Mar ११, २०२० १६:३५ Asia/Kolkata
  • विज्ञान की डगर ईरान का सफ़रः ईरान में सैटलाइट, कार्बन नैनोट्यूब और महासागर में जलयात्रा करने वाले जहाज़ कावुशगरे ख़लीजे फ़ार्स और नॉलेज बेस्ड उत्पादों पर एक नज़र

ईरान की शरीफ़ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ‘दोस्ती’ नामक सैटलाइट बनाया। यह सैटलाइट 50 किलोग्राम वज़्नी है। इसकी रिज़ोलूशन क्षमता 30 मीटर से ज़्यादा है।

इसी तरह ईरान की अमीर कबीर यूनिवर्सिटी ने ऑट सेट सैटलाइट और इल्मो सनअत यूनिवर्सिटी ने ‘ज़फ़र’ सैटलाइट बनायी है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान का लांच के लिए तय्यार सैटलाइट का अनावरण

 

ईरान के एरोस्पेस विभाग की एक अन्य उपलब्धि नाहीद-1 सैटलाइट है। यह अकेला सैटलाइट है जिसके सोलर पैनल खुलते हैं। इससे पहले जो ईरानी वैज्ञानिकों ने सैटलाइट बनाए हैं, उनमें सोलर पैनल बॉडी पर चिपके रहते थे लेकिन नाहीद-1 सैटलाइट में लगा सोलर पैनल खुलता है।

इसी संबंध में इसी तरह ‘तुलू’ सैटलाइट की ओर भी इशारा कर सकते हैं। ‘तुलू’ सैटलाइट पहला रिमोट सेन्सिंग सैटलाइट है। इस सैटलाइट का काम 50 मीटर रिज़ोल्यूशन के साथ सिंगल स्पेक्ट्रम वाली तस्वीर लेना, उसे इकट्ठा करना और तस्वीर का डेटा ज़मीन पर स्थित सेंटर को भेजना है। ‘तुलू’ सैटलाइट की कक्षा, लो अर्थ ऑर्बिट वाली है। ज़मीन से इसकी कक्षा की ऊंचाई 500 किलोमीटर है और इसकी उपयोगी उम्र 2 साल है। ‘तुलू’ सैटलाइट को ऊर्जा इसकी बॉडी पर लगे सोलर अरे (arrey) और बैट्री से मिलेगी। इस सैटलाइट का वज़्न 100 किलोग्राम। यह षटकोणी सैटलाइट 56 सेंटीमीटर चौड़ा और 100 सेंटीमीटर ऊंचा है।                  

ईरान ने "ख़लीज फ़ार्स" नाम का महासागर में जलयात्रा करने वाला पहला जहाज़ बनाया है। रिसर्च या खोज के काम के लिए विशेष इस जहाज़ को बंदर अब्बास बंदरगाह में पानी में उतारा गया।

"ख़लीज फ़ार्स" नाम का महासागर में जलयात्रा करने वाला पहला जहाज़

 

"ख़लीज फ़ार्स" नामक यह जहाज़ 50 मीटर लंबा, 10 मीटर चौड़ा और 4 मीटर ऊंचा है। यह जहाज़ 3 हज़ार मील समुद्र में यात्रा कर सकता है। इस जहाज़ में रिसर्च के लिए मरीन फ़िज़िक्स, मरीन बाइऑलजी, मरीन केमिस्ट्री, मरीन जियोलॉजी और समुद्री मौसम विज्ञान के पांच आधुनिक लैब हैं। खोज के लिए विशेष यह जहाज़ 15 नॉटिकल माइल प्रति घंटा की रफ़्तार से 40 दिन तक लगातार समुद्र में जलयात्रा कर सकता है। इसी तरह यह जहाज़ महासागर की 3000 मीटर नीची तह से तलछट का नमूना निकाल सकता है।

ईरानी वैज्ञानिकों की एक और उपलब्धि कार्बन नैनो ट्यूब है। यह ईरान की उरूमिये यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की उपलब्धि है जिसे सुपर कपैसिटर की गुंजाइश बढ़ाने के लिए बनाया है। इस रिसर्च प्रोजेक्ट के नतीजे से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और सुपर कंप्यूटर में फ़ायदा उठाया जा सकता है। अगले 25 साल में फ़ॉसिल फ़्यूल के इस्तेमाल निरंतर बढ़ने से ऊर्जा की मांग कम से कम 355 फ़ीसद बढ़ेगी, जिससे रिसाइकिल न होने वाले ऊर्जा स्रोतों पर बहुत अधिक दबाव बढ़ेगा। मटीरियल साइंस का एक क्षेत्र जिसमें काम करने की ज़रूरत है वह ऊर्जा की विशेषता वाले नए पदार्थ का विकास है।   

कार्बन नैनोट्यूब

मेडिकल फ़ील्ड में ईरानी वैज्ञानिकों ने बहुत से विश्वस्तरीय लेख लिखे हैं। स्कोपस इन्फ़ार्मेशन बैंक के मुताबिक़, 2016 में ईरान ने लेख की तादाद और उसके दर्जेबंदी की नज़र से दुनिया में 18 और क्षेत्र में पहला स्थान हासिल किया। इस संबंध में ईरान जिन देशों से आगे रहा है वे डेनमार्क, रूस, ऑस्ट्रिया, ताइवान, सिंगापूर, तुर्की और मलेशिया हैं। इसी तरह ईरान ज़ायोनी शासन से भी आगे था।

स्वास्थ्य मंत्रालय में शोध व प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख डाक्टर मलिक ज़ादे

ईरान के स्वास्थ्य मंत्रालय में रिसर्च व प्रौद्योगिकी विभाग के उपप्रमुख डॉक्टर मलिक ज़ादे बताते हैं कि स्कोपस सिटेशन डेटाबेस में 1988 में ईरान का स्थान विश्व स्तर पर 49 था जो 2016 में 18 हो गया। यह आंकड़ा इन वर्षों में ईरानी लेख में क्वालिटी के लेहाज़ से हुयी तरक़्क़ी को ज़ाहिर करता है। डॉक्टर मलिक ज़ादे के मुताबिक़, ईरान की मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटियों में स्वास्थ्य से जुड़े प्रौद्योगिक ढांचे में विकास हुआ है। 2014 में प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने वाले केन्द्रों की तादाद 53 थी जो 2016 में बढ़ कर 80 हो गए। इसी तरह 2014 में ईरान में नॉलेज बेस्ड और कोर टेक्नॉलोजी कंपनियों की तादाद 345 थी और इस समय यह तादाद बढ़ कर 834 हो गयी है। इसी तरह टेक्नॉलोजी प्लान की तादाद 2014 की तुलना में 2016 में 95 से बढ़ कर 201 हो गयी है।             

5 फ़रवरी को तेहरान यूनिवर्सिटी की मैनेजमंट फ़ैकल्टी में साइंस ऐन्ड टेक्नॉलोजी पार्क का अनावरण हुआ। इस समारोह में तेहरान युनिवर्सिटी के साइंस साइंस ऐन्ड टेक्नॉलोजी पार्क की नॉलेज बेस्ड कंपनियों में बनाए गए उत्पादों का अनावरण हुआ।

नालेज बेस्ड कंपनियों के उत्पादों का अनावरण

 

इस समारोह में जिन उत्पादों का अनावरण हुआ वे अर्थसाइंस में खुदाई के लिए  इस्तेमाल होने वाला स्कैनर, सांस लेने का विशेष मास्क एफ़एफ़पी-3, गीता ज्योग्रफ़िक इन्फ़ार्मेशन सिस्टम और सिंगल चैनल इलेक्ट्रोकार्डियो ग्राफ़ मशीन, ऑनलाइन वर्चुअल रिआलिटी प्रौद्योगिकी और रिकोबीज़ोल शैंपू हैं।                

डिटॉक्सिफ़िकेशन यानी जिस्म में मौजूद ज़हरीरे पदार्थ को निकालने के पारंपरिक इलाज के तरीक़े पर उस्ताद हुसैन ख़ैर अंदीश के विचार पेश हैं।

जिस्म में मौजूद ज़हरीले पदार्थ कई तरीक़े से पहुंचते हैं। हवा के ज़रिए जिस हवा में हम सांस लेते हैं, खाने के ज़रिए, इंजेक्शन के ज़रिए या दवा के ज़रिए। इनमें से किसी भी तरीक़े से जिस्म में पहुंचे ज़हरीले पदार्थ को निकालने में सबसे प्रभावी सेब है। इसे दो तरह से खा सकते हैं। एक नहारमुंह सुबह खाइये। इस तरह सेब खाने से, ख़ून में इकट्ठा हुआ ज़हरीला पदार्थ, पाचन तंत्र के ज़रिए बाहर निकल जाता है। अगर बहुत ज़्यादा दूषित हवा में सांस लेने से जिस्म में ज़हरीला पदार्थ इकट्ठा हुआ तो उसे निकालने के लिए सेब का जूस पीजिए। इसी तरह सेब और बेह को किसी न किसी तरह अपने खाने का हिस्सा बनाइये। बेह को अंग्रेज़ी में क्विंस कहते हैं। सेब और बेह का आबगोश्त सालन का पकवान बनाइये। इसी तरह बग़ैर चावल वाले पकवान या सालन में किसी न किसी तरह सेब और बेह को शामिल कीजिए और उसे अपने दस्तरख़ान का हिस्सा बनाइये। ये दोनों ज़हरीले पदार्थ को तुरंत निकालने वाले अहम फल हैं। इसी तरह ज़हरीले पदार्थ को निकालने में ये फल सबसे प्रभावी व पहले नंबर पर हैं। इस नज़र से इन दोनों फलों को चमत्कारी फल कह सकते हैं। वे लोग भी इसे खाएं जिन्हें पता नहीं है कि उनके जिस्म में ज़हरीले पदार्थ मौजूद हैं।

इसके बाद सब्ज़ी तरकारी का नंबर आता है, जिसमें मूली बहुत अहम है। मूली का वह हिस्सा जो मूली और पत्ते के बीच में होता है। इसे खाइये। मूली भी जिस्म और श्वास तंत्र में मौजूद ज़हरीले पदार्थ को निकालती है। पुदीना, विलो का रस, प्लान्टेगो अर्थात बारहंग या बारतंग का पत्ता। ये सबके सब जिस्म से ज़हरीले पदार्थ को निकालने में बहुत फ़ायदेमंद हैं।  विलो और पूदिना तक लोगों की पहुंच बहुत आसान है। ये जिस्म से तुरंत ज़हरीले पदार्थ को निकालते हैं।

खौला हुआ पानी जिसमें एक चमचा सिरका या एक चमचा नींबू का रस या एक चमचा कच्चे अंगूर का रस, या बरबेरी अर्थात ज़िरिश्क का रस मिला हुआ हो। इतना मिला हो कि पानी का मज़ा बदला न हो।  यह खौला हुआ पानी जब हल्का गर्म रहे उसे पीजिए।  अगर इस पानी को नहारमुंह पीना चाहते हैं तो उसमें थोड़ा सी मिठास ख़ास तौर पर शहद मिलाकर पीजिए।  ये पानी श्वास और पाचन तंत्र में  मौजूद ज़हरीले पदार्थ को निकालता है।  कोशिश करें पानी गर्म पियें।  जिस जगह के लोग चौबीस घंटे दूषित हवा में सांस लेते हैं, उनका पेय गर्म पानी होना चाहिए। जिस तरह आप दूषित हवा में निरंतर सांस लेते हैं, उसी तरह जब भी प्यास लगे आप गर्म पानी पीएं, जैसे चार या पांच कप गर्म पानी आप पिएं। यह ज़हरीले पदार्थ को निकालने वाला एक सस्ता ज़रिया है। इसी तरह हल्के रंग की चाय भी फ़ायदेमंद है क्योंकि उसका पानी खौला हुआ होता है और गर्म पी जाती है। मेरी नज़र में अगर आप चाय या कोल्ड ड्रिंक में किसी एक का सेवन ख़त्म करना चाहते हैं तो कोल्ड ड्रिंक को छोड़िए, हल्के रंग की चाय, कोल्ड ड्रिंक से बेहतर है क्योंकि चाय में खौला हुआ पानी होता है। इसी तरह आप पुदीना या उस्तोख़ुदूस या सुंबुल तीब को दम करके चाय की तरह पीजिए। उस्तोख़ुदूस को अंग्रेज़ी में लवेन्डर और सुंबुल तीब को वलेरियन कहते हैं। इनसे जिस्म से ज़हरीले पदार्थ निकलते हैं।

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