Feb ०६, २०२० १८:४५ Asia/Kolkata
  • क़ुरआनी क़िस्सेः सूरे बक़रा की आयत संख्या 89 और 90 क्यों नाज़िल हुई, इसके पीछे क्या घटना है?

सूरे बक़रा पवित्र क़ुरआन का दूसरा सूरा है।  यह क़ुरआन का सबसे बड़ा सूरा है।  सूरे बक़रा में कई विषयों के बारे में चर्चा की गई है।  इसकी आयत संख्या 89 व 90 का अनुवाद इस प्रकार हैः

और जब ईश्वर की ओर से उनके लिए क़ुरआन नामक किताब आई (जो उन निशानियों के अनुकूल थी जो उनके पास मौजूद थीं) और इससे पूर्व वे काफ़िरों पर विजय की शुभ सूचना दिया करते थे, तो जब उनके पास वे वस्तुएं आ गईं जिन्हें वे पहचान चुके थे, तो उन्होंने उनका इन्कार कर दिया तो इन्कार करने वालों पर ईश्वर की धिक्कार हो।  उन्होंने कितनी बुरी वस्तु के बदले में स्वयं को बेच दिया कि ईष्या के कारण उस चीज़ का इन्कार करने पर तैयार हो गए जिसे ईश्वर ने उतारा था, क्योंकि ईश्वर अपनी दया से अपने बन्दों में से जिस पर भी चाहे अपनी आयतें उतारता है, तो वे ईश्वर के नितांत प्रकोप में फंस गए और इन्कार करने वालों के लिए अपमानजनक दंड है।

 

सूरे बक़रा की यह आयतें इस्लाम के उदय के समय के यहूदियों से संबंधित हैं जो तौरेत में बताई गई पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की निशानियों के आधार पर उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। यही कारण था कि वे अपना देश और अपनी धरती छोड़ कर हेजाज़ अर्थात वर्तमान काल के सऊदी अरब चले गए थे।  मदीना नगर तथा उसके समीप रहने वाले यहूदी, मदीने के अनेकेश्वरवादियों से कहते थे कि शीघ्र ही मोहम्मद नाम का एक पैग़म्बर आएगा और हम उस पर ईमान लाएंगे।  वह अपने शत्रुओं पर विजयी होगा।  परन्तु जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने मदीने की ओर हिजरत अर्थात पलायन किया तो वहां के अनेकेश्वरवादी तो उनपर ईमान ले आए किन्तु यहूदियों ने सांसारिक मायामोह और हठधर्मी के कारण पैग़म्बरे को मानने से इन्कार कर दिया।  इस प्रकार से वास्तव मे उन्होंने अपनी ही पुस्तक तौरेत की भविष्यवाणियों का इन्कार किया।  यह आयतें बताती हैं कि केवल ज्ञान और पहचान ही पर्याप्त नहीं है बल्कि सत्य स्वीकार करने और उसके समक्ष झुकने का साहस भी आवश्यक है।

बैतुल मुक़द्दस में यहूदी

 

यद्यपि यहूदी, विशेषकर उनके विद्वान, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को पहचान चुके थे परन्तु सत्य को स्वीकार करने और उसके समक्ष झुकने के लिए वे बिल्कुल भी तैयार नहीं थे।  यहूदियों को यह आशा थी कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम भी बनी इस्राईल के मूल से होंगे ताकि वे उनपर ईमान लाएं, परन्तु जब उन्होंने देखा कि ऐसा नहीं है तो जातीय द्वेष और ईर्ष्या के कारण उन्होंने इस्लाम को नहीं अपनाया, यहां तक कि उन्होंने इस बात पर ईश्वर पर ही आपत्ति की।  वास्तव में यहूदियों ने इस कार्य द्वारा घाटे का सौदा किया, क्योंकि वे पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाने के लिए लम्बी यात्राओं की कठिनाइयां झेलकर मदीने आए थे।  वे लोग उस समय स्वयं रसूले इस्लाम के प्रचारक थे, परन्तु केवल हठ और ईर्ष्या के कारण वे काफ़िर हो गए और स्वयं को ईर्ष्या के दामों बेच दिया और अपना लक्ष्य प्राप्त न कर सके।

आइए अब इन आयतों से संबन्धित घटना की चर्चा करते हैं।  यह घटना अरब के दो मश्हूर क़बीलों औस और ख़ज़रज तथा यहूदियों के बारे में है।  पैग़म्बरे इस्लाम के आगमन से चौदह शताब्दियों पहले अरब के दो क़बीले "औस" और "ख़ज़रज" के पूर्वज "यसरब" आए थे।  इस क्षेत्र में पहुंचने के बाद उनके पूर्वज "हारेस" ने यसरब के शासक से इस नगर के निकटवर्ती क्षेत्रों में बसने की अनुमति हासिल कर ली थी।  पवित्र नगर मदीने को प्राचीनकाल में यसरब कहा जाता था।  उस समय इस नगर का संचालन यहूदियों के हाथों में था। समय बीतने के साथ हारेस की संतान बढ़ती गई और वह दो क़बीलों में बंट गई।  एक क़बीले का नाम औस पड़ा और दूसरे का ख़ज़रज।  यह दोनो क़बीले यसरब में ही बस गए और वहां पर खेती-किसानी करने लगे।

 

आरंभ में औस और ख़ज़रज क़बीलों के संबन्ध यहूदियों के साथ मैत्रीपूर्ण थे। उनके यह संबन्ध बाद में भी अच्छे रहे।  इस बीच इन दोनो क़बीलों की जनसंख्या बढ़ती गई।  जब औस और ख़ज़रज क़बीलों की जनसंख्या में वृद्धि हुई तो इससे यहूदी क़बीलों में भय व्याप्त हो गया।  एसे में उन्होंने औस और ख़ज़रज क़बीलों के साथ अपने संबन्ध भी बिगाड़ लिए और उनके साथ सारे समझौते तोड़ दिये। 

उस समय यसरब का जो यहूदी शासक था वह बहुत ही बुरा और दुष्ट आदमी था।  उसका नाम "क़ितयौन" था।  जनता के साथ उसका व्यवहार बहुत ही क्रूर था।  वह हर एक को परेशान किया करता था।  लोग उसके अत्याचारों से ऊब चुके थे।  यसरब की जनता अपने शासक, क़ितयौन से इतना परेशान हो चुकी थी कि लोगों ने उसकी हत्या का फैसला कर लिया।  अंततः  ख़ज़रज क़बीले के एक व्यक्ति "मालिक बिन अजलान" ने यसरब के शासक क़ितयौन की हत्या कर दी।

हत्या करने के बाद वह भागकर यमन के राजा के पास चला गया जिसका नाम "तुब्बा बिन हस्सान" था।  उसने तुब्बा से यसरब के यहूदियों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए मदद मांगी। यह बात सुनने के बाद यमन के शासक तुब्बा ने अपने कुछ सैनिकों के साथ यसरब का रुख़ किया। यसरब पहुंचकर यमन के शासक ने औस और ख़ज़रज क़बीलों की सहायता से यसरब का संचालन अपने हाथों में ले लिया। 

अब यसरब की स्थिति बिल्कुल विपरीत हो चुकी थी।  वर्तमान परिस्थितियों में यहूदियों के लिए समस्याएं उत्पन्न होने लगीं।  इन परिस्थितियों में यहूदी, औस और ख़ज़रज क़बीलों के लोगों को यह कहकर डराया करते थे कि जल्द ही एक ईश्वरीय दूत आने वाला है जो हमको तुम्हारे अत्याचारों से मुक्ति दिलाएगा। सूरे बक़रा की आयत संख्या 89 में इस ओर संकेत किया गया है।

हम अपनी अगली पोस्ट में इस घटना का बक़िसा हिस्सा पेश करेंगे।

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