Jun १६, २०२१ १५:०७ Asia/Kolkata
  • प्राचीन काल में ईरानी जल संकट से किस तरह निपटा करते थे? रोचक जानकारी

ईरान में आजसे 17 सदी पहले पनचक्कियां, पुल और बांध बनाए जा चुके थे और इन चीज़ों के माध्यम से वे सूखे इलाक़ों में पानी के संकट से निपटा करते थे।

पानी के स्रोतों के प्रबंधन, पानी की आपूर्ति और पानी की संरचनाओं के क्षेत्र में रचनात्मक कार्यों के लिए ईरान को पहला देश माना जा सकता है। देज़फ़ूल की पहली पन चक्की देज़फ़ूल के प्राचीन पुल के साथ देज़ नदी में 1700 साल पहले सासानी शासनकाल में बनाई गई थी। कई ऐसी पन चक्कियां थीं, जो 70 साल पहले तक सक्रिय थीं और लोगों की आटे की ज़रूरत को पूरा कर रही थीं लेकिन आटा मिलों के निर्माण के बाद इनका चलन कम होता गया।

पन चक्की, जल संरचनाओं का एक समूह होता था, इस समूह में बांध और पन चक्कियां होती थीं। देज़ नदी के निरंतर प्रवाह के कारण इस परिसर का निर्माण उसी समय किया गया था जब नदी के किनारे शहर का निर्माण किया गया था। उसके बाद शहर के विकास और निवासियों की ज़रूरतों को देखते हुए उसका विस्तार होता रहा।

देज़फ़ुल की पनचक्कियों के अवशेष

 

देज़फ़ूल की पन चक्कियों का इतिहास सासानी काल से जाकर मिलता है, लेकिन नदी के तीन भागों में मौजूद उनके खंडहरों का संबंध, सफ़वी और क़ाजारी काल से है। यह संरचनाएं नदी के पत्थरों और ईंटों जैसी सामग्रियों से बनाई गई हैं। यह पन चक्कियां इस तरह से एक दूसरे के निकट हैं कि वह बांध का भी काम कर रही हैं, जिससे पानी की धारा को भी मोड़ा जा सकता है। यह सिस्टम, आधुनिक सासानी सिस्टम था, जिससे नदी के पहले हिस्से को काट दिया जाता था। इन संरचनाओं का नाम पुल बंद या दमबेरेज है, जो नदी के पश्चिमी और पूर्वी भागों को जोड़ने के अलावा, पानी की आपूर्त या सिंचाई के लिए नदी की सतह को कम या ज़्यादा करने में मदद करती थीं। इन पन चक्कियों के भीतरी भाग की ऊंचाई लगभग चार मीटर की होती थी।

फ़्रांसीसी इतिहासकार रोमन ग्रिशमैन ने अपनी किताब ईरानी कला में इस सिस्टम को प्राचीन काल में पानी की आपूर्ति का सबसे पुराना सिस्टम क़रार दिया है। ग्रिशमैन के मुताबिक़, यह सिस्टम 1400 से 1500 साल पुराना है। नए शोध भी इस बात की पुष्टि करते हैं। इसी प्रकार, नदी के बीच में एक विशाल मेहराब का खंडहर है, जो सासानी दौर के हाल की तरह दिखता है, और सासानी राजाओं की रुचि के अनुसार, इसे उनके किसी सरदार या दरबारी से संबंधित निर्माण के अवशेष के रूप में माना जा सकता है। यह संरचनाएं एक विशाल बांध हैं, जिन्हें बाद में कुछ परिवर्तनों के साथ पन चक्कियों में बदल दिया गया था।

देज़फ़ुल की पनचक्कियों और पुलों के अवशेष

 

पन चक्कियों के अंदर नीचे के हिस्से में दो टुकड़ों में पत्थर है, जो नदी के पानी की ऊर्जा से घूमता है और उसके घूमने से ऊपर वाला चक्र भी घूमता है। हर पन चक्की में पांच कर्चमारी काम करते थे, जो ख़च्चरों पर गेंहू लाने, पन चक्की तक गेंहू पहुंचाने, चक्की के पाट को निंयत्रण करने और आटा इकट्ठा करने जैसी ज़िम्मेदारियां पूरी करते थे। इसी प्रकार, रात में एक आदमी की ज़िम्मेदारी चक्कियों की देखभाल करना होती थी।

जिन मौसमों में नदी में पानी की सतह कम हो जाती थी, उन मौसमों में पानी की सतह को ऊपर लाने के लिए और पानी के प्रवाह को पन चक्कियों की और मोड़ने के लिए पत्थरों से भरी हुई टोकरियों का इस्तेमाल किया जाता था। पत्थरों से भरी हुई चह टोकरियां, एक बांध के तौर पर काम करती थीं।

यह पन चक्कियां निजी संपत्ति थीं। सफ़वी काल में इनकी संख्या 50 से 60 तक थी, जिनमें से कुछ बाढ़ के पानी के कारण नष्ट हो गईं। देज़फ़ूल की पन चक्कियां देज़ नदी के विभिन्न भागों में स्थित हैं। उनमें से कुछ देज़फ़ूल बांध और देज़ तटीय मनोरंजन स्थल से 800 मीटर की दूरी पर स्थित हैं और कुछ पुराने पुल के निकट स्थित हैं।

लेकिन विश्व का सबसे पुराना बहुउद्देश्यीय औद्योगिक परिसर शूश्तर शहर में स्थित है। यह परिसर दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी ऐतिहासिक बहुउद्देश्यीय संरचना है, जहां पानी की सुरंगें, बांध, पुल, पनचक्कियां और तेल निकालने के कारख़ाने स्थित थे।

शूश्तर का प्राचीन वाॅटर सिस्टम

 

शूश्तर का ऐतिहासिक वाटर सिस्टम कि जिसे शूश्तर जलीय संरचना के रूप में जाना जाता है, उन 13 ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है, जो एक दूसरे से जुड़े होते थे। इन धरोहरों को हख़ामनशी से सासानी काल तक पानी से अधिक लाभ उठाने के लिए बनाया गया था। फ्रांसीसी पुरातत्वविद् मैडम जान दियोलाफ़ोवा ने अपने यात्रा वृतांत में इसे औद्योगिक क्रांति से पहले का सबसे बड़ा औद्योगिक परिसर बताया है। यह 13 ऐतिहासिक धरोहर, शूश्तर शहर में एक दूसरे से थोड़ी दूरी पर स्थित हैं, और 2009 में इन्हें यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में दसवीं ईरानी धरोहर के रूप में पंजीकृत किया गया है।

झरनें और पन चक्कियां शूश्तर जल संरचना समूह की ऐतिहासिक संरचनाएं हैं, जिन्हें देखने के लिए सबसे अधिक लोग आते हैं। इस प्राचीन परिसर में बड़ी संख्या में पन चक्कियां हैं और पन चक्कियों को चलाने के लिए पानी की ऊर्जा के उपयोग का एक बड़ा उदाहरण, यहां देखा जा सकता है। यह संग्रह सबसे अनोखे उदाहरणों में से एक है, जिसका उपयोग प्राचीन काल में पानी के अधिकतम उपयोग के लिए किया जाता था।

शूश्तर के वाॅटर सिस्टम का एक दृश्य

 

इस ऐतिहासिक परिसर की प्रमुख विशेषताओं में से एक, इसका शूश्तर शहर के ऐतिहासिक और प्राचीन हिस्से के निकट स्थित होना है। औद्योगिक इस्तेमाल के अलावा इस परिसर का इस्तेमाल, पानी की कमी वाले दिनों में शहर के लोगों को पानी की आपूर्ति के लिए भी किया जाता था। इस परिसर की एक बहुत ही सुंदर और अनूठी विशेषता यह है कि पन चक्कियों में इस्तेमाल के बाद पानी, सुंदर कृत्रिम झरनों के रूप में गिरता है, जो एक शानदार दृश्य को जन्म देता है। इसी तरह से यहां, सुंदर प्राकृतिक परिदृश्य भी हैं।

जल आपूर्ति टनलों के डिज़ाइन में जो कुछ जटिलताएं पाई जाती हैं, वह उनका भूमि सिंचाई के अलावा दूसरे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल है। गरगर बांध के पुल के पीछे की तीन टनलों का पानी, पन चक्की के पाटों को घुमाने के लिए इस्तेमाल होता है। शूश्तर पन चक्कियों और झरनों का निर्माण गरगर नदी में किया गया है, जो ख़ुद एक प्राचीन काल की तकनीक और इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना है। पूर्ण रूप से गरगर नदी को खोदकर बनाया गया था और इसके निर्माण का श्रेय सासानी राजा अर्दशीर बाबकान को दिया जाता है। लेकिन पुरातात्विक अध्ययनों में इसका और भी पुराना इतिहास बताया गया है। कारून नदी के किनारे स्थिति होने के कारण, शूश्तर में जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियां और सुविधाएं रही हैं। 

शूश्तर में सबसे पुरानी ज्ञात धरोहर, पुरापाषाण और प्रागैतिहासिक काल से संबंधित है। शूश्तर पानी के बीच, एक द्वीप के रूप में स्थित है और यहां नालों, बांधों और पन चक्कियों के रूप में हर ओर जलीय वास्तुकला के नमूने देखे जा सकते हैं। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार, शापूर ससानी के काल में, शूश्तर का विकास कार्य पूरा हुआ और इस शहर ने अपने इतिहास का सबसे शानदार समय व्यतीत किया। सिंचाई की सुविधा के कारण, इस शहर में कृषि का भी विकास हुआ। शूश्तर को जलीय इमारतों और संरचनाओं का एक संग्रहालय कहा जा सकता है। उपयुक्तता  की दृष्टि से यह सभी इमारतें एक दूसरे से संबंधित हैं, इसीलिए यह दुनिया भर में एक अनूठा शहर है।

यह निर्माण समूह इस तरह से काम करता है कि गरगर बांध ने नदी के प्रवाह को रोक दिया है और पत्थरों में खोदी गई तीन टनलों तक पानी की आपूर्ति के लिए पानी के स्तर को ऊपर तक पहुंचा दिया है। तीनों टनल पानी को निर्माण समूह तक पहुंचाती हैं, वहां पहुंचकर यह पानी विभिन्न नालों में बंट जाता है और चक्की के पाट को घुमाने के बाद, झरनों के रूप में पूल में गिर जाता है।

कार्यक्रम के आख़िर में कहा जा सकता है कि शूश्तर और देज़फ़ूल दो ऐसे शानदार उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि लोग किस तरह से पानी के प्रवाह को नियंत्रित करते थे। इस पानी से नदी के मार्ग में या चट्टानों के अंदर खोदे गए गढ़ों में पन चक्कियों का संचालन होता था। इस पानी की ऊर्जा से गेहूं या दूसरे अनाज को पीसा जाता था और बांधों से कारून नदी के पानी को एक बड़ी चूने की चट्टान की ओर मोड़ दिया जाता था। इस प्रकार, लोग सदियों तक प्रकृति के साथ शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करते रहे और जल संसाधनों को सर्वोत्तम तरीक़े से प्रबंधित करते रहे। यहां यह सवाल पैदा होता है कि क्या अब हमें इन पुरानी इमारतों की ज़रूरत नहीं है और 21वीं सदी में हम उन्हें बाय-बाय कर दें?

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