शौर्य गाथा- 29
हमने " फ़्तहूल मुबीन" नामक सैन्य अभियान की कुछ उपलब्धियों की चर्चा की थी जो ईरान पर थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध के दूसरे वर्ष आरंभ हुआ था।
इसकी उपलब्धियां, इससे पहले वाले दो सैन्य अभियानों " सामेनुल अइम्मा" और " तरीकुल क़ुदस" से अधिक व्यापक थीं। " फ़्तहूल मुबीन" नामक सैन्य अभियान ने थोपे गए युद्ध में पहड़े को ईरान के हित में झुका दिया।
" फ़्तहूल मुबीन" नामक सैन्य अभियान का ईरान के भीतर भी बहुत प्रभाव पड़ा था। इस सैन्य अभियान से ईरान की राजनीतिक एवं सैनिक स्थिति में उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिला। ईरान के भीतर आतंकवादी गुट एमकेओ जो टारगेट किलिंग कर रहा था उसमें भारी कमी आई।
मार्च सन १९८२ में आतंकवादी गुट एमकेओ के विरुद्ध अभियान आरंभ किया गया। यह अभियान बहुत तेज़ी से सफलता की ओर बढ़ा जिसमें इस आतंकी गुट के कई बड़े नेता मारे गए। इसका परिणाम यह निकला कि इस आतंकवादी गुट एमकेओ ने ईरान के भीतर अपने विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाहियों से भयभीत होकर अपनी आतंकी टीम को ईरान से निकाल लिया।
इन घटनाओं से ईरान के भीतर और बाहर रहने वाले क्रांति विरोधियों को विश्वास हो गया कि ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ें बहुत ही गहरी और मज़बूत हैं। वे लोग अब यह बात समझ गए कि ईरान में अरगेट किलिंग या उसके विरुद्ध युद्ध थोपकर अपनी इच्छा को हासिल नहीं किया जा सकता।
उस काल के विदेशी संचार माध्यमों ने " फ़्तहूल मुबीन" नामक सैन्य अभियान के बाद ईरान तथा उसके शत्रुओं की जो छवि पेश की थी वह काफ़ी हद तक सही थी।
अब सद्दाम के सैनिकों का मनोबल इतना गिर चुका था कि जब ईरानी सैनिक कोई हमला करते तो वे प्रतिरोध करने के बजाय या तो भाग खड़े होते या फिर ईरानी सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण कर देते थे।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ईरानी सैनिकों के मुक़ाबले में सद्दाम के सैनिकों का मनोबल बहुत गिर चुका था। युद्ध के उस चरण में बासी सरकार के सैनिकों की सबसे बड़ी समस्या, उपयोगी रिज़र्व फ़ौजियों की कमी थी।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के जियालों के मुक़ाबले में सद्दाम की संगठित सेना की उपयोगिता होती गई। " सामेनुल अइम्मा" नामक सैन्य अभियान के दौरान क्षेत्र में मौजूद इराक़ की वह बटलियन जो ख़ुर्रम शहर तथा आबादान के अतिग्रहण के बाद क्षेत्र में मौजूद थी, इस सैन्य अभियान में बुरी तरह से बौखलाहट का शिकार हो गई जिसके परिणाम स्वरुप उसका विघटन हो गया।
इस हिसाब से यह कहा जा सकता है कि जिस समय यह अभियान आरंभ हुआ था उस समय शत्रु की सेना लगभग विघटन की कगार तक पहुंच चुकी थी। इस विषय ने जहां पर बग़दाद के लिए चिंता उत्पन्न कर दी थी वहीं पर इससे सद्दाम के क्षेत्रीय एवं अन्तर्रष्ट्रीय घटक भी बहुत चिंतित हो गए थे।