Jun ०९, २०२५ १५:२३ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-989

सूरए क़मर आयतें , 9 से 22

आइए सबसे पहले सूरए क़मर की आयतं संख्या 9 से 12 तक की तिलावत सुनते हैं,

كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ فَكَذَّبُوا عَبْدَنَا وَقَالُوا مَجْنُونٌ وَازْدُجِرَ (9) فَدَعَا رَبَّهُ أَنِّي مَغْلُوبٌ فَانْتَصِرْ (10) فَفَتَحْنَا أَبْوَابَ السَّمَاءِ بِمَاءٍ مُنْهَمِرٍ (11) وَفَجَّرْنَا الْأَرْضَ عُيُونًا فَالْتَقَى الْمَاءُ عَلَى أَمْرٍ قَدْ قُدِرَ (12)

इन आयतों का अनुवाद हैः

इनसे पहले नूह की क़ौम ने भी (हमारी निशानियों को) झुठलाया था, तो उन्होने हमारे ख़ास बन्दे (नूह) को झुठलाया, और कहने लगे ये तो दीवाना है। [54:9]  और उनको (यातनाएं और धमकियां देकर पैग़म्बरी के काम से) रोका गया, तो उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (परवरदिगार मैं) इनके मुक़ाबले में कमज़ोर हूँ तो अब तू ही मेरी मदद कर।[54:10]  तो हमने मूसलाधार पानी से आसमान के दरवाज़े खोल दिए। [54:11]  और ज़मीन से चश्में जारी कर दिए, तो एक काम के लिए जो मुक़र्रर हो चुका था (दोनों) पानी मिलकर एक हो गया। [54:12]  

पिछले कार्यक्रम में हमने क़यामत के दिन सच्चाई को झुठलाने वालों की भयावह स्थिति पर चर्चा की थी। अब ये आयतें उनके दुनियावी अज़ाब की एक झलक पेश करती हैं। 

अल्लाह के दूसरे पैग़म्बरों की तरह, हज़रत नूह (अ.स.) ने भी अपनी क़ौम को अल्लाह की तरफ़ बुलाया और उन्हें मोजिज़े (चमत्कार) दिखाए। लेकिन जिन लोगों ने सच्चाई स्वीकार करने से इनकार कर दिया, उन्होंने नूह (अ.स.) को "दीवाना" कहा और आरोप लगाया कि वह "जिन्नात के प्रभाव में हैं और उनकी अक़्ल पर पर्दा पड़ गया है।"

उन्होंने नूह (अ.स.) को धमकी दी कि उन्हें पत्थर मार-मारकर शहीद कर देंगे। काफिरों ने उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया और उनके मिशन में रोड़े अटकाए, ताकि वो अपनी दावत छोड़ दें और उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें। 

ऐसे में, नूह (अ.स.) ने अल्लाह से प्रार्थना की कि वह इन विरोधियों के ख़िलाफ़ उनकी मदद करे। चूँकि अल्लाह ने उन पर "इत्माम-ए-हुज्जत" कर दिया था और वे तौबा नहीं कर रहे थे, इसलिए अल्लाह ने उन पर अपना अज़ाब नाज़िल किया। एक भयानक बाढ़ आई जिसने उन्हें पूरी तरह बहा दिया और उनमें से कुछ भी बाक़ी नहीं बचा। 

इन आयतों से हमने सीखाः

पैग़म्बरों को "पागल" कहना एक पुरानी रणनीति है। इतिहास में काफ़िर हमेशा अल्लाह के रसूलों के चरित्र को बदनाम करने की कोशिश करते रहे हैं। 

ईमान वालों को अपना कर्तव्य निभाते रहना चाहिए। अगर दुश्मन बलवान लगे, तो हताश न हों, क्योंकि अल्लाह की ताकत सबसे बड़ी है। 

पानी जो रहमत (कृपा) का स्रोत है, कभी-कभी अल्लाह के क्रोध व अज़ाब का भी ज़रिया बन जाता है।

अब आइए सूरए क़मर की आयत संख्या 13 से 17 तक की तिलावत सुनते हैं

وَحَمَلْنَاهُ عَلَى ذَاتِ أَلْوَاحٍ وَدُسُرٍ (13) تَجْرِي بِأَعْيُنِنَا جَزَاءً لِمَنْ كَانَ كُفِرَ (14) وَلَقَدْ تَرَكْنَاهَا آَيَةً فَهَلْ مِنْ مُدَّكِرٍ (15) فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ (16) وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآَنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِنْ مُدَّكِرٍ (17)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और हमने एक कश्ती पर जो तख्तों और कीलों से तैयार की गयी थी सवार किया। [54:13]  और वह हमारी निगरानी में चल रही थी (ये) उस शख़्स (नूह) का बदला लेने के लिए जिसको लोग न मानते थे। [54:14]  और हमने उसको एक इबरत बना कर छोड़ा तो कोई है जो इबरत हासिल करे। [54:15]  तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था। [54:16]  और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे। [54:17]  

अल्लाह ने क़ौम-ए-नूह पर अज़ाब नाज़िल करने से पहले, हज़रत नूह (अ.स.) को एक विशाल किश्ती बनाने का हुक्म दिया, जिसमें हर प्रकार के जानवरों के जोड़े भी सवार हों ताकि उनकी नस्लें न मिटें। यह इस बात का संकेत था कि एक भयानक तूफ़ान आने वाला है जो धरती के बड़े हिस्से को अपनी चपेट में लेगा, वरना ऐसी तैयारी की कोई ज़रूरत नहीं थी। 

जब विनाशकारी बाढ़ आई, तो अल्लाह के हुक्म से कश्ती चल पड़ी और उसके सवार बच गए, जबकि सारे काफ़िर डूबकर मर गए। पानी उतरने के बाद, कश्ती के लोग सही-सलामत बाहर निकले। लेकिन उस विशाल नाव के अवशेष यानी लकड़ी के टुकड़े और कीलें अल्लाह के इरादे से आज भी मौजूद हैं ताकि वह उसकी ताक़त की निशानी बनें और सच्चाई को झुठलाने वाले समझ लें कि अल्लाह का अज़ाब कितना सख़्त है।

यह कहानी क़ुरआन में इसलिए बयान की गई है ताकि  इंसान सीख लें और हक़ के सामने अपनी ज़िद छोड़ दें, अतीत की घटनाएँ आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनें।

 इन आयतों के अंत में क़ुरआन के आसान होने पर ज़ोर दिया गया है। इसकी तिलावत सरल है, लेकिन अर्थ गहरा।   इसमें कहानियाँ और उदाहरण हैं जो समझने में मदद करते हैं। मगर यह आसान होने के साथ साथ मज़बूत और अचूक है, पूरी दुनिया मिलकर भी इस जैसी एक आयत नहीं ला सकती।

इन आयतों से हमने सीखाः

अगर अल्लाह चाहे तो लकड़ी के तख़्ते भी बड़े से बड़े तूफ़ान में इंसान को बचा सकते हैं जैसे मूसा (अ.स.) को नील नदी की मौजों में सुरक्षित रखा। 

जो पैग़म्बरों की दावत को ठुकराता है, उसका अंजाम दुनिया और आख़िरत में बुरा होता है। 

जिस तरह फ़िरऔन का शव नदी से बरामद हुआ, नूह (अ.स.) की कश्ती के अवशेष भी बचे रहे ताकि लोग सबक लें। 

क़ुरआन का एक चमत्कार यह है कि यह सरल होते हुए भी अद्वितीय है, कोई इसके जैसी को किताब नहीं ल सकते चाहे सारे इंसान मिलकर इसकी कोशिश करें नक़ल नहीं कर सकता। 

अब सूराए क़मर की आयत संख्या 18 से 22 तक की तिलावत सुनते हैं,

كَذَّبَتْ عَادٌ فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ (18) إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي يَوْمِ نَحْسٍ مُسْتَمِرٍّ (19) تَنْزِعُ النَّاسَ كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ مُنْقَعِرٍ (20) فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ (21) وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآَنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِنْ مُدَّكِرٍ (22)

इन आयतों का अनुवाद हैः

आद की क़ौम ने (अपने पैग़म्बर को) झुठलाया तो (उनके लिए) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था। [54:18]  हमने उन पर बहुत सख़्त मनहूस दिन में बड़े ज़न्नाटे की ऑंधी चलायी। [54:19]  जो (आद के बदलवान) लोगों को (अपनी जगह से) इस तरह उखाड़ फेकती थी गोया वे उखड़े हुए खजूर के तने हैं। [54:20]  तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था। [54:21]  और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया, तो कोई है जो नसीहत हासिल करे। [54:22]

नूह (अ.स.) की क़ौम के बाद, ये आयतें क़ौम-ए-आद के विनाश की दास्तान बयान करती हैं। हज़रत हूद (अ.स.) ने उन्हें बार-बार अल्लाह के अज़ाब से डराया, लेकिन वे अपने बुरे कामों से बाज़ नहीं आए। उन्होंने हूद (अ.स.) का मज़ाक उड़ाया और अपनी मज़बूत शरीर और ऊँचे महलों पर घमंड करते रहे।

उन्हें यह नहीं सूझा था कि एक दिन इतनी तेज़ और भयानक हवा चलेगी कि उनके विशालकाय शरीर खजूर के पेड़ों की तरह उखड़कर ज़मीन से टकराएँगे। यह तूफ़ान लगातार सात दिनों तक चला और उनके शहरों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया।

अल्लाह यहां एक बार फिर कहता है कि तुम पिछली क़ौमों के हाल से सबक़ क्यों नहीं लेते? हमने क़ुरआन में उनकी कहानियाँ आसान भाषा में बयान कर दीं, ताकि तुम समझ सको!

इन आयतों से हमने सीखाः

नबियों के ज़रिए चेतावनियाँ भेजकर अल्लाह ने इंसानों पर दलील पूरी कर दी। अब जो ज़िद पकड़े बैठा है, उसे अपने अंजाम का इंतज़ार करना चाहिए।

हवा भी पानी की तरह अल्लाह की मर्ज़ी की पाबंद है, कभी यह रहमत बनकर फसलों को हरा-भरा करती है, मगर कभी अज़ाब बनकर अहंकारियों को उड़ा देती है।

क़ुरआन इतिहास की किताब नहीं, बल्कि हिदायत की किताब है। पिछली क़ौमों के विनाश को इसलिए बयान किया गया ताकि सब सबक़ लें और इंकार और झुठालना छोड़ दें।