Nov २४, २०२० १५:०४ Asia/Kolkata
  • वैज्ञानिकों ने नैनो टक्नॉलोजी की मदद से ऐसी कम्पोज़िट मेम्ब्रेन अर्थात छलनी बनायी है जो मिक्स हुयी गैसों को अच्छी तरह अलग कर सकती है।

आज हम ईरानी वैज्ञानिकों द्वारा प्राकृतिक गैसो को अलग करने के लिए बनायी नैनो कंपोज़िट मेम्ब्रेन सहित विज्ञान जगत की कुछ दूसरी उपलब्धियों के बारे में बताएंगे।

ईरान में वैज्ञानिकों ने नैनो टक्नॉलोजी की मदद से ऐसी कम्पोज़िट मेम्ब्रेन अर्थात छलनी बनायी है जो मिक्स हुयी गैसों को अच्छी तरह अलग कर सकती है। अलबत्ता यह कामयाबी लैब स्तर पर हासिल हुयी है। यह कारनामा ईरान की अराक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है। इस छलनी से कम वक़्त और ऊर्जा में गैसों को अलग किया जा सकता है। यह छलनी इसी तरह गैस को मीठा बनाने की प्रक्रिया में भी इस्तेमाल होती है। पाइप लाइन को ज़ंग से बचाने के लिए प्राकृतिक गैस में मौजूद अशुद्ध तत्वों को निकालना, गैस के भंडारड़ और सप्लाई के ख़र्च में कमी, गैस के जलने की क्वालिटी में बेहतरी लाना और प्रदूषण कम करके पर्यावरण को नुक़सान से बचाना पेट्रोलियम उद्योग के सामने मौजूद बड़ी चुनौतियाँ हैं।

प्राकृतिक गैस के निकलते वक़्त उसमें लगभग 80 फ़ीसद मिथेन गैस होती है। इसी तरह प्राकृतिक गैस को निकालते वक़्त उसमें कार्बनडाइ ऑक्साइड, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन सल्फ़ाइड और गंधक युक्त दूसरे कंपाउंड भी होते हैं। अराक यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर्ज़ ने नैनो कंपोज़िट मेम्ब्रेन को सिन्थेसिस किया है। इस समय प्राकृतिक गैस में गंदगी को निकालने के लिए कन्डन्सेशन, एब्ज़ॉर्प्शन और ऑर्गेनिक सॉल्वेन्ट के साथ ऐड्ज़ॉर्प्शन शैली इस्तेमाल होती है, लेकिन इन शैलियों के इस्तेमाल में ख़र्च ज़्यादा है और ऊर्जा बहुत इस्तेमाल होती है, इसी तरह इन शैलियों के लिए ख़ास उपकरण की ज़रूरत होती है।

ईरानी शोधकर्ताओं ने जो नैनो कंपोज़िट मेम्ब्रेन बनायी है उसका रिटर्न अच्छा है, गैस तेज़ी से अलग होती है, इसका प्रॉसेस आसान है, इसमें महंगे सॉल्वेन्ट इस्तेमान नहीं होते और दूसरी शैलियों की तुलना में ये अधिक इक्नॉमिकल हैं। इसके अलावा नई शैली से पर्यावरण को नुक़सान नहीं पहुंचता।               

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मशहूर वैज्ञानिक एल्बर्ट आइंस्टीन के ब्लैक होल के बारे में नज़रिये को वैज्ञानिकों की एक टीम ने साबित किया है जिसमें जर्मनी, चेक गणराज्य और ईरान के वैज्ञानिक हैं। आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी अर्थात सापेक्षवादी नज़रिये के मुताबिक़, विशाल आमसानी पिन्ड अपने आस-पास की जगह को टेढ़ा कर देते हैं जिसकी वजह से दूसरी चीज़ें अपने सीदे मार्ग से हट जाती हैं। इन वैज्ञानिकों की टीम ने मिल्की वे आकाशगंगा के केन्द्र में एक विशाल ब्लैक होल के क़रीब 3 तारों के एक समूह का अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने चिली में बहुत बड़े टेलिस्कोप की मदद से ब्लैकहोल के आस-पास तारों की चाल पर नज़र रखी तो पाया कि एस-2 नाम का एक तारा अपने ऐक्सिस से थोड़ा हट गया था जिससे थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी की सत्यता का पता चलता है। इन ऑब्ज़र्वेशनों की पुष्टि होने पर आकाशगंगा के ब्लैक होल जैसी आसमानी चीज़ की ग्रेविटी के बारे आइंस्टीन के सापेक्षवादी नज़िरये की भी पुष्टि होगी। इन ब्लैक होल का दायरा सूरज से 40 लाख गुना बड़ा है।            

इससे पहले बुध ग्रह की चाल से आइंस्टीन का नज़रिया साबित हुआ था लेकिन सूरज की ग्रेविटी पर ब्लैक होल क्लाउड के असर के बारे में वैज्ञानिकों को संदेह था इसलिए उन्होंने आइंस्टीन के नज़रिये को अधिक जटिल हालात में परखा। इस रिसर्च से सृष्टि के बड़े बड़े ब्लैक होल के अध्ययन और ग्रेविटी के बारे में अधिक अध्ययन का रास्ता समतल होगा।              

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अब हम आपको मेडिकल साइंस की एक महाउपलब्धि के बारे में बताने जा रहे हैं। जी हाँ मेडिकल साइंस ने एएसएस और हंटिंग्टन जैसी ख़तरनाक बीमारी के इलाज का तरीक़ा ढूंढ लिया है। ये दोनों बीमारियाँ इंसान के दिमाग़ की नसों के नेटवर्क को ख़राब कर देती है लेकिन जीन में सुधार करके इन बामारियों का इलाज मुमकिन है। एएलएस या एम्योट्रॉफ़िक लेट्रल स्क्लोरोसिस बीमारी से मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं और इंसान का पूरा बदन ऐसा हो जाता है मानो फ़ालिज लग गयी है। इंसान किसी तरह हिल डुल नहीं पाता। हन्टिंग्टन बीमारी से मांसपेशियों का कंट्रोल बहुत कम हो जाता है, भावनात्मक विकार और दिमाग के सेल में पैथोलोजिकल डिस्टर्बेन्स पैदा होती है।

क्रिस्पर कैस-9 जीन में सुधार की सबसे आधुनिक शैली है जिससे इंसान के डीएनए को बदल कर कुछ बीमारियों का इलाज किया जा सकता है लेकिन इससे एएलएस और हन्टिंग्टन जौसी बीमारी का मुक़ाबला नहीं किया जा सका। सैन डियागो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने आरएनए में सुधार की शैली का पता लगाया है जिसे आरकैस-9 कहते हैं जिसके ज़रिए मॉलेक्यूल में मौजूद कमी को दूर किया जाता है जो इन दोनों बीमारियों की वजह बनते हैं। इस शैली के तहत आरएनए मॉलेक्यूल में मौजूद कुछ एन्ज़ाइम में बदलाव किया जाता है। यह उपलब्धि लैब स्तर पर हासिल हुयी है, अभी इसके सामने मुख्य चुनौती आम माहौल में इंसान के बदन के सेल को लेकर है।     

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ईरान में परमाणु वैज्ञानिकों ने एक्स और गामा किरणों के फैलने की चेतावनी देने वाली मशीन बनायी है।

 

किरण, ऊर्जा की ऐसी शक्ल है जो तेज़ी से आस-पास हवा में फैल जाती है। प्रकृति में अनेक तरह की प्राकृतिक और कृत्रिम किरणें मौजूद हैं जिनका ज़मीन पर मौजूद प्राणी को हर दिन सामना होता है। इनमें से कुछ किरणें इंसानो के लिए फ़ायदेमंद और नुक़सानदेह दोनों हो सकती हैं। कुछ किरणें यूं तो नुक़सानदेह होती हैं लेकिन सावधानी बरत कर उनसे बीमारियों का पता लगाने और उसे ठीक करने में मदद ली जा सकती है लेकिन इसके लिए कुछ सुरक्षा व स्वास्थ्य नियमों पर अमल ज़रूरी होता है। आज कल इन ख़तरनाक किरणों को अस्पताल में इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसलिए ज़रूरी है डॉक्टर इन किरणों की जितनी मात्रा नुस्ख़े में तय की है और मरीज़ जितनी मात्रा को अपने अंदर शोषित कर सकता है उनमें समन्वय हो। इन किरणों से होने वाले ख़तरों के मद्देनज़र, अस्पतालों में इनकी निगरानी का ख़ास इंतेज़ाम किया जाता है।

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