क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-897
सूरए फ़ुस्सेलत आयतें 24-28
श्रोताओ कार्यक्रम क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार में आपका स्वागत है। मैं हूं .... कार्यक्रम में मेरा साथ दे रहे हैं.....। आशा है हमारा यह कार्यक्रम भी आपको पसंद आएगा।
सूरए फ़ुस्सेलत आयत नंबर 24 और 25
فَإِنْ يَصْبِرُوا فَالنَّارُ مَثْوًى لَهُمْ وَإِنْ يَسْتَعْتِبُوا فَمَا هُمْ مِنَ الْمُعْتَبِينَ (24) وَقَيَّضْنَا لَهُمْ قُرَنَاءَ فَزَيَّنُوا لَهُمْ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَحَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِي أُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِهِمْ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ إِنَّهُمْ كَانُوا خَاسِرِينَ (25)
इन आयतों का अनुवाद हैः
फिर अगर ये लोग सब्र भी करें तो भी इनका ठिकाना दोज़ख़ ही है और अगर तौबा करें तो भी इनकी तौबा क़ुबूल नहीं की जाएगी। [41:24] और हमने उनके ऐसे साथी निर्धारित कर दिए थे तो उन्होने उनके अगले पिछले सारे मसलों को उनकी नज़रों में सुंदर बना कर दिखाए तो जिन्नात और इन्सानो की उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी थीं उनके साथ ही साथ (अज़ाब का) वादा इनके हक़ में भी पूरा हो कर रहा बेशक ये लोग अपने घाटे पर तुले थे। [41:25]
पिछले कार्यक्रम में जिन आयतों की व्याख्या की गई उन्हीं के क्रम को आगे बढ़ाते हुए अब यह आयतें इंसान पर बुरी संगत और बुरे दोस्त से पड़ने वाले विनाशकारी असर के बारे में बताते हुए कहती हैं कि क़यामत का दिन पापियों की तौबा क़ुबूल होने का दिन नहीं है। क्योंकि यह तौबा जहन्नम को देखने के बाद उसके डर से किया जा रहा है, यह मजबूरी का तौबा है अख़्तियार की हालत में किया जाने वाली तौबा नहीं है। इसलिए अब वे बर्दाश्त करें या न करें उनके लिए कुछ भी बदलने वाला नहीं है। अगर वे तौबा करते हैं तो इसका कोई असर नहीं होगा उन्हें रहना जहन्नम में ही होगा।
आयत के अगले भाग में इस कठोर अज़ाब की वजह यह बताई गई है कि इंसान ने बुरी सोच और बुरे व्यवहार के दोस्तों और साथियों का चयन किया। यह साथी और दोस्त ऐसे थे कि जब वह इंसान कोई बुरा कर्म करता था तो नसीहत करने और टोकने के बजाए उसे इसी तरह के कर्मों को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करते थे। वे उस व्यक्ति के बुरे कामों को भी अच्छा बनाकर पेश करते थे। इस तरह के लोग जो फ़रेब और धोखाधड़ी के माहिर होते हैं इंसान को हर तरफ़ से घेर लेते हैं और उनकी सोच पर इस तरह सवार हो जाते हैं कि उसके पास अच्छे और बुरे की शिनाख़्त की क्षमता ख़त्म हो जाती है। नतीजे में तथ्य उनकी नज़र में उलटे और बुराइयां उन्हें अच्छाइयां नज़र आती हैं। इस तरह देखा जाए तो इंसान बुरा दोस्त चुनकर भ्रष्टाचार के भंवर में डूब जाता है। वो अपनी इसी ग़लत सोच की बुनियाद पर अपनी ज़िंदगी की पूरी इमारत खड़ी करता है और इसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए अपना भविष्य तबाह कर लेता है। उसके लिए नजात के रास्ते बंद हो जाते हैं। बेशक यह वही रास्ता है जिस पर बहुत सारे इंसान चले हैं और सबकी मंज़िल जहन्नम बना।
इन आयतों से हमने सीखाः
जब तक हम दुनिया में हैं तौबा करने और बुरे रास्ते से वापस लौट आने की गुंजाइश हमारे पास रहती है लेकिन आख़ेरत में हमारे पास माफ़ी मांगने और बुरे रास्ते से वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं होगा।
हमें बहुत चौकन्ना रहना चाहिए कि बुरे और दुराचारी दोस्तों के बीच हम न घिर जाएं क्योंकि वे अलग अलग तरीक़ों से हमारी सोच और हमारे व्यक्तित्व पर छा जाते हैं और हमें अपने साथ जहन्नम की तरफ़ ले जाते हैं।
जो व्यक्ति हमारे बुरे कामों की तारीफ़ करे वो दरअस्ल हमारा दोस्त नहीं बल्कि शैतान है जो इंसान के रूप में आ गया है क्योंकि वो भी शैतान की तरह हमारे बुरे कर्मों को अच्छा ज़ाहिर कर रहा है।
इंसान का पतन एक एक क़दम करके चरणबद्ध तरीक़े से होता है। पहले क़दम में यह होता है कि दुराचारी दोस्त उसके बुरे कर्मों को उसके गुणों के रूप में उसके सामने पेश करते हैं। इसके बाद इंसान अपने बुरे कर्मों पर भी इतराता है और उसी रास्ते पर आगे बढ़ता रहता है। आख़िरकार उसका अंजाम ख़राब हो जाता है और उसे बड़ा घाटा उठाना पड़ता है।
बुरा दोस्त इंसान को कुछ नहीं देता बल्कि उसे दुनिया और आख़ेरत में दोनों जगह नुक़सान उठाना पड़ता है।
आयत संख्या 26 से 28
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَسْمَعُوا لِهَذَا الْقُرْآَنِ وَالْغَوْا فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَغْلِبُونَ (26) فَلَنُذِيقَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا عَذَابًا شَدِيدًا وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ (27) ذَلِكَ جَزَاءُ أَعْدَاءِ اللَّهِ النَّارُ لَهُمْ فِيهَا دَارُ الْخُلْدِ جَزَاءً بِمَا كَانُوا بِآَيَاتِنَا يَجْحَدُونَ (28)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और कुफ्फ़ार कहने लगे कि इस क़ुरान को सुनो ही नहीं और जब पढ़ें (तो) इस (के बीच) में शोर मचा दिया करो ताकि (इस तरकीब से) तुम ग़ालिब आ जाओ। [41:26] तो हम भी काफ़िरों को सख़्त अज़ाब के मज़े चखाएँगे और इनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सज़ा ये जहन्नम है। [41:27] ख़ुदा के दुशमनों का बदला है कि वे जो हमारी आयतों से इन्कार करते थे उसकी सज़ा में उनके लिए उसमें हमेशा (रहने) का घर है। [41:28]
यह आयतें एक बड़ी घटिया हरकत का ज़िक्र कर रही हैं जो मक्के के टेढ़ी सोच रखने वाले अनेकेश्वरवादी किया करते थे। आयतें कहती हैं कि जब भी पैग़म्बरे इस्लाम क़ुरआन की मनमोहक और दिलनशीं आयतों की मक्का वासियों के बीच तिलावत करते थे तो कुछ अनेकेश्वरवादी ऐसे थे जो सीटियां बजाते थे या ऊंची आवाज़ में शेर पढ़ने लगते थे ताकि पैग़म्बर की आवाज़ आम लोगों के कान तक न पहुंचे और वे उन पर ईमान न लाएं। आज भी यह हरकत अलग अलग रूपों में जारी है। क्योंकि सच्चे धर्म के दुश्मनों को पता है कि जब भी आम लोगों को क़ुरआन की शिक्षाओं की हक़ीक़त मालूम हो जाएगी वे बड़ी संख्या में उसे अपना लेगे। यही वजह है कि प्रचार के अलग अलग माध्यमों को इस्तेमाल करके, बड़े पैमाने पर शोर शराबा मचाकर कोशिश की जा रही है कि क़ुरआन और इस्लाम के तथ्यों को इस्लाम के पैग़ाम को दुनिया वालों के कानों तक न पहुंचने दिया जाए। इस मक़सद को हासिल करने के लिए अलग अलग प्रकार के हथकंडे इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इस के लिए फ़िल्मों का भी सहारा लिया जाता है, थिएटर का भी सहारा लिया जाता है, पेंटिंग्स का भी सहारा लिया जाता है, कार्टून का भी सहारा लिया जाता है, कहानियों और नाविलों का भी सहारा लिया जाता है और इनकी मदद से धार्मिक मूल्यों और शिक्षाओं का मज़ाक़ उड़ाया जाता है। यह समूह धर्म के बारे में ग़लत और भ्रामक बातें फैलाकर, उसके ख़िलाफ़ तरह तरह के आरोप लगाकर यह कोशिश करता है कि इस्लाम की छवि को ख़राब कर दे और दुनिया वालों को उसकी तरफ़ उन्मुख होने से रोके।
अलबत्ता यह दुश्मनों की भूल है कि वे यह समझ बैठे हैं कि इस तरह की हरकतें करके और इन योजनाओं की मदद से वे इस्लाम के प्रसार को रोक लेंगे। निःसंदेह सत्य की तो यह ख़ासियत होती है कि रुकावटों को एक एक करके हटाता जाए और अपना रास्ता साफ़ करता जाए। यही वजह है कि दिन ब दिन क़ुरआन के तथ्य दुनिया वालों के सामने और भी स्पष्ट रूप से ज़ाहिर हो रहे हें।
अलबत्ता यह तो स्पष्ट है कि बहुत कड़ी सज़ा उन लोगों के इंतेज़ार में है जो आम लोगों को अल्लाह की आयतें सुनने से दूर रखते हैं और उनकी यह इच्छा रहती है कि दूसरे लोग भी उनकी तरह गुमराही में जीवन गुज़ारें। जो लोग लगातार अल्लाह की आयतों का इंकार करते हैं, दर अस्ल वे अल्लाह के दुश्मन और धर्म के दुश्मन हैं। निःसंदेह इस तरह के लोगों को उनके बुरे कर्मों के अनुसार सज़ा दी जाएगी, उन्हें कड़े दंड का सामना करना होगा जिससे छुटकारा मिलना ना मुमकिन होगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
जिन लोगों के पास कहने के लिए तार्किक बातें और ठोस तर्क नहीं होते वे अलग अलग बहानों से कोशिश करते हैं कि आम लोगों को दूसरों की तार्किक बातें सुनने से रोकें।
क़ुरआन में ख़ास प्रकार का आकर्षण और बहुत गहरा असर है। इतना गहरा असर कि उसकी आयतें सुनकर भी लोगों के दिल अल्लाह की तरफ़ मुड़ने लगते हैं। इसीलिए दुश्मन कोशिश करते हैं कि लोग इन आयतों की जानकारी हासिल न कर सकें।
दुश्मन अलग अलग हथकंडों से और शोर शराबा मचाकर कोशिश करते हैं कि क़ुरआन और इस्लाम के तथ्य दुनिया वालों के सामने न आने पाएं।
जहन्नम उन लोगों के लिए हमेशा का ठिकाना होगा जो जानबूझर सत्य के ख़िलाफ़ काम करते हैं और यह सज़ा बिल्कुल न्यायसंगत भी है।