Oct १०, २०२३ १६:४४ Asia/Kolkata
  • युद्ध के मैदान में आख़िर ऐसा क्या हुआ था कि शहीद जनरल क़ासिम को आ गया था ग़ुस्सा? इराक़ी पत्रकार ने क़ुद्स ब्रिगेड के पूर्व कमांडर के साथ बिताए पलों को किया बयान

ईरान के महान योद्धा शहीद जनरल क़ासिम सुलेमानी युद्ध के मैदान में अपनी बहादुरी के लिए दुनियाभर में जाने जाते थे। उन्होंने इराक़ और सीरिया को तकफ़ीरी आतंकी गुटों, विशेषकर दाइश जैसे ख़ूख़ार आतंकवादी गुट के ख़िलाफ़ लड़ाई में जीत हासिल करने में मदद के लिए बतौर शीर्ष सैन्य सलाहकार उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी।

इस्लामी गणराज्य ईरान के महान जनरल शहीद क़ासिम सुलेमानी अपने मानवतावादी चरित्र के लिए भी जाने जाते थे। 'तेहरान टाइम्स' इराक़ी युद्ध रिपोर्टर सैय्यद हैदर अलमूसवी के पास पहुँचा, जिन्होंने इराक़ और सीरिया के अनेक युद्धक्षेत्रों में शहीद जनरल क़ासिम सुलेमानी के साथ कई महीने बिताए थे। हैदर अलमूसवी, जनरल सुलेमानी के कुछ मानवीय पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं, जिन्हें 3 जनवरी, 2020 को बग़दाद के अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के पास अमेरिका ने एक आतंकवादी कार्यवाही करते हुए शहीद कर दिया था। संयुक्त राष्ट्र ने उस हमले की निंदा करते हुए उसे ''ग़ैर-क़ानूनी'' बताया और दुनियाभर में हज़ारों लोगों ने सड़कों पर उतर कर अमेरिका की इस आतंकी कार्यवाही के ख़िलाफ़ अपना आक्रोश प्रकट किया था। इराक़ी पत्रकार सैयद हैदर अलमूसवी पश्चिम एशिया और उससे बाहर के कई लोगों की तरह जनरल सुलेमानी को सम्मान के प्रतीक के तौर पर ''हाजी'' या ''हाज क़ासिम'' के रूप में संदर्भित करते हैं।

इराक़ी पत्रकार हैदर अलमूसवी के साथ हुई पूरी बातचीत का ब्योरा तेहरान टाइम्स ने कुछ इस प्रकार प्रकाशित किया है।

प्रश्न: आपके लिए, जनरल क़ासिम सुलेमानी के साथ युद्ध के मैदान में सबसे ख़ास बात क्या है?

उत्तर: ''सबसे मुश्किल ऑपरेशनों में से एक, जो हमेशा दिमाग़ में आता है, वह पलमायरा में हुई लड़ाई थी। आतंकवादियों की बहुत भारी गोलीबारी का सामना करते हुए हाजी (जनरल क़ासिम) अग्रिम पंक्ति में थे। हम सब थे। यह शायद सबसे मुश्किल ऑपरेशन था, जिसमें हमने शिकस्त दी थी। हाज क़ासिम ने पूर्वी तेहरान में इस्लामिक रेवोल्यूशन गार्ड्स कॉर्प्स क़ुद्स फ़ोर्स के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति से संपर्क किया। गोलीबारी की तेज़ आवाज़ों के बीच तेहरान में मौजूद व्यक्ति के लिए हाजी की आवाज़ सुनना मुश्किल था। तेहरान में क़ुद्स फ़ोर्स के ज़िम्मेदार व्यक्ति ने उनसे पूछा, 'आपको क्या चाहिए हाजी? बस एक आदेश दीजिए; क्या कुछ हुआ है?' भारी गोलीबारी की आवाज़ से उस व्यक्ति को तुरंत यह अंदाज़ा हो गया था कि हाजी जिस ऑपरेशन में शामिल थे, उसमें कोई बड़ी घटना हो गई है।

आईआरजीसी क़ुद्स फ़ोर्स के अधिकारी ने हाजी के जीवन के संबंध में अनिष्ट की आशंका को लेकर तुरंत दोबारा पूछा कि आपको इस ऑपरेशन के लिए किस चीज़ की ज़रूरत है। हाज क़ासिम ने जवाब दिया कि 'मुझे आपसे एक अनुरोध करना है।' 'जी, आगे कहिए।' हाजी ने कहा, 'जब मैं तेहरान में क़ुद्स फ़ोर्स सेंटर में था, तो वहाँ एक खुली पहाड़ी थी और उधर हमेशा अलग-अलग जानवर रहते थे। उनमें जंगली जानवर और लोमड़ियाँ भी शामिल थीं। पक्षियों के लिए भी विभाजित इलाक़ा था।' हाजी ने उससे कहा कि जब मैं तेहरान में था तो इन जानवरों के लिए हमेशा खाना लेकर जाता था और अब इन्हें खाना देने वाला कोई नहीं है। मेरा यही एकमात्र अनुरोध है। कृपया किसी को भेजें या वहाँ जाएँ। अभी मौसम बहुत ठंडा है और निश्चित रूप से उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए कृपया उनके लिए थोड़ा खाना पहुँचा दीजिए।''

प्रश्न: आपके मुताबिक़, युद्ध के मैदान में कौनसी अन्य घटनाएं उनके मानवीय पक्ष को दर्शाती हैं?

उत्तर: ''बहुत सारी (घटनाएं) हैं। एक बार अल-बुकमाल (पूर्वी सीरिया) में। जैसा कि आप हाजी के बारे में जानते हैं, ख़ास तौर से सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो की वजह से, वे बहुत ही परवाह करने वाले, भावपूर्ण और दयालु, विनम्र सज्जन थे; वे धीरे और प्यार से बोलते थे। साथ ही, इन सभी ख़ूबियों ने उन्हें अपने आस-पास के सभी लोगों से इतना सम्मान दिलाया। यह बहुत साफ़ था, हर कोई इन ख़ूबियों के बारे में उनकी तस्वीरों, वीडियो और अन्य फ़ुटेज के ज़रिए जानता है। अल-बुकमाल में, एक भाई के पास रेडियो (वॉकी टॉकी) था, लोग अलग-अलग जगहों से बात कर रहे थे, तभी हाज क़ासिम की आवाज़ आई। मुझे पहली बार महसूस हुआ कि हाज क़ासिम बेहद ग़ुस्से में थे। वे बहुत नाराज़ थे और आप उनकी आवाज़ में उस व्यक्ति पर ग़ुस्सा महसूस कर सकते थे, जिन्हें वे संबोधित कर रहे थे। मुझे अचंभा हुआ। अल-बुकमाल में स्थिति बहुत तनावपूर्ण थी, बहुत मुश्किल ऑपरेशन था और हाजी ग़ुस्से में थे। मैं जानना चाहता था कि क्या हो रहा है। मुझे जल्द ही पता चला कि हाज क़ासिम जिस व्यक्ति को संबोधित कर रहे थे, वह सैनिकों को खाना पहुँचाने का प्रभारी था। तो, युवाओं का यह समूह था, उनमें अफ़ग़ान और पाकिस्तानी वॉलंटियर भी शामिल थे।

यह यूनिट युद्ध के मैदान के बीच में प्रवेश कर गई थी, इसलिए उन लोगों तक खाना नहीं पहुँचाया गया और उन्होंने इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा या शिकायत नहीं की थी। कई घंटे बाद, यूनिट के लीडर ने हाजी से संपर्क किया और पूछा, 'अगर हमें थोड़ा पानी मिल जाए, हम बाद में फंस सकते हैं।'  इसलिए, हाजी खाना पहुँचाने के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति पर बहुत ग़ुस्सा हुए और उससे पूछा कि इन सैनिकों को कुछ भी क्यों नहीं पहुँचाया गया? उस व्यक्ति ने जवाब दिया, 'मुझसे किसी ने अनुरोध नहीं किया था। मैंने खाना तैयार कर लिया; वे इसे लेने नहीं आए।' हाजी और भी ग़ुस्सा हो गए और जैसा कि मैंने आपको बताया, मुझे बाद में पता चला कि उन्होंने खाने के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति से कहा था कि आपको सैनिकों तक खाना पहुँचाना होगा। हाजी ने कहा, (क्या) इन वॉलंटियरों ने आने और खाना लेने के लिए अपने परिवार और काम को नहीं छोड़ा? आपको इसे पहुँचाना ही होगा। यह आपकी ज़िम्मेदारी है। हाजी ने उससे कहा था, आप कुक नहीं हैं कि लोग आकर अपना लंच ले जाएँ। 'आपने कैसे ध्यान नहीं दिया कि ये लोग इस रास्ते पर चले गए हैं और महिलाओं व बच्चों को बचाने के लिए लड़ रहे हैं, आप ऐसा कैसे होने दे सकते हैं? ये लोग यहाँ लड़ने आए हैं और आप यहाँ बहाना लेकर बैठे हैं!' यह वो था, जो हाजी ने कहा।''

प्रश्न: जनरल सुलेमानी के साथ युद्ध पत्रकार बनना कैसा था?

उत्तर: ''दाइश आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध में, ख़ास तौर से इराक़ और सीरिया में, हममें से ज़्यादातर, पत्रकार के रूप में, अग्रिम पंक्ति, एक संवेदनशील पॉइंट, या एक निर्णायक घटना के जितना मुमकिन हो, उतना क़रीब रहना चाहते थे। उदाहरण के लिए, सबसे अच्छा कवरेज हासिल करने के लिए। जब किसी इलाक़े या ज़मीन को मुक्त कराने की बात आती थी तो यह और भी महत्त्वपूर्ण था। हर रिपोर्टर यही चाहता था। शायद सभी नहीं, लेकिन रिपोर्टरों में से ज़्यादातर। इराक़ और सीरिया में कई मौक़ों पर ऐसा हुआ, जब हम काफ़ी ख़ुश थे कि हमने बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटनाक्रमों के साथ अपना कवरेज पूरा कर लिया। एक पॉइंट पर हम, आतंकवादियों के बहुत नज़दीक थे, जिससे कैमरामैन एक स्नाइपर की 'शूटिंग दूरी' पर था। अचानक हमने देखा कि हाजी एक ऐसे पॉइंट पर थे, जो दुश्मन के हमसे भी क़रीब था। वे मोटरबाइक पर पीछे बैठे थे और हमसे आगे लड़ाई के मैदान में प्रवेश कर गए। ऐसा इराक़ और सीरिया में कई मौक़ों पर हुआ। जब आप हाजी को अपने सामने देखते और वे आपको अपने पीछे आने के लिए अनुमति देते, तो (आप) ख़ुद को सुरक्षित महसूस करते। ज़्यादातर अन्य कमांडर बैरक में बैठे-बैठे ही लड़ाई में जाने का आदेश दे देते थे, जबकि हाजी हमेशा इसके विपरीत होते थे। वे अनूठे थे और उन्होंने हमें बेहतरीन रिपोर्ट बनाने में सक्षम बनाया।'' (RZ)

नोटः तेहरान टाइम्स में छपी रिपोर्ट का राजीव शर्मा द्वारा किया गया अनुवाद।  

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