Jan २१, २०२१ १६:१५ Asia/Kolkata
  • मोबाइल पर अज़ान शुरू हुई, मेरा पूरा बदन कांपने लगा... मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे

ताजिकिस्तान, सेंट्रल एशिया का एक ऐसा देश है, जिसमें मुसलमानों की आबादी 95 प्रतिशत है। इस देश के लोग भी पूर्व सोवियत संघ के अन्य देशों की तरह, सत्तर वर्षों तक कम्युनिस्ट शासन के दौरान धार्मिक संस्कारों को अंजाम देने से वंचित रहे।

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, ताजिकिस्तान सहित सोवियत संघ के गणराज्यों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। लेकिन दुर्भाग्य से, स्वतंत्र होने वाले कई नए इस्लामी देशों में, धर्म को लेकर जल्द ही सख़्त कानून लागू कर दिए गए और मस्जिदों जैसे इस्लामी प्रतीकों पर नियंत्रण शुरू कर दिया गया।

 

ताजिकिस्तान उन देशों में से एक है, जो धर्म के राष्ट्रीयकरण के कारण, आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं। इस देश में, 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मस्जिद में जाने की अनुमति नहीं है, महिलाएं अपनी पोशाक के चयन में स्वतंत्र नहीं हैं, शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी है, यहां तक ​​कि पुरुषों को दाढ़ी रखने तक की अनुमति नहीं है। ऐसे माहौल में आज़ादेह जैसी ईसाई महिला का इस्लाम स्वीकार करना, एक साहसी और कुछ हद तक अजीब क़दम है।

इस्लामी माहौल में पलने-बढ़ने वाली आज़ादे, इस्लामी मुद्दों से अपरिचित नहीं थीं, लेकिन वह अपने धर्म और अपने माता-पिता के लिए प्रतिबद्ध थीं, जो ऑर्थोडॉक्स ईसाई हैं। ईसाई धर्म में प्रवेश करने वाले ग़लत और तर्कहीन मुद्दों से उन्हें परेशानी हुई। जैसे कि ईसाईयों का मानना ​​है कि आदम और हव्वा द्वारा स्वर्ग में निषिद्ध फल खाने के कारण, सभी मनुष्य पापी हैं, जिसे पहला पाप कहा जाता है। आज़ादे इसकी तुलना इस्लाम के दृष्टिकोण से करते हुए कहती हैः ईसाई धर्म के अनुसार, आदम और हव्वा की भूल के कारण, सभी मनुष्य पापी बन गए और जो कोई जन्म लेता है, चाहे वह पाप करे या नहीं करे, उसे विरासत में पाप मिलता है।  इस आस्था के मुताबिक़, हज़रत ईसा पर ईमान के कारण यह पाप धुल जाता है, इसलिए कि ईश्वर ने अपने पुत्र ईसा को भेजा, ताकि उनका ख़ून बहाया जाए और पृथ्वी पाप से मुक्त हो जाए।

दूसरी ओर, इस्लाम कहता है कि किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के पाप के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जब तक कोई व्यक्ति गुनाह नहीं करता है, तब तक उसका दिल सफ़ेद काग़ज़ की तरह है और वह दोषी नहीं है। निश्चित रूप से जो शख़्स मार्गदर्शन और अध्ययन के मार्ग पर हो, उसे इस्लाम के यह शब्द अच्छे लगेंगे और ईसाई धर्म के ग़लत विश्वास अच्छे नहीं लगेंगे।  हालांकि, आज़ादे को इस्लाम में गंभीरता से दिलचस्पी तब हुई जब उनका इंटरनेट पर कई ऐसे लोगों से परिचय हुआ, जिन्होंने इस्लामी विश्वासों की दृढ़ता और तर्कसंगत स्वरूप के कारण इस प्रकाशमय धर्म को स्वीकार किया था। इस संदर्भ में उनका कहना हैः मैं इंटरनेट पर देखती थी कि हर दिन कुछ लोग मुसलमान हो जाते हैं, यहां तक कि कुछ नास्तिक और ईसाई वैज्ञानिक भी इनमें शामिल होते थे। मेरे लिए यह बात हैरान करने वाली थी कि विभिन्न धर्मों के बीच, पश्चिमी विद्वानों ने इस्लाम को ही क्यों चुना। इसीलिए मैंने इस्लाम स्वीकार करने वालों की वेबसाइट समेत इस्लामी वेबसाइटों पर इस्लाम के बारे में शोध और अध्ययन करना शुरू किया।

आज़ादे ने क़ुरान के अलावा, प्रामाणिक पुस्तकों का अध्ययन शुरू किया और जानकार तथा विश्वसनीय लोगों से सवाल पूछ कर अपने संदेहों को दूर किया। क़ुरान में हज़रत ईसा और हज़रत मरयम का सुंदर और आध्यात्मिक विवरण उन्हें काफ़ी दिलचस्प लगा। उनका कहना हैः क़ुरान में हज़रत ईसा का काफ़ी सम्मान है और हज़रत मरयम के नाम पर एक सूरा है। जब मैं क़ुरान में उनके बारे में या हज़रत मोहम्मद (स) के बारे में पढ़ती हूं, तो उनके शिष्टाचार से प्रभावित होती हूं और मुझे प्रेरणा मिलती है कि मैं भी लोगों के साथ अच्छा व्यवहार कर सकूं।

इसी प्रकार, इस्लाम का चिंतन मनन और सवाल पूछने पर आग्रह भी इस नई मुसलमान होने वाली ताजिक महिला को पसंद आया। इस्लाम के बारे में उनका अध्ययन और संदेहों को दूर करने का प्रयास, अंत में उन्हें इस निष्कर्ष पर ले जाता है कि सर्वोच्च और सबसे संपूर्ण धर्म, इस्लाम है। आज़ादे कलमा पढ़कर औपचारिक रूप से मुसलमान हो जाती हैं। हालांकि शुरूआत में धर्म परिवर्तन के कारण उन्हें अकेलापन महसूस हुआ, लेकिन क़ुरान से परिचित होने के कारण, उन्होंने ईश्वर को अपने निकट महसूस किया। इसी कारण, वह सूरए राद की 28वीं आयत से काफ़ी नज़दीकी महसूस करती हैं, जो ईश्वर के ज़िक्र को आश्वासन और शांति के स्रोत के रूप पेश करता है। इस संबंध में वह कहती हैः जब भी मैं डरती हूं और अजनबी होने का अहसास करती हूं, तुरंत ही यह आयत मुझे याद दिलाती है कि ईश्वर की याद दिलों को शांति प्रदान करती है और दिल ईश्वर के ज़िक्र से शांति पाता है। वही ईश्वर जिसने मेरा हाथ थामा और मुझे भटकने से बचाया और वह मुझसे कहता है कि चिंता न करो। मुझे याद करो, तुम्हारे दिल को शांति मिलेगी, और डर ग़ायब हो जाएगा।

 

आम तौर पर नए मुसलमान होने वाले व्यक्ति की पहली नमाज़,  यादगार बन जाती है। आज़ादे को भी अपनी पहली नमाज़ अच्छी तरह याद है। उनका कहना हैः मेरी पहली नमाज़, सुबह की नमाज़ थी। उस रात मुझे सुबह की अज़ान तक नींद नहीं आई। मैं काफ़ी तनाव महसूस कर रही थी। अज़ान से कुछ देर पहले मैंने वुज़ू किया, कमरा बंद किया और तैयार हो गई। जैसे ही मेरे मोबाइल पर ऑनलाइन अज़ान शुरू हुई, मेरा पूरा बदन कांपने लगा। मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे। बहुत ही सुन्दर अनुभव था। मैंने नमाज़ पढ़ना शुरू किया, ऐसा लग रहा था पहली बार ईश्वर से बात कर रही हूं। मुझे ऐसा लग रहा था कि वास्तव में ईश्वर मेरी बातें सुन रहा है।

इस्लामी इबादतों में नमाज़ का उच्च स्थान है, जैसा कि सूरए अनकबूत की 45वीं आयत में हम पढ़ते हैं: किताब से जो आप पर वह्यी हुई है, उसे पढ़ों, और नमाज़ को स्थापित करो, नमाज़ इंसान को बुराईयों से रोकती है, और ईश्वर का ज़िक्र, सबसे बड़ा है, और ईश्वर जानता है कि तुम क्या करते हो। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने नमाज़ को धर्म का स्तंभ, इस्लाम का ध्वज, ईमान का प्रतीक और मोमिन के ईश्वर से निकट होने का साधन क़रार दिया है। यही प्रभावशाली भूमिका और नमाज़ का महत्व है कि ईश्वर ने इसे हर दिन और हर स्थिति में मुसलमानों पर अनिवार्य किया है, और उसके लिए अत्यधिक पुण्य व सवाब रखा है।

आज़ादे ने रमज़ान महीने से कुछ दिन पहले कलमा पढ़ा और रमज़ान में रोज़ा रखना शुरू किया। एक महीने की अपनी इबादतों से वह ख़ुश हैं और उनके भौतिक व आध्यात्मिक लाभों से अवगत हैं। हिजाब के बारे में भी उनका अध्ययन और अनुभव, समाज में महिला की भूमिका के दृष्टिगत अहम है। वह कहती हैः मेरा मानना है कि हिजाब, एक महिला को शांति और सुरक्षा का अहसास कराता है, जिससे संतुष्टि प्राप्त होती है। हिजाब वाली एक महिला साबित करती है कि उसका उच्च सम्मान है। आज़ादे की इन बातों से यह नतीजा निकाला जा सकता है कि जो महिलाएं हिजाब नहीं करती हैं और उचित पोशाक नहीं पहनती हैं, वह समाज में अपना स्थान नीचे ले आती हैं। हालांकि ताजिकिस्तान सरकार के कठोर नियमों के कारण, संभवतः उन्हें कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा होगा।

वह हज़रत अली और पैग़म्बारे इस्लाम को अपने लिए ईश्वरीय आदर्श मानती हैं। इसलिए कि उनके मूल्यवान कथन पढ़कर, विभिन्न सवालों के जवाब मिल जाते हैं। ईश्वर क़ुरान में कहता हैः निश्चित रूप से पैग़म्बरे इस्लाम का जीवन, भलाई का आदर्श है, उन लोगों के लिए जो ईश्वर की कृपा और प्रलय के दिन पर ईमान रखते हैं और ईश्वर को ज़्यादा याद करते हैं। एक मुसलमान महिला होने के रूप में उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी हज़रत फ़ातिमा से विशेष लगाव है और वह उन्हें अपने लिए आदर्श मानती हैं।

 

वह हज़रत फ़ातिमा का इस प्रकार वर्णन करती हैः मैं हज़रत फ़ातिमा (स) से अधिक संपर्क और संवाद करती हूं, जब मैं उनके बलिदान और पीड़ाओं के बारे में पढ़ती हूं कि किस तरह से उन्होंने अपने पति हज़रत इमाम अली का बचाव किया और अपने बच्चों को भी यही सिखाया, मैं बहुत प्रभावित होती हूं। वे महिलाओं के लिए एक संपूर्ण आदर्श हैं, महिलाएं उनसे बहुत कुछ सीख सकती हैं। मैं हमेशा समाज और परिवार में उनकी भूमिका के बारे में पढ़ती हूं, जो न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि ग़ैर मुस्लिमों के लिए भी आदर्श हैं। हालांकि उनका यह एकमात्र गुण नहीं है। मेरे पास हज़रत फ़ातिमा के गुणों का वर्णन करने के लिए शब्द नहीं हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की प्रिय और महान बेटी का इतना उच्च स्थान है कि वे अपनी बेटी के बारे में कहते हैः फ़ातिमा मेरा टुकड़ा हैं। जिसने भी उन्हें ख़ुश किया, उसने मुझे ख़ुश किया, और जिसने उन्हें दुखी किया, उसने मुझे दुखी किया। फ़ातिमा किसी भी व्यक्ति की तुलना में मुझे अधिक प्रिय हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़ातिमा को दोनों जहान की सर्वोच्च महिला बताया है और इस प्रकार, उन्हें सभी महिलाओं के लिए आदर्श क़रार दिया है। उनके इन्हीं गुणों की वजह से आज़ादे और उनकी तरह दूसरी महिलाएं हज़रत ज़हरा से प्रभावित होती हैं।

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