क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-771
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-771
إِنَّ الْمُسْلِمِينَ وَالْمُسْلِمَاتِ وَالْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَالْقَانِتِينَ وَالْقَانِتَاتِ وَالصَّادِقِينَ وَالصَّادِقَاتِ وَالصَّابِرِينَ وَالصَّابِرَاتِ وَالْخَاشِعِينَ وَالْخَاشِعَاتِ وَالْمُتَصَدِّقِينَ وَالْمُتَصَدِّقَاتِ وَالصَّائِمِينَ وَالصَّائِمَاتِ وَالْحَافِظِينَ فُرُوجَهُمْ وَالْحَافِظَاتِ وَالذَّاكِرِينَ اللَّهَ كَثِيرًا وَالذَّاكِرَاتِ أَعَدَّ اللَّهُ لَهُمْ مَغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا (35)
निश्चित रूप से मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम महिलाएं, ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली महिलाएं, निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करने वाले पुरुष और निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करने वाली महिलाएं, सच्चे पुरुष और सच्ची महिलाएं, धैर्यवान पुरुष और धैर्यवान महिलाएं, विनम्र पुरुष और विनम्र महिलाएं, दान देने वाले पुरुष और दान देने वाली महिलाएं, रोज़ा रखने वाले पुरुष और रोज़ा रखने वाली महिलाएं, अपनी पवित्रता की रक्षा करने वाले पुरुष और अपनी पवित्रता की रक्षा करने वाली महिलाएं और ईश्वर को अधिक याद करने वाले पुरुष और उसे अधिक याद करने वाली महिलाएं, इन सबके लिए ईश्वर ने क्षमा और बड़ा प्रतिफल तैयार कर रखा है। (33:35)
وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَلَا مُؤْمِنَةٍ إِذَا قَضَى اللَّهُ وَرَسُولُهُ أَمْرًا أَنْ يَكُونَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ أَمْرِهِمْ وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا مُبِينًا (36)
और जब ईश्वर और उसका पैग़म्बर किसी मामले का फ़ैसला कर दें तो फिर न तो किसी ईमान वाले पुरुष और न ही किसी ईमान वाली स्त्री को यह हक़ है कि उसे अपने मामले में फ़ैसला करने का अधिकार रह जाता है और जो कोई ईश्वर और उसके पैग़म्बर की अवज्ञा करे तो वह खुली हुई पथभ्रष्टता में पड़ गया है। (33:36)
وَإِذْ تَقُولُ لِلَّذِي أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَأَنْعَمْتَ عَلَيْهِ أَمْسِكْ عَلَيْكَ زَوْجَكَ وَاتَّقِ اللَّهَ وَتُخْفِي فِي نَفْسِكَ مَا اللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى النَّاسَ وَاللَّهُ أَحَقُّ أَنْ تَخْشَاهُ فَلَمَّا قَضَى زَيْدٌ مِنْهَا وَطَرًا زَوَّجْنَاكَهَا لِكَيْ لَا يَكُونَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ حَرَجٌ فِي أَزْوَاجِ أَدْعِيَائِهِمْ إِذَا قَضَوْا مِنْهُنَّ وَطَرًا وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ مَفْعُولًا (37) مَا كَانَ عَلَى النَّبِيِّ مِنْ حَرَجٍ فِيمَا فَرَضَ اللَّهُ لَهُ سُنَّةَ اللَّهِ فِي الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلُ وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ قَدَرًا مَقْدُورًا (38)
और (हे पैग़म्बर! याद कीजिए उस समय को) जब आप उस व्यक्ति से कह रहे थे, जिसे ईश्वर ने (इस्लाम की) अनुकंपा प्रदान की और आपने भी (स्वतंत्रता की) अनुकंपा दी कि अपनी पत्नी को अपने पास रोके रखो, (उसे तलाक़ न दो) और ईश्वर का डर रखो, और उस समय आप अपने दिल में वह बात छिपाए हुए थे जिसे ईश्वर प्रकट करना चाहता था। आप लोगों से डर रहे थे, जबकि ईश्वर इसका ज़्यादा हक़ रखता है कि आप उससे डरिए। फिर जब ज़ैद उससे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुका तो हमने उसका आपसे विवाह कर दिया ताकि ईमान वालों पर अपने मुँह बोले बेटों की पत्नियों के मामले में कोई तंगी न रहे जबकि वे उनसे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुके हों। और ईश्वर का फ़ैसला तो पूरा होकर ही रहता है (33:37) पैग़म्बर पर उस काम में कोई तंगी (या रुकावट) नहीं है जो ईश्वर ने उनके लिए निर्धारित कर दिया हो। ईश्वर की यही परंपरा उन पैग़म्बरों के मामले में भी (प्रचलित) रही है जो पहले गुज़र चुके हैं और ईश्वर का आदेश तो नपा तुला और निश्चित होता है। (33:38)