Aug २०, २०२३ १६:०६ Asia/Kolkata
  • भारत में क्यों बढ़ रही है भड़काऊ बयान देने वालों की लगातार संख्या? हेट स्पीच  और हेट क्राइम  के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित

भारत में "हेट स्पीच"  और "हेट क्राइम"  के बढ़ते मामलों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी चिंता प्रकट करते हुए कहा है कि हेट स्पीच के दोषियों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही होनी चाहिए। अब सवाल यहां यह पैदा होता है कि आख़िर देश की सर्वोच्च अदालत के बार-बार आदेश दिए जाने के बाद भी वे कौन हैं जो भड़काऊ बयान देने वालों के ख़िलाफ़ कार्यवाही न केवल कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं बल्कि उनको सम्मानित भी किया जा रहा है।

भारत की सर्वोच्च अदालत में हेट स्पीच के मामले पर पिछली सुनवाई 11 अगस्त को हुई थी, तब कोर्ट ने केंद्र सरकार को ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक कमेटी बनाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था-हेट स्पीच और हेट क्राइम पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं। चाहे वह किसी भी पक्ष का हो। अदालत ने सरकार को आदेश दिया था कि भविष्य में ऐसी घटनाएं ना हों, इसके लिए एक मैकेनिज़्म बनाना ज़रूरी है। वहीं हेट स्पीच मामले में अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी। इस बीच सर्वोच्च न्यायलय के बार-बार कहने के बावजूद सरकार के कान में जूं भी नहीं रेंग रही है। इसकी एक सबसे बड़ी वजह यह है कि क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के ज़्यादातर नेताओं की नेतागिरी भड़काऊ बयानों और कट्टरवाद से ही चल रही है, अगर ऐसे में सरकार ने हेट स्पीच और हेट क्राइम करने वालों के ख़िलाफ़ कार्यवाही आरंभ कर दी तो सबसे ज़्यादा जिनपर इस कार्यवाही का असर होगा वह स्वयं सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के ही नेता और कार्यकर्ता होंगे। आज भारत में जिस ओर नज़र उठाकर देखेंगे एक बात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है कि कैसे कट्टरपंथी हिन्दू गुटों के लोग और स्वयं सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता धार्मिक कार्यक्रमों और जुलूसों की आड़ में मुस्लिम और ईसाई धर्म स्थलों की नुक़सान पहुंचा रहे हैं, उसपर हमले कर रहे हैं। इसके अलावा मस्जिद और चर्च के बाहर खड़े होकर भड़काऊ नारे लगाना और बयान देना तो आम बात बनती जा रही है।

हरियाणा के नूंह में हुए संप्रदायिक दंगों के बाद कट्टरपंथी हिन्दुओं द्वारा आयोजित की गई महापंचायत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे ग़ैर-क़ानूनी और भड़काऊ अभियान के विरोध में जर्नलिस्ट शाहीन अब्दुल्लाह ने कोर्ट में याचिका दाख़िल की थी। इसमें कोर्ट से अपील की गई थी कि वह सरेआम नफ़रत भरे भाषणों और नारों पर रोक लगाने के लिए केंद्र को निर्देश दे। याचिकाकर्ता ने बताया कि किस तरह देशभर में होने वाली रैलियों में एक समुदाय के सदस्यों की हत्या की जा रही है। इसके अलावा उनका आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2023 में हेट स्पीच के मामलों में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तुरंत एक्शन लेने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जब भी कोई नफ़रत फैलाने वाला भाषण देता है तो सरकारें बिना किसी शिकायत के एफआईआर दर्ज करें। हेट स्पीच से जुड़े मामलों में केस दर्ज करने में देरी होने पर इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। कोर्ट ने कहा था कि हेट स्पीच एक गंभीर अपराध है, जो देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित कर सकता है। हम धर्म के नाम पर कहां पहुंच गए हैं? यह दुख़द है। न्यायाधीश ग़ैर-राजनीतिक हैं और उन्हें पार्टी ए या पार्टी बी से कोई सरोकार नहीं है। उनके दिमाग़ में केवल भारत का संविधान है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में कार्यवाही करते समय बयान देने वाले के धर्म की परवाह नहीं करनी चाहिए। इसी तरह धर्मनिरपेक्ष देश की अवधारणा को जिंदा रखा जा सकता है। कोर्ट ने अपने 2022 के आदेश का दायरा बढ़ाते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देश दिए थे। 21 अक्तूबर 2022 को दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों को ऐसे मामलों में बिना शिकायत के केस दर्ज करने का निर्देश दिया था। लेकिन जो सरकार सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों की सीमित करने के लिए हर दिन कोई नई योजना बना रही हो तो वह देश की सर्वोच्च अदालत के इस निर्देश पर कैसे अमल करेगी यह सोचने वाली बात है! (RZ)

लेखक- रविश ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार। ऊपर के लेख में लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं। पार्स टुडे हिन्दी का इससे समहत होना ज़रूरी नहीं है। 

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