Dec ०६, २०२० १६:४९ Asia/Kolkata
  • बायो टेक्नालोजी और विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में ईरान का संघर्ष और सराहनीय उपलब्धियां

रूस में अमरीकी दवा की जगह ईरानी दवा का बोलबाला, बाइपोलर डिस्ऑर्डर और अल्ज़ायमर में संबंध, बीमारियों की समीक्षा के लिए ट्रांस्जेनिक मछली का उत्पादन, ख़ून में इंसुलिन के स्तर का पता लगाने वाले सेंसर इत्यादि के बारे में आपको बताएंगे।

ईरान बायो टेक्नॉलोजी की मदद से बनायी हुयी दवाएं रूस को निर्यात कर रहा है। इन दवाओं ने रूस के बाज़ार में अपनी जगह मज़बूत करके बायोटेक्नॉलोजी पर आधारित अमरीकी दवाओं की जगह ले ली हैं। हालिया बरसों में नॉलेज बेस्ट आर्थिक क्षेत्र में बहुत तरक़्क़ी हुयी है। इस देश में हज़ारों नॉलेज बेस्ड कंपनियाँ काम कर रही हैं।

 

ईरान की 2 दवाएं योरोप में रजिस्टर हुयी हैं। हर दवा का रजिस्ट्रेशन क्लीनिकल ट्रायल के बाद होता है। ये दवाएं इस प्रक्रिया को तय करने के तीन साल बाद रूस की स्वीकृति हासिल करने में सफल हुयीं। रूस में 5 तरह की दवाएं रजिस्टर हुयी हैं और रूस को बायोटेक्नॉलोजी पर आधारित निर्यात होने वाली दवाएं, इस क्षेत्र के बाज़ार पर पूरी तरह छा गयीं। रूस को निर्यात होने वाली दवाओं में एमएस की दवा भी है। कैंसर के इलाज की दवा की स्वीकृति और निर्यात की शुरूआत भी हो गयी है। इसी तरह इराक़ और तुर्की को इसी प्रक्रिया के तहत ईरानी दवाएं निर्यात हो रही हैं।           

ईरान के रोयान इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बाइपोलर डिस्ऑर्डर और अल्ज़ायमर के बीज संबंध और बीमारियों की समीक्षा के लिए ट्रांस्जेनिक मछली का उत्पादन करने में सफलता हासिल की है।

रोयान इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक अल्ज़ायमर बीमारी और दूसरी बीमारियों के साथ इसके संबंध पर शोध व टेस्ट के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि डायबिटीज़ में दबाव और शर्करा की मात्रा ज़्यादा होने की वजह से दिमाग़ के सेल को ख़त्म करने वाले फ़ैक्टर्ज़ दिमाग़ में ही बनते हैं जो दिमाग़ के सेल की मौत का कारण बनते हैं। बाइपोलर डिस्ऑर्डर या मैनिक डिप्रेशन एक तरह की दिमाग़ी बीमारी है। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों के रवैये में बहुत बड़ा बद्लाव होता है। यह बद्लाव आम तौर पर किशोर अवस्था के अंतिम पड़ाव या वयस्कता के शुरूआती दौर में ज़ाहिर होता है। इस बीमारी की कई क़िस्में है जिनमें बाइपोलर डिस्ऑर्डर टाइप-वन और बाइपोलर डिस्ऑर्डर टाइप-टू ज़्यादा ख़तरनाक हैं। यह बीमारी किशोरावस्था से लोगों में पनपने लगती हैं।

रोयान इंस्टीट्यूट के अकैडमिक बोर्ड के सदस्य के मुताबिक़, इस इंस्टीट्यूट के शोध से पहले यह बात स्पष्ट नहीं थी कि डायबिटीज़ में दिमाग़ के सेल को ख़त्म करने वाला फ़ैक्टर क्या है, जिसका रोयान इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने पता लगाया। यह कहना ग़लत न होगा कि जो लोग डाटबिटीज़ के मरीज़ हैं वे बड़ी तेज़ी से अल्ज़ायमर की चपेट में आ सकते हैं। आज अल्ज़ायमर को डाटबिटीज़ टाइप-थ्री कहा जा रहा है। रोयान के प्रोजेक्ट में बाइपोलर बीमारी से ग्रस्त सेल पर शोध से पता चला कि बाइपोलर बीमारी होने का सेलुलर एलिमेन्ट और अल्ज़ायमर होने का सेलुलर एलिमेन्ट एक ही है। इस शोध के वैज्ञानिक के मुताबिक़, यह प्रोजेक्ट अल्ज़ायमर से बचने के लिए टीकाकरण की दिशा में क़दम है। जो एलिमेन्ट स्नायुतंत्र के सेल की मौत का कारण बनते हैं अल्ज़ायमर में भी प्रभावी होते हैं। यह बात सेल के लेवल पर साबित हो चुकी है जिसके प्राणी और इंसान के लेवल टेस्ट होना बाक़ी था।           

 

रोयान इंस्टीट्यूट ने जेनेटिक मोडिफ़िकेशन के ज़रिए विशेष इंसानी बीमारी का पता लगाने के लिए मछली का मॉडल बनाने में सफतला हासिल की है। किसी बीमारी का पता लगाने और उसकी समीक्षा के लिए एक मॉडल बनाना बहुत अहम है जिससे इलाज के नए तरीक़े को टेस्ट करने और उसके असर को मॉनिटर करने में मदद मिलती है। आम तौर पर ऐसे प्राणियों का मॉडल बनाया जाता है जिनकी उम्र कम होती है ताकि उनके रखने पर ख़र्च कम आए और प्राणी के जीवन चक्र के दौरान बीमारियों की विशेषताओं की समीक्षा मुमकिन हो सके। ये मछलियाँ खायी जाने वाली नहीं होतीं और उन्हें सिर्फ़ वैज्ञानिक टेस्ट के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इन मछलियों का पूरी दुनिया में आधुनिक लैब में बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता है। एमएस बीमारी के लिए ज़ेब्रा फ़िश मॉडल, डायबिटीज़ के लिए ज़ेब्रा फ़िश, मैस्कुलर बीमारियों के ज़ेब्राफ़िश के मॉडल, रोयान इंस्टीटयूट में बनाए गए हैं। हरे रंग की ज़ेब्राफ़िश मॉडल पानी के सही होने का पता लगाने के लिए इस्तेमाल होती है, क्योंकि दूषित पानी में हरे रंग की ज़ेब्राफ़िश का रंग फीका पड़ जाता है।

 

ईरानी वैज्ञानिकों ने डायबिटीज़ के क्षेत्र में एक सफलता हासिल की है। ईरान में इस्फ़हान टेक्नॉलोजी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसा सेंसर बनाया है जो बिना नमूने के ख़ून में इन्सुलिन का पता लगा लेता है। यह सेंसर बहुत ही सटीक रेज़ल्ट देता है। इन्सुलिन इंसान के बदन में बनने वाले अहम हार्मोन में शामिल है, जो ख़ून में शकर को क़ाबू करने में बहुत अहम हार्मोन है। इसी तरह जिस्म की मेटाबोलिक गतिविधियों में भी बहुत अहम योगदान देता है। यही वजह है कि स्वस्थ और मरीज़ लोगों में इंसुलिन की मात्रा के नियंत्रण से डायबिटीज़ को क़ाबू करने में बहुत मदद मिलती है।

ईरानी वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए इस सेंसर में सोने के नैनो पार्टिकल्स इस्तेमाल हुए हैं। यह सेंसर प्रत्येक लीटर में 1000 नैनो मोल का बड़ी सूक्ष्मता से पता  लगा लेता है। 

 

तेहरान यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने स्वीडन की लुन्द यूनिवर्सिटी और स्पेन के मैड्रिड शहर में स्थित राष्ट्रीय म्यूज़ियम के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर  मछली की एक नई प्रजाति का पता लगाया है जिसे फ़ारसी भाषा में सियाह माही कहते हैं और इसका वैज्ञानिक नाम कपीटा है। यह मछली कैस्पियन सी में मिली है। वैज्ञानिकों ने ईरान के मेडिकल साइंस, केमिस्ट्र व दर्शन शास्त्र के महान वैज्ञानिक ज़करिया राज़ी के सम्मान में जिन्होंने अलकोहल की खोज की थी, इस नई मछली का नाम कपीटा राज़ी रखा है। 

 

कपीटा मछली के बारे में दक्षिणी कैस्पियन सी में देशी विदेशी वैज्ञानिकों ने बहुत बार स्टडी की है लेकिन इस प्राणी की नई प्रजाति की खोज में बड़ी मेहनत करनी पड़ी। पहली बार कैस्पियन सी में इस प्रजाति की समीक्षा हुयी। इस तरह का पहला रिसर्च प्रोग्राम कपीटा अल्बुर्ज़ेन्सिस के नाम से ईरान की नमक झील में अंजाम पाया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रजिस्टर हुआ था।         

 Capoeta razii 

 

अमरीका की एमआईटी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कैप्सूल की साइज़ का एक रोबोट बनाया है जो इंसान के बदन में जाकर खुल जाता है और इंसान की जान बचाता है। इस रोबोट का ढांचा जापानी कला ओरिगेमी के नियमों के मुताबिक़ बनाया गया है।

 

यह रोबोट इंसान द्वार निगले गए सिक्के या छोटी बैट्री का पता लगाकर उसे बाहर निकालता है। कैप्सूल की तरह नज़र आने वाला यह रोबोट, जैसे ही पेट में जाता है फ़ौरन खुल कर अपना काम शुरू कर देता है। यह रोबोट पेट में द्रव्य पदार्थ के हिलने से पैदा होने वाली ऊर्जा से चलता है और पेट में मौजूद कीड़ों के चलने का अनुसरण करता है। अमरीका में हर साल 3500 बैट्री लोग निगल जाते हैं। यह छोटा सा रोबोट इस तरह की ख़तरनाक ग़लती करने वालों की जान बचा सकता है। 

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