ब्रिटेन के किंग चार्ल्ज़ की ताजपोशी की तैयारियां भी, बवाल भी
(last modified Sat, 06 May 2023 08:11:56 GMT )
May ०६, २०२३ १३:४१ Asia/Kolkata

ब्रिटेन के राजा चार्ल्ज़ की ताजपोशी के समारोह की तैयारियां ज़ोर शोर से जारी हैं और इस समारोह का अभ्यास बड़ी तनमयता से किया जा रहा है।

वहीं ब्रिटेन में लोकतंत्र के समर्थकों ने एलान किया है कि वे शाही व्यवस्था और शाह के ख़िलाफ़ जिनके चयन में जनता की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई भूमिका नहीं है लंदन और दूसरे शहरों में प्रदर्शन करेंगे।.....एक नागरिक का कहना था कि शाही व्यवस्था अनेक समस्याओं में घिरी है। शाही ख़ानदान की लोकप्रियता तेज़ी से घटती जा रही है यही वजह है कि ताजपोशी के समारोह के समर्थकों की संख्या मांत्र 9 प्रतिशत है। प्रदर्शनों का एलान होते ही ब्रिटेन की सरकार और संसद हरकत में आ गई और देश भर में प्रदर्शनों पर रोक लगाने के लिए बहुत कड़ा क़ानून बनाकर उसे लागू कर दिया। इस क़ानून के अनुसार उन प्रदर्शनकारियों को 12 महीने की जेल तक हो सकती है जो सड़कों, रेवले या एयरपोर्ट का काम रोकने की कोशिश करेंगे इस तरह के लोगों को नक़दी जुर्माना भी अदा करना पड़ेगा। ब्रिटेन में पास होने वाले इस क़ानून से पुलिस को इतनी ताक़त मिल गई है कि वे केवल संदेह के आधार पर किसी की भी तलाशी ले सकते हैं, पूछताछ कर सकते हैं यहां तक कि गिरफ़तार भी कर सकते हैं।.....लोकतंत्र के समर्थकों का कहना है कि यह क़ानून बिलकुल ग़लत है इसे हरगिज़ लागू नहीं किया जाना चाहिए। राजनैतिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार कर्यकर्ताओं ने इसे काला क़ानून कहा है और कुछ का कहना है कि यह क़ानून विरोधी स्वर को कुचलने की कोशिश है।.....महिला प्रदर्शनकारी का कहना था कि हम इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेन के लिए बाहर निकले हैं, यह क़ानून प्रदर्शन के अधिकार पर हमला करता है, यह लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है और अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने वाला है। आलोचक कहते हैं कि इस समय आर्थिक संकट की वजह से पूरे देश की जनता गंभीर कठिनाइयों को झेल रही है इन हालात में अगर मिलियनों पौंड इस समारोह पर ख़र्च करने का कोई तर्क नहीं है। यह एक तरह से अस्वीकार्य और जनता को चिढ़ाने की कोशिश है। ब्रिटेन का मीडिया कहना है कि यह बेहद महंगा और कड़ी सुरक्षा में आयोजित होने वाला समारोह इन हालात में आयोजित हो रहा है जब शेल्टर नाम की संस्था का कहना है कि ब्रिटेन की 67 मिलियन की आबादी में बीस प्रतिशत लोग ग़रीबी में जीवन गुज़ार रहे हैं। मुजतबा क़ासिमज़ादे

 

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