Feb ०७, २०२२ १९:१९ Asia/Kolkata

सूरए साद आयतें 44-48

وَخُذْ بِيَدِكَ ضِغْثًا فَاضْرِبْ بِهِ وَلَا تَحْنَثْ إِنَّا وَجَدْنَاهُ صَابِرًا نِعْمَ الْعَبْدُ إِنَّهُ أَوَّابٌ (44)

इस आयत का अनुवाद हैः

और (हमने अय्यूब से कहा कि) अपने हाथ में तिनकों का एक मुट्ठा ले लो और उससे मारो और अपनी क़सम न तोड़ो।" निश्चय ही हमने उन्हें धैर्यवान पाया, क्या ही अच्छा बन्दा! निःसंदेह वह हमारी बारगाह में बार बार लौटने वाले बंदे थे। [38:44]  

पिछले कार्यक्रम में हमने हज़रत अय्यूब के बारे में बताया कि अल्लाह ने उनके शरीर को कठिन बीमारियों में ग्रस्त कर दिया और उनकी संपत्ति तथा औलाद उनसे लेकर उनका इम्तेहान लिया। इन कठिनाइयों में वह हमेशा अल्लाह का शुक्र अदा करते रहे। रवायतों में भी आया है कि हज़रत अय्यूब की पत्नी बेहद गंभीर बीमारी के दौर में भी उनके साथ रहीं और उन्हें हरगिज़ अकेला नहीं छोड़ा। एक दिन ऐसा आया कि जब वह अपने पति की तीमारदारी कर कर के थक गई थीं तो शैतान उन्हें बहकाने में कामयाब हो गया। उन्होंने इस बहकावे में आकर ऐसी बात कही जिसका अर्थ यह था कि मानो अल्लाह ने हज़रत अय्यूब को भुला दिया है इसलिए उन्हें कठिनाइयों और विपत्तियों से निजात पाने के लिए अल्लाह के अलावा किसी और की मदद लेनी चाहिए। हज़रत अय्यूब को यह बात सुनकर बहुत ग़ुस्सा आया। उन्होंने क़सम खाई कि जब थी ठीक होकर बिस्तर से उठेंगे पत्नी को सज़ा ज़रूर देंगे।

लेकिन जब अल्लाह के करम से हज़रत अय्यूब भयानक बीमारी से निजात पा गए तो उन्होंने यह फ़ैसला किया कि बीमारी के लंबे और कड़े दौर में पत्नी ने जो संघर्ष किया और मेहनत से जो सेवा की उसको देखते हुए उन्हें सज़ा देने का फ़ैसला बदल दें।

यह आयत कहती है कि अल्लाह ने हज़रत अय्यूब से कहा कि आपने क़सम खाई है तो क़सम मत तोड़िए ताकि अल्लाह के नाम पर खाई जाने वाली क़सम का सम्मान बना रहे। लेकिन चूंकि पत्नी क्षमा कर दिए जाने की हक़दार है इसलिए गेहूं की बालियों या इसी तरह की चीज़ों का एक बंडल तैयार करें और धीरे से वही अपनी पत्नी के शरीर पर मार दें ताकि क़सम भी रह जाए और पत्नी को कोई पीड़ा भी न पहुंचे।

इस आयत से हमने सीखाः

जिस तरह अल्लाह क़यामत के दिन इंसान के भले कर्मों की वजह से उसके बुरे कर्मों की सज़ा में कुछ कमी कर देगा उसी तरह दुनिया के हालात के बारे में भी यह उपाय बताया गया है कि भले लोगों के नेक कामों को देखते हुए ग़लती पर उनको दी जाने वाली सज़ा में कमी की जा सकता है।

अल्लाह के नाम का ख़ास सम्मान है इसलिए अल्लाह के नाम की क़सम खाई जाए तो उसे तोड़ना नहीं चाहिए।

पैग़म्बर के क़रीब और उनका रिश्तेदार होने का मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि वह व्यक्ति क़ानून के दायरे से बाहर है।

 

अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 45 से 48 तक की तिलवात सुनते हैं,

وَاذْكُرْ عِبَادَنَا إبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ أُولِي الْأَيْدِي وَالْأَبْصَارِ (45) إِنَّا أَخْلَصْنَاهُمْ بِخَالِصَةٍ ذِكْرَى الدَّارِ (46) وَإِنَّهُمْ عِنْدَنَا لَمِنَ الْمُصْطَفَيْنَ الْأَخْيَارِ (47) وَاذْكُرْ إِسْمَاعِيلَ وَالْيَسَعَ وَذَا الْكِفْلِ وَكُلٌّ مِنَ الْأَخْيَارِ (48)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

हमारे बन्दों, इब्राहीम और इसहाक़ और याक़ूब को भी याद करो, जो बड़ी ताक़त वाले और निगाहों वाले थे। [38:45] निःसंदेह हमने उन्हें एक विशिष्ट बात के लिए चुन लिया था और वह वास्तविक घर (आख़ेरत) की याद थी [38:46] और निश्चय ही वे हमारे यहाँ चुने हुए नेक लोगों में से हैं [38:47] इस्माईल और अल-यसअ और ज़ुलकिफ़्ल को भी याद करो। यह सारे के सारे चुनिंदा लोग थे। [38:48]

पिछली आयतों में बीते दौर के पैग़म्बरों का उल्लेख किया गया जिसके बाद अब यह आयतें संक्षेप में छह पैग़म्बरों के बारे में बताती हैं कि वह अल्लाह के ख़ास बंदे थे और अल्लाह ने उन्हें हर तरह के पाप और मन के प्रदूषण से पाक रखा और निष्ठा का सर्वोच्च स्थान उन्हें प्रदान किया।

पैग़म्बरों की सबसे बड़ी ख़ासियत जो इन आयतों में बयान की गई है वह अल्लाह का बंदा होना है। यानी पैग़म्बर बंदगी की वजह से इस महान स्थान तक पहुंचे। वह केवल अल्लाह की इबादत और उपासना में नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में वास्तव में अल्लाह के फ़रमान के सामने समर्पित रहते थे। आम इंसानों के विपरीत जो अपने जीवन में आम तौर पर अपनी इच्छाओं और तमन्नाओं की फ़िक्र में लगे रहते हैं। अगर कभी उन्हें मर्ज़ी के ख़िलाफ़ काम करना पड़े तो अनिच्छा से करते हैं। जबकि अल्लाह के ख़ास बंदे हमेशा अल्लाह की मर्ज़ी को अपनी इच्छा से ऊपर रखते हैं और बड़े शौक़ से उसे अंजाम देते हैं और इस पर गर्व भी करते हैं।

स्वाभाविक है कि इस स्थान पर पहुंचने के लिए संघर्ष, मेहनत और तपस्या की ज़रूरत होती है और इसी तरह के लोग अल्लाह के ख़ास और चुने हुए बंदे बनते हैं।

बंदगी के अलावा अल्लाह ने पैग़म्बरों को ज्ञान और तत्वदृष्टि वाला कहा है। ज़िम्मेदारी को समझने की मज़बूत वैचारिक शक्ति और अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए अपनी क्षमताओं और अपने अनुयायियों की मदद लेना अल्लाह के ख़ास बंदों की एक और विशेषता है।

इन आयतों में क़यामत के दिन को याद दिलाया गया है और इंसान पर ज़ोर दिया गया है कि वह दुनिया का मोह छोड़कर निष्ठावान बने। इसी तरह इन आयतों में दो बार ज़ोर देकर कहा गया है कि पैग़म्बर अल्लाह के ख़ास बंदे हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

पिछले दौर के पैग़म्बरों और जातियों के बारे में पढ़ना और अल्लाह के ख़ास बंदों की प्रशंसा क़ुरआनी शैली है जिसका मक़सद इंसानों को परवान चढ़ाना और प्रशिक्षित बनाना है।

पैग़म्बरों की सारी महानताओं का आधार बंदगी का जज़्बा है। इसलिए अल्लाह की बारगाह में निष्ठावान बंदा होना उनके गुणों में सर्वोपरि रखा गया है। दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि पैग़म्बर अल्लाह की बंदगी के ज़रिए इस मरतबे पर पहुंचे।

दुनिया के प्रेम से दूरी और आख़ेरत पर नज़र रखना इंसान की निष्ठा और पाकीज़गी की भूमिका है जो उसे सांसरिक प्रदूषण से बचाती है और उसे तत्वज्ञान और अंतरज्ञान देती है।

 

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