क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-853
सूरए साद आयतें 75- 78
قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَنْ تَسْجُدَ لِمَا خَلَقْتُ بِيَدَيَّ أَسْتَكْبَرْتَ أَمْ كُنْتَ مِنَ الْعَالِينَ (75) قَالَ أَنَا خَيْرٌ مِنْهُ خَلَقْتَنِي مِنْ نَارٍ وَخَلَقْتَهُ مِنْ طِينٍ (76)
इन दोनों आयतों का अनुवाद हैः
कहा, "ऐ इबलीस! तूझे किस चीज़ ने उसको सजदा करने से रोका जिसे मैंने अपनी ताक़त और क़ुदरत से बनाया? क्या तूने घमंड किया, या तू बाग़ियों में से हो गया?" [38:75] उसने कहा, "मैं उससे बेहतर हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया और उसे गीली मिट्टी से पैदा किया।" [38:76]
पिछले कार्यक्रम में हमने कहा कि प्रथम इंसान को पैदा करने के बाद अल्लाह ने फ़रिश्तों को आदेश दिया कि उसके सामने सजदा करें और सबने सजदा किया, केवल इबलीस को छोड़कर जिसने अवज्ञा की। इन आयतों में अल्लाह कहता है कि अल्लाह ने इब्लीस से पूछा कि तूमने आदम के समक्ष सजदा करने से क्यों इंकार किया? क्या तेरा मर्तबा इतना ऊंचा हो गया है कि आदम का सजदा करने का आदेश तुझ पर लागू नहीं होता? या घमंड और ग़ुरूर की वजह से तू आदम के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं हुआ?
मगर इब्लीस ने अपनी ग़लती मानने और अपने किए पर शर्मिंदगी ज़ाहिर करने के बजाए आदम को अपने से तुच्छ रचना कह दिया जो सजदे के लायक नहीं है। उसने अपनी बात के सुबूत में यह तुलनात्मक मूल्यांकन पेश किया कि मैं जिन्नातों में से हूं जो आग से पैदा किए गए हैं जबकि आदम की पैदाइश मिट्टी से हुई है और यह ज़ाहिर है कि मिट्टी से आग श्रेष्ठ है। इब्लीस के इस तुलनात्मक मूल्यांकन के बारे में कुछ बातें बयान करने की हैं।
एक तो यह कि इस तुलना का कोई दुरुस्त आधार नहीं था। क्योंकि कोई तर्क और बौद्धिक बहस नहीं है जिससे यह साबित हो कि आग मिट्टी से श्रेष्ठ है।
दूसरे यह कि अगर शैतान श्रेष्ठ था तब भी जब अल्लाह ने उसे हज़रत आदम के सामने विनम्र होकर सिर झुकाने का आदेश दे दिया तो फिर सजदे से इंकार का सीधा मतलब था अल्लाह की अवमानना जिसका किसी भी तरह कोई औचित्य नहीं है।
तीसरी बात यह है कि हज़रत आदम का सजदा करने का आदेश इसलिए नहीं दिया गया था कि वह मिट्टी से बने हुए प्राणी थे बल्कि इस आदेश की वजह वह रूह और आत्मा थी जो उनके अंदर डाली गई थी और जिसकी वजह से वह सारी रचनाओं से महान हो गए थे।
इन आयतों से हमने सीखाः
अपराधी और गुनहगार को भी अपनी बात कहने का मौक़ा दिया जाना चाहिए ताकि उसके अपराध की वजह और जड़ पता चल सके।
इंसान अन्य सभी रचनाओं से श्रेष्ठ है केवल ज़मीन के प्राणी और जानवर ही नहीं बल्कि आसमान के फ़रिश्ते और अदृष्य जिन्नात भी इंसान के ऊंचे स्थान तक नहीं पहुंच पाते।
अल्लाह के स्पष्ट आदेश के सामने नतमस्तक हो जाना चाहिए, ग़लत और नासमझी वाली बहस नहीं करनी चाहिए।
जो लोग अल्लाह के सामने नतमस्तक नहीं होते और उसके आदेश के समक्ष समर्पित नहीं रहते उनके इस रुजहान की वजह उनका घमंड है।
नस्लभेद, किसी नस्ल को दूसरी नस्ल से बेहतर समझना एक तरह की शैतानी सोच है।
अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 77 और 78 की तिलावत सुनते हैं,
قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٌ (77) وَإِنَّ عَلَيْكَ لَعْنَتِي إِلَى يَوْمِ الدِّينِ (78)
इन दोनों आयतों का अनुवाद हैः
कहा, "अच्छा, निकल जा यहाँ से, क्योंकि तू धुत्कारा हुआ है [38:77] और निश्चय ही क़यामत के दिन तक तुझपर मेरी लानत है।" [38:78]
हालांकि इब्लीस जिन्नातों में से था और बरसों की इबादत की वजह से फ़रिश्तों में जगह पा गया था लेकिन आदम का सजदा करने के मालमे में उसकी बग़ावत और अवमानना ने साबित किया कि वह अल्लाह के आदेश के सामने नतमस्तक नहीं और अल्लाह का सच्चा आज्ञाकारी नहीं है। बल्कि जो उसे पसंद हो वही करता है। उसकी दास्तान उस व्यक्ति जैसी है जिसने ऊंचे और दुर्गम पहाड़ पर बड़ी मेहनत से चोटी तक चढ़ तो गया है लेकिन ग़फ़लत की वजह से उसका पांव डगमगाता है और वह गिर पड़ता है। शैतान इसी अवमानना की वजह से उस जगह से गिर गया और अल्लाह की बारगाह से धुत्कार दिया गया।
इन आयतों के अनुसार अल्लाह की बारगाह से निकाले जाने के साथ ही उसे यह सज़ा भी दी गई कि क़यामत तक उस पर अल्लाह की लानत होती रहेगी। यहां शायद किसी के मन में यह सवाल पैदा हो कि एक अवज्ञा पर वह भी अल्लाह का नहीं बल्कि आदम का सजदा करने से इंकार के रूप में थी, इतनी बड़ी सज़ा देने का क्या औचित्य है?
इसके जवाब में कहना चाहिए कि अवमानना बुरा काम है और इससे भी बुरी बात इस अवमानना को सही ठहराने की कोशिश है। हज़रत आदम ने भी जन्नत के बाग़ में जिसे अल्लाह ने उन्हें प्रदान किया था अवज्ञा की और प्रतिबंधित फल खा लिया। लेकिन हज़रत आदम की अवमानना और इबलीस की अवमानना में फ़र्क यह था कि हज़रत आदम ने अपनी ग़लती को सही ठहराने की कोशिश नहीं की। बल्कि पूरी गंभीरता से तौबा की। अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल की और उन्हें अपनी ख़ास दया व कृपा का पात्र बना दिया। मगर शैतान ने तौबा करने और माफ़ी मांगने के बजाए बहाने और औचित्य पेश करने की कोशिश की तो अल्लाह की लानत का हक़दार बना।
इन आयतों से हमने सीखाः
घमंड और ग़ुरूर का नतीजा अल्लाह की नेमत और रहमत से महरूम होने के अलावा कुछ नहीं होता और इससे इंसान पस्ती में चला जाता है।
यह ज़रूरी है कि समाज के अप्रिय सदस्य और वे लोग जो अल्लाह के क़ानून को नहीं मानते समाज से निकाल दिए जाने चाहिएं। ज़िम्मेदारी उन लोगों को दी जानी चाहिए जो ज़िम्मेदार और सदाचारी हों उनके अंदर ईमान हो।
शैतानी स्वभाव के लोग जिनमें जलन, द्वेष, घमंड और ग़ुरूर होता है समाज में उनकी इज़्ज़त नहीं होनी चाहिए।