Jan २१, २०२३ १८:५५ Asia/Kolkata
  • राहुल गांधी से क्यों परेशान है आरएसएस? भागवत के बयान ने कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों की खोली पोल!

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस समय भारत का सबसे बड़ा कट्टरपंथी हिन्दू संगठन है। इसका प्रभाव भारत के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सबसे अधिक है। इसलिए जब आरएसएस के मुखिया कुछ बोलते हैं तो उसको गंभीरता से सुना जाता है।

हाल में ही जब हिन्दू कट्टरपंथी संगठन आएएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने एक साक्षात्कार में खुलकर विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए, तो वे चर्चा में आ गए और अभी भी उनके विचारों का विश्लेषण चल रहा है। भागवत ने बहुत सारे बिंदुओं पर बात की। हद यह है कि वह एलजीबीटीक्यू की समस्या पर भी बोले। लेकिन मुख्यतः जो बातें सबसे अधिक चर्चा में रहीं, वे हिन्दू समाज और हिन्दू समाज के मुस्लिम समाज से संबंध जैसे मुद्दों पर थीं। मोहन भागवत के अनुसार, हिन्दू समाज ने एक हज़ार वर्ष बाद स्वतंत्रता प्राप्त की है। ऐसे में उनका मानना है कि मुसलमानों को अपने बारे में सर्वश्रेष्ठता का भ्रम नहीं होना चाहिए बल्कि मुस्लिम समाज चुपचाप इस देश में अपना जीवन व्यतीत करे। साथ ही भागवत ने मुस्लिम एवं ईसाई समाज को आगाह किया कि वे किसी प्रकार की धर्म परिवर्तन की कोई मुहिम न चलाएं। मोहन भागवत ने हिन्दू, मुस्लिम एवं ईसाई समाजों के संबंध में जो कुछ कहा, वह कोई नई बात नहीं है। संघ की स्थापना के समय से आज तक इन मुद्दों पर संघ के यही विचार रहे हैं। आरएसएस भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ मानता है। उसके अनुसार, मुसलमान देश, अर्थात हिन्दुओं के ‘मुख्य शत्रु’ हैं और हिन्दू समाज मुसलमानों के साथ एक ‘स्थायी जंग’ में है।

कट्टरंपथी हिन्दू संगठन आरएसएस हमेशा से ही भारत में धर्म परिवर्तन का विरोधी रहा है। भागवत ने अपने हालिया बयान में इन्हीं बातों को दोहराया भी है। केवल दो बातें चौंकाने वाली हैं। पहली बात, साक्षात्कार का समय और दूसरी बात, उनके साक्षात्कार का लहजा। इस समय देश में संघ की हिन्दुत्व विचारधारा का डंका बज रहा है। साथ ही नरेन्द्र मोदी सरकार खुलकर संघ का एजेंडा लागू कर रही है। कश्मीर से धारा 370 ख़त्म हो चुकी है। राम मंदिर निर्माण तेज़ी से चल रहा है। काशी-मथुरा विवाद भी कोर्ट तक पहुंच चुका है। देश में हिन्दू समाज ‘आक्रामक मुद्रा’ में है। मुस्लिम समाज भय का जीवन व्यतीत कर रहा है और लगभग पूरी तरह हाशिये पर है। इसलिए सरसंघ चालक को इस समय इन बातों को दोहराने की कोई बहुत आवश्यकता नहीं थी। फिर भी भागवत ने इन बातों को उठाया ही नहीं बल्कि उनके लहजे से कुछ ग़ुस्से का भाव भी प्रकट हो रहा है। इस समय इन बातों पर भागवत को ग़ुस्सा क्यों आ रहा है! यह एक ऐसा सवाल है कि जिसका अलग-अलग तरीक़े से जवाब दिया जा रहा है। इन्हीं जवाबों में से एक जवाब है कि जिस तरह राहुल गांधी ने भारत जोड़ो के ज़रिए पूरे भारत का दौरा किया है और जो उन्हें आम लोगों का समर्थन मिला है उससे कहीं न कहीं आरएसएस को अपनी ज़मीन खिसकती हुई नज़र आ रही है।

जैसा अभी कहा कि देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दिशा संघ की मर्ज़ी के अनुसार चल रही है। सारे राजनीतिक दलों की स्थिति बीजेपी के आगे ख़राब है। फिर भी मोहन भागवत को ग़ुस्सा आ रहा है, आख़िर क्यों? कोई तो कारण ज़रूर होगा जिसने भागवत को बोलने पर मजबूर किया होगा। देश में चारों ओर निगाह डालें, तो सन 2014 में नरेन्द्र मोदी के उदय के बाद अभी हाल तक केवल एक परिवर्तन हुआ है और वह है राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा। यह एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है। सबसे अहम बात यह है कि वह राहुल गांधी एकदम से देश की राजनीति में पुनः प्रासंगिक हो गए हैं जिनको संघ एवं बीजेपी लगभग ‘पप्पू’ की छवि दे चुके थे। अब संघ सहित कोई भी इस समय राहुल गांधी का मखौल नहीं बना सकता है। केवल इतना ही नहीं, नवंबर, 2022 में कन्याकुमारी से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के आरंभ होने से अब तक कोई भी राहुल गांधी की यात्रा के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोल सका है। निःसंदेह संघ के लिए यह बात केवल चिंता की ही नहीं बल्कि ग़ुस्से का भी कारण होना ही चाहिए। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से अब देश में संघ एवं संघ विचारधारा तथा नरेन्द्र मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर चुके हैं। संघ एवं मोदी- दोनों को सन 2014 से ही इस बात की आशंका थी। तब ही तो नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के तुरंत बाद संघ एवं बीजेपी राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने पर लगे थे और बहुत हद तक सफल भी थे। भारत जोड़ो यात्रा ने संघ एवं बीजेपी के इस अभियान पर पानी फेर दिया। इसके बाद तो भागवत को ग़ुस्सा आना ही था जो उनके साक्षात्कार से स्पष्ट है।

दूसरी अन्य बात ग़ुस्से की यह है कि सन 2014 से अब तक संघ की हिन्दुत्व विचारधारा को किसी प्रकार के चैलेंज का सामना नहीं करना पड़ा था। लेकिन देश में यात्रा के माध्यम से नफ़रत बनाम प्रेम एवं सद्भावना का अभियान चलाकर राहुल गांधी ने देश के समक्ष एक नया वैचारिक वैकल्पिक विमर्श (अल्टरनेटिव नैरेटिव) रख दिया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से गांव एवं नगर हर स्तर पर यह नैरेटिव पहुंच गया है कि एक ओर संघ की नफ़रत की एवं विभाजन की राजनीति है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस की प्रेम एवं सद्भावना की राजनीति है। इससे हिन्दुत्व को चैलेंज का ही सामना नहीं करना पड़ा है बल्कि देश में एक वैचारिक मंथन भी उत्पन्न कर दिया है। यह संघ के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया है। लगभग सौ वर्षों के कठिन परिश्रम के पश्चात जब संघ की हिन्दुत्व विचारधारा अपने चरम सीमा पर पहुंची, तो उसको राहुल गांधी ने चैलेंज कर दिया। यह बात भी सरसंघ चालक के लिए ग़ुस्से की है। भागवत को इस बात का आभास हो रहा है कि सन 2024 का लोकसभा चुनाव राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद नफ़रत बनाम प्रेम एवं सद्भावना के वैचारिक बिंदु पर हो सकता है। और राहुल गांधी इस वैचारिक मंथन के स्वाभाविक नेता के रूप में उभरेंगे। अर्थात संघ एवं बीजेपी- दोनों का राहुल विरोधी एवं केवल हिन्दुत्व विचारधारा- दोनों ही संकट में पड़ गए हैं। ज़ाहिर है कि मोहन भागवत को ग़ुस्सा आना ही चाहिए। वैसे यह बात बिल्कुल सच है कि सत्य में कठिनाई है देरी है पर हार नहीं है, लेकिन असत्य में तेज़ी है, आसानी है पर विजयी नहीं है। मोहब्बत हार के भी जीत जाती है और नफ़रत जीतकर भी हार जाती है। (रविश ज़ैदी- RZ)

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