Mar ०३, २०२१ १९:०३ Asia/Kolkata

सऊदी अरब उन देशों में शामिल है जिन्होंने म्यांमार में बड़े स्तर पर निवेश किया है। खास तौर पर राखीन प्रान्त में जो वास्तव में रोहिंग्या मुसलमानों का एतिहासिक ठिकाना है और जिनके अधिकांश लोगों को उनके गावों से निकाल दिया गया है और अब वे बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में ठोकरें खा रहे हैं। 

लगभग ढाई लाख रोहिंग्या, सऊदी अरब और म्यांमार के बीच होनी वाली सांठ गांठ के तहत, सऊदी अरब पहुंचा दिये गये और मक्का और मदीना नगरों के आस पास रहते हैं जहां सऊदी अरब उन्हें सस्ते मज़दूरों के रूप में इस्तेमाल करता है। कहते हैं कि सऊदी अरब की नज़र राखीन की हरी भरी उपजाऊ ज़मीन पर है और वहां से रोहिंग्या मुसलमानों को निकलवाने में भी उसने भूमिका अदा की है। म्यांमार से रोहिंग्या का मामला निश्नित रूप से एक त्रासदी है लेकिन जब यह पता चलता है कि इस के पीछे सऊदी अरब का भी हाथ हो सकता है तो  जल्दी यक़ीन नहीं आता लेकिन म्यांमार के राखीन से रोहिंग्या को निकालने के पीछे सऊदी अरब के हाथ होने की बात उस समय अधिक की जाने लगी जब Arakan Rohingya Salvation Army अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी नामक एक चरमपंथी गुट ने स्वंय को आतंकवादी संगठन दाइश से संबंधित बताया और सन 2017 में अराकान में एक पुलिस थाने पर हमला कर दिया। इस हमले में कई सैनिक मारे गये। इस घटना के बाद, बौद्ध चरमपंथियों ने रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला करना शुरु कर दिया और उन्हें म्यांमार की सेना की मदद भी प्राप्त थी। इन लोगों ने रोहिग्यां मुसलमानों की बस्तियों में बड़े पैमाने पर जनसंहार किया और तबाही फैलायी जिसके बाद दसियों हज़ार लोग भाग पर पड़ोसी देश बांग्लादेश पहुंच गये। बहुत से सूत्रों का कहना है कि अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी का सरगना, अताउल्लाह अम्मार जुनूनी है जो पाकिस्तान के कराची नगर में पैदा हुआ और सऊदी अरब में पला बढ़ा है और रियाज की खुफिया एजेन्सियों से उसके निकट संबंध हैं।

सऊदी अरब ढाई लाख रोहिंग्या को अपने देश मज़दूरी के लिए ले गया लेकिन अस्ल मक़सद उनके खेतों पर क़ब्ज़ा करना था लेकिन इसे कानूनी और धार्मिक रूप से सही दर्शाने के लिए सऊदी अरब ने उनके खेतों को खरीद लिया जिसका म्यांमार की सरकार ने भी स्वागत किया। म्यांमार की सरकार द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों पर किये जाने वाले अत्याचारों में सऊदी अरब का सहयोग एसी दशा में जारी है कि म्यांमार मेें संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष रिपोर्टर यांग ली ने बताया है कि इस देश के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों पर सेना के हमले के मात्र दो हफ्तों के दौरान एक लाख 12 हज़ार से अधिक रोहिंग्या सेना की हिंसा की वजह से देश छोड़ कर भाग गये। म्यांमार की सेना, चूंकि धार्मिक विचारधारा रखती है इस लिए वह इस देश के बौद्ध चरमपंथियों के साथ मिल कर रोहिंग्या जाति के लोगों पर एसे एसे भयानक अत्याचार करती है कि जिससे इन्सानित भी शर्मा जाती है। दुनिया भर के मीडिया में प्रसारित चित्रों  से पता चलता है कि बौद्ध चरमंपथी, रोहिंग्या मुसलमानों को  ज़िन्दा ही जला देते हैं, या उनका सिर काट देते हैं और उनकी खाल उतार लेते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सऊदी अरब में उपजाऊ ज़मीनों का अभाव है लेकिन अनाज की ज़रूरत बढ़ रही है इस लिए उसे रोहिंग्या जाति के लोगों की ज़मीनों की ज़रूरत है ताकि बड़े पैमाने पर अनाज उगाया जा सके। अमरीका में अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग की एना क्लेमैन का मानना है कि सऊदी अरब अराकान या वही राखीन को अपने लिए अनाज का भरोसेमंद स्रोत बनाना चाहता है यही वजह है कि रिपोर्टों से पता चलता है कि राखीन प्रांत में रोहिंग्या की ज़मीनों पर सऊदी अरब की फार्मिंग कंपनियों ने काम तेज़ कर दिया है।

म्यांमार के रख़ाइन में सऊदी अरब के प्रोजेक्ट का मानचित्र

जब इस सच्चाई का पता चलता है तब समझ में आता है कि आखिर क्या वजह है कि म्यांमार में इतने बड़े पैमाने पर रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या और विस्थापन पर सऊदी अरब चुप है ? यही नहीं बल्कि इसबारे में अपना रुख भी स्पष्ट नहीं करता। यही वजह है कि जब पूरी  दुनिया के मीडिया में रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा छाया था, सऊदी अरब के मीडिया में इस पर बहुत ही कम कवरेज देखने को मिली है और आज भी सऊदी मीडिया में इस मुद्दे पर बहुत ही कम चर्चा होती है। यह एसी हालत में है कि जिस तरह के दावे सऊदी अरब करता है उसके बाद इस्लामी जगत में यही उम्मीद थी कि सऊदी अरब रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में तो ज़बान खोलेगा ही मगर वह चुप रहता है। इस से पहले की यह भी रिपोर्ट आयी थी कि सऊदी अरब और इस्राईल, म्यांमार में  रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ एक दूसरे के साथ सहयोग कर रहे हैं। वैसे यह भी बता दें कि म्यांमार में सऊदी अरब का निवेश रोहिंग्या मुसलमानों से छीनी हुई ज़मीनों पर फार्मिंग तक ही सीमित नहीं है बल्कि बल्कि गत दस वर्षों के दौरान सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी आरामको ने राखीन प्रांत में तेल और गैस के क्षेत्र में भी बड़ा निवेश किया है। यह भी जानना रोचक होगा कि सऊदी अरब की आरामको कंपनी को म्यांमार में अमरीकियों ने रजिस्टर्ड किया है। सऊदी अरब ने सन 2001 के बाद म्यांमार में बड़ा निवेश किया है। यही नहीं तेल व गैस की दौलत से संपन्न राखीन प्रांत में इस तरह से सऊदी अरब सक्रिय है कि उसने चीन के साथ एक पाइन लाइन की परियोजना पर भी हस्ताक्षर किये हैं। यह पाइप लाइन, राखीन में निकलने वाले तेल को चीन पहुंचाएगा। कहते हैं कि यह तेल पाइप लाइन बहुत अधिक क्षमता रखती है और चीन की ज़रूरत का एक बड़ा हिस्सा राखीन प्रांत से पूरा किया जाएगा। चीन म्यांमार के जनरलों का सब से बड़ा समर्थक है और सऊदी अरब राखीन प्रान्त में सब से अधिक निवेश करने वाला देश है। इस तरह से यह तिकड़ी मिल कर रोहिंग्या का खून चूस रही है और हर तरफ खामोशी छायी है।

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