Jan १३, २०२१ १५:२१ Asia/Kolkata
  • किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद इस्तेमाल की जाने वाली ख़ास दवा, ईईजी मशीन, बच्चों और वृद्धों के लिए ख़ास पोशाक...ईरान की कई वैज्ञानिक उपलब्धियां

विज्ञान के मैदान में ईरान की तरक़्क़ी का सफ़र जारी है। कुछ उपलब्धियों की ओर इशारा करना चाहते हैं।

 

ईरान की नालेज बेस्ड कंपनियों ने विभिन्न क्षेत्रों में काफी तरक्की की है और कई  प्रकार की उपलब्धियां अर्जित की हैं। ईरानी शोधकर्ताओं ने बायो टेक्नालाजी के आधार पर एक एसी दवा बनायी है जो किडनी के प्रतिरोपण के बाद इस्तेमाल की जाती है और उससे किडनी के फेल होने का खतरा कम होता है। ईरान में बायोटेक्नालोजी के आधार पर दवाएं बनाने के काम में गति आयी है और बहुत सी स्मार्ट मेडिसिन बनायी जा रही हैं। ईरान में 750 मिलयन डालर की इस प्रकार की दवाएं बनायी जाती हैं। ईरान में किडनी प्रतिरोपण की जो दवा बनायी गयी है वह विदेशी दवा की तुलना में 40 प्रतिशत सस्ती है। 

 

इसी तरह ईरानी वैज्ञानिकों ने नये प्रकार की ईईजी मशीन बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। यह मशीन बनाने वाली नालेज बेस्ड कंपनी के महानिदेशक का कहना है कि यह जो मशीन है वह विदेशों में बनी मशीनों की तरह है और उसमें न्वाइज़ बहुत कम होता है। इसके अलावा उसकी डिज़ाइनिंग एसी है कि उसे इधर उधर ले जाना भी काफी आसान है। इन सब के साथ उसकी क़ीमत भी काफी कम है। 

 

जहां  तक क्वालिटी की बात है तो इस लिहाज़ से भी ईरान में बनी ईईजी मशीन को ईरान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने लाइसेंस दिया है इसी तरह इस मशीन को आईएसओ, सीए 13485 तथा कनाडा हेल्थ का लाइसेंस भी मिला है। ईरान में बनायी जाने वाली नयी ईईजी मशीन की एक अन्य विशेषता एम्पेडेन्स चेकिंग है जिसकी वजह से इस्तेमाल करने वाला, सिगनल से पहले ही इलेक्ट्रोड की पोज़ीशन को चेक कर सकता है। मशीन को एसा बनाया गया है कि इस्तेमाल करने वाला अपनी मर्ज़ी के अनुसार उसकी रिपोर्ट तैयार कर सकता है। इस मशीन के नये माॅडल में 32 चैनल तक सिगनल रिकार्ड किये जा सकते हैं । मशीन का  साफ्टवेयर भी एसा है कि उसकी मदद से इस्तेमाल करने वाला उसे पर्सनलाइज्ड कर सकता है। 

वैज्ञानिकों ने एसा फिल्टर बना लिया है जो हर प्रकार के गंदे पानी को साफ कर सकता है।  इस फिल्टर को पानी की बोतल में डालने के बाद पानी के 99.9 फीस बैक्टीरिया और वायरस  खत्म  हो  जाते  हैं यह यात्रा  और पर्वतारोहण के लिए बहुत अच्छी चीज़ है। 

 

कई बरसों से यह कहा जा रहा है कि एसी पोशाक बनायी जा रही है जो इन्सान के शरीर को सर्दी और गर्मी के हिसाब से ठंडा या गर्म रख सकती है। पुर्तगाल के वैज्ञानिकों  ने एसे नेनो कैप्सूल बनाए हैं जो कपड़े से चिपक जाते हैं और मौसम के हिसाब से उसे ठंडा या गर्म रखते हैं।  यह कैप्सूल गर्मी छोड़ते हैं और उन्हें हमेशा के लिए कपड़े से चिपकाया जा सकता है। 

यह नैनो कैप्सूल, इन्सान के बाल से कई हज़ार गुना छोटे होते हैं और इन्हें स्टार्च और मोम की तरह के एक पदार्थ से बनाया जाता है। यह वास्तव में मानव शरीर में पसीने की जो प्रक्रिया है उसी तरह काम करता है। इस शैली में शरीर की त्वचा पर पसीने की बूंदे शरीर की गर्मी को  कम करती हैं और भाप बन जाती है।  मोम को इस तरह से बनाया गया है कि वह शरीर का तापमान बढ़ने की दशा में पिघल जाती है। इस तरह से गर्मी कपड़े में बनी रहती है और कपड़ा पहनने वाला गर्म रहता है लेकिन जब ठंंडी लगती है तो मोम की गर्मी निकल जाती है और वह जम जाती है।  वैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रकार की पोशाक, बच्चों और बूढ़ों के लिए काफी लाभदायक होगी जो  अपने शरीर का तापमान काबू में नहीं रख पाते। 

सर्दी ज़ुकाम प्रायः जाड़ों में होता है। सर्दी जु़काम की सब से बुरी हालत, इन्फ्लुएन्ज़ा है जिसका वायरस, आम तौर पर नाक से शरीर में दाखिल होता है। हालांकि  नाक के भीतर शरीर की सुरक्षा की जटिल व्यवस्था है लेकिन सर्दी की वजह से नाक का भीतरी हिस्सा सूख जाता है जिसकी वजह से वायरस अधिक समय तक वहां रह कर शरीर में घुसने की राह निकाल लेता है। इसी तरह जाड़े के मौसम में धूप में कमी की वजह से शरीर में विटामिन डी की कमी भी हो जाती है जो एन्टी बैक्टीरियल मॉलिक्यूल्स को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रखती है। इसी लिए बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि जाड़ों में विटामिन डी के सेवन से इन्फ्लूएंज़ा से बचा जा सकता है। हालांकि हालिया अध्ययनों में यह पता चला है कि भारी मात्रा में विटामिन डी की गोलियां लेने से कोई खास फर्क़ नहीं पड़ता। 

सर्द़ी ज़ुकाम तो सब को होता है लेकिन सवाल यह है कि सर्दी हो जाने की दशा में डॅाक्टर के पास कब जाना चाहिए? विशेषज्ञों के अनुसार अगर सर्दी दस दिनों तक जारी रहे, कान में दर्द होने लगे और नाक से पीले रंंग का पदार्थ निकलने लगे या फिर चेहरे और माथे में दर्द होने लगे, बुखार चढ़ जाए और आवाज़ बैठ जाए, गले में जलन हो या खांसी आने लगे तो इन सब दशाओं में  डॅाक्टर के पास जाना ज़रूरी हो जाता है लेकिन बच्चों की स्थिति अलग है। बच्चों को अगर तीन दिन तक बुखार आए , उल्टी होने लगे या पेट में दर्द हो या बहुत अधिक नींद आने लगे, सिर में दर्द होने लगे या सांस लेने में तकलीफ हो और भूख कम लगे तो उन्हें तत्काल रूप से डॅाक्टर के पास ले जाना चाहिए। 

सर्दी का वायरस चूंकि रूप बदलता रहता है इस लिए एक व्यक्ति को  बार बार सर्दी हो सकती है और चूंकि इसका कोई  इलाज नहीं है और न ही कोई वैक्सीन है इस लिए उससे बचाव और सतर्कता ही सब से अच्छा रास्ता है क्योंकि हमेशा यह कहा जाता है कि उपचार से बेतहर से बचाव है। सर्दी से बचने का  सब से अच्छा उपाय यह है कि सर्दी के ज़माने में जब बहुत से लोगों को ज़ुकाम हुआ रहता है, हाथ बार बार धोया जाए और जिन्हे जु़काम हुआ हो उनसे दूर रहा जाए। ज़ुकाम का वायरस विभिन्न चीज़ों पर तीन घंटे तक जीवित रहता है इस लिए सतर्कता ज़रूरी है लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी वायरस से बचने के लिए सर्तकता, इतना अधिक न हो जाए कि वह खुद और दूसरों की परेशानी का कारण बन जाए। 

जैसा कि हमने बताया ज़ुकाम का वायरस, अधिकतर नाक के रास्ते से शरीर में जाता है और वह भी इस लिए क्योंकि सर्दी की वजह से नाक का भीतरी हिस्सा सूखा रहता है इस लिए सर्दी जु़काम से बचने के लिए यह ज़रुरी है कि घर के भीतर भाप बनाने की मशीन हो जिससे घर के भीतर आर्द्रता पर्याप्त स्तर तक रहे और नाक का भीतरी भाग सूखने न पाए। इसी तरह सर्दी ज़ुकाम से बचने के लिए पानी अधिक पीना चाहिए और सूप आदि को हर रोज़ खाने में शामिल करना चाहिए। 

ज़ुकाम से बचने के लिए सही खान पान भी ज़रूरी है। कहते हैं तिल, सूर्यमुखी और कद्दू का बीज  खाने से जुक़ाम से बचाव होता है क्योंकि इन चीज़ों में ओमेगा 3 होता है जो ज़ुकाम के वायरस से लड़ने में शरीर की मदद करता है। इसी तरह विटामिन सी भी जुकाम के प्रभाव को कम करने में सहायक सिद्ध होता है। विटामिन भी साग सब्ज़ियों,  मोसंबी संतरे, शिमला मिर्च, गोभी, आलू और नींबू आदि में प्रचुर मात्रा में होती है।  सर्दी ज़ुकाम में यह बात  खास तौर पर याद रखना चाहिए कि कभी भी खुद से एन्टीबायोटिक दवाएं नहीं लेनी चाहिए। 

चलते चलते आप को यह भी बता दें कि कैलीफोर्निया यूनिविर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बताया था कि उन्होंने ज़ुकाम के वायरस को प्रभावहीन बनाने का रास्ता खोज लिया है। इन वैज्ञानिकों ने शरीर में उस प्रोटीन के उत्पादन को रोकने में सफलता प्राप्त कर ली जो जुकाम का कारण बनती है अलबत्ता  यह प्रयोग  चूहों पर सफल रहा है। 

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