हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का शुभ जन्म दिवस
(last modified Wed, 30 Mar 2016 11:51:21 GMT )
Mar ३०, २०१६ १७:२१ Asia/Kolkata

20 जमादिस्सानी पैग़म्बरे इस्लाम की महान बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का शुभ जन्म दिवस है।

20 जमादिस्सानी पैग़म्बरे इस्लाम की महान बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का शुभ जन्म दिवस है। वह उस वक़्त पैदा हुयीं जब पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी को कुछ ही वर्ष हुए थे। दूसरे शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के पांचवें वर्ष पैदा हुयीं। यह वह दिन था जिस दिन पैग़म्बरे इस्लाम का घर ख़ुशियों से भर गया। उस दिन पैग़म्बरे इस्लाम और उनकी महान पत्नी हज़रत ख़दीजा का दामन ख़ुशियों से भर गया। समय हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के दुनिया में आते ही पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर का आभार व्यक्त किया और फिर उन्हें अपनी गोद में लिया और मोहब्बत भरी नज़रों से उन्हें निहारते रहे। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के रूप में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को अथाह ख़ज़ाना हवाले किया। पवित्र क़ुरआन के कौसर नामक सूरे के अनुसार हज़रत फ़ातेमा अपार भलाई का केन्द्र थीं। इस सूरे में ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम से कहता है, “हमने आपको अपार बरकत व भलाई प्रदान की तो अपने पालनहार के लिए नमाज़ पढ़िए और बलि चढ़ाइये और जान लीजिए कि आपका दुश्मन निरवंश है।” 




ये आयतें पैग़म्बरे इस्लाम को ढारस देती थीं क्योंकि उन्हें दुश्मनों के तानों का सामना था जो कहा करते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम निरवंश रहेंगे।

जी हां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने इस दुनिया में जन्म लिया ताकि पूरे संसार की महिलाओं की सरदार बनें और उनके पेट से ऐसे बच्चे जन्म लें जो सच्चाई व एकेश्वरवाद की पताका फहराएं और नैतिकता व मानवता के उच्च मानदंड स्थापित करें। पैग़म्बरे इस्लाम ने जन्म लेने वाली इस बेटी का नाम फ़ातेमा रखा जिसका अर्थ है ईश्वर ने उन्हें बुराइयों से पाक और नरक से दूर रखा है।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की मां हज़रत ख़दीजा का देहांत बहुत जल्दी हो गया था इसलिए वे अपनी मां के साथ ज़्यादा समय न बिता सकीं किन्तु ईश्वर के मार्ग में उनके प्रतिरोध व संघर्ष की गाथा स्वयं उनकी ज़बान से सुन रखा था। वह जब भी अपनी मां के चेहरे को देखतीं मानो इस गाथा के नए भाग को पढ़तीं एक ऐसी गाथा जिसका क्रम जारी था। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अपने पिता पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की छत्रछाया में जीवन के उच्च अर्थों को समझा। पैग़म्बरे इस्लाम के निकट उनका महान स्थान था। पैग़म्बरे इस्लाम का हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के प्रति स्नेह व सम्मान एक पिता का बेटी के प्रति स्नेह व सम्मान से हट कर था बल्कि वह हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के उच्च स्थान के कारण उनका सम्मान करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से बहुत स्नेह करते थे और कहते थे, “मेरी बेटी फ़ातेमा सभी युगों व पीढ़ियों की औरतों की सरदार है।”



हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने ऐसे समाज में आंख खोली जहां मानवीय मूल्यों की कोई अहमियत नहीं थी। ऐसा समाज जहां जंग, रक्तपात और बेटियों को ज़िन्दा क़ब्र में दफ़्न करना एक आम बात थी। इस्लाम के उदय के साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम ने इन बुरे रीति रवाजों का डट कर मुक़ाबला किया। ऐसा युग जिसमें बाप बेटी के जन्म लेने से दुखी होता था उस युग में पैग़म्बरे इस्लाम अपनी बेटी हज़रत फ़ातेमा के हाथों को चूमते ताकि इस तरह अज्ञानता के काल के विचारों से निपट सकें।

महान ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम के महान व्यक्तित्व की छत्रछाया में हज़रत फ़ातेमा की आत्मा में आध्यात्म रच बस गया। जब भी लोगों को नई सच्चाई से अवगत कराने के लिए ईश्वरीय संदेश वही उतरती थी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा, पैग़म्बरे इस्लाम से तत्वदर्शिता की बातें सीखतीं थीं। इस प्रकार हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने परिपूर्णतः के मार्ग को तय किया और सृष्टि के रचयिता को पहचाना जिसने इंसानों को पैदा किया और वही सारी अच्छाइयों का स्रोत है। ईश्वर की वंदना के चरम पर पहुंच कर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा कहती हैं, मैं गवाही देती हूं कि सृष्टि का पैदा करने वाला एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। यह गवाही ईश्वर के प्रति हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की शुद्ध आस्था को दर्शाती है। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को ईश्वर पर इतनी गहरी आस्था थी कि हर पल वह सिर्फ़ ईश्वर की प्रसन्नता व सामिप्य के बारे में सोचा करती थीं। वह अपने जीवन में में हर क़दम ईश्वर की प्रसन्नता हासिल करने के लिए उठाती थीं। यही कारण है कि जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से यह कहा कि हे फ़ातेमा अगर आपको किसी चीज़ के हासिल करने की इच्छा है तो बताएं इस वक़्त ईश्वरीय संदेश लाने वाला फ़रिश्ता मेरे पास मौजूद है तो हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने कहा, ईश्वर की सेवा से मिलने वाले आनंद ने मुझे हर इच्छा से दूर कर दिया है। मैं सिर्फ़ यह चाहती हूं कि हर दम ईश्वर के सुंदर जलवे को देखती रहूं। पैग़म्बरे इस्लाम ईश्वर के प्रति हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की गहरी आस्था की गवाही देते हुए अपने एक अनुयायी हज़रत सलमान फ़ारसी से कहते हैं, हे सलमान! ईश्वर ने फ़ातेमा के मन, आत्मा और वजूद में इस तरह अपनी आस्था भर दी है कि वह उसकी वंदना के कारण हर चीज़ से आवश्यकतामुक्त हो गयी हैं।



 

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने पारिवारिक व सामाजिक जीवन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और एक पत्नी तथा मां की भूमिका इस तरह निभाई कि महिला के संबंध में इस्लाम के दृष्टिगत आदर्श बनीं। उन्होंने इस सच्चाई को समझते हुए कि पुरुष और महिला सृष्टि की व्यवस्था में एक दूसरे के पूरक हैं, पारिवारिक माहौल को प्रेम व स्नेह से भर दिया। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का प्रेमपूर्ण व्यवहार उनके पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम सुकून प्रदान करता। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का मानना था परिवार सामाजिक व्यवस्था का मुख्य आधार है। उन्होंने घर व परिवार के माहौल को प्रशिक्षण का ज़रिया बनाया। उनके छोटे से घर में एसी महान हस्तियों ने प्रशिक्षण पाया कि जिनका नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हैं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने अपने बच्चों के चरित्र को सभी नैतिक गुणों, शिष्टाचार व मानवता से प्रेम से सुसज्जित किया। जीवन के इम्तेहान में एक समय एसा आया कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने तीन दिन रोज़े रखे। पहले दिन रोज़ा खोलने के समय एक दरिद्र ने इफ़्तार मांग लिया तो दूसरे दिन एक फ़क़ीर ने और तीसरे दिन एक क़ैदी ने इफ़्तार मांग लिया। इन तीनों दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने अपने अपने इफ़्तार के हिस्से मांगने वालों को दे दिया और पानी से इफ़्तार कर लिया। उनका अनुसरण करते हुए इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहेमस्सलाम ने भी एसा ही किया। इस प्रकार उन्होंने सत्य व ईश्वरीय मूल्यों के प्रसार में इतना बड़ा बलिदान दिया।



हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का घर एसा घर है जिसके सदस्य अपने हर कर्म में ईश्वर को दृष्टिगत रखते हैं। घर की स्वामिनी को ईश्वर की वंदना

से अथाह लगाव है। उनके बेटे कहत हैं, मेरी मां जब ईश्वर की उपासना के लिए खड़ी होती थीं तो ख़ुद को भूल जाती थीं और उनके चारों ओर प्रकाश की आभामंडल होती थीं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अपनी एक दुआ में कहती हैं, हे पालनहार! मुझे उस काम को अंजाम देने का अवसर प्रदान कर जिसके लिए तूने मुझे पैदा किया है। मैं उसके अलावा कोई और काम न करूं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की नज़र में महिला का घर में रहना और परिवार में उसकी भूमिका, सामाजिक मंच पर उसके सार्थक प्रयास के मार्ग में रुकावट नहीं बनती है किन्तु साथ ही महिलाओं को पुरुषों से तुलना और उनके साथ अतार्किक समानता अपनी पहचान नहीं तलाश करनी चाहिए हज़रत फ़ातेमा ज़हरा महिलाओं को यह समझाना चाहती हैं कि महिलाओं की श्रेष्ठता पुरुषों के साथ अतार्किक प्रतिस्पर्धा में निहित नहीं है बल्कि उस दायित्व को सही तरह निभाने में है जो सृष्टि की व्यवस्था में उसे दी गयी है। एक एसा दायित्व जिसे पुरुष अंजाम देने में अक्षम है। इस दृष्टिकोण के साथ हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने दांपत्य व मातृत्व जीवन के दायित्व को प्राथमिकता दी और साथ ही सामाजिक व राजनैतिक मंच पर भी सक्रिय रहीं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस्लाम के सामने मौजूद निर्णायक मोड़ पर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने सक्रिय योगदान दिया। पैग़म्बरे इस्लाम के मक्के से मदीना पलायन से लेकर युद्धों से संबंधित मामलों, पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद की घटनाओं के संबंध में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का व्यवहार ये सबके सब उस दौर के सामाजिक व राजनैतिक मामलों के प्रति हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की कर्तव्यपराणयता को दर्शाते हैं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने उन तत्वों के ख़िलाफ़ डट गयीं जो इस्लामी मूल्यों को ख़त्म करना चाहते थे। इस संदर्भ में उनके क़ुरआनी आयतों से उद्धरित भाषण मूल्यवान ख़ज़ाना हैं जो उन्होंने धार्मिक आस्थाओं व नैतिक मूल्यों को बयान करने के लिए दिए। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने उस समय की कुरीतियों का डट कर मुक़ाबला किया।

   


उस समय के राजनैतिक व सामाजिक मामलों पर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा

की गहरी नज़र थी। उनका यह दृष्टिकोण क़ुरआनी शिक्षाओं पर आधारित था इसलिए वह अत्याचार, भ्रष्टाचार व भेदभाव के ख़िलाफ़ संघर्ष का आह्वान करती थीं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने अपनी सोच, बातचीत और व्यवहार में नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को भलिभांति प्रतिबिंबित करती थीं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा कहती थीं कि धर्म को समझने और उस पर अमल करने के लिए पवित्र क़ुरआन पर ध्यान देना ज़रूरी है। एक स्थान पर वह कहती हैं, अगर मुसलमान व्यक्ति क़ुरआन पर अमल करे तो उसे मुक्ति मिलेगी। यही कारण है कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद ही घटनाओं में मुसलमानों को बिखरने से बचाने के लिए पवित्र क़ुरआन को आधार बनाने की अनुशंसा की और कहा, क्यों इधर उधर भटक रहे हो जबकि ईश्वर की किताब तुम्हारे बीच मौजूद है। जिसके बातें व आदेश स्पष्ट हैं। जिसमें मार्गदर्शन की निशानियां और चेतावनियां स्पष्ट हैं। क्यों क़ुरआन से हट कर फ़ैसले कर रहे हो? हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर इस तरह अमल किया कि उसका साक्षात नमूना बन गयीं।

ईरान में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जन्म दिवस को महिला और मांग के स्थान को महत्व देने के दिवस के रूप में मनाया जाता है। आशा करते हैं कि दुनिया भर की मुसलमान महिलाएं इस्लाम की सही पहचान और हज़रत हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को आदर्श बनाते हुए पारिवारिक व सामाजिक मंच पर अपने वास्तविक रोल को समझेंगी और उस पर अमल करेंगी।


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