क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-968
सूरए क़ाफ़ ,आयतें 9 से 15
आइये सबसे पहले सूरए क़ाफ़ की 9वीं से लेकर 11वीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,
وَنَزَّلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً مُبَارَكًا فَأَنْبَتْنَا بِهِ جَنَّاتٍ وَحَبَّ الْحَصِيدِ (9) وَالنَّخْلَ بَاسِقَاتٍ لَهَا طَلْعٌ نَضِيدٌ (10) رِزْقًا لِلْعِبَادِ وَأَحْيَيْنَا بِهِ بَلْدَةً مَيْتًا كَذَلِكَ الْخُرُوجُ (11)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और हमने आसमान से बरकत वाला पानी बरसाया तो उससे बाग़ उगाए और (काटी जाने वाली) फ़सल का अनाज (उगाया) [50:9]और लम्बी लम्बी खजूरें, जिसका बौर आपस में गुथा हुआ है।[50:10] (ये सब कुछ) बन्दों की रोज़ी देने के लिए (पैदा किया) और पानी ही से हमने मुर्दा शहर को ज़िन्दा किया। इसी तरह (क़यामत में मुर्दों का) निकलना होगा। [50:11]
पिछले कार्यक्रम को जारी रखते हुए यह आयतें कहती हैं कि जिस तरह बहुत सी घासें और वनस्पतियां सूख जाने के बाद बहार में दोबारा हरी- भरी हो जाती हैं उसी तरह क़यामत का होना भी है। बहार के मौसम में जब बेजान छोटे से दानों और बीजों पर वर्षा का पानी पड़ता है तो मुर्दा ज़मीन से उनमें दोबारा जान आ जाती है और जब वे बड़े हो जाते हैं तो किसान अपने खाने के लिए उन्हें काट लेते हैं।
बहुत से पेड़ भी जाड़े में सूख जैसे जाते हैं परंतु बहार का मौसम आते ही उनमें नई- नई कोपलें निकलने लगती हैं। पवित्र क़ुरआन कहता है कि क़यामत व प्रलय भी इसी तरह होगा। एक मुर्दा इंसान के शरीर के अंग व अंश जो इस ज़मीन में बिखर गये हैं वे सब सर्वसमर्थ व सर्वशक्तिमान ईश्वर के आदेश से बिखरे हुए दानों की भांति एकत्रित और ज़िन्दा होकर ज़मीन से निकल आयेंगे। यह कार्य न तो असंभव है और न ही महान ईश्वर की असीम शक्ति के लिए नामुमकिन है।
इन आयतों से हमने सीखाः
वर्षा बहुत ही लाभदायक चीज़ है ज़मीन पर रहने वाले समस्त प्राणियों का जीवन उस पर निर्भर है। पेड़ पौधों, वनस्पतियों, जानवरों और इंसानों का जीवन उस पर निर्भर है।
पेड़ों और फ़लों में खजूर के पेड़ और फ़ल की कुछ भिन्न विशेषतायें हैं जिसकी वजह से महान ईश्वर ने उसका अलग से उल्लेख किया है।
वनस्पति और पेड़ भी सुन्दरता और हरियाली का जहां कारण हैं वहीं रोज़ी के साथ- साथ मरने के बाद जीवित होने की भी अलामत हैं। स्पष्ट है कि जो लोग चिंतन- मनन करते हैं उन्हें इन चीज़ों से सीख मिलती है।
आइये अब सूरए क़ाफ़ की 12वीं से 14वीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَأَصْحَابُ الرَّسِّ وَثَمُودُ (12) وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ وَإِخْوَانُ لُوطٍ (13) وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ وَقَوْمُ تُبَّعٍ كُلٌّ كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ وَعِيدِ (14)
इन आयतों का अनुवाद हैः
उनसे पहले नूह की क़ौम और ख़न्दक़ वालों और (क़ौमे) समूद ने अपने अपने पैग़म्बरों को झुठलाया। [50:12] और (क़ौमे) आद और फिरऔन और लूत की क़ौम। [50:13] और बन के रहने वालों (क़ौम शुऐब) और तुब्बा की क़ौम और (उन) सबने अपने (अपने) पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमारा (अज़ाब का) वायदा पूरा हो कर रहा। [50:14]
पवित्र क़ुरआन की ये आयतें पैग़म्बरे इस्लाम और ईमान लाने वालों को दिलासा देते हुए कहती हैं यह गुमान न करो कि केवल मक्का के मुश्रिक ही पैग़म्बरे इस्लाम की रिसालत व पैग़म्बरी का इंकार करते और उसे स्वीकार नहीं करते हैं बल्कि महान पैग़म्बर हज़रत नूह के ज़माने से अब तक पैग़म्बरों को हमेशा झुठलाया जाता रहा है और लोगों के विभिन्न गुटों और क़ौमों ने विभिन्न बहानों से हक़ व सत्य बात को स्वीकार नहीं किया और पैग़म्बरों की सच्चाई को क़बूल नहीं किया।
अलबत्ता उनके इस इंकार की वजह दुश्मनी, हठधर्मिता और ताअस्सुब था और उनका इंकार निरुत्तर नहीं रहा और विभिन्न रूपों में उन सबको अज़ाबे एलाही का सामना हुआ। कुछ गिरोहों को बाढ़, तूफ़ान और कुछ दूसरों को आसमानी बिजली और भीषण भूकंप का सामना हुआ।
इन आयतों से हमने सीखा
जिस महान ईश्वर ने इस ब्रह्मांड की रचना की है और उसने इंसान को पैदा किया है उसी ने पैग़म्बरों के ज़रिये से इंसानों की हिदायत व मार्गदर्शन किया है ताकि वे कमाल व परिपूर्णता का मार्ग तय करें।
साथ ही हक़ को स्वीकार करना ज़बरदस्ती नहीं है और इस संबंध में महान ईश्वर ने इंसानों को स्वेच्छा से चयन का अधिकार दिया है।
अतीत की जिन क़ौमों ने पैग़म्बरों को देखा और उनके लिए हक़ व सत्य स्पष्ट था फ़िर भी उन्होंने हक़ को क़बूल नहीं किया तो उन्हें अज़ाबे एलाही का सामना हुआ। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए पाठ व सीख है।
आइये अब सूरए क़ाफ़ की 15वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,
أَفَعَيِينَا بِالْخَلْقِ الْأَوَّلِ بَلْ هُمْ فِي لَبْسٍ مِنْ خَلْقٍ جَدِيدٍ (15)
इस आयत का अनुवाद हैः
तो क्या हम पहली बार पैदा करके थक गये हैं (हरगिज़ नहीं) मगर ये लोग (फिर भी) दोबारा पैदा करने के बारे में शक़ में पड़े हैं। [50:15]
बहुत से काफ़िर और मुश्रिक महान ईश्वर को इंसान और समूचे ब्रह्मांड के रचयिता के रूप में स्वीकार करते हैं और उसके अस्तित्व का इंकार नहीं करते हैं। यह आयत उसी आधार पर कहती है क्या हम पहली बार तुम्हारी रचना करने में असमर्थ थे जो दोबारा तुम्हारी रचना करने से असमर्थ हो गये हैं और हम दोबारा तुम्हारी रचना नहीं कर सकते?
इस आयत से हमने सीखाः
क़यामत में महान ईश्वर दोबारा समस्त इंसानों को पैदा करेगा इस काम में उसकी शक्ति के बारे में किसी प्रकार के संदेह का कोई आधार नहीं है। क्योंकि जिसने पहली बार समस्त चीज़ों को अदम से वुजूद बख़्शा है यानी अदम से अस्तित्व प्रदान किया उसके लिए फ़िर से पैदा करना कौन सी आश्चर्य की बात है।
क़यामत का इंकार करने वालों से सवाल के रूप में बहस करनी चाहिये ताकि वे सोचें और चिंतन- मनन करें शायद हक़ को क़बूल करें।
क़यामत का इंकार करने वालों के पास क़यामत के इंकार के लिए कोई तार्किक कारण नहीं है बल्कि वे अपने अतार्किक संदेह को क़यामत के इंकार का कारण समझते हैं।