Jan ३०, २०१९ १७:३० Asia/Kolkata

धार्मिक दृष्टि से कुछ सोचें बहुत अधिक महत्व रखती हैं।

इस प्रकार की सोचों के अंदर एक प्रकार की पहचान की नीहित होती है। इसी प्रकार इस्लाम में आया है कि कुछ चीज़ों को प्रेमपूर्ण नज़रों से देखना पुण्य है। जैसे धार्मिक विद्वान, माता -पिता और पति- पत्नी का एक दूसरे को प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखना पुण्य है और महान ईश्वर के सामिप्य का कारण बनता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं आंखें दिल का आइना होती हैं। आखें जिधर जायेंगी दिल भी उधर जायेंगे तो उसी ओर देखना चाहिये जो दिल के प्रकाशित होने का कारण बने उस ओर नहीं देखना चाहिये जो दिल में अंधेरे की वजह बने।

महिला और परिवार के स्थान को पुनर्जीवित करने के लक्ष्य से ईरानी संविधान में उसे विशेष स्थान दिया गया है ताकि उसे एक सामान न समझा जाये और समाज में एक सक्रिय और ज़िम्मेदार प्राणी के रूप में उसे स्वीकार किया जाये।

ईरान की जो इस्लामी व्यवस्था है उसके संविधान का आधार ईश्वरीय कानून हैं और एक सामाजिक स्तंभ के रूप में परिवार के विषय पर उसमें विशेष स्थान दिया गया है और ईरानी संविधान में उसे समाज की इकाई के रूप में रेखांकित किया गया है। इसी प्रकार संविधान में कहा गया है कि परिवार वह स्थान है जहां इंसान प्रगति करता है और इंसान की प्रगति के लिए संभावनाएं उपलब्ध कराना इस्लामी सरकार का दायित्व है।

जब महिला को परिवार में उसके वास्तविक स्थान के रूप में देखा जायेगा तो उसे एक चीज़ व साधन की दृष्टि से नहीं देखा जायेगा और समाज में उसे मर्दों के समान देखा जायेगा और इस्लाम की दृष्टि में उसे मानवीय प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। यह वह विषय है जिस पर ईरानी संविधान में बल दिया गया है और सरकार को परिवार और उसकी मज़बूती पर ध्यान देने के लिए कहा गया है। इसी प्रकार ईरानी संविधान में कहा गया है कि चूंकि परिवार इस्लामी समाज की इकाई है इसलिए समस्त कानूनों और परिवार से संबंधित कार्यक्रमों को एसा होना चाहिये जिससे परिवार का गठन और उसकी पवित्रता की रक्षा सरल हो सके और परिवार से संबंधित अधिकारों का आधार इस्लाम होना चाहिये।

 

इस्लाम में परिवार के जो अधिकार हैं उससे तात्पर्य इस्लाम के वे कानून व आदेश हैं जिन्हें परिवार को बाकी रखने के लिए दृष्टि में रखा गया है। आज की दुनिया में जो कुछ हो रहा है उसके विपरीत इस्लाम धर्म में महिला और पुरुष सबके लिए जीवन के हर क्षेत्र में अलग- अलग कानून व अधिकार हैं और दंड में भी दोनों समान नहीं हैं और दोनों की शारीरिक व मानसिक क्षमता को दृष्टि में रखते हुए उनके लिए दायित्व व दंड निर्धारित किये गये हैं। परिवार की पवित्रता की रक्षा पर जो बल दिया गया है उसका भी स्रोत इस्लाम धर्म की शिक्षाएं हैं और इस्लाम ने सदैव परिवार की मज़बूती और उसकी पवित्रता की रक्षा पर बल दिया है। संविधान के अनुसार ईरान की इस्लामी सरकार का दायित्व है कि वह परिवार की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखने के लिए अदालतों का गठन करे। यह विषय ईरान की इस्लामी व्यवस्था में इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि अतीत में ग़ैर इस्लामी और ग़लत नीतियों के कारण महिलाओं का शोषण किया जाता था और महिलाओं को समाज में उनका वास्तविक व मूल्यवान स्थान प्राप्त नहीं था।

इसी तरह परिवार को स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संविधान में दो महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान दिया गया है। एक तो इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर परिवार का गठन और दूसरे इस्लामी विशेषताओं और गुणों से सुसज्जित व सम्पन्न परिवार।

ईरानी संविधान में समस्त लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं चाहे मर्द हो या औरत। इसी प्रकार उसमें समस्त मानवीय, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आदि अधिकारों पर भी ध्यान दिया गया है। संविधान के अनुसार ईरान की इस्लामी सरकार का दायित्व है कि वह समस्त क्षेत्रों में इस्लामी शिक्षाओं की सीमा में रहते हुए महिला के अधिकार को सुनिश्चत बनाये और महिला की प्रगति और उसके भौतिक एवं आध्यात्मिक अधिकारों को पूरा कराने में उसकी सहायता करे। माताओं विशेषकर जब वे गर्भावस्था में हों या बच्चे का लालन -पालन कर रही हों तो सरकार को चाहिये कि वह उनका समर्थन करे। इसी प्रकार इस्लामी सरकार को चाहिये कि वह परिवार और उसकी प्रतिष्ठा को बाकी रखने के लिए अदालतों का गठन करे। इसी प्रकार सरकार को चाहिये कि वह विधवा, बड़ी उम्र की महिलाओं और उन महिलाओं का समर्थन करे जिनका कोई अभिभावक नहीं है। इसी प्रकार इस्लामी सरकार को चाहिये कि जब अभिभावक न हो तो बच्चों के पालन- पोषण और उनकी देख-रेख की ज़िम्मेदारी, योग्य महिलाओं व माताओं के हवाले करे।

सामाजिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान में विवाह करने और परिवार गठन की प्रक्रिया की और अधिक समीक्षा करने की आवश्यकता है ताकि परिवार का गठन व्यापक व मज़बूत हो सके।

 

परिवार वास्तव में महान ईश्वर की पहचान, प्रेम, निष्ठा और अध्यात्म का केन्द्र होता है और पति-पत्नी को चाहिये कि अध्यात्मिक विकास के मार्ग में एक दूसरे की सहायता करें। जब एक मोमिन मर्द एक मोमिना औरत के साथ विवाह करता है और दोनों प्रेमपूर्ण वातावरण में रहते हैं एक दूसरे की भावनाओं और ज़रूरतों का ख़याल करते हैं तो उन्हें एक शांति मिलती है जिसके माध्यम से वह उससे बड़ी आध्यात्मिक शांति प्राप्त कर सकते हैं।

 

आज मनोवैज्ञानिक आध्यात्मिक और धार्मिक तरीके से उपचार के विषय को अच्छी तरह समझ गये हैं। ईमान और अध्यात्म एक एसी चीज़ है जो दाम्पत्य जीवन के लिए ज़रूरी है और वह परिवार की मज़बूती का कारण बनता है। ईमान दो रास्तों से परिवार की मज़बूती का कारण बनता है। पहला तरीका व्यक्ति के व्यवहार के आधारों को मज़बूत करके और दूसरा जीवन को अर्थपूर्ण बनाकर और परिवार के सदस्यों में प्रसन्नता उत्पन्न करके।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जब परिवार में पति- पत्नी लंबी- लंबी आकांक्षाएं करने लगते हैं तो उन आकांक्षाओं के पूरा न होने पर दोनों अप्रसन्नता का प्रदर्शन करने लगते हैं और वह परिवार में समस्या उत्पन्न होने का एक मूल कारण बन जाता है जबकि धार्मिक ईमान और ईश्वरीय वादे इंसान में भविष्य के प्रति उम्मीद पैदा करते हैं और वह इंसान के अंदर से निराशा को दूर भगाता है और इंसान को यह सिखाता है कि दुनिया में समस्याओं का सामना करना पड़ता है और समस्याओं से घबराने के बजाये उनका मुकाबला करना चाहिये। इसी प्रकार ईमान इंसान में यह भावना पैदा करता है कि जीवन का एक उद्देश्य है और वह इंसान का मार्ग दर्शन करता है। इसी प्रकार जब परिवारों को कठिनाइयों का सामना होता है और उन्हें बीमारी या आर्थिक समस्या आदि का सामना होता है तो धर्म उनके अंदर से निराशा को दूर करके उनकी सहायता करता है, जीवन को दोबारा अर्थपूर्ण बनाता है और जीवन के नियंत्रण को दोबारा उनके हाथ में दे देता है। दूसरे शब्दों में कुछ परिवारों के लिए धर्म, ईमान और अध्यात्म असाधारण शक्ति का स्रोत बन जाता है।

चिकित्सा अध्ययन से इस की पुष्टि हो चुकी है कि अध्यात्म इंसान की मानसिक स्थिति में बहुत गहरा प्रभाव छोड़ सकता है। पति-पत्नी अध्यात्मिक शैलियों का प्रयोग करके परिवार और पारिवारिक जीवन को मज़बूत, सुखमय और प्रेमपूर्ण बना सकते हैं। इस संबंध में कुछ बातों को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है। जैसे परिवार को अध्यात्मिक बनाने के लिए कभी भी कड़ाई से काम नहीं लेना चाहिये। इसी प्रकार उन मित्रों व निकट संबंधियों व नाते- रिश्तेदारों से अपने संबंधों को अधिक मज़बूत करना चाहिये जो धार्मिक हों। इसी प्रकार पति- पत्नी को चाहिये कि वे अच्छे स्वभाव से एक दूसरे को भलाई की ओर आमंत्रित करें। इसी प्रकार जब घर में सही समय पर ईश्वर की उपासना की जाएगी तो इससे भी परिवार के वातावरण को अध्यात्मिक बनाने में सहायता मिलती है। इसी प्रकार इंसान को चाहिये कि जब वह मनोरंजन के लिए यात्रा पर जाये तो धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए भी जाये क्योंकि यह वह चीज़ है जो ईश्वर के भले बंदों के साथ अध्यात्मिक संबंधों को मज़बूत बनाने में बहुत प्रभावी व लाभदायक है। इसी प्रकार पति- पत्नी को चाहिये कि वे धार्मिक त्योहारों की उपेक्षा न करें। सच्चाई, प्रेम और निष्ठा जैसी चीज़ें जीवन और परिवार में मिठास भर देती हैं और पति- पत्नी अच्छी विशेषताओं और सदगुणों से सुसज्जित होकर अपने परिवार को कल्याणमयी बना सकते हैं।

 

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