क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-895
सूरए फ़ुस्सेलत आयतें 13-18
सूरए फ़ुस्सेलत आयत नंबर 13 और 14
فَإِنْ أَعْرَضُوا فَقُلْ أَنْذَرْتُكُمْ صَاعِقَةً مِثْلَ صَاعِقَةِ عَادٍ وَثَمُودَ (13) إِذْ جَاءَتْهُمُ الرُّسُلُ مِنْ بَيْنِ أَيْدِيهِمْ وَمِنْ خَلْفِهِمْ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ قَالُوا لَوْ شَاءَ رَبُّنَا لَأَنْزَلَ مَلَائِكَةً فَإِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُمْ بِهِ كَافِرُونَ (14)
इन आयतों का अनुवाद हैः
फिर अगर ये कुफ्फार मुँह फेरें तो कह दो कि मैं तुम को ऐसी बिजली गिरने (के अज़ाब से) डराता हूँ जैसी आद व समूद क़ौम पर बिजली कड़की थी। [41:13] जब उनके पास उनके आगे से और पीछे से पैग़म्बर (ये ख़बर लेकर) आए कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो तो कहने लगे कि अगर हमारा परवरदिगार चाहता तो फ़रिश्ते नाज़िल करता और जो (बातें) देकर तुम लोग भेजे गए हो हम तो उसे नहीं मानते। [41:14]
पिछले कार्यक्रम में हमने ज़मीन और आसमान में मौजूद अल्लाह के इल्म और ताक़त की कुछ निशानियों के बारे में बात की। अब यह आयतें इंकार करने वालों को संबोधित करके कहती हैं कि हक़ व सत्य के ख़िलाफ़ ज़िद और अड़ियल रवैये का अंजाम अल्लाह के प्रकोप के रूप में निकलता है। जैसा अतीत में कुछ क़ौमों ने अल्लाह के पैग़म्बरों का पैग़ाम सुना और उनके चमत्कार देखे मगर फिर भी इंकार करती रहीं।
वे अपने विरोध को सही ठहराने के लिए पैग़म्बरों के सामने यह तर्क रखती थीं कि अगर आप चाहते हैं कि हम आप पर ईमान लाएं तो हमें वो फ़रिश्ते दिखाइए जो आप पर नाज़िल होते हैं और आपके लिए अल्लाह का पैग़ाम लाते हैं ताकि हम उन्हें देख सकें। अब अगर आप उन फ़रिश्तों को हमें नहीं दिखा पा रहे हैं तो हम आपकी बात नहीं मानेंगे और आप पर ईमान नहीं लाएंगे। ज़ाहिर है कि इस तरह की ज़िद और अड़ियल रवैया अल्लाह के प्रकोप का सबब बनता है। नतीजे में यही प्रकृति जो अल्लाह की मेहरबानी का आईना है इस तरह के इंसानों की तबाही और विनाश का रास्ता साफ़ कर देती है।
इन आयतों से हमने सीखाः
पैग़म्बरों की एक ज़िम्मेदारी लोगों को उनके अनुचित कर्मों के परिणाम की तरफ़ से उन्हें सचेत करते रहना है।
सारी सज़ाएं क़यामत के लिए नहीं हैं। बल्कि कुछ सज़ाएं इसी दुनिया में मिलने वाली हैं। हमें ख़याल रखना चाहिए कि हमारे ग़लत और बुरे काम दुनिया और आख़ेरत में हमें नुक़सान न पहुंचा दें।
अल्लाह ने पैग़म्बरों के ज़रिए हुज्जत तमाम कर दी है यानी इंसान के पास कुफ़्र और शिर्क के रास्ते पर चलने के लिए बहानेबाज़ी की कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं रखी है। यह अल्लाह की परम्परा है कि जब तक हुज्जत तमाम न हो जाए इंकार करने वालों और विरोध करने वालों को सज़ा नहीं देता।
पैग़म्बरों का सबसे अहम मिशन इंसानों को तौहीद और एक अकेले अल्लाह की इबादत की दावत देना है। यही वजह है कि किसी पैग़म्बर ने इंसानों को अल्लाह के बजाए अपनी तरफ़ नहीं बुलाया।
आयत संख्या 15 और 16
فَأَمَّا عَادٌ فَاسْتَكْبَرُوا فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَقَالُوا مَنْ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةً أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَهُمْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَكَانُوا بِآَيَاتِنَا يَجْحَدُونَ (15) فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي أَيَّامٍ نَحِسَاتٍ لِنُذِيقَهُمْ عَذَابَ الْخِزْيِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَلَعَذَابُ الْآَخِرَةِ أَخْزَى وَهُمْ لَا يُنْصَرُونَ (16)
इन आयतों का अनुवाद हैः
तो आद क़ौम ज़मीन पर नाहक़ सरकशी करने लगी और कहने लगी कि ताक़त में हम से बढ़ कर कौन है, क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर न किया कि ख़ुदा जिसने उनको पैदा किया है वह उनसे ताक़त में कहीं बढ़ कर है, और (इसी ताक़त के एहसास की वजह से) वे लोग हमारी आयतों से इन्कार ही करते रहे। [41:15] तो हमने भी नहूसत के दिनों में उन पर बड़ी ज़ोरों की आंधी चलाई ताकि दुनिया की ज़िन्दगी में भी उनको रूस्वाई के अज़ाब का मज़ा चखा दें और आख़ेरत का अज़ाब तो और ज़्यादा रुस्वा करने वाला ही होगा और (फिर) उनको कहीं से मदद भी न मिलेगी। [41:16]
पिछली आयतों में आद और समूद नाम की दो क़ौमों का नाम लिया गया। अब यह आयतें इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उनके कुफ़्र की राह पर चलने और अल्लाह के वजूद का इंकार करने का क़िस्सा सुनाती हैं। उल्लेखनीय है कि आद क़ौम हेजाज़ के दक्षिण में बसती थी। इस क़ौम के लोग जंग के बड़े माहिर होते थे और उनके पास बड़ी दौलत थी। ऊंचे स्थानों पर इमारतें बनाते थे, उनके पास मज़बूत दुर्ग और सुंदर महल थे। वे ख़ुद को अजेय और सबसे श्रेष्ठ समझते थे। यही वजह थी कि उनके अंदर घमंड आ गया। अब उन्होंने अपने पैग़म्बर यानी हज़रत हूद को जो उन्हें अल्लाह के रास्ते पर चलने की दावत दे रहे थे, यह जवाब देना शुरू कर दिया कि तुम होते कौन हो कि हमें डराओ और सचेत करो कि अल्लाह की नाफ़रमानी करने से अज़ाब नाज़िल होगा? क्या किसी के पास इतनी ताक़त है कि जो हमें ख़त्म कर दे या हमें अपने कंट्रोल में कर ले? उन्हें अपनी ताक़त और संख्या का इतना नशा हो गया था कि उन्होंने अल्लाह और उसके पैग़म्बर के सामने ग़ुरूर और सरकशी दिखाना शुरू कर दिया। वे इस तथ्य को भूल बैठे थे कि जिस अल्लाह ने उन्हें पैदा किया है उसकी ताक़त असीम है। वो उन्हें पैदा करने वाला ही नहीं बल्कि पूरी कायनात, ज़मीन और आसमानों का पैदा करने वाला है और उसकी ताक़त से किसी भी इंसान की ताक़त की तुलना करना निर्रथक बात है।
बहरहाल उस क़ौम की उद्दंडता और सरकशी के नतीजे में उन पर रुस्वा कर देने वाला अज़ाब नाज़िल हुआ। एक हफ़्ते तक बड़ी विध्वंसक और डरावनी आंधियां चलीं। नहस दिनों में चलने वाले इन तूफ़ानों ने उनके घरों, बाग़ों और पूरी ज़िंदगी को उलट पलट कर रख दिया और उनका ग़ुरूर तोड़ दिया। आख़िर में उन दुर्गों और महलों के खंडहरों के अलावा उनकी समृद्ध ज़िंदगी का कोई नामोनिशान बाक़ी न रहा। यह तो दुनिया का अज़ाब है। बेशक आख़ेरत में जो अज़ाब मिलने वाला है वो कहीं अधिक रुस्वा करने वाला होगा और उस क़ौम की कोई भी मदद नहीं करेगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
घमंड और ग़ुरूर की वजह से इंकार और कुफ़्र किया जाए तो उसकी सज़ा इसी दुनिया में भी मिलती है।
अपनी ताक़त पर ग़ुरूर पैदा हो जाना हर व्यक्ति और समाज के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है जो ज़िल्लत और रुस्वाई का सबब बनता है।
जब नेमत आती है या अज़ाब नाज़िल होता है तो प्रकृति के अलग अलग कारक अल्लाह के आदेश को व्यवहारिक बनाने का ज़रिया बन जाते हैं और अल्लाह जो चाहता है उसे अंजाम देते हैं।
जब अल्लाह की रहमत नाज़िल होती है वह मुबारक घड़ी होती है और जब अल्लाह का प्रकोप और अज़ाब नाज़िल होता है तो वह नहस लम्हा होता है।
आयत संख्या 17 और 18
وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَيْنَاهُمْ فَاسْتَحَبُّوا الْعَمَى عَلَى الْهُدَى فَأَخَذَتْهُمْ صَاعِقَةُ الْعَذَابِ الْهُونِ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ (17) وَنَجَّيْنَا الَّذِينَ آَمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ (18)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और रही समूद क़ौम तो हमने उनको सीधा रास्ता दिखाया, मगर उन लोगों ने हिदायत के मुक़ाबले में गुमराही को पसन्द किया तो उन की करतूतों की बदौलत ज़िल्लत के अज़ाब की बिजली ने उनको दबोच लिया। [41:17] और जो लोग ईमान लाए और परहेज़गारी करते थे उनको हमने (इस) मुसीबत से बचा लिया। [41:18]
आद क़ौम के बाद यह आयतें समूद क़ौम के अंजाम का उल्लेख करती हैं। यह क़ौम हेजाज़ के उत्तरी इलाक़े में आबाद थी। इस क़ौम के लोग पहाड़ों के भीतर मज़बूत इमारतें बनाते थे और उनके पास नेमतों, अच्छी फ़सलों और बाग़ों से भरी ज़मीनें थीं।
अल्लाह समूद क़ौम के बारे में अल्लाह कहता है कि हमने अन्य क़ौमों की तरह समूद क़ौम की भी हिदायत की और उनकी हिदायत के लिए हज़रत सालेह को भेजा। हज़रत सालेह ने ठोस तर्कों और माक़ूल बातों के ज़रिए साथ ही अल्लाह का चमत्कार दिखा उन्हें सीधे रास्ते की ओर बुलाया मगर उन्होंने पैग़म्बर की बात मानने के बजाए विरोध और इंकार शुरू कर दिया। उन्होंने भी सच और तथ्य को समझने के बजाए दिल में अंधेरा बसाए रखना ही बेहतर समझा उन्हें सत्य के रास्ते पर आने में कोई दिलचस्वी नहीं थी।
चूंकि यह क़ौम ज़िद और अड़ियलपने की वजह से विरोध कर रही थी, नासमझी और हक़ीक़त को न जानने की वजह से यह विरोध नहीं था इसलिए उसे इसी दुनिया में बड़ा सख़्त और रुस्वा कर देने वाला अज़ाब दिया गया। बड़ी ख़ौफ़नाक बिजली से उनका शहर और पूरा इलाक़ा जलकर भस्म हो गया। यह बिजली इतनी ख़ौफ़नाक थी कि उससे लोगों में ख़ौफ़ और डर ही नहीं फैला बल्कि इसके साथ ही बड़ा भयानक भूकंप आ गया और सब कुछ नष्ट हो गया।
अलबत्ता जो लोग ईमान लाए थे और नेक अमल करते थे उनका अंजाम काफ़िरों जैसा नहीं हुआ अल्लाह ने उन्हें नजात दे दी और वो भयानक तथा ख़ौफ़नाक अज़ाब से मुक्ति पा गए।
इन आयतों से हमने सीखाः
अज़ाब का आना दिलों में अंधेरा फैल जाने की निशानी है। कुफ़्र और गुमराही पर ज़िद का इंसान को बड़ा भयानक ख़मियाज़ा भुगतना पड़ता है।
अल्लाह का करम या अज़ाब क़ानून के अनुसार होता है। यह इंसान के क्रियाकलाप का नतीजा होता है। पाकीज़गी और ईमान, नजात का रास्ता और कुफ़्र व गुनाह विनाश का रास्ता है।