Feb १०, २०२० १६:३७ Asia/Kolkata
  • क़ुरआनी क़िस्सेः इस्लाम के जियालों के भीतर शहादत की भावना बहुत अधिक थी जो उनके चेहरों से देखी जा सकती थी..

इससे पहले की पोस्ट में हमने बताया था कि जब पैग़म्बरे इस्लाम को यह सूचना मिली कि एक बड़ी सेना ने मदीने की ओर कूच किया है तो उन्होंने अंसार के सभी गुटों को एकत्रित करके उनसे युद्ध में भाग लेने के बारे में पूछा। 

एसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि अंसार ने पैग़म्बर को वचन दिया था कि वे केवल मदीने के भीतर ही उनकी सुरक्षा कर सकते हैं।  सभी अंसार का प्रतिनिधित्व करते हुए "सअद बिन मआज़" ने कहा कि हे ईश्वर के सच्चे दूत! हम आप पर ईमान लाए हैं।  हमने आपसे वादा किया है कि हम आपका अनुसरण करते हुए हर स्थिति में आपका साथ देंगे।  "मिक़दाद" ने भी मुहाजिरों के प्रवक्ता के रूप में कहा कि हे रसूले ख़ुदा, आप ईश्वरीय आदेश को पूरा करने के लिए क़दम बढ़ाइए हम सब आपके साथ हैं।

इस्लाम के जियालों के भीतर शहादत की भावना बहुत अधिक थी जो उनके चेहरों से देखी जा सकती थी।  शत्रु उनके चेहरों को देखते ही उनकी शहादत की भावना से अवगत हो गए थे।  क़ुरैश की तरफ़ से "अमीर बिन वहब" को इस काम के लिए नियुक्त किया गया कि वह मुसलमानों की सेना की सही संख्या के बारे में जानकारी एकत्रित करे।  उसने मुसलमान सैनिकों के ख़ैमों के चक्कर लगाने शुरू कर दिये।  जब वह वहां से वापस आया तो उसने बताया कि मुसलमानों की संख्या लगभग 300  है।  उसका कहना था कि इसके बावजूद मैं कुछ और चक्कर लगाऊंगा ताकि पता लगे कि कहीं कुछ और मुसलमान छिपे तो नहीं हैं।

"अमीर बिन वहब" ने वापस आकर बताया कि मुसलमान अभी कहीं पर घात लगाकर नहीं बैठे हैं लेकिन मैंने एसे ऊंट देखे हैं जो तुम्हारे लिए मौत का संदेश लाए हैं।  इसके बाद उसने कहा कि मैंने एसे गुट को देखा जिनके पास तलवार के अतिरिक्त कुछ और नहीं था और उनका इरादा युद्ध करना ही है। अब तुमको खुद फैसला करना होगा कि तुम क्या करना चाहते हो।

पैग़म्बरे इस्लाम के मदीने में प्रविष्ट होने बाद जुमे के दिन सन दो हिजरी सत्रह रमज़ान को मुसलमानों और अनेकेश्वरवादियों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं।  पैग़म्बरे इस्लाम  ने बद्र युद्ध के समय मुसलमान सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा कि उस ईश्वर की सौगंध जिसके हाथ में मुहम्मद की जान है, आज के दिन जो भी ईश्वर के लिए पूरी क्षमता के साथ युद्ध करेगा, ईश्वर उसको स्वर्ग में स्थान देगा।  इसके बाद उन्होंने हमले का आदेश दिया। थोड़े ही समय में मुसलमानों की सेना शत्रुओं पर विजयी हो गई।  इस युद्ध में शत्रुओं के 70 सैनिक मारे गए और 70 को बंदी बनाया गया जबकि 14 मुसलमान शहीद हुए।

 

बद्र की जंग के बाद कुछ एसे लोगों ने जिन्हें इस्लाम की जानकारी नहीं थी, बद्र में शहीद होने वालों के बारे में कहा कि वे लोग मार दिये गए और सांसारिक आनंदों से वंचित हो गए।  वे लोग जिन्हें एकेश्वरवाद पर पूरी तरह से भरोसा नहीं था वे दूसरों के बीच शंकाएं उत्पन्न कर रहे थे।  उनका कहना था कि जेहाद का ईश्वरीय आदेश अपने साथ कई प्रकार की परेशानियां लाता है जैसे घायल होना, बंदी बनना या फिर मर जाना।  इससे कुछ लाभ नहीं है।  वे लोग यह कह रहे थे कि इस काम का कोई औचित्य भी नहीं दिखाई दे रहा है और यह व्यर्थ है।

 

इस प्रकार की शंकाओं का समाधान करने के उद्देश्य से ईश्वर ने सूरे बक़रा की यह आयतें उतारीं जिनका अनुवाद इस प्रकार हैः और जो लोग ईश्वर के मार्ग में मारे जाते हैं उन्हें मरा हुआ न कहो बल्कि वे जीवित हैं परन्तु तुम नहीं समझ पाते।  (जान लो कि) हम अवश्य ही भय, भूख, जानी व माली क्षति और फ़सलों की कमी इत्यादि से तुम्हारी परीक्षा लेते हैं और (हे पैग़म्बर!) आप धैर्य व संयम रखने वालों को शुभ सूचना दे दीजिए (कि धैर्य रखकर वे ईश्वरीय परीक्षा में कामयाब होंगे और बड़ा बदला पाएंगे।  (धैर्यवान) वे लोग हैं कि जिनपर जब भी कोई मुसीबत पड़ती है तो वे कहते हैं कि निःसन्देह, हम ईश्वर के लिए हैं और उसी की ओर लौटने वाले हैं।

 

सूरे बक़रा की यह आयत जेहाद अर्थात धर्मयुद्ध और ईश्वर के मार्ग में शहादत के विषय की ओर संकेत करती है कि जिसमें अनेक प्रकार की जानी व माली कठिनाइयां हैं तथा इसके लिए कड़े संयम और संघर्ष की आवश्यकता होती है।  कुछ अज्ञानी या शत्रु लोग न केवल यह कि स्वयं जेहाद और प्रतिरोध के मैदान में नहीं जाते बल्कि लोगों के मनोबल को कमज़ोर करने तथा इस पवित्र संघर्ष को निरर्थक बताने के प्रयास करते हैं।  वे हमदर्दी करने वालों जैसा चेहरा बनाकर ईश्वर के मार्ग में शहीद होने वालों के प्रति खेद प्रकट करते हैं।  इस प्रकार के लोग यह कहते हैं कि बुरा हुआ कि अमुक व्यक्ति मारा गया और व्यर्थ में अपनी जान गवां बैठा।  बद्र नामक युद्ध में 14 मुसलमान शहीद हुए थे।  कुछ लोगों ने उन्हें मरा हुआ कहकर संबोधित किया।  सूरे बक़रा की इस आयत ने उन्हें इस प्रकार के ग़लत विचार से रोका क्योंकि शहीद जीवित होते हैं परन्तु उनका जीवन इस प्रकार का है कि हम उसे समझ नहीं पाते।

 

वास्तव में आस्थावान मुसलमान का मानना है कि ईश्वर की राह में मरना विशेष महत्व रखता है जो एक प्रकार की विजय है। इसका कारण यह है कि इस प्रकार से जान देने का उद्देश्य सच्चाई को हर चीज़ पर वरीयता देना है।  पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के करबला आन्दोलन में शहादत को बहुत ही स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। यही कारण है कि उनको शहीदों का सरदार कहा जाता है। आशूर अर्थात दस मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके साथियों ने असत्य का मुक़ाबला करते हुए सत्य की राह में अपनी जान दे दी और हमेशा के लिए वे अमर हो गए।  मौत के बारे में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का कहना है कि मौत एक पुल की तरह है जो तुमको कठिनाइयों से दूर करते हुए सदा बाक़ी रहने वाले जीवन से मिलाता है।

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