Nov १६, २०२२ १९:२२ Asia/Kolkata

ज़ोमर आयतें 11-16

قُلْ إِنِّي أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ مُخْلِصًا لَهُ الدِّينَ (11) وَأُمِرْتُ لِأَنْ أَكُونَ أَوَّلَ الْمُسْلِمِينَ (12) قُلْ إِنِّي أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّي عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ (13)

इन आयतों का अनुवाद हैः

(ऐ रसूल) कह दीजिए कि मुझे ये हुक्म दिया गया है कि मैं दीन को उसके लिए विशुद्ध करके (भरपूर ख़ुलूस के साथ) उसकी बन्दगी करूं [39:11]  और मुझे ये हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहले मुसलमान हो जाऊं [39:12]   (ऐ रसूल) कहिए कि अगर मैं अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी करूँ तो मैं एक बड़े (सख्त) दिन (क़यामत) के अज़ाब से डरता हूँ [39:13]  

पिछले कार्यक्रम में तक़वा, सुकर्म, संयम और दृढ़ता का उल्लेख किया गया जो ईमान वालों की निशानियां हैं। इसके आगे यह आयतें पैग़म्बर को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे पैग़म्बर! कह दीजिए अनेकेश्वरवादियों से खुलकर कह दीजिए कि मुझे अल्लाह की तरफ़ से ज़िम्मेदारी दी गई है कि उसके धर्म को हर प्रकार की मिलावट से विशुद्ध रखूं और केवल अल्लाह की इबादत करूं। मुझे यह दायित्व भी दिया गया है कि ईमान वालों के बीच अल्लाह की इबादत में सबसे आगे रहूं और हर तरह के अनेकेश्वरवाद से दूर रहूं। इन आयतों में आगे यह कहा गया है कि जो भी अल्लाह के फ़रमान से मुंह मोड़े वह अज़ाब का शिकार होगा और इस मामले में मुसलमानों तथा पैग़म्बर के बीच कोई अंतर नहीं है। अल्लाह के आदेशों के सामने नतमस्तक रहना दुनिया और आख़ेरत में अल्लाह के अज़ाब से सुरक्षित रहने का सही रास्ता है। इस संदर्भ में आम लोगों से ज़्यादा ज़िम्मेदारी पैग़म्बर की है।

पैग़म्बर ख़ुद को आम इंसानों से अलग नहीं मनते थे बल्कि अन्य इंसानों की तरह खुद भी अल्लाह के सामने समर्पित रहते थे। यह उनकी निष्ठा और सच्चे मिशन की निशानी है। वे झूठे पैग़म्बरों से अलग थे जो लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाने के बजाए अपनी तरफ़ बुलाते हैं और अपने लिए बड़ी विशिष्टताएं हासिल करते हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

पैग़म्बरों को अल्लाह का पैग़ाम आम लोगों तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी दी गई है। वे अपने पास से कुछ नहीं बयान करते और अपनी मनमानी कोई काम नहीं करते।

अल्लाह की इबादत को हर तरह के शिर्क और अनेकेश्वरवाद से पाक रखना पैगम़्बरों की ज़िम्मेदारी रही है।

क़यामत में अल्लाह की अदालत में पैग़म्बरों और आम इंसानों के बीच कोई अंतर नहीं होगा। पैग़म्बरों को अलग से कोई विशिष्टता नहीं दी गई है।

 

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 14 और 15 की तिलावत सुनते हैं,

قُلِ اللَّهَ أَعْبُدُ مُخْلِصًا لَهُ دِينِي (14) فَاعْبُدُوا مَا شِئْتُمْ مِنْ دُونِهِ قُلْ إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنْفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَلَا ذَلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ (15)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

(ऐ रसूल) आप कहिए कि मैं अल्लाह की इबादत करता हूं उसी के वास्ते अपने दीन को विशुद्ध करते हुए।[39:14]    तुम उसके सिवा जिसकी चाहो इबादत करो (ऐ रसूल) यह भी कह दीजिए कि दरअस्ल घाटे में वही लोग हैं जिन्होंने अपने आपको और घर वालों को क़यामत के दिन घाटे में डाला। आगाह हो जाओ कि यही खुला हुआ घाटा है। [39:15] 

पिछली आयतों में यह बताया गया कि पैग़म्बर ने कहा कि मुझे यह ज़िम्मेदारी दी गई है कि अल्लाह के दीन को विशुद्ध रूप में पेश करूं और पूरे ख़ुलूस से अल्लाह की इबादत करूं। इसके बाद अब इन आयतों में पैग़म्बर कहते हैं कि मैंने अमल में भी यही शैली अपनाई है क्योंकि मैं सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करता हूं किसी और की नहीं। दूसरी बात यह है कि इस इबादत में किसी को भी अल्लाह के साथ शामिल नहीं करता। इसके बाद अनेकेश्ववादियों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मैं तुम्हें पाकीज़ा और विशुद्ध दीन की दावत देता हूं। अगर तुम इसे क़ुबूल नहीं करते तो जिसकी चाहो इबादत करो और जान लो कि तुम बहुत बड़े घाटे में चले गए हो। क्योंकि अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत दरअस्लम तुम्हें और तुम्हारे परिवार को बहुत बड़े घाटे में डाल देगी।

यह न समझो की वित्तीय घाटा ही सबसे बड़ा घाटा है बल्कि अस्ली घाटा तो वह है जो क़यामत में उठाना पड़ेगा। जिस दिन बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को पता चलेगा कि बुलंद दर्जे हासिल करने और अनंत कल्याण पाने के बजाए उसे तो केवल घाटा उठाना पड़ा है। इसके अलावा उसके पास कोई रास्ता भी नहीं होगा कि पिछली ग़लतियों की भरपाई कर सके। यही खुला हुआ घाटा है।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह के हुक्म और आदेशों का पालन करने में पैग़म्बर दूसरों से आगे रहे हैं। उन्होंने दूसरों से पहले और अपने पूरे वुजूद से अल्लाह के आदेशों पर अमल किया। यह तो बिल्कुल नहीं हुआ कि उन्होंने दूसरों को तो हक़ की दावत दी हो लेकिन ख़ुद अमली तौर पर उसके पाबंद न रहे हों।

पैग़म्बरों की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी अल्लाह के दीन को हर प्रकार के अनेकेश्वरवाद, अंधविश्वास, ग़लत परम्परा और फेरबदल से दूर रखना है। क्योंकि यह चीज़ें दीन के लिए बहुत बड़ी बीमारियों के समान हैं।

पैग़म्बरों को अल्लाह का पैग़ाम सारे इंसानों तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी दी गई है। मगर उन्हें मालूम हैं कि लोगों का एक समूह उनकी बात नहीं मानेगा। लेकिन इसके बावजूद मायूस नहीं होते थे अपना अपना मिशन आगे बढ़ाते रहते थे।

इंसान के कांधे पर केवल अपनी नहीं बल्कि अपने पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी होती है। बच्चों की परवरिश धार्मिक मूल्यों के आधार पर करना परिवार के भीतर मां बाप का दायित्व है।

 

 

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 16 की तिलावत सुनते हैं,

لَهُمْ مِنْ فَوْقِهِمْ ظُلَلٌ مِنَ النَّارِ وَمِنْ تَحْتِهِمْ ظُلَلٌ ذَلِكَ يُخَوِّفُ اللَّهُ بِهِ عِبَادَهُ يَا عِبَادِ فَاتَّقُونِ (16)

इस आयत का अनुवाद हैः

इन (बदक़िस्मत) लोगों के लिए उनके ऊपर भी आग के सायबान होंगे और उनके नीचे से भी। ये वही अज़ाब है जिससे खुदा अपने बन्दों को डराता है। तो ऐ मेरे बन्दो! मुझी से डरते रहो। [39:16]

इस आयत ने क़यामत में वास्तव में घाटा उठाने वालों के बारे में बताया है। आयत कहती है जहन्नम के शोलों ने उन्हें हर तरफ़ से घेर रखा है और उनके पास फ़रार का कोई रास्ता नहीं। यह दरअस्ल चेतावनी है सारे इंसानों के लिए कि अगर दुनिया में उन्होंने परहेज़गारी का रास्ता छोड़ा और अल्लाह का डर उनके दिल में न रहा तो मुमकिन है कि वे क़यामत में दर्दनाक अंजाम का शिकार हो जाएं।

इस आयत से हमने सीखाः

कुफ़्र, शिर्क का रास्ता चुनना और अल्लाह से दूर हो जाना इंसान की बर्बादी की भूमिका है। जो भी दुनिया में नास्तिकता और अनेकेश्वरवाद के रास्ते पर चलता है, आख़ेरत में वह अल्लाह के अज़ाब का शिकार होगा। यह अज़ाब भीषण आग के रूप में उसे घेर लेगा।

जहन्नम की आग से निजात का एक ही रास्ता है परहेज़गारी और गुनाह से दूरी। गुनाह आग भड़काने वाले पदार्थ के समान है। अगर जहन्नम के शोलों को भड़कने से रोकना है तो ज़रूरी है कि इस पदार्थ यानी गुनाह से दूर रहा जाए।

 

 

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