Mar २५, २०१६ १७:२० Asia/Kolkata
  • ईद नौरोज़-2

ईदे नौरोज़, ईरान का एक अत्यंत प्राचीन पर्व है जो भलाई, पवित्रता, सच्चाई और प्रेम का सूचक है।

ईदे नौरोज़, ईरान का एक अत्यंत प्राचीन पर्व है जो भलाई, पवित्रता, सच्चाई और प्रेम का सूचक है। यह पर्व तीन हज़ार वर्ष से अधिक समय से मनाया जा रहा है और ईरान की संस्कृति व सभ्यता का प्रतिबिंब है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह इस देश के लोगों की संयुक्त मान्यताओं को दर्शाता है। भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो नौरोज़ चीन से लेकर भूमध्य सागर के तटवर्ती क्षेत्रों तक में मनाया जाता रहा है और समय बीतने के साथ साथ इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विचार और संस्कार भी शामिल हो गए हैं। यद्यपि आज नौरोज़ के संस्कार इस व्यापक भौगोलिक क्षेत्र के हर स्थान पर अलग-अलग रूप धारण कर चुके हैं लेकिन उनका मूल ईरानी स्वरूप अब भी बाक़ी है।

इस पर्व का व्यापक भौगोलिक क्षेत्र इस बात का कारण बना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य देश इस पर विशेष ध्यान दें। यही कारण है कि 30 सितम्बर वर्ष 2009 को संयुक्त राष्ट्र संघ के वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने नौरोज़ को मनुष्य की सांस्कृतिक व नैतिक धरोहरों की वैश्विक सूचि में पंजीकृत कर लिया। इसके बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान व नौरोज़ क्षेत्र के अन्य देशों जैसे आज़रबाइजान, अफ़ग़ानिस्तान, ताजीकिस्तान, तुर्की, तुर्कमनिस्तान, क़ज़ाक़िस्तान व क़िरग़िज़िस्तान के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में 23 फ़रवरी वर्ष 2010 को शांति की संस्कृति के नाम से विश्व नौरोज़ दिवस का प्रस्ताव पारित हुआ। यह प्रस्ताव 17 आरंभिक अनुच्छेदों और 5 मुख्य अनुच्छेदों पर आधारित है।

इस प्रस्ताव के अनुच्छेदों के अनुसार 21 मार्च को विश्व नौरोज़ दिवस के रूप में स्वीकार किया गया और संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य देशों के औपचारिक कैलेंडरों में इस ऐतिहासिक दिवस को अंकित किया गया। इसके अतिरिक्त, नौरोज़ की संस्कृति व संस्कारों की रक्षा व विकास के लिए नौरोज़ मनाने वाले देशों के प्रयासों का स्वागत किया गया। नौरोज़ के संस्कारों व कार्यक्रमों से लोगों को अवगत कराने हेतु अन्य देशों का प्रोत्साहन भी इस प्रस्ताव के अनुच्छेदों में शामिल है।

नौरोज़ को महत्व देना वस्तुतः संयुक्त राष्ट्र संघ के लक्ष्यों में से एक अर्थात सभी देशों की राष्ट्रीय संस्कृतियों व सांस्कृतिक विविधता के सम्मान के माध्यम से विश्व शांति की सुदृढ़ता को व्यवहारिक बनाना है। नौरोज़, कैलेंडर में मौजूद केवल एक दिन नहीं है बल्कि यह एक गहरी संस्कृति है जो अपने संस्कारों व रीति-रिवाजों के साथ दुनिया के करोड़ों लोगों में आशा, शांति व सौभाग्य की भावना उत्पन्न करती है। पिछली शताब्दियों में जब ईरान विभिन्न सभ्यताओं व जातियों की उत्पत्ति का स्थान था, नौरोज़ एशिया के दसियों लाख लोगों की संयुक्त भाषा के रूप में एशिया, मध्य एशिया, मध्यपूर्व, कॉकेशिया, बालकान व संसार के अन्य क्षेत्रों मनाया जाता था। इस समय भी पूरे संसार में तीस करोड़ से अधिक लोग नौरोज़ मनाते हैं।

नौरोज़ का पर्व मनाना, मानव सभ्यता की मान्यताओं, इतिहास और जड़ों के सम्मान के अर्थ में है जिसने अनेक शताब्दियों के दौरान मानवीय मान्यताओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित किया है। नौरोज़ के संस्कार, राष्ट्रों के बीच समरसता व सहृदयता की भाषा हो सकते हैं। सहृदयता की यह भाषा भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान से लेकिर तुर्की, इराक़, मिस्र व संसार के अन्य देशों तक नौरोज़ के प्रसार का कारण बनी है। इस आधार पर नौरोज़ को, राष्ट्रों का पर्व भी कहा जा सकता है। विश्व नौरोज़ दिवस के निर्धारण के साथ ही हर साल नौरोज़ का वैश्विक समारोह आयोजित किया जाता है।

विश्व नौरोज़ दिवस, उसी समारोह का नाम है जिसमें संसार के कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष, इकट्ठा हो कर यह प्राचीन पर्व मनाते हैं। यह समारोह नौरोज़ के आरंभिक दिनों में आयोजित होता है और ईरान, आज़रबाइजान, अफ़ग़ानिस्तान, ताजीकिस्तान, तुर्की, तुर्कमनिस्तान, क़ज़ाक़िस्तान, क़िरग़िज़िस्तान व पाकिस्तान जैसे देश इसमें भाग लेते हैं। यह समारोह हर साल इनमें से किसी एक देश में आयोजित किया जाता है। इस समय नौरोज़ पूरी दुनिया में जाना-पहचाना पर्व है और विभिन्न देशों में नौरोज़ के संस्कार मनाए जाते हैं।

अब जब नौरोज़ एक अंतर्राष्ट्रीय समारोह में परिवर्तित हो चुका है तो इस बात का अवसर उत्पन्न हो गया है कि सभी देश व राष्ट्र विशेष कर मध्य एशिया, कॉकेशिया, बालकान, भारतीय उपमहाद्वीप और अफ़्रीक़ा के देश नौरोज़ की संस्कृति व संस्कारों की रक्षा व प्रसार के साथ ही इस प्राचीन वर्ष की मान्यताओं को संसार के समक्ष पेश करने के लिए अधिक प्रभावी कार्यक्रम तैयार करें। नौरोज़ की मुख्य विशेषता उसकी प्राचीनता है। जब कोई बात, विभिन्न पीढ़ियों तक जारी रहती है तो अगर उसमें कोई कमी होती है तो वह धीरे धीरे समाप्त हो जाती है लेकिन अगर कोई बात शताब्दियों तक जारी रहने के बावाजूद पहले ही की तरह सुदृढ़ हो तो इसका अर्थ यह है कि सभी पीढ़ियों ने अपने सभी मतभेदों और अलग-अलग विचारों के साथ उसे दिल से स्वीकार किया है।

नौरोज़ के संस्कार में मानवीय शिष्टाचार और नैतिकता का विशेष स्थान है जिसके चलते इसे एक उपहार के रूप में विश्व समुदाय में पेश किया जा सकता है ताकि हर क्षेत्र की संस्कृति के अनुसार वहां इसे मनाया जा सके। नौरोज़ में बड़ों के सम्मान, दोस्तों व रिश्तेदारों से मुलाक़ात, परिजनों के घर आना-जाना, परिवार पर अधिक ध्यान देना, न्याय, प्रेम, भलाई, उपहार व भेंट देना और सफ़ाई सुथराई ऐसी बातें हैं जो शताब्दियां बीत जाने के बाद भी अपना आकर्षण सुरक्षित रखे हुए हैं।

नौरोज़ को उसके विभिन्न मानवीय, नैतिक व प्राकृतिक आयामों और विशेषताओं के कारण असाधारण महत्व प्राप्त हो जाता है। नौरोज़ के जो संस्कार हैं उन्हें संसार के हर स्थान पर अच्छा समझा जाता है जैसे ग़रीबों की सहायता, प्रकृति की रक्षा और बड़ों के सम्मान जैसी बातें संसार में हर समाज में वांछित व सराहनीय हैं। जिस बात ने नौरोज़ को गतिशील और अमर बना रखा है वह उसका अन्य संस्कारों, आस्थाओं व संस्कृतियों से समन्वित होना है। नौरोज़ की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसे सीमाओं में बंद नहीं किया जा सकता और यह हर क्षेत्र की स्थानीय रीतियों के साथ मेल खाता है और सभी लोग इसे स्वीकार कर सकते है। यही इसकी व्यापकता का राज़ है।

 ईरान में नौरोज़ के विशेष संस्कारों व रीति-रिवाजों एक नाटक स्वरूप प्रथा है जिसका मंचन ईरानी नववर्ष या नौरोज़ के बाद पहले बुधवार को नगर के एक बड़े चौराहे पर किया जाता है। साल के पहले बुधवार को शहर व गांव के लोग एक प्राचीन प्रथा मनाने के लिए एकत्रित होते हैं। यह मीर नौरोज़ या अमीर बहारी नामक नाटक है। प्राचीन काल में इस नाटक में सबसे हंसमुख व मज़ाक़िया जवान व्यक्ति को साल के आरंभिक तेरह दिनों के लिए लोगों के निर्वाचित शासक के रूप में चुना जाता था और उसे मीर नौरोज़ी या अमीरे बहारी की उपाधि दी जाती थी। उसे शासकों जैसे रत्नजड़ित वस्त्र, ताज, शासकों का पटका, घोड़ा, जूता, तलवार, खंजर और क़ीमती हथियार दिए जाते थी। नगर के लोगों के पास जो शाही आभूषण, घोड़े और अन्य वस्तुएं होती थीं वे उन्हें इस संस्कार के आयोजकों को अमानत के तौर पर देते थे। लोग, अमीरे बहारी का, एक वास्तविक शासक की तरह सम्मान करते हैं और उसके आदेशों का पालन करते हैं। साल के पहले बुधवार से शुरू होने वाले इस समारोह में, मीरे नौरोज़ी सूर्योदय के समय ही अपने तख़्त पर बैठ जाता है और एक व्यक्ति पूरे सम्मान के साथ अगले कुछ दिनों तक उसके दरबारियों के रूप में काम करने वालों का परिचय कराता है।

उसके दरबारियों में एक व्यक्ति को बुड्ढे मंत्री के रूप में चुना जाता है जो नगर के बूढ़े व हंसमुख लोगों में से होता है। एक व्यक्ति को अमीरे बहारी के दाहिनी ओर बैठने वाले मंत्री के रूप में चुना जाता है जो तर्कसंगत आदेश जारी करता है।

 उसके बाईं ओर बैठने वाला मंत्री, विचित्र और हास्यास्पद आदेश जारी करता है। एक अन्य व्यक्ति मीरज़ा या दूसरे शब्दों में मुनीम है जो सारी बातों को लिखता जाता है। एक व्यक्ति विदूषक होता है जो जानवरों की खाल के कपड़े पहनता है और अपने कामों से लोगों को हंसाता है। मीरे नौरोज़ी के लिए काम करने वाले कुछ अन्य लोगों में उसके सेवकों, दरबानों, गवइयों और बजाने वालों का नाम लिया जा सकता है।

बताया जाता है कि प्राचीन काल में मीरे नौरोज़ी अपने अल्पकालीन शासन में निर्दोष बंदियों को जेल से रिहा करता था, आपस में मतभेद रखने वाले परिवारों के बीच मेल कराता था और लोगों को अपने घर के आस-पास के स्थानों को साफ़ करने पर विवश करता था। अपने तेरह दिवसीय शासन में मीरे नौरोज़ी को इस बात का अधिकार नहीं होता है कि वह हंसे या मुस्कुराए क्योंकि अगर वह एक बार भी मुस्कुरा दे तो उसका शासन समाप्त हो जाता है और उसे सत्ता से हटा दिया जाता है। विदूषकों का मुख्य काम यह होता है कि वे किसी प्रकार मीरे नौरोज़ी को हंसा कर उसे उसके पद से हटवा दें।


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