Nov ०९, २०२१ १८:३८ Asia/Kolkata

सूरए साफ़्फ़ात आयतें 39-49

 

وَمَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (39)

और तुम्हें जो बदला भी दिया जा रहा है, वह उन्हीं कर्मों का दिया जा रहा है जो तुम करते रहे हो। (37:39)

पिछले कार्यक्रम में काफ़िरों व अनेकेश्वरवादियों के उन आरोपों का उल्लेख किया गया जो वे पैग़म्बरों पर लगाते थे। इसी तरह प्रलय में उन्हें मिलने वाले दंड की तरफ़ भी इशारा किया गया। ये आयतें कहती हैं कि अपराधियों को मिलने वाला ईश्वरीय दंड, द्वेष, बदले या भड़ास निकालने के लिए नहीं है बल्कि ख़ुद उनके द्वारा किए जाने वाले कर्मों का फल है।

धार्मिक किताबों के अनुसार इंसान के विचार व कर्म उसकी आत्मा पर प्रभाव डालते हैं और उसके वास्तविक व्यक्तित्व को तैयार करते हैं। परलोक की व्यवस्था में दंड व पारितोषिक का आधार, दुनिया में तैयार किया गया इंसान का व्यक्तित्व है जो उसी व्यवस्था के अनुकूल, साक्षात होगा। ईश्वर के इन्कार और कुफ़्र या अत्याचार व साम्राज्य का मनुष्य की आत्मा पर इतना विध्वंसक प्रभाव पड़ता है कि प्रलय में उसका नतीजा नरक के अलावा कुछ नहीं है।

यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि दुनिया में मिलने वाले अधिकतर दंड व जुर्माने पहले से तै शुदा होते हैं और हर स्थान पर अलग अलग होते हैं लेकिन प्रलय में ऐसा नहीं होगा। उदाहरण स्वरूप, ग़लत ढंग से गाड़ी ओवरटेक करने का एक जुर्माना है जिसकी रक़म अलग-अलग देशों में अलग-अलग होती है लेकिन ग़लत ओवरटेक का एक स्वाभाविक नतीजा भी है और वह है बग़ल वाली गाड़ी से टकराने का ख़तरा। आर्थिक जुर्माना एक तै शुदा काम है और हो सकता है कि यह ग़ैर क़ानूनी काम करने वाला पुलिस या कैमरों की नज़रों से बच जाए लेकिन गाड़ी के टकराव का ख़तरा, इस ग़लत काम का स्वाभाविक नतीजा है और इस ख़तरे से बचा नहीं जा सकता। प्रलय में मिलने वाले दंड, पहले प्रकार के नहीं बल्कि दूसरे प्रकार के होंगे।

इस आयत से हमने सीखा कि ईश्वर के दंड न्यायपूर्ण हैं क्योंकि वे पूरी तरह इंसान के कर्म के अनुसार हैं।

प्रलय, हमारे विचारों व कर्मों के नतीजों के सामने आने का दिन है। जो कुछ हमने दुनिया में बोया है, उस दिन हम वहां वही काटेंगे।

आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 40 से 44 तक की तिलावत सुनें।

إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ (40) أُولَئِكَ لَهُمْ رِزْقٌ مَعْلُومٌ (41) فَوَاكِهُ وَهُمْ مُكْرَمُونَ (42) فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ (43) عَلَى سُرُرٍ مُتَقَابِلِينَ (44)

सिवाय अल्लाह के चुने हुए (निष्ठावान) बंदों के (जो इस बुरे अंजाम से सुरक्षित होंगे।) (37:40) उनके लिए एक निर्धारित रिज़्क़ यानी आजीविका है। (37:41) तरह तरह के फल होंगे और वे सम्मानित होंगे। (37:42) (वे) नेमतों भरे बाग़ों में (होंगे।) (37:43) (और) एक दूसरे के सामने तख़्तों पर टेक लगाए बैठे होंगे। (37:44)

पिछली आयतों में नरक वालों के गुट का उल्लेख करने के बाद इन आयतों में स्वर्ग वालों का उल्लेख किया गया है। आयतें कहती हैं कि ईश्वर के चुने हुए और निष्ठावान बंद, प्रलय के दंड से सुरक्षित हैं। उन्हें स्वर्ग में तरह तरह की नेमतें हासिल होंगी और पूरी तरह से आराम व ऐश्वर्य का जीवन बिता रहे होंगे।

क़ुरआने मजीद की संस्कृति में मुख़िलस उस व्यक्ति को  कहा जाता है जो ईश्वर के लिए अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से अंजाम देने की कोशिश करते हैं और आध्यात्मिक प्रगति की राह पर बढ़ते रहते हैं। सूरए साफ़्फ़ात की 40वीं आयत में “मुख़लस” शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब होता है वह व्यक्ति जो अपनी परिपूर्णताओं के कारण ईश्वर की ओर से चुन लिया जाता है और वह आध्यात्मिक परिपूर्णता के शिखर पर पहुंच जाता है।

क़ुरआने मजीद हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के बारे में, जिन्होंने ईश्वर की कृपा व मदद से अपने आपको एक औरत की आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में बड़ी कठिन समस्या से बचाया था, कहता हैः वे ईश्वर के चुने हुए निष्ठावान बंदों में से एक हैं।

स्वाभाविक है कि जब तक ख़ुद निष्ठावान बनना नहीं चाहेगा, तब तक वह निष्ठावान नहीं बन सकता क्योंकि ईश्वर किसी को भी किसी काम के लिए मजबूर नहीं करता। जो भी इस राह में क़दम बढ़ाना चाहता है उसे हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ईश्वर के अलावा किसी के लिए भी कोई काम न करे। ईश्वर भी इस राह में उसकी मदद करेगा और उसे अपने सही मार्ग पर ले आएगा।

इस तरह के लोग न सिर्फ़ यह कि दंड से दूर हैं बल्कि उनका पारितोषिक भी केवल उन कामों तक सीमित नहीं है जो उन्होंने अंजाम दिए हैं। उन्हें, कुछ कामों के लिए उनकी पवित्र नीयतों के कारण ईश्वरीय पारितोषिक मिलेगा, चाहे वे लोग उन कार्यों को अंजाम देने में कामयाब न हो पाए हों।

इन आयतों से हमने सीखा कि

ईश्वर की बंदगी, हर प्रकार के अनेकेश्वरवाद और दिखावे से इंसान के शुद्ध होने की राह समतल करती है।

अपराधियों का दंड, ईश्वरीय न्याय के आधार पर और उनके कर्मों के अनुसार है लेकिन पवित्र व सद्कर्मी इंसानों को मिलने वाला पारितोषिक, उनके कर्मों से आगे बढ़ कर और ईश्वर की दया व कृपा के आधार पर होता है।

स्वर्ग में भौतिक व आध्यात्मिक आनंद एक दूसरे के साथ हैं और हर किसी को एक निर्धारित व सुनिश्चित आजीविका मिलती है।

ईश्वर के प्रिय बंदों से मुलाक़ात और उनका साथ, स्वर्ग वालों के आध्यात्मिक आनंदों में से एक है।

आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 45 से 49 तक की तिलावत सुनें।

يُطَافُ عَلَيْهِمْ بِكَأْسٍ مِنْ مَعِينٍ (45) بَيْضَاءَ لَذَّةٍ لِلشَّارِبِينَ (46) لَا فِيهَا غَوْلٌ وَلَا هُمْ عَنْهَا يُنْزَفُونَ (47) وَعِنْدَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ عِينٌ (48) كَأَنَّهُنَّ بَيْضٌ مَكْنُونٌ (49)

उनके बीच शुद्ध (व पवित्र) शराब के जाम फिराए जाएंगे। (37:45) बिलकुल (साफ़ व) उज्जवल शराब, जो पीने वालों के लिए आनंददायक होगी। (37:46) उससे न उनके शरीरों को कोई नुक़सान होगा और न वे उस (के पीने) से मदहोश होंगे। (37:47) और उनके पास निगाहें बचाए रखने वाली, सुन्दर आँखों वाली स्त्रियाँ होंगी। (37:48) जैसे (पक्षी के परों के नीचे) छिपे हुए अंडे। (जिन्हें किसी ने छुआ तक न हो) (37:49)

पिछली आयतों के अंत में क़ुरआने मजीद ने कहा था कि स्वर्ग वाले तख़्तों पर टेक लगाए बैठे होंगे और उनकी बड़ी अपनाइयत वाली बैठक होगी। ये आयतें कहती हैं कि उनके तख़्तों के आस-पास सेवा-सत्कार करने वाले घूम रहे होंगे जो उन्हें स्वर्ग के स्वादिष्ट व शीतल पेय पेश करेंगे। ये पेय, स्वर्ग के सोतों से निकल रहे होंगे और सत्कार करने वाले उन सोतों से जाम भरेंगे और उन्हें लेकर स्वर्ग में पहुंचने वालों के चारों ओर घूमते रहेंगे।

दुनिया में कुछ जातियां विभिन्न प्रकार के पेयों से अपने मेहमानों का सत्कार करती हैं लेकिन ये आयतें, दुनिया के पेयों और स्वर्ग के पेयों की आंशिक तुलना करती हैं। उल्लेखनीय है कि स्वर्ग के पेय, जिन्हें सूरए इंसान की 21वीं आयत में स्वर्ग के पेयों को "शराबे तहूर" अर्थात पवित्र पेय या शराब कहा गया है, दुनिया के पेयों व शराबों से बिलकुल अलग हैं और इस दुनिया की शराब के विपरीत स्वर्ग की शराब पीने से कोई मदहोश नहीं होता और कोई अनुचित बात या व्यहार नहीं करता।

इन आयतों के अंत में क़ुरआने मजीद ईश्वर की एक अन्य अनुकंपा की तरफ़ इशारा करते हुए कहता है कि स्वर्ग की पत्नियां अपने पतियों के अलावा किसी से प्यार नहीं करतीं और किसी और की तरफ़ नज़र उठा कर भी नहीं देखतीं। वे अत्यंत सुंदर औरतें हैं जो दूसरों की पहुंच से दूर और छिपी हुई हैं। उस अंडे की तरह जिसे मुर्ग़ी या पक्षी अपने परों के नीचे छिपा कर रखते हैं ताकि वे दूसरों की पहुंच से दूर रहें। स्वर्ग की हूरें भी इसी तरह अपने पति के अलावा हर किसी की नज़रों व पहुंच से दूर हैं।

इन आयतों से हमने सीखा कि प्रलय में लोग शरीर के साथ पहुंचेंगे और स्वर्ग वालों के लिए विभिन्न प्रकार के शारीरिक आनंद मौजूद हैं। नरक वालों को भी विभिन्न प्रकार की शारीरिक यातनाओं से दंडित किया जाएगा।

सफ़ेद रंग, स्वर्ग के रंगों में से एक है जो उज्जवलता, सौंदर्य, पवित्रता व सफ़ाई की निशानी है।

स्वर्ग की औरतें सुदंर व मनमोहक भी हैं और पवित्र व पतिव्रता भी।

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