Apr १६, २०१९ १५:०० Asia/Kolkata

किसी भी उपहार का महत्व उसके अधिक मूल्यवान होने से नहीं होता बल्बि उसके पीछे छिपी प्रेम की भावना ही उसे महत्व प्रदान करती है। 

ऐसे में उपहार से अधिक महत्व उस प्रेमपूर्ण भावना का है जो उसमें निहित है।  ऐसे में कहा जा सकता है कि मंहगा उपहार ख़रीदने से बेहतर यह है कि प्रेम न्योछावर किया जाए।  तो फिर देर किस बात की है आज ही आप फूलों के एक छोटे से गुलदस्ते को अपने जीवन साथी की सेवा में पेश कीजिए।

परिवार किसी भी समाज का मूल आधार होता है।  अच्छे समाज के लिए ज़रूरी है अधिक संख्या में अच्छे परिवारों का गठन।  अच्छे परिवार के लिए परिवार के सभी सदस्यों को अपने दायित्वों का उचित ढंग से निर्वाह करना होता है।  परिवार के महत्व के बारे में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि परिवार के मूल सदस्यों के रूप में पति और पत्नी दोनों को अपने जीवन में नाना प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।  उनको सुबह से शाम तक तरह-तरह सी समस्याओं से जूडना पड़ता है।  यह समस्याएं मनुष्य के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करके उसे थका देती हैं।  ऐसे में यह लोग कभी-कभी घबरा जाते हैं।  इस प्रकार के लोग जब अपने घर में प्रविष्ट होते हैं तो उन्हें एक विशेष प्रकार की शांति का आभास होता है।  घर में शांतिपूर्ण वातावरण में रहने के बाद मनुष्य में अगले दिन की समस्याओं का मुक़ाबला करने की क्षमता पैदा होती है।  वास्तव में यह परिवार रूपी इकाई की देन है जो जीवन को मूल्यवान बनाता है। एसे में कहा जा सकता है कि विवाह करके स्त्री या पुरूष दोनों ही शांतिपूर्ण जीवन का आरंभ कर सकते हैं।  पारिवारिक जीवन में स्त्री एवं पुरुष दोनों को विशेष प्रकार की मानसिक शांति का आभास होता है।  परिवार में पति और पत्नी एक दूसरे के हमदर्द होते हैं।  यही आपसी हमदर्दी उनके दुखों को दूर करती है।

 

ईरान में कई प्रकार की जातियां और क़ौमें वास करती हैं।  इन जातियों के जीवन व्यतीत करने के तरीक़े अलग-अलग हैं।  इसी प्रकार से उनके यहां विवाह की रस्में भी अलग-अलग तरीक़ें की होती हैं।  सभी जातियों के लोग अपनी परंपराओं के हिसाब से जीवन गुज़ारते हैं।

ईरान की विभिन्न जातियों में से एक, आज़री जाति भी है।  ईरान की पार्स जाति के बाद इस देश की सबसे बड़ी जाति आज़री जाति ही है।  ईरान के इतिहास में आज़री जाति ने भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।  ईरान के जिन क्षेत्रों में आज़री जाति वास करती है वह सामान्यतः हरे-भरे पहाड़ी क्षेत्र हैं।  इन क्षेत्रों में पर्वतों के साथ ही चारों ओर सुन्दर जंगल भी दिखाई देते हैं।  यह क्षेत्र जाड़े के मौसम में बहुत ही ठंडे होते हैं जबकि वसंत ऋतु एवं गर्मियों के आरंभ में यहां हर ओर हरियाली दिखाई पड़ती है।  इस क्षेत्र में बहुत से प्राकृतिक सौन्दर्य पाए जाते हैं।

आज़री समुदाय या जाति में भी परिवार को विशेष महत्व प्राप्त रहा है।  बहुत से आज़री परिवारों में आज भी घर के बड़े-बूढ़े साथ में रहते हैं।  इन परिवारों में बूढ़ों को विशेष सम्मान प्राप्त है।  आज़री समाज पुरूष प्रधान समाज है।  इन परिवारों में मुख्य निर्णय घर के बड़े ही लेते हैं।  आज़री परिवारों में बड़े-बूढ़ों के मान-सम्मान के साथ ही अन्य सदस्यों को भी महत्व प्राप्त है।  यहां पर पति, पत्नी और बच्चे सब ही सम्मानपूर्वक जीवन गुज़ारते हैं।

आज़री परिवारों में बच्चों को अधिक महत्व प्राप्त रहा है।  माता-पिता का यह प्रेम बच्चों को शांति प्रदान करता है।  इन परिवारों में विवाह अधिकतर अपनी ही जाति के लोगों के साथ होता है।  शायद यही कारण है कि आज़री परिवारों के बीच आपसी संबन्ध बहुत ही सुदृढ एवं मज़बूत होते हैं क्योंकि वे अपनी जाति के लोगों के साथ ही अधिक संबन्ध रखते हैं अतः मिलना-जुलना और उठना-बैठना सभी अधिकांश आपस में ही होता है।

आज़री परिवारों में पहले पुत्र को बहुत महत्व प्राप्त था।  इसका कारण यह था कि उनकी आजीविका कृषि और पशुपालन पर निर्भर होती थी। एसे में लड़का बड़ा होकर खेती और पशुपालन में हाथ बंटाता था।  इन बातों के दृष्टिगत उस समय में लड़के को महत्व दिया जाता था।  लड़के को महत्व इसलिए भी दिया जाता था क्योंकि बुढापे में वह ही मां-बाप का आसरा होता था।  हालांकि आज़री समाज में लड़की को ज़िंदगी का नमक कहा जाता है।  जिस प्रकार से नमक के बिना खाना स्वादहीन होता जात है उसी प्रकार से आज़री समाज में लड़की के बिना जीवन को नीरस कहा जाता था।

आज़रियों की शौर्यगाथाओं, शेरों और कविताओं में महिलाओं को पुरूषों के साथ-साथ दिखाया गया है।  उनके यहां मां के सम्मान को ईश्वर के सम्मान जैसा बताया गया है।  लड़की के पैदा होने पर भी आज़रियों में वैसे ही खुशिंया मनाई जाती थीं जैसे लड़के के पैदा होने पर मनाई जाती थीं।  उनके यहां प्राचीन अरबों जैसा हाल नहीं था जहां पर लड़की के पैदा होने पर लोग दुखी हो जाया करते थे।  इस समाज में महिला को भी जीने का उतना ही अधिकार प्राप्त है जितना पुरूष को होता है।  आज़री गाथाओं में लड़की को कहीं पर लाल सेब की संज्ञा दी गई है तो कहीं पर चमकते हुए सोने की।  आज़री जाति में विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है। इस जाति में विवाह बहुत ही सुन्दर और भव्य ढंग से होता है।

आज़री जाति में परंपरा यह रही है कि वधु का चयन सामान्यतः मां या बहन की ओर से किया जाता है।  इसमें लड़के या वर की पसंद भी शामिल होती है।  जब वधु का चयन हो जाता है तो उसके बाद मंगनी की रस्म अदा की जाती है।  जब वधु की ओर से इस बात की घोषणा कर दी जाती है कि उसने वर को स्वीकार कर लिया है तो फिर खुशियां मनाई जाती हैं।  मंगनी की रस्म अदा हो जाने के बाद विवाह की तिथि निर्धारित की जाती है।  इस काम में वर और वधु के बड़े-बूढ़े ही आगे-आगे रहते हैं।  मंगनी हो जाने और शादी की तारीख़ तै हो जाने के बाद शादी के लिए सामान विशेषकर कपड़े और सोने की खरीदारी शुरू हो जाती है।  इसी बीच परिवार के अन्य सदस्य अपनी क्षमता के हिसाब से वर और वधु के लिए उपहार ख़रीदने लगते हैं।  उधर वर एवं वधु के माता-पिता शादी की तैयारी में जुट जाते हैं।

शादी में लोग बहुत ही बढ-चढकर भाग लेते हैं।  दूल्हे के घर में मेहमानों की आव-भगत के लिए विशेष प्रबंध किये जाते हैं।  मेहमानों को उनकी इच्छा के अनुसार तरह-तरह के पकवान खिलाए जाते हैं।  शादी में लोक गीत गाए जाते हैं और इस दौरान बहुत से लोग पैसे बांटते हैं।  आज़री जाति की शादियों में सामान्यतः वहां के पारंपरिक गीत गाए जाते हैं।

कार्यक्रम के इस भाग में हम आपको आज़री समुदाय के एक वरिष्ठ धर्मगुरू के सफल वैवाहिक जीवन के बारे में थोड़ा-बहुत बताएंगे।  उनका नाम " अल्लामा मुहम्मद तक़ी जाफ़री" है।  स्वर्गीय अल्लामा मुहम्मद तक़ी जाफ़री अधिकतर पढ़ने-पढ़ाने में व्यस्त रहते थे।  वे अपना बहुत सा समय अध्ययन में बिताते थे  क्योंकि वे धर्मगुरू थे अतः उनके पास बड़ी संख्या में लोग आया करते थे।  स्वर्गीय तक़ी जाफ़री के घर आने वाले मेहमानों की संख्या बहुत अधिक थी किंतु उनकी पत्नी को इसपर कोई आपत्ति नहीं थी।   वे सभी मेहमानों का पूरी निष्ठा के साथ सम्मान और सत्कार करती थीं किंतु उन्होंने इसपर कभी भी नाराज़गी नहीं जताई।  अल्लामा जाफ़री भी अपनी पत्नी की इस विशेषता का बहुत सम्मान करते थे।  वे अपनी पत्नी का बहुत सम्मान किया करते थे।  अल्लामा जाफ़ारी के घर में एक बहुत बड़ा पुस्तकालय था। वे प्रतिदिन अपना काफ़ी समय पुस्तकालय में बिताते थे।  जब वे पुस्तकालय से अध्ययन करने के बाद घर में प्रविष्ट होते तो पहले अपनी पत्नी को सलाम करते और उनका हालचाल पूछते थे।  उनका कहना था कि मेरी धर्मपत्नी ने कभी भी मेरे लिए कोई समस्या उत्पन्न नहीं की।

अपने पिता के बारे में स्वर्गीय अल्लामा जाफ़री के सुपुत्र कहते हैं कि हालांकि मेरे पिता बहुत बड़े विद्वान थे किंतु घर के भीतर वे बहुत ही सादे ढंग से जीवन गुज़ारते थे।  उनका ईरान के भीतर और ईरान के बाहर के विद्वानों से निकट का संपर्क रहता था मगर घर के भीतर वे एक सामान्य से व्यक्ति की भांति रहते थे।  वे मेरी माता की बातें मानते थे।  एक बार मेरे पिताजी और माताजी के बीच कुछ कहासुनी हो गई।  बाद में स्वंय मेरे पिता जी ने आकर माताजी से क्षमा मांगी थी।  वे कहते हैं कि मेरे पिता को तीन विशेषताओं ने महान इंसान बनाया था।  पहले यह कि वे नमाज़ हमेशा समय पर पढ़ते थे।  दूसरे यह कि समस्याओं के समय वे धैर्य से काम लेते थे और तीसरे वे मेहमानों का बहुत आदर स्तकार करते थे।  स्वर्गीय अल्लामा जाफ़री के पुत्र का कहना है कि हमारे पिता पूरे परिवार में इस बात के लिए मश्हूर थे कि वे मेहमानों का बहुत सत्कार करते थे और नमाज़ हमेशा ही उसके समय पर पढ़ते थे।  नमाज़ के बारे में अल्लामा जाफ़री का कहना है कि मैं अपने दैनिक कामों को इस तरह निर्धारित करता था कि नमाज़ के समय मेरे पास कोई काम न रहे और उस समय मेरे पास नमाज़ के अलावा कोई काम न हो।