Sep २१, २०१६ १६:०७ Asia/Kolkata

इस्लाम में मां-बाप के आदर और अधिकारों के विषय पर हमारी चर्चा जारी है।

यह विषय इस्लाम में इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि पवित्र ईश्वरीय किताब क़ुरान में और अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के कथनों में मां-बाप के आदर एवं सम्मान पर अत्यधिक बल दिया गया है।

 

इस्लामी शिक्षाओं में मां-बाप के भौतिक एवं आध्यात्मिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। सर्वप्रथम मां-बाप के जीवन को सुरक्षित रखने पर बल दिया गया है। उन्हें किसी भी तरह की हानि पहुंचाने से रोका गया है। उनके साथ दुर्व्यवहार करने, उन्हें शारीरिक या मानसिक नुक़सान पहुंचाने और उनकी हत्या को महा पाप और ईश्वर की अनुकंपाओं की सबसे बड़ी अवहेलना क़रार दिया गया है।

इंसान को चाहिए कि वह अपने मां-बाप के अधिकारों को पहचाने और कदापि उनकी सेवा का अवसर अपने हाथ से जाने न दे, हालांकि संतान के पालन-पोषण में जो कठिनाईयां उन्होंने सहन की हैं और जो कष्ट उन्होंने उठाए हैं, उनका महत्व इतना अधिक है कि संतान कभी भी उनका बदला नहीं चुका सकती। इसलिए कि मां-बाप की सेवा में संतान कदापि वह भाव, वह उत्साह, वह ममता, वह उद्देश्य और वह धैर्य नहीं ला सकती, जिस भाव, उत्साह, ममता, उद्देश्य और धैर्य के साथ मां-बाप ने कठिनाईयों को सहन किया है।

यही कारण है कि इस्लाम धर्म में मां-बाप के साथ भलाई और अच्छाई की सिफ़ारिश केवल उनके जीवित रहने तक सीमित नहीं है, बल्कि जिस प्रकार उनके जीवन में उनके साथ भलाई करनी चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए, उनके निधन के बाद भी संतान उनके साथ भलाई जारी रख सकती है और उनके लिए परोपकार कर सकती है। मां-बाप के जीवन में उनके साथ भलाई और सेवा की सिफ़ारिश विभिन्न धर्मों ने की है, लेकिन उनके निधन के बाद उनके साथ भलाई और परोपकार की जिस प्रकरा इस्लाम धर्म ने सिफ़ारिश की है, वह अनउदाहरणीय है। केवल इतना ही नहीं जिस प्रकार मां-बाप के जीवन में संतान उनकी सेवा करके और उन्हें सुख पहुंचाकर ईश्वरीय प्रसन्नता प्राप्त कर सकती है और ईश्वरीय अनुकंपाओं की पात्र बन सकती है, उसी प्रकार उनके मरने के बाद उनकी इच्छा के विपरीत कार्य करके और उनकी आत्मा को दुख पहुंचाकर ईश्वरीय प्रकोप को अपना भाग्य बना सकती है। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, इसके विपरीत की स्थिति भी संभव है।       

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अनुसार, मां-बाप के साथ भलाई को उनके जीवन तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उनके मरने के बाद भी उनके साथ भलाई करना भूलना नहीं चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, अपने मां-बाप का आज्ञापालन करो और उनके साथ भलाई करो, चाहे वे जीवित हों या जीवित न हों।

किसी व्यक्ति ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) से प्रश्न किया कि हे ईश्वरीय दूत मां-बाप के निधन के बाद, किस प्रकार से उनके साथ भलाई की जा सकती है? पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, संतान को चाहिए कि मां-बाप के लिए दुआ करे और ईश्वर से उनकी मुक्ति और क्षमा की प्रार्थना करे, उनकी मौत के बाद उनकी वसीयत को पूरा करे, उनके परिजनों के साथ शिष्टाचार करे और उनके मित्रों का आदर करे। पैग़म्बरे इस्लाम के अनुसार, जो व्यक्ति अपने मां-बाप के मरने के बाद भी उनके साथ भलाई करता है, प्रलय के दिन वह भलाई करने वालों का सरदार होगा।

मां-बाप के निधन के बाद उनकी ओर से दान देना, उनके क़र्ज़ को अदा करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए नमाज़, रोज़ा और हज करना उनके साथ भलाई करने का एक तरीक़ा है।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं कि मां-बाप के जीवन और उनके निधन के बाद उनके साथ भलाई के रास्ते में कौन सी चीज़ रुकावट है। उनके लिए नमाज़ पढ़ो, दान दो, हज करो, रोज़ा रखो और इसी प्रकार के परोपकार करो।

एक दिन एक व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में उपस्थित हुआ और उसने कहा कि हे ईश्वरीय दूत मुझे कुछ उपदेश दीजिए, पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, मेरी सिफ़ारिश यह है कि अपने मां-बाप के साथ उनके जीवन और मरने के बाद भलाई कर और अगर उन्होंने तुझे अपने धन और घर को त्यागने का आदेश दिया तो इसका पालन कर, इसलिए कि यह धर्म का भाग है।

महान विद्वान अल्लामा मजलिसी स्वर्गीय मां-बाप के साथ भलाई के इस्लामी आदेश का उल्लेख करते हुए लिखते हैं, उनके लिए ईश्वर से क्षमा की प्रार्थना करके, उनके क़र्ज़ को अदा करके, अनिवार्य इबादतें जिन्हें वह अदा नहीं कर सके हैं, उन्हें अदा करके, उनके लिए दान देकर और वह समस्त अच्छे कार्य करके जिनसे उन्हें पुण्य प्राप्त हो, उनके साथ भलाई करो।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं, मां-बाप के साथ भलाई, ईश्वर के प्रति ज्ञान का आधार है, इसीलिए मां-बाप के साथ भलाई की तुलना में कोई भी अच्छाई तुरंत ईश्वर की प्रस्न्नता का कारण नहीं बनती, इसलिए कि मां-बाप के अधिकार का स्रोत, ईश्वरीय अधिकार है।

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, लोक और परलोक में मां-बाप के साथ भलाई और परोपकार के प्रतिफल के परिणाम स्वरूप अनेकानेक अनुकंपाएं प्राप्त होती हैं। सर्वप्रथम मां-बाप की सेवा और उनकी प्रसन्नता से ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त होती है। क़ुराने मजीद के सूरए इसरा में मां-बाप के साथ भलाई और उनके आदर के आदेश के बाद, ईश्वर कहता है, तुम्हारे मन में कुछ है, ईश्वर उससे अधिक अवगत है, अगर तुम भलाई करोगे तो निश्चित रूप से वह क्षमा याचना करने वालों को क्षमा कर देता है।

मां-बाप के अधिकारों के प्रति इंसान का जो कर्तव्य है, संभव है इंसान उसे पूरा करने में कोई भूलचूक या ग़लती कर बैठे, लेकिन अगर वह मन से अपने मां-बाप का आदर करता है और ऐसी स्थिति में उससे कोई भूलचूक हो जाती है, तो वह तुरंत प्रायश्चित करता है और अपनी इस ग़लती की माफ़ी मांगता है, निश्चित रूप से ईश्वर ऐसे लोगों की माफ़ी स्वीकार कर लेता है।

मां-बाप की सेवा और उनके साथ भलाई के प्रतिफल के परिणाम स्वरूप इंसान की आयु में वृद्धि होती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं, हे आदम की संतान, अपने मां-बाप के साथ भलाई कर और संबंधियों के साथ अच्छा व्यवहार कर ताकि ईश्वर तेरी मुश्किल आसान कर दे और आयु में वृद्धि कर दे। अपने पालनहार की आज्ञा का पालन कर ताकि बुद्धिमानों में तुझे गिना जाए और उसकी अवज्ञा न कर ताकि मूर्खों में तेरी गिनती न हो। इसी प्रकार फ़रमाते हैं, ईश्वर ने मूसा को जो दिशानिर्देश दिए थे, उसमें से एक यह है कि मेरा और अपने मां-बाप का आभार व्यक्त कर, ताकि तुझे नष्ट होने से सुरक्षित रखूं और तेरी मौत में विलंब कर दूं और तुझे पवित्र जीवन प्रदान करूं और इस तुझे इस जीवन की तुलना में अधिक अच्छे जीवन की ओर मार्गदर्शित करूं।

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) भी ऐसे लोगों की सराहना करते हुए जो अपने मां-बाप के साथ भलाई करते हैं फ़रमाते हैं, धन्य हैं वे लोग जो अपने मां-बाप के साथ भलाई करते हैं, इसलिए कि ईश्वर ऐसे लोगों की आयु में वृद्धि कर देता है।

मां-बाप की सेवा और उनके साथ भलाई के प्रतिफल के परिणाम स्वरूप इंसान की आजीविका में वृद्धि होती है। इसलिए कि ईश्वर है जो सबका पालनहार है और सभी को आजीविका प्रदान करता है। समस्त प्राणी उसकी अनुकंपाओं के दस्तरख़ान से लाभान्वित होते हैं। ईश्वर की इन समस्त अनुकंपाओं के बदले हमारा कर्तव्य है कि हम उसके आभारी हों। इसलिए कि अनुकंपा का आभार जताने से अनुकंपा में अधिक वृद्धि होती है। मां-बाप ईश्वर की सबसे बड़ी अनुकंपाओं में से हैं, इंसान को इस महान अनुकंपा के लिए ईश्वर का आभारी होना चाहिए। जैसा कि हमने उल्लेख किया था, क़ुरान में ईश्वर ने मां-बाप का आभार व्यक्त करने का आदेश अपने आभार व्यक्त के आदेश के साथ दिया है।

मां-बाप की सेवा और उनके साथ भलाई के प्रतिफल के परिणाम स्वरूप इंसान की मौत आसान हो जाती है। मौत इंसान के जीवन में घटने वाली एक ऐसी प्राकृतिक घटना है, जिसे टाला नहीं जा सकता। दूसरी ओर यह ऐसी दर्दनाक और पीड़ादायक घटना है कि जिसके विचार से ही इंसान की रूह फ़नाह होती है। इस्लामी शिक्षाओं में मौत को मानवीय जीवन के सबसे भयानक चरणों में से एक बताया गया है। हालांकि इसी के साथ इस बात का उल्लेख भी किया गया है कि यही मौत एक नेक सज्जन व्यक्ति के लिए आसान और सरल होती है, जैसा कि हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं, मौत मोमिन अर्थात भले व्यक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ उपहार है।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के मुताबिक़ मां-बाप के साथ भलाई करने का एक प्रतिफल मौत के चरण का आसान होना है। इमाम फ़रमाते हैं, जो कोई चाहता है कि मौत के समय ईश्वर उसकी कठिनाई को आसान कर दे, तो उसे चाहिए कि मां-बाप और मां-बाप के रिश्तेदारों के साथ भलाई करे, अगर वह ऐसा करेगा तो ईश्वर मौत की कष्ट को उसके लिए सरल बना देगा।

मां-बाप की सेवा और उनके साथ भलाई के प्रतिफल के रूप में इंसान को स्वर्ग में उच्च स्थान प्राप्त होता है। ईश्वर क़ुराने मजीद में कहता है कि इंसान जो कोई भी कार्य करता है, उसे उसका बदला मिलेगा। मां-बाप की सेवा और उनका आदर ईश्वर के निकट सर्वश्रेष्ठ कार्य है, इसलिए इस सर्वश्रेष्ठ कार्य का पुण्य स्वर्ग से बेहतर और क्या हो सकता है।

इमाम बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं, अगर किसी इंसान में यह चार विशिष्टताएं पायी जायेंगी तो ईश्वर उसे उच्चतम स्थान प्राप्त करेगा। जो कोई अनाथ को शरण दे और बाप की नज़रों से उसे देखे, जो कोई किसी निर्बल पर रहम करे और उसकी पर्याप्त सहायता करे, जो कोई अपने मा-बाप के साथ शिष्टाचार करे और उनके लिए ख़र्च करे और वह जो उनके साथ भलाई करे और उन्हें किसी प्रकार की कठिनाई में डालने से बचे।

ईश्वरीय दूत और उनके उत्तराधिकारी इमामों ने अपने विभिन्न स्थानों पर इस महत्वपूर्ण बिंदु पर बल दिया है कि मां-के साथ भलाई और उनकी सेवा का प्रतिफल केवल इस दुनिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रतिफल परलोक में भी प्राप्त होगा और वह भी सर्वश्रेष्ठ प्रतिफल। पैग़म्बरे इस्लाम के अनुसार, जो व्यक्ति अपने मां-बाप का आज्ञापालन करता है, प्रलय के दिन उसका स्थान सबसे ऊंचा होगा। 

 

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