क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-854
सूरए साद आयतें 79-83
قَالَ رَبِّ فَأَنْظِرْنِي إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ (79) قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ الْمُنْظَرِينَ (80) إِلَى يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ (81)
इन आयतों का अनुवाद हैः
उसने कहा, "ऐ मेरे परवरदिगार! फिर तू मुझे उस दिन तक मोहलत दे, जबकि लोग (जीवित करके) उठाए जाएँगे।" [38:79] कहा, "जा, तुझे मोहलत दी गई [38:80] उस दिन तक जिसका तुझे वक़्त मालूम है।" [38:81
पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि आदम के लिए सजदा करने के अल्लाह के फ़रमान के बाद शैतान ने अवमानना की और हज़रत आदम का सजदा करने पर तैयार नहीं हुआ। लेकिन शैतान की मुश्किल बस यहीं पर ख़त्म नहीं हुई। बल्कि अल्लाह की अवमानना जैसी ग़लती करने के बाद उस पर शर्मिंदगी ज़ाहिर करने और तौबा करने के बजाए उसने अपनी हरकत को सही ठहराने की कोशिश शुरू कर दी। इसीलिए उसे अल्लाह की बारगाह और फ़रिश्तों की पंक्ति से निष्कासित कर दिया गया।
यह आयतें कहती हैं कि शैतान जब फ़रिश्तों के बीच से निकाला जाने लगा तो उसने अल्लाह से यह मांग रखी कि अल्लाह उसकी उम्र को क़यामत के दिन तक लंबा कर दे। अलबत्ता शैतान ने यह मोहलत इसलिए नहीं मांगी कि अपने बुरे कर्मों को सुधारे और ग़लतियों की भरपाई करे बल्कि उसने इंसानों को गुमराह करने और इस तरह उनसे अपना बदला लेने के लिए मोहलत मांगी। दरअस्ल शैतान की एक और बड़ी ग़लती यही थी कि अपनी ग़लती मानने के बजाए इंसानों को दोषी समझ रहा था और उसने कहा कि आदम की वजह से उसे अल्लाह की बारगाह से निकलना पड़ा। अल्लाह ने अपनी ख़ास हिकमत और तदबीर के तहत शैतान की मांग स्वीकार कर ली लेकिन उसे मोहलत क़यामत के दिन तक की नहीं बल्कि उस एक निर्धारित समय तक दी गई जिसे अल्लाह जानता है। यह मोहलत हो सकता है कि धरती पर मानव जीवन की समाप्ति तक की मोहलत हो। हो सकता है कि यह मोहलत धरती पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत और आख़िरी इमाम के प्रकट होने का दिन हो या किसी और दिन तक हो जिसे अल्लाह ही जानता है।
इन आयतों से हमने सीखाः
शैतान का घमंड और ग़ुरूर कारण बना कि शैतान अपनी ग़लती पर शर्मिंदा होने और अल्लाह से तौबा करने के बजाए इंतेक़ाम के लिए मोहलत मांगने लगा।
अल्लाह के लिए कुछ प्राणियों को लंबी उम्र देना आसान है, वह जिसे उचित समझे लंबी उम्र दे सकता है। चाहे वह सदाचारी हो या दुराचारी।
शैतान की मुश्किल अल्लाह और क़यामत की शिनाख़्त न होना नहीं थी बल्कि उसके गुमराह होने की वजह उसका घमंड और ग़रूर था। इस भावना की वजह से शैतान अल्लाह के मुक़ाबले में खड़ा हो गया और अल्लाह का फ़रमान मानने से इंकार कर दिया।
अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 82 और 83 की तिलावत सुनते हैं,
قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ (82) إِلَّا عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِينَ (83)
इन आयतों का अनुवाद हैः
उसने कहा, "तेरे प्रताप की क़सम! मैं अवश्य उन सबको बहकाकर रहूँगा, [38:82] सिवाय उनमें से तेरे उन बन्दों के, जो चुने हुए है।" [38:83]
हमने बताया कि शैतान ने अल्लाह से लंबी उम्र मांगी और अल्लाह ने शैतान को एक निर्धारित समय तक जिसे अल्लाह जानता है मोहलत दे दी। लेकिन जब अल्लाह ने उसे मोहलत दे दी तो शैतान ने क़सम खायी कि मोहलत हासिल करने का उसका मक़सद इंसानों को बहकाना और गुमराह करना है अपनी ग़लती का सुधार और तौबा करना नहीं।
अजीब बात है कि शैतान अल्लाह की इज़्ज़त की क़सम खाकर कहता है कि वह इंसानों को गुमराह करेगा। यह जो शैतान दावा कर रहा है कि वह सारे इंसानों को गुमराह कर सकता है यह उसके घमंड को दर्शाता है और इससे पता चलता है कि वह इंसान को कमज़ोर और बेबस समझता है। जबकि क़ुरआन की आयतें कहती हैं कि केवल वे लोग गुमराह होंगे जो शैतान के रास्ते पर चलेंगे, शैतान किसी को अपनी राह पर चलने के लिए मजबूर नहीं कर सकेगा। क्योंकि इंसानों को अख़तियार हासिल है और वे शैतान के बहकावों का मुक़ाबला कर सकते हैं। सूरेए सबा की आयतं संख्या 20 इस बात को बहुत स्पष्ट शब्दों में बयान करती है कि मोमिन बंदों का समूह शैतान के पदचिन्हों पर नहीं चलता।
ख़ुद शैतान ने भी पहले दावा कर दिया कि वह सारे इंसानों को बहकाएगा लेकिन फिर उसने यह बात मानी कि अल्लाह के नेक बंदे शैतान की पहुंच से दूर हैं और उन पर असर डालने के लिए उसके पास कोई तरकीब नहीं है। स्वाभाविक सी बात है कि पैग़म्बर और इमाम अल्लाह के ख़ास निष्ठावान बंदे हैं। वे गुनाह और पाप से पूरी तरह सुरक्षित हैं। धार्मिक ज़बान में उन्हें मासूम कहा जाता है। इसी तरह दूसरे इंसानों के अंदर जितनी निष्ठा होगी और दुनिया का मोह जितना कम होगा वे उसी मात्रा में शैतान के बहकावे से सुरक्षित होंगे। अल्लाह ने शैतान को यह मोहलत क्यों दी कि वह इंसानों को बहकाए इस बारे में अलग अलग विचार पाए जाते हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अल्लाह ने इंसान को अख़तियार दिया है और अख़तियार होने का मतलब यह है कि इंसान के साथ अलग अलग रास्ते मौजूद हों जिनमें से वह अपनी इच्छा से किसी का चयन करे। दूसरी ओर चूंकि अल्लाह भी यह चाहता है कि इंसान संपूर्णता के बिंदु पर पहुंचे तो इसके लिए ज़रूरी है कि वह संघर्ष और मेहनत भी करे। जिस तरह ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में बुलंद मंज़िल तक पहुंचने के लिए आराम तलबी छोड़कर मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है इसी तरह आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी ज़रूरी है कि बाग़ी इच्छाओं को नियंत्रित किया जाए। यह भी बता देना उचित है कि शैतानी बहकावे इंसान की इच्छाओं को हरकत में लाते हैं। कुछ लोग जिनकी इच्छा शक्ति कमज़ोर होती है शैतान के बहकावे में आ जाते हैं और कुछ तो शैतान की सेना में शामिल हो जाते हैं।
इन आयतों से हमने सीखाः
इंसान अपनी पूरी ज़िंदगी में हमेशा शैतान के ख़तरे की ज़द में रहता है। उसे कभी भी ख़ुद को सुरक्षित मानकर संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। क्योंकि शैतान ने क़सम खाई है कि वह सारे इंसानों को बहकाएगा।
कभी एक गुनाह दूसरे बड़े गुनाहों की भूमिका बन जाता है। शैतान ने एक गुनाह किया और वह था हज़रत आदम का सजदा करने के आदेश की अवमानना। मगर यही गुनाह इससे भी बड़े पाप की भूमिका बन गया और वह पूरे इतिहास में इंसानों को बहकाने और भ्रमित करने की क़सम खा बैठा।
अल्लाह के अलावा दूसरे हर किसी से दिल को पाक करना और निष्ठा के साथ अमल शैतान के जाल से सुरक्षित रहने की शर्त है। इस तरह इंसान शैतान के बहकावे से सुरक्षित रह सकता है।