Apr ११, २०२२ १०:३३ Asia/Kolkata

सूरए साद आयतें 84-88

قَالَ فَالْحَقُّ وَالْحَقَّ أَقُولُ (84) لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنْكَ وَمِمَّنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ أَجْمَعِينَ (85)

इन आयतों का अनुवाद हैः

कहा, "तो यह सत्य है और मैं सत्य ही कहता हूँ [38:84] कि मैं जहन्नम को तुझसे और उन सबसे भर दूँगा, जिन्होंने उनमें से तेरा अनुसरण किया होगा।" [38:85]

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि जब शैतान अल्लाह की बारगाह से बाहर निकाला गया तो उसने कहा कि जब तक ज़िंदा रहेगा इंसानों को गुमराह करता रहेगा ताकि उनसे अपना इंतेक़ाम ले।

इन आयतों में अल्लाह शैतान के जवाब में कहता है कि हक़ तो यह है कि जो लोग तेरा अनुसरण करेंगे और तेरे बहकावे में आकर काम करेंगे वे गुमराह होंगे। क़यामत में वे जहन्नम में डाले जाएंगे। लेकिन जो लोग अक़्ल और पाकीज़ा प्रवृत्ति को आधार बनाकर काम करेंगे वे तेरे बहकावे में नहीं आएंगे और तेरा अनुसरण करने के बजाए अल्लाह के पैग़म्बरों और उसकी शिक्षाओं का अनुसरण करेंगे, वे लोग क़यामत में तेरे समूह में नहीं होंगे और जहन्नम से निजात पा जाएंगे।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह ख़ुद भी हक़ और सत्य है और हमेशा उसकी बात हक़ और सत्य होती है, बल्कि हर चीज़ जो हक़ और सत्य है उसका स्रोत अल्लाह है।

क़यामत में हर इंसान अपने पेशवा के साथ हाज़िर किया जाएगा। अच्छे लोग अच्छे लोगों के साथ और बुरे लोग बुरे लोगों के साथ।

अब आइए सूरेए साद की आयत संख्या 86 से 88 तक की तिलावत सुनते हैं,

قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُتَكَلِّفِينَ (86) إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِلْعَالَمِينَ (87) وَلَتَعْلَمُنَّ نَبَأَهُ بَعْدَ حِينٍ (88)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

कह दो, "मैं इसपर तुमसे कोई मेहनताना नहीं माँगता और न मैं बनावट करने वालों में से हूँ।"[38:86] वह तो एक नसीहत है सारे संसार वालों के लिए [38:87]  और थोड़ी ही अवधि के पश्चात उसकी दी हुई ख़बर तुम्हे मालूम हो जाएगी। [38:88]

इन आयतों पर सूरए साद ख़त्म हो जाता है। इनमें अल्लाह की तरफ़ से पैग़म्बरों को भेजे जाने और क़ुरआन नाज़िल किए जाने के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु बयान किए गए हैं। यह आयतें बताती हैं कि जो लोग अपने पैग़म्बर होने का झूठा दावा करते हैं ताकि उन्हें कुछ सांसारिक लाभ और हित हासिल हो सकें उनके दावों के विपरीत पैग़म्बरे इस्लाम सहित सारे पैग़म्बर खुलकर एलान करते रहे कि उन्हें आम जन से कोई मेहनताना नहीं चाहिए, न आभार और ज़बानी शुक्रिए की ज़रूरत है, न भौतिक इनाम, न मालोदौलत और न ही किसी अन्य चीज़ की कोई ज़रूरत है।

वे ख़ुद को अल्लाह का संदेश आम इंसानों तक पहुंचाने वाला माध्यम मानते हैं और उनका कहना है कि इस संदेश की विषयवस्तु तैयार करने में उनकी कोई भूमिका नहीं है। यानी उन लोगों की सोच बिल्कुल ग़लत है जो यह मानते हैं कि पैग़म्बर अच्छे इंसान होते थे जो अपने भले काम अल्लाह के नाम से अंजाम देते थे और उनके बारे में आम इंसानों को बताते थे ताकि आम इंसान इसी तरह के कर्मों को अपना लें।

हक़ीक़त यह है कि अपने ज़माने के लोगों के बीच पैग़म्बरों का अमल और कार्यशैली ऐसी होती थी कि विरोधियों को भी एतेराज़ का कोई मौक़ा नहीं मिल पाता था। वरना अगर विरोधियों को पैग़म्बरों की ज़िंदगी में कुछ कमियां नज़र आ जातीं तो वे उनको ख़ूब बढ़ा चढ़ाकर बयान करते और उनके ख़िलाफ़ प्रचारिक मोर्चा खोल देते। पैग़म्बरों को भौतिक लाभ और हितों की कोई चिंता नहीं थी बल्कि वे तो अल्लाह के दीन का प्रचार करने की वजह से भारी कठिनाइयां और यातनाएं भी झेलते थे बल्कि इस राह में कभी जान भी क़ुरबान करनी पड़ती थी। यह आयतें कहती हैं कि पैग़म्बरों को भेजने और आसमानी ग्रंथ नाज़िल करने का मक़सद लोगों को ग़फ़लत और तारीकी से बाहर निकालना था। उस ग़फ़लत से जो दुनिया की चीज़ों और स्वार्थों की वजह से इंसान की आंख पर पर्दा डाल देती है। इसके नतीजे में इंसान मौत के बाद के जीवन और क़यामत के दिन के हालात की ओर से ग़ाफ़िल हो जाता है और सत्य का इंकार करके अंधकार और तारीकी में फंस जाता है।

सूरए साद की आख़िरी आयत विरोधियों को संबोधित करते हुए कहती है कि अगर तुम सत्य बात को स्वीकार नहीं करते और उसे गंभीरता से नहीं लेते तो बहुत जल्द तुम्हें उसकी सत्यता का पता चल जाएगा लेकिन उस दिन देर हो चुकी होगी और तुम्हें उसका कोई फ़ायदा नहीं मिलेगा क्योंकि तब ग़लतियों की भरपाई की कोई गुंजाइश बची नहीं होगी।

इन आयतों से हमने सीखाः

जो लोग धर्म के प्रचार के काम में व्यस्त हैं उन्हें चाहिए कि पैग़म्बरों की तरह कोई भौतिक और सांसारिक लाभ और स्वार्थ मद्देनज़र न रखें, सत्य का संदेश पहुंचाने में वे तभी कामयाब हो सकते हैं।

बातचीत और बर्ताव में बनावटीपन से धर्म के प्रचार में रुकावट आती है। धर्म की बातें सादगी के साथ और स्पष्ट शब्दों में इस तरह पहुंचानी चाहिएं कि उन्हें सब लोग समझ सकें और उन पर अमल कर सकें। लोगों के सामने इन बातों को पूर्ण रूप से बयान करना चाहिए वरना लोग इन बातों को समझ नहीं पाएंगे और इनसे दूर होने लगेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम और क़ुरआन का संदेश वैश्विक और अंतर्राष्ट्रीय है यह अरब जाति या किसी ख़ास समूह और ख़ास समय से विशेष नहीं है।

क़ुरआन नसीहत और उपदेश की किताब और इंसानों को बेदार और होशियार करने का ज़रिया है।

क़ुरआन की सत्यता और पैग़म्बरे इस्लाम के संदेश की सच्चाई आने वाले समय में और भी स्पष्ट होगी हालांकि आज कुछ लोग इन शिक्षाओं को स्वीकार करने पर तैयार नहीं है।

 

टैग्स