Jul २५, २०२० १४:१० Asia/Kolkata

हमने इस्लामी गणतंत्र ईरान की भूमि पर इराक़ के अतिक्रमण के दूसरे साल में चौथे महाअभियान के बारे में बताया जो १९८२ के मई महीने में शुरु हुआ था ।

इस अभियान का नाम बैतुल मुक़द्दस था। खौथा अभियान बैतुल मुक़द्दस दक्षी ईरान के अतिग्रहित इलाक़ों और ख़ुर्रमशहर की बंदरगाह को आज़ाद कराने के लिए सात महीने के अंतर पर शुरु हुआ था। वास्तव में बैतुल मुक़द्दस इराक़ के बासी शासन की सेना के अतिक्रमण के आरंभ से लेकर उस वक़्त तक क सबसे बड़ा अभियान था।

१९८२ के मार्च के अंत में फ़त्ह      ल मुबीन अभियान की समाप्ति के बाद आईआरजीसी और सेना के अनुभवी कमान्डरों की मौजूदगी में संयुक्त बैठब हुयी और सभी इकाइयों को सूचित किया गया कि २ हफ़्ते में इकाइयों को अभियान के लिए पुनर्गठिन किया जाए। मौजूदा स्थिति और नए अभियान के लिए पुनर्गठित किया जाए। मौजूदा स्थिति और नए अभियान को जल्द शुरु करने पर आधारित उच कमान्डरों के सुझाव पर, बहुत तेज़ी से तय्यारी होने लगी। क्योंकि दक्षिणी इलाक़े में गर्मी का मौसम शुरु होने और दुश्मन की चालाकी के मद्देनज़र किसी ही तरह की लापरवाही, इराक़ी सेना के सन्निकट अभियान का कारण बनती।

बैतुल मुक़द्दस अभियान को उसकी व्यापकता के अलावा इलाक़े की भौगोलिक स्थिति और इराक़ की बासी सेना की व्यूह रचना के मद्देनज़र अंजाम देना कठिन था। बैतुल मुक़द्दस अभियान को अंजाम देने के मार्ग में एक रुकावट ईरान की विशाल कारून नदी थी जो पानी से भरी रहती है। इस समय इस नदी पर चार बड़े बंध बनाए गए हैं। यही वजह है कि इराक़ की बासी सेना के कमान्डर ईरानी सेना के सामने मौजूद हालात के मद्देनज़र यह कल्पना नहीं कर सकते थे ईरान के जवान रणनीतिज्ञ अभियान के लिए कठिन मार्ग चुनेंगे।

कुल मिलाकर सेना और बईआरजीसी ने बैतुल मुक़द्दस अभियान के लिए दो उपाय पेश किए। एक अहवाज़ ख़ुर्रमशहर मार्ग को आधार बनाकर अहवाज़ के नवर्द इलाक़े से दुश्मन पर हमला करना और दूसरा विशाल कारून नदी को पार करके अहवाज़ ख़ुर्रमशहर मार्ग पर पहुंचना था। इनमें से हर उपाय के कुछ सार्थक व नकारात्मक पहलू थे। लेकिन कारून नदी को पार करने के उपाय पर सहमति बनी।

कारून नदी को पार करने का जो उपाय पेश किया गया था उसमें एक त्रुटी यह थी कि इस नदी पर पुल बना कर पार करने के मार्ग में बहुत सी जटिलताएं थीं। लेकिन इसका सार्थक पहलू यह था कि इस मार्ग से दुश्मन के केन्द्र तक पहुंचने में दूरी कम थी और इस क्षेत्र में इराक़ी सेना की प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर थी।

इराक़ की बासी सेना अच्छी तरह यह जानती थी कि ईरानी सेना का अगला अभियान क्या होगा लेकिन उसे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि ईरानी सेना अगले अभियान को किस तरह अंजाम देगी। यही वजह है कि इराक़ी सेना को जिस आधार से ईरानी अभियान के अंजाम पाने की संभावना थी उसके ख़िलाफ़ मोर्चाबंदी क़ायम की और हवाई सुरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाया।

इराक़ी सेना ने ख़ुर्रमशहरा के भीतर और उसके चारों ओर मोर्चबंदी कर रखी थी, बारूदी सुरंग बिछा दी थी, शहर के पूर्वी और उत्तरी छोर से ईरानी सेना के प्रवेश को रोकने के लिए बड़े बड़े मैदान बना दिए थे ताकि सामने से हर चीज़ साफ़ नज़र आए। इसी तरह दुश्मन ने शहर के भीतर जंग से बचने और मरानी सैनिकों के हेलीकाप्टर से पहुचंने को रोकने के लिए विशेष इंजीनियरिंग व्यवस् कर रखी थी।

ख़ुर्रमशहर को आज़ाद कराने और जंग के समीकरण को बदलने वाला बैतुल मुक़द्दस अभियान किस तरह अंजाम पाया, इस बारे में आपको अगले कार्यक्रम में बताएंगे। तब तक के लिए अनुमति दें।

आईआरजीसी और सेना के बीच सहयोग के बारे में मोहसिन रेज़ाई कहते हैं हम और हसन बाक़ेरी बेलेता नामक स्न पर दुश्मन का पता लगाने गए। यह स्थान देहलुरान देज़फ़ूल मार्ग के उत्तर में था। वहां तक पहाड़ी थी जहां से हम इराक़ी सेना की स्थिति पर नज़र रखते थे। मैंने अचानक देखा कि अली गेरेज़द नामक पहाड़ियों के पीछे से इराक़ी सेना तोप के गोले बरसा रही है। वहां सेना और इस्लामी क्रान्ति संरक्षक बल के सहकर्मियों से कहा कि पता लगाइये कि कितनी तोपें हैं। पता चला कि पहाड़ियों के पीछे कम से कम १०० तोपें हैं।  

 

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