जो नाम कांग्रेस की पहचान थी, आज वही नाम उसकी बनी कमज़ोरी, ग़ैर नेहरू-गांधी परिवार के अध्यक्ष के लिए कितनी है तैयार पार्टी
प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक साक्षात्कार में कहा है कि कांग्रेस पार्टी का अगला अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से नहीं होना चाहिए। उनकी इस टिप्पणी से कई तरह के सवाल पैदा हो गए हैं। वैसे तो कांग्रेस पार्टी में पहले भी कई ग़ैर नेहरू-गांधी परिवार के अध्यक्ष बन चुके हैं, लेकिन अब जबकि इस समय सोनिया गांधी के अलावा दो-दो ऐसे चेहरे हैं जो नहरू-गांधी परिवार से हैं और दोनों ही इस समय भारतीय राजनीति के चमकते सितारे हैं तो ऐसी स्थिति में प्रियंका का इस तरह की बात का करना, इसके क्या मायने हो सकते हैं।
भारत के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने यह बात एक किताब के लेखकों को दिए साक्षात्कार में कही। प्रदीप छिब्बड़ और हर्ष शाह द्वारा लिखित किताब "इंडिया टुमॉरो: कॉनवर्सेशन्स विद द नेक्स्ट जनरेशन ऑफ पॉलिटिकल लीडर्स" 13 अगस्त को प्रकाशित हुई है। इस किताब के लेखकों को दिए साक्षात्कार में प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि यही बात उनके भाई और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कही है और वो इस बात का समर्थन करती हैं। यह कोई नया विचार नहीं है, लेकिन यह बयान दे कर पार्टी को नेहरू-गांधी परिवार के बाहर अपना नेतृत्व तलाशने की सलाह देने वाली खुद उसी परिवार की वह दूसरी सदस्य बन गई हैं और इस वजह से इस मुद्दे पर भारत के राजनीतिक गलियारों से लेकर मीडिया हल्कों में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। 2019 में लोक सभा चुनावों में हारने के बाद राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और पार्टी को नया अध्यक्ष चुनने को कहा था। बताया जाता है कि उन्होंने पार्टी के अंदर कहा था कि अगला अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से नहीं होना चाहिए। उसके बाद कई दिनों तक ऐसी अटकलें भी लगीं कि इस बार कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति होगा। कई नाम भी चर्चा में आए, लेकिन अंत में ऐसा कुछ हुआ नहीं और राहुल और प्रियंका की मां और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ही अगले अध्यक्ष के चुने जाने तक अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया।
यूं तो भारत की आज़ादी के पहले और उसके बाद भी कांग्रेस पार्टी के कई अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के रहे हैं। आज़ादी के तुरंत बाद जे बी कृपलानी, पी सीतारमैया, पुरुषोत्तम दास टंडन, यू एन धेबार और बाद के दशकों में नीलम संजीव रेड्डी, के कामराज, एस निजलिंगप्पा, जगजीवन राम, शंकर दयाल शर्मा, देवकांत बरुआ, के ब्रह्मानंद रेड्डी, पी वी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के नाम इस सूची में शामिल हैं। लेकिन जवाहरलाल नेहरू, उनकी बेटी इंदिरा गांधी, उनके बेटे राजीव गांधी, उनकी पत्नी सोनिया गांधी और फिर उनके बेटे राहुल गांधी के बीच पार्टी की अध्यक्षता सबसे ज़्यादा समय तक नेहरू-गांधी परिवार में ही रही। अकेले सोनिया गांधी ही 19 वर्षों तक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहीं और सबसे लंबे कार्यकाल वाली कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। जवाहरलाल नेहरू 17 साल तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद आज़ादी के बाद पार्टी अध्यक्ष सिर्फ तीन साल तक रहे, लेकिन इंदिरा गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के ही प्रधानमंत्री भी होने की परिपाटी स्थापित की। इसे राजीव ने भी आगे बढ़ाया और नरसिम्हा राव ने भी। सीताराम केसरी की अध्यक्षता में कांग्रेस कभी सत्ता में नहीं आई, इसलिए उन्हें ये मौक़ा भी नहीं मिला। 2009 में मनमोहन सिंह के रूप में पार्टी ने कई दशकों बाद कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पदों पर अलग अलग व्यक्तियों को नियुक्त किया। लेकिन बीते 22 सालों से पार्टी की अध्यक्षता नेहरू-गांधी परिवार के ही पास है, जिसकी वजह से यह माना जाने लगा है कि अब पार्टी परिवार के ही इर्द-गिर्द घूमती है और परिवार के बिना शायद ही पार्टी का कोई वजूद हो।
अब बात करते हैं प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा साक्षात्कार में दिए सुझाव के बाद से शुरू हुई चर्चा की, क्या नेहरू-गांधी परिवार के बाहर से भी कोई कांग्रेस का अध्यक्ष बन सकता है? हालांकि साक्षात्कार पर पार्टी की प्रक्रिया देख कर ऐसा लगता है कि पार्टी ख़ुद इसके लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक बयान जारी कर कहा कि प्रियंका की टिप्पणी एक साल पुरानी है और आज के हालात में पार्टी चाहती है कि राहुल ही फिर से पार्टी की बागडोर संभालें। जानकारों का कहना है कि पार्टी लगातार दो लोक सभा चुनाव हारने के बाद संकट से गुज़र रही है और ऐसे में नए नेतृत्व पर विचार होना ही चाहिए, लेकिन ऐसा होने की संभावना कम ही नज़र आती है। टीकाकारों का कहना है कि, कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार के बाहर पार्टी की कमान संभालने की योग्यता रखने वाले लोग तो बिलकुल हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रता ग़ैर नहरू-गांधी परिवार से अध्यक्ष के नेतृत्व को कितना स्वीकार करते हैं और उसकी पार्टी के नेताओं पर कितना पकड़ रहती है यह कहना बहुत मुश्किल है। टीकाकारों के मुताबिक़, अगर पार्टी कार्यक्रताओं और नेताओं पर किसी नए अध्यक्ष के प्रभाव को बाक़ी रखना है तो उसके लिए ज़रूरी है किसी ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष पद के लिए चुना जाए कि जिसको नेहरू-गांधी परिवार की तरफ़ से पूरा समर्थन प्राप्त हो।
भारतीय राजनीति पर क़रीब से नज़र रखने वाले जानकारों का कहना है कि जब भी कांग्रेस पार्टी इस विचार को गले लगाने के लिए क़रीब होती है तब नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी जैसे पूर्व अध्यक्षों का बाद में पार्टी में हुआ हश्र याद आ जाता है और फिर यह धारणा ऊपर आ जाती है कि नेहरू-गांधी परिवार ही पार्टी को एकजुट रख सकता है। लेकिन जानकारों का यह भी कहना है कि, कांग्रेस पार्टी में नेहरू-गांधी परिवार की भूमिका अब सिमट गई है, क्योंकि परिवार के सदस्यों की अब न तो पहले की तरह जनता के बीच चमत्कारी लोकप्रियता है, न वह वोट ही ला पा रहे हैं और ना ही पार्टी के लिए धन जुटा पा रहे हैं। नेतृत्व में बदलाव पर इतनी चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि भारत की सबसे पुरानी पार्टी इस समय कई तरह के संकटों से गुज़र रही है। सिर्फ लोक सभा चुनाव ही नहीं, पार्टी पिछले छह वर्षों में कई विधान सभा चुनाव भी हारी है और कई राज्यों में सत्ता को गंवा चुकी है। इसकी वजह से राज्य सभा में भी पार्टी की संख्या घटती जा रही है। पार्टी के अंदर कलह भी बढ़ रही है और नेता पार्टी छोड़ कर भी जा रहे हैं। ऐसे में पार्टी को एक मज़बूत नेतृत्व की बहुत ज़्यादा ज़रूरत। टीकाकारों का कहना है कि अब समय आ गया है कि नेहरू-गांधी परिवार पार्टी को संकट से निकालने के लिए कोई कठोर और समझदारी भरा फ़ैसला लें, अगर पार्टी की सत्ता उन्हें अपने पास ही रखनी है तो वह मज़बूती से उसे संभालें नहीं तो ख़ुद को किनारे करें और नए चेहरों को आने का मौक़ा दें और उसी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पार्टी को फिर से खड़ा करें। (RZ)
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