Feb ०३, २०२० १७:४६ Asia/Kolkata
  • क़ुरआनी क़िस्सेः सूरे बक़रा की आयत संख्या 62  हज़रत सलमान फ़ारसी के बारे में है, पैग़म्बरे इस्लाम के इस सहाबी के जीवन की दिलचस्प और पाठदायक कहानी

इससे पहले हमने बताया कि सूरे बक़रा की आयत संख्या 62 पैग़म्बरे इस्लाम के सहाबी हज़रत सलमान फ़ारसी के बारे में है जिनका पुराना रूज़बे थे।

हमने यह भी बताया कि किस तरह उनका जीवन शुरू हुआ और फिर किस तरह वह ईसाई धर्म की ओर उन्मुख हुए और एक शहर से दूसरे शहर होते हुए आगे बढ़ते गए यहां तक कि उन्हें अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम के आगमन की सूचना मिली।

इराक़ के मदायन नगर में स्थित हज़रत सलमान फ़ारसी का मक़बरा

 

अन्तिम ईश्वरीय दूत के आगमन की सूचना मिलने के बाद रूज़बे ने उस स्थान पर जाने की योजना बनाई किंतु उनको पता नहीं था कि वह स्थान है कहां है।  अब रूज़बे हमेशा उस स्थान पर जाने के प्रयास में रहते थे।  इसी बीच रूज़बे को पता चला कि एक कारवां, हेजाज़ जा रहा है।  रूज़बे ने यह सोचते हुए कि कहीं यही वह स्थान न हो जहां पर अन्तिम ईश्वरीय दूत आएंगे, हेजाज़ जाने का फैसला कर लिया।  उन्होंने क़ाफिले के सरदार से कहा कि तुम मुझसे कुछ गाय और भेड़ें लेलो और मुझको अपने साथ ले चलो।  क़ाफले का सरदार एक कपटी और बुरा व्यक्ति था।  उसने हेजाज़ पहुंचते ही रूज़बे को अपना दास बताकर एक यहूदी को बेच दिया।  कुछ समय गुज़रने के बाद उस यहूदी ने रूज़बे को बनी क़ुरैज़ा क़बीले के एक यहूदी के हाथों बेच दिया।  बनी क़ुरैज़ा का यहूदी, रूज़बे को अपने मुहल्ले में ले गया।  जब रूज़बे यहूदी के मुहल्ले पहुंचे तो उनको वहां पर खजूर के पेड़ नज़र आए। इन पेड़ों को देखकर रूज़बे को आख़िरी नबी की भविष्यवाणी याद आ गई।  यहां पहुंचकर रूज़बे को आशा की किरण दखाई दी।  उनको एसा लगने लगा कि वे शायद अपने लक्ष्य के निकट पहुंच रहे हैं।  इस घटना के बाद बनी कल्ब क़बीले के एक सदस्य ने रूज़बे को ख़रीदा और वह उन्हें मदीने ले गया।

अब रूज़बे, मदीने में रहने लगे।  एक बार जब वे खजूर के बाग़ में काम कर रहे थे तो उनके मालिक का एक साथी वहां पर आया और उसने बात करना आरंभ की।  वह रूज़बे के मालिक का चचेरा भाई था।  उसने रूज़बे के मालिक से बात करते हुए कहा कि ख़ुदा की लानत हो "बनी क़ीला" क़बीले पर जिसके लोग एक एसे व्यक्ति के चारों ओर एकत्रित हो चुके हैं जो स्वयं को ईश्वरीय दूत और लोगों का मार्गदर्शक बताता है।  खेद की बात यह है कि लोग भी उसको ईश्वर का दूत समझने लगे हैं। 

 

जिस समय यह बातें हो रही थीं उस समय रूज़बे पेड़ पर बैठे खजूर तोड़ रहे थे।  जब रूज़बे के कानों में यह बातें पड़ीं तो पेड़ पर इतनी बुरी तरह से कांप गए कि अगर वे स्वयं को न संभालते तो नीचे ज़मीन पर आकर गिरते।  उन्होंने अपनी पूरी ताक़त से स्वयं को संभाला और बहुत तेज़ी से पेड़ से नीचे उतरकर अपने मालिक के पास आए और बहुत ही ताज्जुब से कहने लगे कि क्या बात है आप लोग किस बारे में बात कर रहे हैं?  रूज़बे की बात सुनकर उनका मालिक ग़ुस्से में आ गया और उसने उनके पेट पर घूंसा मारते हुए कहा कि इन बातों का तुमसे कोई लेना देना नहीं है।  जाओ जाकर अपना काम करो।  इस घटना को घटे कुछ दिन गुज़र गए।  उन्होंने फैसला किया कि इसी ग़ुलामी के दौरान मैं समय निकालकर अन्तिम ईश्वरीय दूत को अवश्य ढूंढूंगा।  उन्होंने एक डलिया में कुछ खजूरें रखीं और "क़ुबा" क्षेत्र की ओर बढ़ने लगे।  वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि कुछ लोग बैठे हुए बातें कर रहे हैं।

उन लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मुझको एसा लगता है कि तुम लोग परदेसी हो।  मेरे पास खाने का कुछ सामान है।  मै यह सामान सदक़ा देना चाहता हूं।  इतना कहकर उन्होंने खजूर की टोकरी को ज़मीन पर रखा।  वहां पर बैठे हुए लोगों में से एक ने दूसरे लोगों से कहा कि तुम लोग इसे अल्लाह के नाम से खाओ लेकिन उन्होंने स्वयं उसमें से कुछ भी नहीं खाया।  रूज़बे को लगा कि वह अपने लक्ष्य के बहुत निकट पहुंच चुके हैं क्योंकि उन्होंने जिस अन्तिम दूत के आने की ख़बर सुन रखी थी वह भी सदक़ा नहीं खाता है।  यह बात सुनकर रूज़बे को विश्वास हो गया कि वह व्यक्ति ही ईश्वरीय दूत होगा जिसने दूसरों से खजूर खाने को कहा किंतु स्वयं खजूरें नहीं खाईं। इसके बाद रूज़बे अपने मालिक के खेत पर चले गए।

अगले दिन रूज़बे फिर कुछ खाने का सामान लेकर उसी स्थान पर आए।  उन्होंने ईश्वरीय दूत को संबोधित करते हुए कहा कि कल मैंने देखा कि आपने सदक़े की खजूर नहीं खाई।  मेरे पास कुछ खाने का सामान है।  इस सामान को मैं आपको उपहार स्वरूप देना चाहता हूं।  अपनी यह बात कहते हुए रूज़बे ने सामान को पैग़म्बर के सामने रख दिया।  पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने साथियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सब लोग अलल्लाह का नाम लेकर इसे खाइए।  उस समय पैग़म्बर ने भी और उनके साथियों ने भी वह खाना खाया।  यह देखकर रूज़बे को बहुत खुशी हुई। रूज़बे फिर वापस अपने मालिक के खेत पर चले गए।  कुछ दिनों तक उन्हें वहां से निकलने की अनुमति नहीं थी।  जैसे ही उनको बाहर जाने की अनुमति मिली वे फिर पैग़म्बर को देखने के लिए व्याकुल हो गए। इस बार रूज़बे ने पैग़म्बर को बक़ी क़ब्रिस्तान में पाया जहां पर वे किसी के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए आए थे। क़ब्रिस्तान में किसी प्रकार से रूज़बे, पैग़म्बरे इस्लाम के कांधे पर लगी पैग़म्बरी की मोहर देखने में सफल रहे।  जैसे ही उन्होंने यह देखा वे रोते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के पैरों पर गिर गए और उसी समय उन्होंने इस्लाम को गले लगा लिया।  पैग़म्बरे इस्लाम ने ही उनका नाम सलमान रखा था जिसके बाद वे सलमान फ़ारसी के नाम से मशहूर हुए।

 

इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने रूज़बे को संबोधित करते हुए कहा कि तुम यहां पर बैठकर मेरे साथियों को अपनी पूरी कहानी सुनाओ।  पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश का पालन करते हुए रूज़बे ने आरंभ से लेकर उस समय तक की अपनी आप बीती लोगों को सुनाई।  उन्होंने विस्तार से बताया कि उनके साथ क्या हुआ।  अब उनका नाम रूज़बे नहीं बल्कि सलमान फ़ारसी हो चुका था।  इसी बीच वहां पर उपस्थित लोगों में से एक व्यक्ति ने कहा कि यह तो नरकवासी है।  यह बात सुनकर सलमान को बहुत दुख हुआ।  ठीक उसी समय सूरे बक़रा की आयत संख्या 62 उतरी जिसमें ईश्वर कहता है कि निःसन्देह, जो लोग (विदित रूप से) ईमान लाए और इसी प्रकार यहूदी, ईसाई और साबेई (अर्थात सितारों की पूजा करने वाले) हैं उनमें से जो वास्तव में ईश्वर और प्रलय के दिन पर ईमान लाएंगे और भले कर्म करेंगे उनके लिए उनके पालनहार के पास प्रतिफल है और न तो उन्हें कोई भय होगा और न ही वे दुखी होंगे।

इस प्रकार यह कहना सही है कि वे लोग जो अपने समय में वास्तविक ईश्वरीय धर्म को मानते थे और उसी के अनुरूप काम करते थे किंतु जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम को नहीं देखा उनको भी भला बदला दिया जाएगा।  इस प्रकार सभी आसमानी धर्मों में ईश्वरीय पारितोषिक का मानदंड, ईमान तथा सदकर्म रहा है अर्थात ईश्वर व प्रलय के दिन पर ईमान और ईश्वरीय आदेशों का पालन करना।  पैग़म्बरे इस्लाम के महान सहाबी सलमान फ़ारसी का मक़बरा इराक़ के मदाएन में है।

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