रह चुके हैं कहते हैं कि सामरिक क्षेत्र में हसन बाक़ेरी की अदभुत क्षमता और कारनामे उनके तेज़ और असाधारण विवेक का नतीजा थे। रहीम सफ़वी का मानना है कि हसन बाक़ेरी को केवल एक बड़ा कमांडर नहीं बल्कि महान स्ट्रैटेजिस्ट मानना चाहिए जिन्होंने क्रान्तिकारी रणकौशल का प्रदर्शन करने और दुशमन को धूल चटाने के लिए  अपने असाधारण विवेक को आप्रेशनल, इंटैलीजेन्स और ट्रेनिंग जैसे क्षेत्रों में प्रयोग किया। हसन बाक़ेरी का कमाल यह था कि वह ग़ैर बराबर जंग भी जीत लेने के माहिर थे। वे दुशमन सेना की भारी नफ़री, व्यापक संसाधनों, उपकरणों और उसे प्राप्त आर्थिक, राजनैतिक व प्रचारिक सपोर्ट को पूरी तरह नाकाम बना देने की अद्वितीय क्षमता रखते थे।

बैतुल मुक़द्दस और रमज़ान नामक आप्रेशनों में शहीद बाक़ेरी के साथ रह चुके अली मीनू लिखते हैं कि शहीद बाक़ेरी की एक महानता और अद्वितीय क्षमता थी इंटैलीजेन्स जानकारियों का मूल्यांकन, युनिटों का समन्वय, आप्रेशन की योजना बंदी तथा आप्रेशन के दौरान उपस्थित रहकर कमान संभालना। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इस अकेले कमांडर के भीतर क्या क्या क्षमताएं निहित थीं। बड़े सैनिक आप्रेशन की कमान संभालने वाला उसी समय आप्रेशन को सफल बना सकता है और निर्धारित लक्ष्य हासिल कर सकता है जब उसे दुशमन की रणनीति की भी पूरी जानकारी हो। उसे पता होना चाहिए कि दुशमन अपनी रणनीति के तहत क्या क़दम कितनी तेज़ी से उठाएगा और इसका तोड़ करने और उसे नाकाम बनाने के लिए क्या टैकटिक प्रयोग की जानी चाहिए। कमांडर का आप्रेशन के दौरान मैदान में मौजूद रहना बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि आप्रेशन के दौरान कभी कभी तत्कालिक रूप से रणनीति में बदलाव करना होता है और कमांडर की उपस्थिति इसमें बड़ी मदद करती है। यह सारी क्षमताएं शहीद हसन बाक़ेरी में भरपूर अंदाज़ से मौजूद थीं।

शहीद हसन बाक़ेरी इस बारे में कहते हैं कि हमने छह महीने तक छोटे पैमाने के आप्रेशन किए और क्लासिकल युद्ध की रणनीतियों और स्वयंसेवी बलों की अदभुत युक्तियों को मिलाकर हमने अपनी योजना तैयार की तो सामेनुल अइम्मा आप्रेशन अस्तित्व में आया और इस आप्रेशन को हमने सफलता के साथ पूरा किया। जंग की कला नामक पुस्तक के लेखक सुनज़ु लिखते हैं कि कुशल कमांडर योजना के साथ ख़तरे के केन्द्र में चला जाता है लेकिन यह काम वह व्यर्थ में नहीं करता बल्कि मौक़े की तलाश में रहता है और मौक़ा मिलते ही अपना वार करता है। शहीद हसन बाक़ेरी इसका बेहतरीन उदाहरण थे। वह बिलकुल सही समय पर बड़ी सूझबूझ और पूरी दृढ़ता के साथ कार्यवाही शुरू करते थे। बैतुल मुक़द्दस आप्रेशन में शहीद हसन बाक़ेरी ने नस्र छावनी के कमांडर की हैसियत से बड़ी सूक्ष्मता से काम किया। आप्रेशन के पहले ही चरण में उन्होंने बहुत जल्द यह निष्कर्ष निकाल लिया कि खुर्रमशहर का तत्काल परिवेष्टन किया जाए और इस फ़ैसले से आप्रेशन में बड़ी सफलता मिली।

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