Dec ३०, २०२० १६:४१ Asia/Kolkata

यदि आप धरती को ऊपर से, बहुत ऊपर से देखें तो आप को नीले रंग का एक गोला नज़र आएगा, हम सब को मालूम है कि धरती को नीला रंग, धरती पर मौजूद पानी ने दिया है। धरती का अधिकांश भाग नदियों और समुद्रों से ढंका हुआ है। धरती का कुल क्षेत्रफल 510 मिलयन वर्गकिलोमीटर है और उसमें से 361 मिलयन वर्ग किलोमीटर, पर पानी की चादर बिछी है।

इस धरती और धरती पर रहने वालों और पानी का प्रयोग करने वालों के लिए पानी के भांति भांति के स्रोत हैं। मात्रा की बात करें तो पृथ्वी पर मौजूद कुल पानी का 97 दशमलव 2 प्रतिशत भाग, समुद्रों महासागरों में है और केवल दो दशमलव 8 प्रतिशत भाग, नदियों, बर्फ के तोदों, वायु मंडल, धरती के भीतर और भूमिगत जलाशयों में मौजूद है। महासागरों में एक अरब 320 मिलयन वर्गकिलोमीटर, हिमनदियों में लगभग दो करोड़ पचास लाख वर्ग किलोमीटर , भूमिगत जलाशयों में एक करोड़ तीस लाख वर्ग किलोमीटर, नदियों  और झीलों में मीठा पानी लगभग ढाई लाख वर्ग किलोमीटर, हवा में भाग के रूप में लगभग 13 हज़ार वर्ग किलोमीटर पानी इस धरती पर मौजूद है। इतने ढेर सारे पानी में पीने योग्य पानी बहुत की कम है। धरती पर मौजूद मीठे पानी का 69 प्रतिशत भाग कृषि में, 23 प्रतिशत उद्योग में और केवल 8 प्रतिशत भाग घरों में प्रयोग किया जाता है। धरती पर हालांकि बहुत अधिक पानी है लेकिन उनमें से 97 प्रतिशत नदियों और समुद्रों में है और 2 प्रतिशत भाग हिमनदियों में है जबकि एक प्रतिशत भाग भूमिगत जलाशयों में है जिस तक पहुंच बेहद कठिन है। इसके साथ ही इस बात पर भी ध्यान रहना चाहिए कि मौसम में बदलाव और पृथ्वी के गर्म होने की वजह से पानी के वाष्पीकरण में तेज़ी आयी है। पानी की कमी दुनिया में ऐसी हालात में है कि जब, मीठे पानी का स्रोत पूरी दुनिया में समान रूप से मौजूद नहीं हैं। वर्तमान समय में कनाडा, चीन, कोलंबिया, पेरू, ब्राज़ील, रूस, अमरीका, इंडोनेशिा और भारत जैसे विश्व के 9 देशों में दुनिया के कुल मीठे पानी का 60 प्रतिशत भाग मौजूद है जबकि कुवैत, बहरैन, माल्टा, यूएई, सिंगापुर, जार्डन, लीबिया जैसे विश्व के 80 देशों में पानी की कमी है और इनमें से तो कुछ देशों में मीठे पानी का कोई साधन ही नहीं और वह अपनी ज़रूरतों के लिए पानी आयात करते हैं।

इन हालात में पृथ्वी गर्म हो रही है और ज़मीन पर आबादी बढ़ रही है जिसकी वजह से पानी के लिए खींचतान में भी वृद्धि हो रही है। बदलते मौसम की वजह से भी पानी तक इन्सानों की पहुंच सीमित हुई है और उसकी वजह से दुनिया के बहुत से हिस्सों में जल संकट खड़ा हो गया है जिसके सब से बड़ा उदाहरण पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के कई देश हैं जहां जल संकट अधिक गंभीर रूप में देखा गया। इस प्रकार के जल संकट के जूझ रहे देशों में हर दिन पानी पर नया नया तनाव पैदा होता रहता है और जहां तक इस बात का सवाल है कि पानी पर इस क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग कैसा हो सकता है तो यह चीज़, संकट की गहनता पर निर्भर करती है। जल स्रोतों की कमी की समस्या बढ़ रही है और नील, इराक़ और यमन जैसै क्षेत्रों में यह समस्या काफी व्यापक है। सूडान और सोमालिया जैसे देशों में हालिया वर्षों में  भुखमरी रही है जो वास्तव में इन देशों के भीतर और बाहर होने वाले युद्धों  का परिणाम थी लेकिन जिस इलाक़े में पानी के लिए युद्ध का सब से अधिक ख़तरा है वह जार्डन नदी से स्रोत का इलाक़ा है क्योंकि इस इलाक़े में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता बेहद कम है और यह नदी जिन जिन इलाक़ों को पानी देती है वह आपस में कई बार भिड़ चुके हैं, जैसे सीरिया, इस्राईल, फिलिस्तीन, लेबनान और जार्डन। बीसवीं सदी के मध्य तक जार्डन नदी में पानी बहुत अधिक था और उसका पानी आस पास के इलाक़ों में सिंचाई के लिए पर्याप्त था तथा समझौतों की वजह से पानी के लिए विवाद भी नहीं पैदा होता था। लेकिन आज इस इलाक़े में अस्थिरता और पानी की कमी की वजह से यह व्यवस्था ख़त्म हो सकती है जिसके बाद विवाद की ज्वाला भड़क जाएगी। वैसे जार्डन नदी के बारे में हिंसा पहले भी हो चुकी है। जब सन 1967 में 6 दिवसीय युद्ध आरंभ हुआ और इस्राईल के तत्कालीन रक्षा मंत्री एरियल शेरून ने बल दिया कि 6 दिवसीय युद्ध उसी दिन शुरु हो गया था जिस दिन इस्राईल ने जार्डन नदी की धारा मोड़ने के खिलाफ कार्यवाही का फ़ैसला किया था।

सन 1960 के दशक से पानी के पर कुछ विवाद हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार अब तक पश्चिमी एशिया की सच्चाई यह है कि तेल जैसे अन्य संसाधनों की तुलना में पानी को लेकर कम युद्ध हुए हैं। मध्य पूर्व में पानी की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। अध्ययनों से पता चलता है कि यहां के रहने वालों को भी पता है कि पानी कितनी तेज़ी से ख़त्म हो रहा है। उदाहरण स्वरूप हमें तुर्की पर ध्यान दें। दजला और फुरात नामक नदियां प्राचीन काल से ही मेसोपोटामिया को उपजाऊ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका की स्वामी रही हैं। इन दोनों नदियों का स्रोत, तुर्की के एन्तालिया नामक क्षेत्र के पहाड़ी हिस्से में स्थित है। यह नदी वहां शुरु होती है और इराक़ और सीरिया तक जाती है। तुर्की को भौगोलिक लिहाज़ से यह वरीयता प्राप्त है कि फुरात और दजला नामक इराक़ की बेहद मशहूर नदियां उसके देश से निकलती हैं जिसकी वजह से तुर्की पानी को अपना प्रभाव बढ़ाने के एक साधन के रूप में प्रयोग कर सकता है। तुर्की ने सन 1966 में एन्तोलिया में बांध की बड़ी परियोजना शुरु की जो सन 1974 में पूरी हुई। इस परियोजना के तहत इन नदियों पर कई बांध बनाए गये जिनकी वजह से तुर्की की सरकार का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई और रोज़गार बढ़ा है लेकिन पर्यावरण के समर्थकों का कहना है कि इससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है और बाढ़ या बांध टूटने की दशा में भयानक नुक़सान हो सकता है।

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