Jan ०९, २०२१ १९:५३ Asia/Kolkata

दुनिया के सामने मुंह खोले खड़ा है जलसंकट, मनुष्यों के लिए 2030 होगा बहुत ख़तरनाक, अगर होशियारी नहीं दिखाई तो...

धरती का लगभग 72 प्रतिशत भाग पर पानी है जिनमें से 97 प्रतिशत पानी खारा है और उसे पीना संभव नहीं है। धरती पर जल चक्र लगभग बिना परिवर्तन का है। यह लगभग 486 अरब वर्गकिलोमीटर है। समुद्रों के अलावा इस पानी को मीठा पानी कहा जाता है जो कृषि, उद्योग और पीने के लिए इस्तेमाल होता है। बारिश से जो पानी मिलता है उससे नदियां भरती हैं और यही पानी , भूमिगत जलस्रोतों को भी भरता है। किसी भी क्षेत्र में जलस्रोतों में फिर से पानी भरने की प्रक्रिया उस क्षेत्र में जलचक्र पर निर्भर होती है लेकिन प्रायः किसी भी क्षेत्र में जल चक्र पूरा होने में दस साल का समय लग सकता है।

 

 दुनिया के अलग अलग इलाक़ों में पानी की उपलब्धता बहुत अलग अलग बल्कि असंतुलित है। देशों में तो अंतर है ही लेकिन एक देश के विभिन्न इलाकों में भी फर्क है। उदाहरण स्वरूप सब से कम पानी अरब देशों में है जहां प्रति व्यक्ति 1175 वर्गमीटर पानी उपलब्ध है लेकिन यह प्रतिशत है मगर हरेक को पानी की यही मात्रा उपलब्ध नहीं है। इस संदर्भ में मोरितानिया, इराक और सीरिया का नाम लिया जा सकता है जहां प्रति व्यक्ति  पानी की उपलब्धता 2500 वर्गमीटर है लेकिन परशियन गल्फ के तटवर्ती देशों में प्रति व्यक्ति 100 वर्गमीटर ही पानी उपलब्ध है। 

 

 दूसरा उदाहरण दक्षिणी एशिया का दिया जा सकता है जिनमें हिन्द महासागर के तटवर्ती देश भी शामिल है। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और ईरान का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है। अलबत्ता विश्व बैंक जैसे कुछ संगठन, ईरान को इन देशों की श्रेणी में नहीं गिनते। इन देशों में 1.7 अरब लोग रहते है जो विश्व की कुल जनसंख्या का 23 प्रतिशत भाग है। इन हालात में अगर सब कुछ एसे ही रहा तब भी जिस तरह से आबादी बढ़ रही है उसके मद्देनज़र प्रति व्यक्ति पानी की दर जो 2450 वर्गमीटर है, धीरे धीरे कम हो रही है।

 

 दक्षिण पूर्वी एशिया में, इन्डोनेशिया, थाईलैंड, बर्मा, फिलीपीन, कंबोडिया, वियतनाम और कुछ दूसरे छोटे देश शामिल हैं इस इलाके के लोगों को एशिया के अन्य देशों में रहने वालों की तुलना में अधिक पानी उपलब्ध है लेकिन तूफान और खराब मौसम तथा सुविधाओं के अभाव की वजह से मीठे पानी के इस भंडार को  सही रूप से प्रयोग नहीं किया जाता । इन पूरे इलाके में सब से अधिक आबादी, इन्डोनेशिया और फिलिपीन में है जहां 8179 और 4953 वर्गमीटर पानी वार्षिक रूप से प्रति व्यक्ति के लिए उपलब्ध है।

 

पूर्वी एशिया में चीन, कोरिया, मंगोलिया और जापान हैं। इन देशों की आबादी लगभग 1/59 अरब है और इस क्षेत्र के प्रति व्यक्ति के लिए पानी 2126 वर्गमीटर सालाना है।  पश्चिमी युरोप में जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, आस्ट्रिया,हालैंड, स्वीटज़रलैंड और लेक्ज़मबर्ग है। इन सभी देशों में आस्ट्रिया में सब से अधिक 9180 वर्गमीटर और जर्मनी में सब से कम 1860 वर्गमीटर है।

 

इस तरह से हम देखते हैं कि दुनिया के विभिन्न इलाक़ों में अलग अलग मात्रा में पानी की उपलब्धता है और उसी आधार पर इन इलाक़ों के लोग पानी का इस्तेमाल करते हैं। मौसम और पानी की उपलब्धता के अलावा तकनीक, सुविधा, आबादी, आर्थिक व सामाजिक स्थिति भी जल स्रोतों के प्रयोग को प्रभावित करती है। हम देखते हैं कि प्राचीन काल में पानी के किनारे ही सामान्य तौर पर लोग बसते थे ताकि पानी से अपनी ज़रूरतों को पूरा कर सकें। 

 

 अफ्रीका महाद्वीप में प्रति व्यक्ति सालाना 5195 वर्गमीटर पानी उपलब्ध है लेकिन मात्र 191 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति की मात्रा की प्रयोग में आती है। इसी तरह इस महाद्वीप के सभी देशों में पानी की उपलब्धता का अध्ययन भी संभव नहीं है और न ही आंकड़े उपलब्ध है फिर भी विश्व के कई संगठनों के अनुसार अफ्रीका में प्रति व्यक्ति सब से अधिक पानी का प्रयोग मिस्र में होता है जबकि इस देश में वर्षा से प्राप्त होने वाला पानी न के बराबर है।

 

एशिया के महत्वपूर्ण देशों में पानी के इस्तेमाल की स्थिति आशाजनक नहीं है। इन देशों में तीन अरब से अधिक लोग रहते हैं और जिन देशों में अधिक आबादी हैं वहा प्रति व्यक्ति पानी का इस्तेमाल भी कम है जिसका मलतब यह है कि इन देशों में पानी कम है। एशिया में सऊदी अरब में सब से कम बारिश होती है जबकि इंडोनेशिया में सब से अधिक।  फाओ के आंकड़ों के अनुसार सऊदी अरब अपने जल स्रोतो से नौ गुना अधिक पानी का प्रयोग करता है लेकिन परशियन गल्फ के अन्य देशों की ही तरह खाद्य पदार्थों  को पूरी तरह से आयात करता है, अब सवाल यह पैदा होता है कि सामान्य रूप से एक देश के नागरिक कितना पानी इस्तेमाल करते हैं 

 अगर युरोप पर नज़र डालें तो वहां विभिन्न प्रकार के मौसम नज़र आते हैं लेकिन अपेक्षाकृत वह पर्याप्त जलस्रोतों से समृद्ध है। दक्षिणी युरोप के देश अधिक मात्रा में पानी का प्रयोग करते हैं। तुर्की और स्पेन के अलावा बाकी देशों में कृषि के लिए पानी का प्रयोग कम है जो मौसम और तापमान के कारण है। जर्मनी, खेती के लिए सब से कम पानी का प्रयोग करता है और इस देश के प्रयोग का 82 प्रतिशत पानी उद्योग में खर्च होता है। इसी तरह इस देश में प्रयोग होने वाले पानी का 80 प्रतिशत भाग, धरती पर मौजूद जल स्रोतो से  लिया जाता है। इसी तरह जर्मनी सारे खाद्य पदार्थों का निर्यात और आयात दोनों करता है जो युरोपीय संघ के अन्य देशों के साथ उसके मज़बूत व्यापारिक रिश्तों का चिन्ह है।

 

युरोप के अधिकांश देशों की अर्थ व्यवस्था, उद्योग और सेवाओं पर आधारित है और चूंकि पानी के पर्याप्त स्रोत हैं और खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए उचित मौसम भी है  और तकनीक व पुंजी के क्षेत्र में भी उन्हें कोई समस्या नहीं है इस लिए उनके पास अपनी ज़रूरत से अधिक खाद्य पदार्थ मौजूद रहता है। युरोप में जल चक्र से प्राप्त होने वाले पानी का सब से अधिक प्रयोग  स्पेन करता है और यह देश 28/6 प्रतिशत पानी प्रयोग करता है जबकि स्वीडन और रूस 1/5 प्रतिशत प्रयोग करते हैं।  युरोप में कृषि के लिए सब से अधिक पानी का प्रयोग तुर्की और स्पेन करते हैं जिनका प्रतिशत, 75 और 64 प्रतिशत है, जब पानी का इतना महत्व है तो फिर इसको बचाएं कैसे? 

 

पानी का महत्व वर्तमान काल में एसी चीज़ नहीं है जिस से कोई अनभिज्ञ हो लेकिन इसके बावजूद विभिन्न कारको और राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से धरती पर जीवन के लिए बेहद मूल्यवान चीज़ की सुरक्षा के प्रति लापरवाही बरती जाती है जो पूरी दुनिया के लोगों के लिए एक खतरनाक स्थिति है।

 

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