Apr ११, २०२२ १०:२२ Asia/Kolkata

सूरए साद आयतें 67-74

 

قُلْ هُوَ نَبَأٌ عَظِيمٌ (67) أَنْتُمْ عَنْهُ مُعْرِضُونَ (68) مَا كَانَ لِيَ مِنْ عِلْمٍ بِالْمَلَإِ الْأَعْلَى إِذْ يَخْتَصِمُونَ (69) إِنْ يُوحَى إِلَيَّ إِلَّا أَنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُبِينٌ (70)

इन आयतों का अनुवाद हैः

(हे पैग़म्बर) कह दो, "वह एक बड़ी ख़बर है, ‘ [38:67] जिस पर तुम ध्यान नहीं दे रहे हो [38:68] मुझे ऊपरी लोक की कोई ख़बर नहीं थी जब वे (फ़रिश्ते) बहस कर रहे थे [38:69] मेरी ओर तो बस इसलिए वहि की जाती है कि मैं खुला हुआ सचेत करने वाला हूँ।"[38:70]

उन आयतों में जिन पर हमने पिछले कुछ कार्यक्रमों में चर्चा की स्वर्ग, नरक और स्वर्गवासियों और नरकवासियों के हालात के बारे में बताया गया। अब यह आयतें कहती हैं कि यह सब परलोक की चीज़ें हैं जिनके बारे में ज्ञान वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश के ज़रिए ही हासिल हो सकता है। यह वहि पैग़म्बर पर नाज़िल होने के बाद लिखित रूप में क़ुरआन की शक्ल में पेश कर दी गई है। इसलिए पहले अल्लाह कहता है कि हे पैग़म्बर आप अनेकेश्वरवादियों से कह दीजिए कि यह क़ुरआन बहुत बड़ी सूचना है जिससे तुम अपने कुफ़्र की वजह से मुंह मोड़े हुए हो और मेरी बात सुनने और उस पर ग़ौर करने के लिए तैयार नहीं होते। जबकि यह बातें मैं अपनी तरफ़ से बयान नहीं करता बल्कि यह सब मुझ पर वहि अर्थात अल्लाह के संदेश के रूप में नाज़िल हुआ है कि मैं तुमको भविष्य के बारे में और आइंदा जो तुम्हारे सामने आने वाला है उसके बारे में सचेत कर दूं। मेरे पास ग़ैब का इल्म नहीं है। तुम्हारी तरह मुझे भी ग़ैब और परलोक की घटनाओं की जानकारी नहीं है। हां यह है कि अल्लाह मुझे वहि के ज़रिए बता देता है। जैसा कि हज़रत आदम की रचना के समय फ़रिश्तों के बीच बहस का विषय है उसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी, उसके बारे में अल्लाह ने मुझे बताया।

इन आयतों से हमने सीखाः

आस्था से जुड़े विषयों के बारे में लोगों का इक़रार या इंकार उन विषयों के सही या ग़लत होने का साक्ष्य नहीं बन सकता।

ग़ैब और परलोक की घटनाओं से अवगत होने के लिए पैग़म्बरों के पास एक ही रास्ता अल्लाह की वहि या संदेश का है। यह भी स्पष्ट है कि परलोक के बारे में पैग़म्बरों का ज्ञान वहि पर निर्भर रहता है। उन्हें उसी मात्रा में ज्ञान हासिल होता है जिस मात्रा में अल्लाह अपनी वहि के ज़रिए उन्हें सूचित कर देता है।

अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 71 और 72 की तिलावत सुनते हैं,

إِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي خَالِقٌ بَشَرًا مِنْ طِينٍ (71) فَإِذَا سَوَّيْتُهُ وَنَفَخْتُ فِيهِ مِنْ رُوحِي فَقَعُوا لَهُ سَاجِدِينَ (72)

इन आयतों का अनुवाद हैः

याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि "मैं मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करने वाला हूँ [38:71] तो जब मैं उसको ठीक-ठाक कर दूँ औऱ उसमें अपनी रूह फूँक दूँ, तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना।" [38:72]

पिछली आयतों में एक महत्वपूर्ण विषय के बारे में फ़रिश्तों की बहस के बारे में बताया गया उसके बाद इन आयतों में अल्लाह कहता है कि यह बहस आदम की रचना के बारे में थी। माजरा यह था कि अल्लाह ने जब हज़रत आदम की रचना के समय फ़रिश्तों को इस विषय के बारे में बताते हुए कहा कि मैं पानी और मिट्टी से एक मख़लूक़ पैदा करना चाहता हूं जो अन्य प्राणियों और रचनाओं से बुनियादी अंतर रखती होगी। अंतर यह होगा कि मैं उसमें अपनी रूह फूंकूंगा। अतः तुम इस नई मख़लूक़ के सामने सजदा करना और उसकी श्रेष्ठता का इक़रार करना।

इंसान का जिस्म पानी और मिट्टी से बना है यह तो बिल्कुल स्पष्ट सी बात हैं क्योंकि वह सारी खाने पीने की चीज़ें जिनसे इंसान का शरीर बनता है प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उन वनस्पतियों से हासिल होती हैं जो मिट्टी से उगती हैं और पानी की मदद से पनपती हैं। लेकिन यह तथ्य के इंसान के पास इस मिट्टी के शरीर के साथ ही साथ अल्लाह की रूह भी है, इंसान के गौरव और संसार में उसके महान स्थान की निशानी है। क्योंकि वह ऐसी चीज़ अपने पास रखता है जो अल्लाह ने उसे प्रदान की है।

अल्बत्ता इंसान में अल्लाह की रूह फूंकने का यह मतलब नहीं है कि अल्लाह से कोई चीज़ अलग होकर इंसान के वजूद में प्रवेश कर गई है। बल्कि यहां यह बयान करना मक़सद है कि इंसान की रूह का स्रोत क्या है। यह स्रोत मिट्टी के इस संसार का नहीं बल्कि परलोक से संबंध रखता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जाए कि अल्लाह के कुछ गुण जिनके अपने भीतर रखने की इंसान में क्षमता और योग्यता है वह उसे प्रदान कर दिए गए हैं। मिसाल के तौर पर इंसान के अंदर अल्लाह के कुछ गुणों जैसे ज्ञान, शक्ति, दया और अधिकार और इरादे को सीमित रूप से उसे प्रदान किया गया है।

इन आयतों से हमने सीखाः

फ़रिश्तों को इंसानों से पहले पैदा कर दिया गया था। क्योंकि इंसान को पैदा करने से पहले अल्लाह ने फ़रिश्तों से बात की। मगर चूंकि पहले या बाद में पैदा होने से ज़्यादा योग्यता और क्षमता का महत्व होता है इसलिए इंसानों को फ़रिश्तों से ऊपर रखा गया है।

इंसान ऐसा वजूद है जिसके दो पहलू हैं। भौतिक और आध्यात्मिक। इंसान अपने आध्यात्मिक पहलू और ईश्वरीय रूह की वजह से उस स्थान पर पहुंच गया कि फ़रिश्तों ने उसका सजदा किया। यह उसकी शारीरिक विशेषताओं के कारण नहीं हुआ।

ख़ुदा के अलावा किसी और का सजदा जायज़ नहीं है हां अगर अल्लाह के आदेश पर हो तो अलग बात है। आदम का सजदा चूंकि अल्लाह के आदेश पर हुआ था इसलिए यह दरअस्ल अल्लाह की इबादत है आदम की इबादत नहीं।

अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 73 और 74 की तिलावत सुनते हैं, 

فَسَجَدَ الْمَلَائِكَةُ كُلُّهُمْ أَجْمَعُونَ (73) إِلَّا إِبْلِيسَ اسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ (74)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो सभी फ़रिश्तों ने सजदा किया, सिवाय इबलीस के।[38:73] उसने घमंड किया और इनकार करने वालों में से हो गया [38:74]

क़ुरआन की इन आयतों के अनुसार फ़रिश्ते अल्लाह की आज्ञाकारी मख़लूक़ और रचनाएं हैं जो कभी भी अल्लाह के आदेश की अवमानना नहीं कर सकते। इसलिए जब हज़रत आदम का सजदा करने का आदेश जारी हुआ तो सबने फ़ौरन इंसान के सामने सिर झुका दिया और अल्लाह के फ़रमान पर अमल किया। अवज्ञा केवल इबलीस ने की जिसने घमंड में पड़कर सजदा करने से इंकार कर दिया। वह आदम के सामने सिर झुकाने के लिए तैयार नहीं हुआ। वह ख़ुद को इंसानों से श्रेष्ठ समझता था। इस घमंड की वजह से शैतान उस स्थान से नीचे गिरा जहां वह अपनी कड़ी मेहनत से पहुंच गया था। वह नास्तिकों में शामिल हो गया।

ज़ाहिर है कि अगर शैतान भी फ़रिश्तों में से होता तो हरगिज़ अवज्ञा न करता। यह अवज्ञा बता रही है कि वह फ़रिश्तों में से नहीं था। वह जैसा कि क़ुरआन की दूसरी आयतों में बताया गया है जिन्नों में से था। जिन्नातों के लिए यह संभावना रहती है कि वह भी इंसानों की तरह अल्लाह की अवज्ञा और अवमानना पर उतर आएं। रिवायतों में है कि शैतान लंबे समय तक इबादत और आज्ञापालन के सहारे फ़रिश्तों की पंक्ति में स्थान पा गया था। इसीलिए अल्लहा ने जब इंसान का सजदा करने का आदेश दिया तो यह आदेश उसके लिए भी था।

इन आयतों से हमने सीखाः 

घमंड किसी को भी बहुत पस्ती में पहुंचा सकता है चाहे उसने लंबी उम्र सही रास्ते पर चलते हुए ही क्यों न गुज़ारी हो।

अच्छे लोगों के बीच होने और उनके समूह में शामिल रहने से ही किसी को मोक्ष हासिल होना यक़ीनी नहीं बनता बल्कि हर इंसान को अपने तौर पर कोशिश करनी होती है कि वह वास्तविक अर्थ में अच्छा हो ताकि उसे मुक्ति प्राप्त हो सके। पैग़म्बरों और अल्लाह के ख़ास बंदों की बहुत सी औलादें भी थीं जो सत्य के रास्ते से हट जाने की वजह से तबाही और बर्बादी की खाई में गिर गईं।

 

 

 

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