Dec २०, २०२० १६:३० Asia/Kolkata
  • हार्ट अटैक से हृदय को अगर नुक़सान पहुंच गया है तो उसके इलाज का एक अच्छा रास्ता खोजा गया है

इस लेख में हम नैनो टेक्नॉलोजी के क्षेत्र में ईरान की कुछ उपलब्धियों के बारे में बताएंगे। जैसे ऐंटी सेप्टिक स्प्रे, नैनो टेक्नॉलोजी की मदद से बनने वाला फ़ायर प्रूफ़ धागा और मकई के तेल से बनने वाली पैकिंग।

ईरानी वैज्ञानिकों ने मेडिकल साइंस के क्षेत्र में ऐसी शैली का आविष्कार किया है जिसकी मदद से दिल के ख़राब हो चुके ऊतकों की तीन आयामी प्रिंट के ज़रिए रिपेयरिंग हो सकती है। हार्ट अटैक के बाद, दिल की बीमारी के इलाज में एक मुश्किल, दिल के ऊतकों की  स्वतः मरम्मत न हो पाना है। इस मुश्किल के हल के लिए वैज्ञानिकों ने दिल के सेल की तीन आयामी तस्वीर, दिल के कई भागों की तस्वीर छापी। इस थ्री-डी तस्वीर में मौजूद इंसान का सेल विकसित होने की योग्यता रखता है। इस शोध की प्रक्रिया में तस्वीर खींचने की तकनीक, शोधकर्ताओं को इस बात अवसर देती है कि वे दिल के सेल की थ्री-डी तस्वीर से सेल की रिपेयरिंग की प्रक्रिया के दौरान निगरानी करते रहें।

 

चूहे पर हुए अध्ययन में देखा गया की जब दिल, स्टेम सेल से तैयार किए गए टुकड़े  को अपने भीतर जज़्ब करने लगा तो उसमें मौजूद सेल विकसित होने लगे और स्टेम सेल से तैयार किया गया टुकड़ा नर्म ऊतक से दिल के ऊतक में बदल गया।

इस बीच इम्पलांट हुए ऊतक में रगें बनने लगीं। इस अध्धयन का मूल बिन्दु यह है कि इस तीन आयामी छपे हुए ऊतक में सेल को एक दूसरे के साथ लाइन में रखने से, वे एक दूसरे से मज़बूती से जुड़ गए और उनके बीच दिन के नेचुरल ऊतक की तरह इलेक्ट्रिक सिग्नल रिसीव करने की योग्यता आ गयी।           

ईरान में नॉलेज बेस्ड कंपनी के शोधकर्ताओं ने घाव को डिस्इन्फ़ेक्ट करने वाला स्प्रे बनाया है। इस स्प्रे को नैनो टेक्नॉलोजी की मदद से बनाया गया है। यह स्प्रे फ़न्जाई, वायरस और बैक्टेरिया जैसै पैथोजेनिक माइक्रोऑर्गनिज़्म को पाँच मिनट में ख़त्म कर देता है। ये ऑर्गनिज़्म बीमारी फैलाते हैं। जिस्म में घाव या जले हुए हिस्से को जलन, अलकोहल, बदबू और रंग के बिना जल्द ठीक करना इस स्प्रे की ख़ूबी है। 

 

तेहरान की अमीर कबीर यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग कॉलेज के शोधकर्ताओं ने नैनो स्केल का शीशे का फ़ाइबर बनाया है जो फ़ायर प्रूफ़ कपड़े और साउंड प्रूफ़ चीज़ें बनाने में इस्तेमाल होता है।  इस प्रोजेक्ट के शोधकर्ता के मुताबिक़, ये फ़ाइबर उन उद्योगों में बहुत उपयोगी हैं जिसके बहुत ज़्यादा मज़बूत होने की ज़रूरत होती है। जैसे हल्के कंपोज़िट या साउंड प्रूफ़ या फ़ायर प्रूफ़ चीज़ बनाने में।

 

 तबीरज़ यूनिवर्सिटी और सारी की ऐग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मकई के तेल से ऐसा पैकिंग मटीरियल बनाया है जो बायो डिग्रेडेबल है अर्थात आसानी से मिट्टी में गल जाता है। आम तौर पर पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले मटीरियल का बड़ा भाग ऐसी चीज़ से बनता है जो मिट्टी में गल नहीं पाते, इसी वजह से पर्यावरण को दूषित  करता है तथा कूड़े कर्कट का बड़ा हिस्सा पैकिंग मटीरियल होता है। इसी वजह से खाद्य पदार्थ की पैकिंग में बायो डिग्रेडेबल मटीरियल के इस्तेमाल के लिए बहुत ज़्यादा अध्ययन हुआ है और इसकी उपयोगिता को बढ़ाने की कोशिश जारी है। 

 

इस प्रोजेक्ट टीम के लीडर के मुताबिक़, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खाए जाने वाले लिपिड को पैकिंग मटीरियल के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा ताकि पैकिंग आसानी से मिट्टी में गल जाए। खायी जाने वाली प्रोटीन में जिलेटिन भी है जिसे ढांचागत ख़ूबी की वजह इस्तेमाल किया जाता है। अलबत्ता भांप के इसके भीतर पहुंचने की वजह से इस स्रोत का इस्तेमाल सीमित स्तर पर होने लगा है।

ईरानी शोधकर्ताओं ने जो प्रोजेक्ट पेश किया है उसमें ऐंटी माइक्रोब विशेषता वाले नैनो पार्टिकल्ज़ और मकई का तेल इस्तेमाल हुआ है जिससे जिलेटिन की झिल्ली बेहतर हो गयी है। ऐंटी  बैक्टेरियल नैनो पार्टिकल्ज़ बढ़ाने से पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली झिल्ली ऐंटी बैक्टेरियल विशेषता आने के साथ ही इसकी मकैनिकल और थर्मल कवालिटी भी बेहतर हुयी। मकई के तेल के इस्तेमाल से भाप इस झिल्ली से पार नहीं हो पाती। इस बायो डिग्रेडेबल पैकिंग के इस्तेमाल से पर्यावरण में प्रदूषण बहुत कम हो सकता है।  

बोस्टन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मेडिकल फ़ील्ड में एक खोज की है। इस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इंसान के फेफड़े में ऐसे सेल का पता लगाया है जो ख़तरनाक बैक्टेरिया के ख़िलाफ़ नैचुरल इम्युनिटी पैदा कर सकता है। एक ऐसा बैक्टेरिया होता है  जो दुनिया में इंसानों के निमोनिया होने का कारण बनता है। वैज्ञानिकों ने जिस सेल का पता लगाया है उसमें एमआईडबल्यूआई-2 जीन होता है। जीन का यह ग्रुप इंसान के बदन में सही स्पर्म पैदा करने में मदद करता है और ये जीन सिर्फ़ मर्दों के सेल में पाए जाते हैं। बोस्टन यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक़, इंसान के सेल में मौजूद एमआईडबल्यूआई-2 जीन अपना मुख्य काम करने के साथ साथ फेफड़े के संक्रमण से भी लड़ते हैं। 

 

वैज्ञानिकों के मुताबिक़, ये जीन, फेफड़े में मौजूद इन्फ़ेक्शन को निकालते हैं और अगर संक्रमण बढ़ा हुआ हो तो उसे और बढ़ने से रोकते हैं। दुनिया में 5 साल से कम उम्र के ज़्यादातर बच्चे निमोनिया से मरते हैं, नई खोज से इस बीमारी को क़ाबू करने में बहुत मदद मिल सकती है। 

उत्तरी कैरोलिना और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मोटापे की मुश्किल को दूर करने के लिए एक तरह का त्वचा पर चिपकने वाला टेप बनाया है। इसे चूहों पर टेस्ट किया गया है। दुनिया में बड़ी तादाद में लोग हैं जो मोटापे का शिकार हैं और इससे छुटकारा पाना चाहते हैं। इन वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस टेप की मदद से मोटे लोगों ख़ास तौर पर जिनका पेट निकला हुआ है, उन्हें दुबला करने में मदद मिलेगी। 

त्वचा पर चिपकने वाला यह टेप सफ़ेद चर्बी को जिसमें ऊर्जा होती है, भूरे रंग की चर्बी में बदल देता है जो ईंधन के काम में आती है और इस काम के लिए जिस्म के मेटाबोलिज़्म को बढ़ा देती है। इससे पहले मोटापा कम करने के लिए त्वचा में इंजेक्शन लगाने सहित दूसरी बहुत ख़र्चीली और ज़्यादा वक़्त लेने वाली शैली का इस्तेमाल होता है जिसके साइड इफ़ेक्ट भी हैं, जैसे अमाशय में मुश्किल, हड़्डी का टूटना या लंबे समय में वज़्न बढ़ना शामिल है।

 

इस नई शैली में वैज्ञानिक पेट की चर्बी को जलान के लिए ज़रूरी दवा को माइक्रोस्कोप से नज़र आने वाले नैनो पार्टिकल्ज़ में इंजेक्ट करते हैं और उन्हें टेप में एक वर्ग सेंटीमीटर में लगाते हैं। इसी तरह इस टेप में आंखों से न दिखने वाली बहुत ही छोटी सी सुई लगाते हैं ताकि इसके ज़रिए दवा जिस्म में पहुंच जाए। जब इस टेप को जिस्म में लगाते हैं तो सुई से दर्द नहीं होता और ज़रूरी दवा सफ़ेद चर्बी के सेल में पहुच कर उस पर असर दिखाती हैं। इस शैली के इस्तेमाल से चार हफ़्तों में चूहों में 20 फ़ीसद दुबलापन देखा गया। इस शोध से इंसानों को दुबला करने की उम्मीद बढ़ी है।

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