क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-848
सूरए साद आयतें 39-43
هَذَا عَطَاؤُنَا فَامْنُنْ أَوْ أَمْسِكْ بِغَيْرِ حِسَابٍ (39) وَإِنَّ لَهُ عِنْدَنَا لَزُلْفَى وَحُسْنَ مَآَبٍ (40)
इन आयतों का अनुवाद हैः
"यह हमारी बेहिसाब देन है। अब एहसान करो या रोको।"[38:39] और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए यक़ीनन अच्छा स्थान और उत्तम ठिकाना है [38:40]
पिछले कुछ कार्यक्रमों में हमने हज़रत सुलैमान के बारे में बात की। हज़रत सुलैमान की कहानी के आख़िर में यह आयतें कहती हैं कि अल्लाह ने हज़रत सुलैमान को बहुत अधिक दौलत और ताक़त प्रदान की और उन्हें आदेश दिया था कि जहां तक हो सके समाज के ज़रूरतमंदों को यह दौलत दें और उनकी ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश में रहें। अलबत्ता चूंकि हज़रत सुलैमान अल्लाह के नबी थे इसलिए न्यायसंगर्त शैली पर काम करते थे। वह अल्लाह की दी हुई नेमतों को लोगों के बीच बांटते समय हर व्यक्ति को उसकी ज़रूरत के मुताबिक़ देते थे। वह सबको एकसमान मात्रा में नहीं देते थे क्योंकि यह चीज़ न्यायोचित नहीं थी।
आगे की आयतों में हज़रत सुलैमान के अच्छे अंजाम का उल्लेख किया गया है और अल्लाह कहता है कि हज़रत सुलैमान इतनी अधिक दौलत, ख़ज़ाना और ताक़त होने के बावजूद बंदगी के दायरे से कभी बाहर नहीं निकले और कभी भी अपनी प्रजा पर अत्याचार नहीं किया। इसलिए अल्लाह के क़रीब उनका मरतबा बहुत ऊंचा हो गया और वह बड़े अच्छे अंजाम के साथ इस दुनिया से गए।
इन आयतों से हमने सीखाः
ख़ुदाई हुकूमत में शासक के पास जो कुछ भी होता है उसे वह अल्लाह की देन मानता है जिसे आम जनता की सेवा के लिए इस्तेमाल करना होता है।
ताक़त और दौलत अगर है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इंसान अल्लाह के क़रीब नहीं हो सकता। खुदाई हुकूमत में भौतिक विकास और उन्नति के साथ ही साथ आध्यात्मिक कमाल भी हासिल किया जा सकता है।
अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 41 से 43 तक की तिलावत सुनते हैं,
وَاذْكُرْ عَبْدَنَا أَيُّوبَ إِذْ نَادَى رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الشَّيْطَانُ بِنُصْبٍ وَعَذَابٍ (41) ارْكُضْ بِرِجْلِكَ هَذَا مُغْتَسَلٌ بَارِدٌ وَشَرَابٌ (42) وَوَهَبْنَا لَهُ أَهْلَهُ وَمِثْلَهُمْ مَعَهُمْ رَحْمَةً مِنَّا وَذِكْرَى لِأُولِي الْأَلْبَابِ (43)
इन आयतों का अनुवाद हैः
हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उन्होंने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।" [38:41] (हमने उन्हें हुक्म दिया कि) "अपना पाँव (धरती पर) मारो, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।" [38:42] और हमने उन्हें उनके परिजन वापस दिए और उनके साथ उतने ही और भी; अपनी तरफ़ से रहमत के तौर पर और बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए शिक्षा के तौर पर।[38:43]
हज़रत सुलैमान की कहानी के बाद जो अल्लाह के पैग़म्बरों में ताक़त और दौलत के प्रतीक थे अब यह आयतें हज़रत अय्यूब की घटना को बयान करती हैं जो कठिनाइयों पर सब्र और संयम के प्रतीक हैं।
यह आयतें कहती हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम को यह ज़िम्मेदारी दी गई कि वह हज़रत अय्यूब की ज़िंदगी के बारे में लोगों को बताएं ताकि उन्हें व्यक्तिगत और सामाजिक कठिनाइयों को सहने और संयम से उनका सामना करने का पाठ मिले।
क़ुरआन की व्याख्या की पुस्तकों में आया है कि अल्लाह ने हज़रत अय्यूब को ढेरों नेमतें दीं और वह भी अल्लाह के बड़े शुक्रगुज़ार बंदे थे। बाद में अल्लाह ने उन्हें अत्यंत कठिन परीक्षा में डाला ताकि यह साबित हो कि हज़रत अय्यूब हर तरह के हालात में बस अल्लाह का शुक्र ही अदा करते रहते हैं, चाहे अच्छे हालात हों या ख़राब।
हुआ यह कि धीरे धीरे हज़रत अय्यूब को हासिल नेमतें एक एक करके ख़त्म होती गईं। उनकी खेती, पैसा, मवेशी सब ख़त्म हो गए। ख़ुद हज़रत अय्यूब भी बीमार पड़ गए। इस बीमारी के डर से उनके बाल बच्चे भी उनसे दूर चले गए। बस उनकी वफ़ादार पत्नी उनके साथ रह गईं जो उनकी देखभाल करती रहीं।
इस बीच शैतान ने लोगों के बीच यह अफ़वाह फैला दी कि हज़रत अय्यूब अल्लाह की अवज्ञा करने की वजह से इस अज़ाब में पड़ गए हैं। अगर वह अच्छे बंदे होते तो एसे प्रकोप का शिकार न होते कि उनकी औलाद भी उन्हें छोड़ने पर मजबूर हो जाए। परिवार को पेश आने वाले हालात और शैतान के बहकावे की वजह से लोगों के ताने हज़रत अय्यूब को बहुत तकलीफ़ दे रहे थे।
हज़रत अय्यूब अल्लाह के शुक्रगुज़ार बंदे थे वह हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करते थे। एक दिन उन्होंने अल्लाह से फ़रियाद की और शैतान के बहकावे की वजह से लोगों के बीच फैले भ्रम का शिकवा किया। मगर इस मौक़े पर भी उन्होंने अल्लाह से प्रत्यक्ष रूप से कोई मांग नहीं रखी।
अल्लाह ने हज़रत अय्यूब को लोगों के ताने से बचाने के लिए करिश्माती तौर पर उन्हें शिफ़ा दे दी ताकि सबको मालूम हो जाए कि हज़रत अय्यूब पर अल्लाह ने ख़ास करम किया है वह अल्लाह के प्रकोप का शिकार नहीं हुए। अल्लाह ने उन्हें आदेश दिया कि जहां बैठे हैं वहीं अपना पैर ज़मीन पर मारें ताकि वहां अल्लाह के चमत्कार से मीठे पानी का सोता फूट पड़े।
अलबत्ता हज़रत अय्यूब के लिए जलसोता फूट पड़ने की घटना हज़रत इब्राहीम के बेटे हज़रत इस्माईल के लिए जलसोता फूटने की घटना के समान है जब हज़रत इब्राहीम की पत्नी हज़रत हाजेरा अपने बेटे इस्माईल के लिए पानी तलाश कर करके थक गईं तो मक्के में अल्लाह के घर के पास हज़रत इस्माईल के पैरों के पास जो प्यास से अपने हाथ पांव ज़मीन पर मार रहे थे मीठे पानी का जलसोता ज़मज़म फूट पड़ा। यह जलसोता आज तक मौजूद है।
हज़रत अय्यूब की घटना में आगे यह हुआ कि जलसोता फूट पड़ने के बाद अल्लाह ने हज़रत अय्यूब से कहा कि उसी पानी से ग़ुस्ल करें और वही पानी पिएं ताकि उनकी बामारियां दूर हो जाएं। इस कड़े इम्तेहान में हज़रत अय्यूब को कामयाबी मिलने के बाद उन्हें बीमारी से भी निजात मिल गई। अल्लाह ने उन्हें सारी नेमतें फिर से लौटा दीं। उनके बाल बच्चे भी घर लौट आए और ज़िंदगी की चलह पहल बहाल हो गई। यही नहीं अल्लाह ने उनको इसके अतिरिक्त भी औलाद दी। इस तरह उन्हें अल्लाह की भरपूर कृपा हासिल हुई।
ज़ाहिर है कि हज़रत अय्यूब की उतार चढ़ाव से भरी ज़िंदगी समझदार इंसानों के लिए एक सबक़ है कि कभी भी अपनी संपत्ति पर घमंड न करें। क्योंकि देखते ही देखते सब कुछ हाथ से जा सकता है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि कठिनाइयों और बीमारियों के समय हरगिज़ अल्लाह की तरफ़ से निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि परेशानियों को दूर करना अल्लाह के लिए बहुत आसान है।
इन आयतों से हमने सीखाः
बीते ज़माने के लोगों ख़ास तौर पर पैग़म्बरों के इतिहास की जानकारी पाठदायक है। क्योंकि दूसरों की परेशानियों की जानकारी से इंसान की संयमशक्ति बढ़ती है।
कठनाइयां और परेशानियां मुमकिन हैं कि इंसान के उत्थान की भूमिका हों और यह भी मुम्किन है कि शैतान वहीं पर भ्रांति फैलाए। शैतान इन कठिनाइयों के बहाने इंसान को सीधे रास्ते से भटकाने की कोशिश करता है।
दुआ अल्लाह के ख़ास बंदों की शैली और अल्लाह के सामने बंदगी का एक रूप है। इसलिए कठिनाइयों और परेशानियों से निजात हासिल करने के लिए दुआ करनी चाहिए।
औलाद और बाल बच्चों की ज़्यादा संख्या और बड़ा ख़ानदान अल्लाह की नेमत है।