Nov ०९, २०२१ १८:४७ Asia/Kolkata

सूरए साफ़्फ़ात की आयतें 50-61

 

فَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ يَتَسَاءَلُونَ (50) قَالَ قَائِلٌ مِنْهُمْ إِنِّي كَانَ لِي قَرِينٌ (51) يَقُولُ أَئِنَّكَ لَمِنَ الْمُصَدِّقِينَ (52) أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَئِنَّا لَمَدِينُونَ (53)

फिर वे एक-दूसरे की ओर रुख़ करके (उनकी दशा के बारे में) सवाल करेंगे। (37:50) उनमें से एक कहेगाः (दुनिया में) मेरा एक साथी था। (37:51) जो कहा करता था कि क्या तुम भी (प्रलय की) पुष्टि करने वालों में से हो? (37:52) क्या सच में जब हम मर चुके होंगे और मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे तो (एक बार फिर जीवित किए जाएंगे?) क्या हम वास्तव में बदला पाएँगे? (37:53)

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया था कि स्वर्ग वाले तख़्तों पर टेक लगाए बैठे होंगे और अपने दोस्तों के साथ स्वर्ग के कार्यकर्मों में बड़ी अपनाइयत वाली बैठकों में हिस्सा लेंगे। ये आयतें स्वर्ग वालों की आपसी बात-चीत के एक भाग का उल्लेख करती है ताकि हम निश्चेत इंसान, सचेत हो जाएं और जान लें कि संभव है कि बहुत से ऐसे दोस्त व साथी हों जो दुनिया में तो एक दूसरे के साथ रहते हैं लेकिन प्रलय में एक दूसरे से अलग हो जाएंगे। एक स्वर्ग में जाएगा और दूसरा नरक में।

ये आयतें कहती हैं कि स्वर्ग के लोग आपसी बात-चीत में दुनिया में उनके साथ जो कुछ हुआ उसके बारे में एक दूसरे से पूछेंगे। उनमें से हर कोई अपनी अपनी कहानी बयान करेगा। उनमें से एक अपने दोस्त के बारे में बताएगा जो प्रलय का इन्कार करता था और मरने के बाद दोबारा ज़िंदा होने को असंभव मानता था। वह हमेशा अपने ईमान वाले दोस्त से हैरत से पूछा करता था कि क्या तुम सच में इस बात पर विश्वास रखते हो? क्या तुम्हारा मानना है कि इस दुनिया में जो कुछ हम करते हैं, उस पर बाद में दंड या पारितोषिक मिलेगा?

इन आयतों से हमने सीखा कि अधर्मी या कमज़ोर ईमान वाले लोगों के साथ उठना-बैठना तब तक सही है, जब तक इंसान का ईमान व उसकी आस्थाएं कमज़ोर न हों। विशेष कर अगर इंसान उन्हें धर्म और सत्य की राह पर बुला सके या कम से कम उनके वैचारिक सवालों का जवाब दे सके।

प्रलय का इन्कार करने वालों के पास, क़यामत और मौत के बाद की दुनिया के इन्कार का कोई बौद्धिक तर्क नहीं है और उनका एकमात्र काम, प्रलय को असंभव बताना और उस पर आश्चर्य प्रकट करना है।

प्रलय में, दुनिया की घटनाओं को इंसान भूलेगा नहीं और जो कुछ उसने दुनिया में किया है या जो कुछ उसके साथ हुआ है, उसे वह याद कर सकता है।

आइये सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 54 से 57 तक की तिलावत सुनें।

قَالَ هَلْ أَنْتُمْ مُطَّلِعُونَ (54) فَاطَّلَعَ فَرَآَهُ فِي سَوَاءِ الْجَحِيمِ (55) قَالَ تَاللَّهِ إِنْ كِدْتَ لَتُرْدِينِ (56) وَلَوْلَا نِعْمَةُ رَبِّي لَكُنْتُ مِنَ الْمُحْضَرِينَ (57)

वह (अपने स्वर्ग के साथियों से) कहेगाः क्या आप उसके बारे में जानना चाहते हैं? (37:54) यह कह कर वह जूंही झाँकेगा तो उसे नरक की आग के बीच देख लेगा। (37:55) वह उससे कहेगाः ईश्वर की सौगंध! तू तो मुझे तबाह ही कर देने वाला था। (37:56) अगर मेरे पालनहार की कृपा न होती तो अवश्य ही मैं भी उन लोगों में से होता जत पकड़ कर (नरक में) हाज़िर किए गए हैं। (37:57)

स्वर्ग में पहुंचने वाला वह व्यक्ति अपने साथियों के सामने अपनी बात जारी रखते हुए कहेगा। जो शख़्स दुनिया में प्रलय के बारे में मेरी आस्था के कारण मुझ पर प्रश्न चिन्ह लगाता था वह आज नरक में पहुंच गया है। अगर तुम देखना चाहो तो नरक में उसके ठिकाने को देख सकते हो। अलबत्ता मैं भी उसके साथ रहने के कारण लड़खड़ाने और गुमराह होने वाला था और संभव था कि मैं भी उसके साथ नरक में होता लेकिन मेरे ईमान व भले कर्मों के कारण ईश्वर ने मुझ पर कृपा की और मैं इस संकट से बच गया।

इन आयतों से हमने सीखा कि क़ुरआने मजीद के अनुसार स्वर्ग वाले, नरकार वालों के बारे में अवगत होते हैं। वे जब भी चाहें उनके हालात के बारे में जानकारी ले सकते हैं और उनसे बात कर सकते हैं लेकिन नरक वाले, स्वर्ग वालों को न तो देख सकते हैं और न ही उनके हालात जान सकते हैं।

धर्म का इन्कार करने वालों के साथ उठना बैठना ख़तरनाक है और अगर ईश्वर की कृपा न हो तो इंसान उनसे प्रभावित हो कर उन्हीं के तरह नरक में जा सकता है।

आइये सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 58 से 61 तक की तिलावत सुनें।

أَفَمَا نَحْنُ بِمَيِّتِينَ (58) إِلَّا مَوْتَتَنَا الْأُولَى وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ (59) إِنَّ هَذَا لَهُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ (60) لِمِثْلِ هَذَا فَلْيَعْمَلِ الْعَامِلُونَ (61)

(फिर वह स्वर्ग के अपने साथियों से कहेगा) तो क्या अब हम मरने वाले नहीं हैं? (37:58) हमें जो मौत आनी थी वह बस पहले आ चुकी? और अब हमें कोई यातना नहीं दी जाएगी? (37:59) निश्चय ही यही बड़ी सफलता है। (37:60) ऐसे ही (बदले) के लिए कर्म करने वालों को कर्म करना चाहिए। (37:61)

स्पष्ट है कि जो भी स्वर्ग में पहुंच जाता है वह जानता है कि उसे किसी प्रकार का कोई दंड नहीं होगा क्योंकि अगर उसे दंडित किया जाना होता तो स्वर्ग में जाने से पहले ही वह दंडित हो जाता।

अलबत्ता इस बात को ज़बान से कहने के दो कारण हैं। एक तो यह कि ईश्वर की कृपा को याद करना जो उसकी कृतज्ञता की राह समतल करता है। दूसरे यह कि स्वर्ग में पहुंचना इंसान का सबसे बड़ा सौभाग्य व सफलता है क्योंकि वहां किसी भी तरह की बीमारी और बुढ़ापा नहीं है। यह भी उल्लेखनीय है कि दुनिया की ज़िंदगी छोटी और कठिनाइयों भरी है लेकिन परलोक का जीवन अनंत है और स्वर्ग वालों को अमर जीवन व स्थायी ऐश्वर्य व आराम हासिल होगा।

सूरए साफ़्फ़ात की 61वीं आयत, दुनिया वालों के लिए स्वर्ग वालों के संदेश को बयान करती है और वह यह है कि हे वे लोगो! जिन्हें दुनिया में ज़िंदगी का अवसर हासिल है और अभी तुम्हारी उम्र बाक़ी है, जितना संभव है कोशिश करो और नेक काम करो ताकि अपने परलोक के लिए ज़्यादा से ज़्यादा पूंजी एकत्रित कर सको। धन और पूंजी, ऐसा सामान है जिसका दुनिया में ही मूल्य और महत्व है लेकिन प्रलय के बाज़ार में सिर्फ़ कर्म ख़रीदे जाते हैं और इंसानों को उनके धन, पूंजी, पद और ख्याति से नहीं बल्कि उनके कर्मों की तराज़ू में तोला जाता है।

इन आयतों से हमने सीखा कि स्वर्ग में मौत व अंत नहीं है लेकिन नरक में अपराधी, दंड के कारण निरंतर मरते रहते हैं और दोबारा ज़िंदा किए जाते हैं।

वास्तविक मोक्ष व कल्याण बुरे माहौल में अपने आपको लड़खड़ाहट और गुमराही से बचाने में है ताकि इंसान, मंज़िल तक सही-सालिम पहुंच जाए।

दुनिया में हमारे काम, उच्च लक्ष्यों तक पहुंचने और बड़ी सफलता के लिए होने चाहिए वरना हमें बहुत पछतावा होगा और हम बड़े घाटे में ग्रस्त हो जाएंगे।

 

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