पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-१
ईश्वर ने मनुष्य के जीवन में महत्पूर्ण और विभूतिपूर्ण महीने और दिन रखे हैं।
ईश्वर ने मनुष्य के जीवन में महत्पूर्ण और विभूतिपूर्ण महीने और दिन रखे हैं। यह ऐसे दिन होते हैं जो मनुष्य के दिलो जान को ठंडी समीर की भांति प्रफुल्लित कर देते हैं और उसे एक नया जीवन प्रदान करते हैं। ऐसे दिन जो इंसान के निढाल शरीर और दुनिया की चकाचौंध से पैदा होने वाली निश्चेतना के कारण दूर हो जाते हैं और मनुष्य ईश्वर के दरबार में उपस्थित होकर अधिक से अधिक अनुकंपाएं और कृपाएं प्राप्त कर सकता है। इन दिनों में वह एक नये जीवन के साथ ईश्वर से फिर से जुड़ सकता है और उसकी ओर जा सकता है और मानवता के चरम पर पहुंच सकता है।
पवित्र महीना रमज़ान, इंसान के जीवन के उन स्वर्णिम कालों में है जिसमें फ़रिश्ते उसके आने पर पूरे आसमान को प्रकाशमयी करते हैं । रमज़ान का पवित्र महीना आ गया और निश्चेतना से थकन का शिकार इंसान, अपने इश्वर का मेहमान बनने और उसकी कृपा दृष्टि पाने का उत्सुक है।
रमज़ान का पवित्र महीना, पवित्र क़ुरआन के उतरने का महीना है और वर्ष का सबसे विभूति भरा महीना है। इस महीने में आसमान और स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं और नरक का दरवाज़ा बंद कर दिया जाता है। इस महीने उपासना का पारितोषिक बहुत अधिक होता है विशेषकर शबे क़द्र में उपासना का पारितोषिक, हज़ार महीने की उपासना के पारितोषिक से बेहतर है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने शाबान के अपने भाषण में रमज़ान की विशेषता बयान करते हुए कहा है कि हे ईश्वर के बंदों, ईश्वर का महीना, विभूतियों, अनुकंपाओं और पापों की क्षमा के साथ तुम्हारी ओर आ रहा है। यह वह महीना है जो समस्त महीनों से अधिक मूल्यवान और महत्वपूर्ण है। इसके दिन सबसे बेहतर दिन है और इसकी रातें सबसे बेहतर राते, इसकी घड़ियां सबसे बेहतरीन घड़ियां हैं। इस महीने में सांस लेना पुण्य है जो ईश्वर की प्रार्थना करने के समान है, तुम्हारी नींद भी इबादत है। इस महीने में जब भी तुम ईश्वर की ओर उन्मुख होगे और उससे प्रार्थना करोगे ईश्वर तुम्हारी प्रार्थना को अवश्य स्वीकार करेगा। अतः स्वच्छ तथा सच्चे मन से ईश्वर से कामना करो कि वह तुमको रोज़ा रखने तथा पवित्र कुरआन का पाठ करने का अवसर प्रदान करे क्योंकि दुर्भाग्यशाली वह है जो इस पवित्र तथा विभूतियों से भरे महीने में ईश्वर की अनुकंपाओं और उसकी क्षमा से वंचित रह जाए।
पवित्र रमज़ान, आत्मा को स्वच्छ करने का महीना है, आत्मा के साफ़ सुथरा होने का महीना है, शैतानी बंधनों और जानवरों वाली इच्छाओं से भागने का महीना है, इस महीने के दिन सबसे बेहतरीन दिन और इसकी रातें सबसे बेहतरीन रातें हैं, इसमें सांस लेना पुण्य और सोना उपासना है। यह महीना कठिनाइयों और आसानियों का मिश्रण है। भूख प्यास की कठिनाइयां, आतंरिक इच्छाओं निश्चेतना और अधिक बोलने और अधिक खाने से संघर्ष की कठिनाइयां। अपने प्रेमी से निकट होने के आभास का आनंद, क्षमा की सुगंध सूंघने का मज़ा और लोगों के मन हृदय पर अनुकंपाओं की होने वाली वर्षा का आनंद।
रमज़ान एक बार फिर अपनी पूरी सुन्दरता के साथ आ गया। एक बार फिर बंदों को ईश्वर का मेहमान बनने का अवस मिला और मुसलमानों के मन एकबार फिर उत्साह से खिल उठे हैं। दूसरी ओर घड़ियों की टिक टिक की आवाज़ पवित्र रमज़ान के आने का मनोरम संदेश दे रही हैं। इस पावन महीने में ताज़ा मुसलमान होने वालों के मन भी खिल जाते हैं और वह अपने जीवन में पहली बार रोज़ा रखने का अनुभव करते हैं। फ़िलिपींस के युवा मारकोस ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद अपना नाम अहमद मोमिन रख लिया। वे बहुत ही बेताबी से रमज़ान के आरंभ होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस बारे में वे कहते हैं कि मैं पहले इस्लाम धर्म में रोज़ा रखने की प्रथा का उपहास उड़ाता था। जब मैं दस वर्ष तक संयुक्त अरब इमारात में था तो मुसलमानों का रोज़ा रखना मेरे लिए दुःस्वपन था। स्वयं को पूरे महीने घर में बंद रखना होता था, पूरे महीने दुकानें बंद रहती थीं, इन्हीं चीज़ों ने मुझे रमज़ान के महीने से घृणित कर दिया था। मेरा मानना था कि रोज़ा, इंसान के लिए शारीरिक व आत्मिक यातना है।
किन्तु मारकोस ने बहुत अधिक अध्ययन के बाद इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और उसे रोज़े का वास्तविक अर्थ समझ में आ गया और रोज़े के संबध में उसके दृष्टिकोण पूरी तरह बदल गये। इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद उन्होंने रमज़ान में कुछ दिन रोज़े रखे और रोज़े के बारे में अपने अनुभव बांटते हुए कहते हैं कि आज तक मैंने इस प्रकार की शांति का अनुभव नहीं किया। उनका कहना था कि अब मैं समझ गया हूं कि रोज़ा रखने से इंसान पर क्या अध्यात्मिक प्रभाव पड़ते हैं। रमज़ान में रोज़ा रखना न केवल यह कि शारीरिक यातना नहीं है बल्कि शरीर के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है।
वे आगे कहते हैं कि साल भर में एक महीने रोज़ा रखना बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण क़दम है और यही कारण है कि ईश्वर ने इस दायित्व को एक साल में एक बार ही अनिवार्य किया है न यह कि पूरे साल बंदों पर अनिवार्य किया है। रमज़ान मेरे लिए बहुत ही मनोरम अनुभव है। इस अनुभव से मैं शांति, प्रसन्नता और आनंद से ओतप्रोत हो गया। मैं बहुत उत्सुकता से रमज़ान की प्रतीक्षा कर रहा था।
जार्डन की एक अन्य मुसलमान होने वाली युवती आमेना भी रमज़ान शुरु होने की प्रतीक्षा में हैं। इस्लाम धर्म स्वीकार करने से पहले उनका नाम कैरोलीन था। उनका कहना है कि धैर्य, आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण करने और अध्यात्म को ऊंचा रखने के लिए रोज़ा रखना अनिवार्य है, इसी प्रकार नमाज़ पढ़ना और क़ुरआन की तिलावत करना, ईश्वर से निकट होने की दिशा में सदकर्म है। वह कहती हैं कि मन व आत्मा की शांति के लिए रोज़ा बहुत ही अच्छा मार्ग है। रमज़ान के महीने में मुसलमान सुबह की नमाज़ से रात की नमाज़ तक हर प्रकार के खाने पीने से दूर रहते हैं और अपनी आत्मा को ईश्वर से निकट करते हैं।
रमज़ान का महीना, ईश्वर की याद और उसके गुणगान का महीना है। दोस्त से प्रेम की सबसे कम निशानी, उसे याद करना है। प्रेमी को सदैव अपनी प्रेमिका की याद में लीन रहना चाहिए। इंसान के प्रेम का अनुमान उसी से लगता है कि वह अपने प्रेमी को कितना याद करता है। महापुरुष ईश्वर की याद और उसके गुणगान को ईश्वर से निकट पहुंचने के लिए सबसे आवश्यक मानते हैं, क्योंकि गुणगान ज़बान से दोहराना नहीं बल्कि प्रेमिका के निकट प्रेमी की उपस्थिति है। बंदे और सृष्टिकर्ता का एक स्थान पर होना है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कहना है कि गुणगान, प्रेमी के साथ उठना बैठना है। वास्तव में जो ईश्वर को सदैव याद करता है, ईश्वर भी उसे याद रखता है और यही दोस्ती और साथ उठने बैठने का अर्थ है।
जैसा कि मनुष्य के शरीर को अपने जीवन चक्र को जारी रखने के लिए पानी और खाने की आवश्यकता होती है, उसकी आत्मा को भी अपने अध्यात्म के चरम पर पहुंचने के लिए आहार की आवश्यकता होती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ईश्वर की याद और उसके गुणगान को मनुष्य की आत्मा के लिए शक्ति और ताक़त का स्रोत मानते हैं। पवित्र रमज़ान के महीने में ईश्वर की याद और उसके गुणगान की आश्चर्यजनक विभूति वही है जिसे हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से अपनी दुआओं में ईश्वर की याद और उसके गुणगान को दिल की ज़िंदगी का कारण बताया है। हे मेरे पालनहार, मेरा हृदय तेरी याद से जीवित है और मेरे दुख व दर्द की आग, तुझसे दुआ करने से बुझती है।
पवित्र रमज़ान की दुआओं में ईश्वर के गुणगान की एक विशेषता उसकी मिठास है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) पवित्र महीने रमज़ान की प्रतिदिन की दुआओं में ईश्वर से विनती करते हैं कि हे मेरे पालनहार, अपनी याद की मिठास मुझे प्रदान कर। यदि इंसान ईश्वर की भक्ति और उसकी उपासना की मिठास का स्वाद न चखे तो उसे ईश्वर की याद और उसके गुणगान और उसकी उपासना का अर्थ समझ में नहीं आएगा और उसके लोक परलोक में उसके प्रभाव से वंचित रहेगा।
जीवन की मिठास यह है कि उसे दोस्त की याद में गुज़ारे और उसका एक भी क्षण अपने दोस्त की याद के बिना न हो। वह भी एक ऐसा दोस्त और प्रेमी जो सभी से उससे निकट हो और सदैव उसके पास रहता है। जो भी इस सदैव रहने वाली उपस्थिति को समझ ले और उसकी वास्तविकता को भांप ले, उसका जीवन सफल और उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। ईश्वर स्वयं कहता है कि अच्छा और पवित्र जीवन वह है जो एक क्षण के लिए भी मनुष्य को ईश्वर की याद से निश्चेत न रखे। पवित्र रमज़ान का महीना, ईश्वरीय अनुकंपाओं के साथ स्थाई एश्वर्य और पवित्र जीवन प्राप्त करने का बेहतरीन अवसर है।
हे पवित्र रमज़ान के महीने तू अपनी समस्त विशेषताओं और अनुकंपाओं के साथ हमारे पास आया है ताकि हमारे एक वर्ष के पापों और अकृतज्ञता को धो दे। तू हमारे पास आया है ताकि निश्चेतना और अकृतज्ञता के जो ताने बाने हमने बुन लिये तो उन्हें तोड़ दे और हमारे प्रायश्चित के लिए पवित्र व संतुलित वातावरण का प्रबंध करे।
हे मेरे पालनहार इस पवित्र और अनुकंपाओं से भरे महीने में हम तुझसे अपने पापों की क्षमा की विनती करते हैं और तेरी असीम कृपा से आशाएं लगाए हुए हैं। हे दयालु ईश्वर जब सारी दुनिया मुझसे मुंह मोड़ ले तो तू मेरा सहायक बन और मेरे पापों को माफ़ कर दे, मेरे प्रायश्चित को स्वीकार कर ले, मेरी दुआएं स्वीकार कर, हे मेरे पालनहार, मुझे पापों से सुरक्षित रख ताकि मैं स्वयं को इतना दूषित न करूं, मुझे स्वयं से दूर न कर, तू मेरा सबकुछ है, मेरी हर चीज़ है, मेरा स्वर्ग, मेरा लोक परलोक सभी तू है।