Nov २०, २०२३ १६:५९ Asia/Kolkata
  • ग़ज़ा के लोगों को वहां से बेदख़ल करने की पूरी हो चुकी है तैयारी...भयानक पश्चिमी व इस्राईली मंसूबा स्वीकार करने के लिए कोई भी नहीं तैयार

इन दिनों अमरीका और यूरोप के नेताओं का ध्यान दो बातों पर बहुत केन्द्रित है और इस पर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ सेंटर्ज़ में भी बड़ा मंथन हो रहा है। यह दोनों विषय ग़ज़ा से जुड़े हुए हैं।

पहला विषय ग़ज़ा की 23 लाख की आबादी में से 15 लाख लोगों को वहां से हटाकर दुनिया के 65 से अधिक देशों में बसाना है ताकि क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन की सुरक्षा को लेकर चिंता कुछ कम हो और ज़ायोनी शासन का अस्तित्व बचाया जा सके जो ध्वस्त होना शुरू हो गया है।

दूसरा विषय ग़ज़ा पट्टी में हमास की जगह पर दूसरा शासन स्थापित करने का है। इस बारे में तीन विकल्पों पर पश्चिमी  देश और इस्राईल विचार कर रहे हैं। एक तो महमूद अब्बास के नेतृत्व वाले फ़िलिस्तीनी शासन को ग़ज़ा पट्टी का संचालन सौंपना है, दूसरे ग़ज़ा पट्टी में अंतर्राष्ट्रीय बल तैनात करना है जैसा 1967 से पहले था और तीसरे मिस्री सेना को ग़ज़ा पट्टी का संचालन सौंपना।

ग़ज़ा पट्टी के लोगों को पड़ोसी देशों मिस्र या फ़ार्स खाड़ी के देशों या फिर कनाडा, अमरीका, न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में बसाने का कार्यक्रम तैयार किया गया है। फ़ार्स खाड़ी के देश ख़ुद तो ग़ज़ा पट्टी के लोगों को अपने यहां बसाने पर तैयार नहीं हैं लेकिन अगर उन्हें मिस्र, जार्डन या इराक़ में बसाया जाए तो इस योजना के लिए फ़ंडिंग करने पर तैयार हैं।

एक अजीब स्थान जहां ग़ज़ा वासियों को बसाने के बारे में सोचा जा रहा है इराक़ी कुर्दिस्तान का इलाक़ा है। इस इलाक़े के शासक नीरवान बारेज़ानी कुछ दिन पहले फ़्रांस के दौरे पर थे तो फ़्रांसीसी अधिकारियों की ज़बान से यह प्रस्ताव सुनकर हतप्रभ रह गए कि ग़ज़ा के 4 हज़ार परिवारों को अगर इराक़ी कुर्दिस्तान में बसा दिया जाए तो इसके बदले कुर्दिस्तान की भारी आर्थिक सहायता की जाएगी। बारेज़ानी ने इस प्रस्ताव को फ़ौरन ठुकरा दिया क्योंकि इसका कुर्दिस्तान के लोगों की तरफ़ से विरोध किया जाएगा, साथ ही तुर्की इराक़ संबंधों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि ब़गदाद सरकार इसके लिए हरगिज़ तैयार नहीं होगी।

मिस्र और जार्डन के सामने इसी तरह के प्रस्ताव रखे गए हैं और चूंकि यह देश गंभीर आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं इसलिए डर है कि इन देशों की सरकारें इस प्रकार के प्रस्ताव स्वीकार कर सकती हैं। मिस्र को इस समय 29 अरब डालर की तत्काल ज़रूरत है। जार्डन का विदेशी क़र्ज़ा 50 अरब डालर तक पहुंच गया है।

यूरोपीय कमीशन की चीफ़ उर्सूला वान दीर लाएन ने मिस्र और जार्डन के दौरे किए। उन्होंने मिस्र के सामने दर अरब डालर और जार्डन के सामने 5 अरब डालर का प्रस्ताव रखा। दोनों देशों ने सरकारी बयान में तो यही कहा कि उन्होंने प्रस्ताव ठुकरा दिया लेकिन बहुत बार यह भी होता है कि सरकारी बयान में सारी बातें बयान नहीं की जातीं।

अब यहां तीन बिंदु बहुत महत्वपूर्ण हैं,

एक तो ग़ज़ा का युद्ध जारी है और रिपोर्टें बता रही हैं कि यह लड़ाई लंबी चलने वाली है, इस्राईल आम नागरिकों के नरसंहार के अलावा अपना कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं कर सका है।

दूसरे यह कि ग़ज़ा पट्टी का प्रशासन यथावत हमास के हाथ में है, इस्राईली ज़मीनी आप्रेशन में विजय हासिल नहीं कर सका है। जबकि इस बीच इस्राईली सेना को भारी जानी माली नुक़सानन उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा लगभग 200 टैंक और सैनिक गाड़ियां ध्वस्त हो चुकी हैं।

तीसरे यह कि कितनी हास्यास्पद बात है कि इस पूरी बहस में ग़ज़ा वासियों की राय को कोई अहमियत ही नहीं जा रही है कि वो कहां बसेंगे और ग़ज़ा पट्टी पर किसका शासन होगा इससे उन्हें कोई मतलब नहीं है। फिर पश्चिमी देशों का लोकतंत्र क्या अपनी मौत मर चुका है?

हम ग़ज़ा वासियों की बात करें तो यह लोग अब महमूद अब्बास का शासन को हरगिज़ क़ुबूल करने वाले नहीं है जिनका इस्राईल के साथ सुरक्षा समन्वय है और वो इस्राईली सैनिकों के साथ मिलकर फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध को कुचलने पर बड़ा गर्व महसूस करते हैं। ग़ज़ा की तो बात ही छोड़िए ख़ुद वेस्ट बैंक के लोग नहीं चाहते कि महमूद अब्बास के हाथ में प्रशासन रहे। ग़ज़ा वासियों के लिए हीरो तो हमास है।

ग़ज़ा वासियों की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी कहीं और नहीं बल्कि मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन के अंदर अपने अपने उन गांवों और शहरों में लौटना का संकल्प रखती है जहां से उन्हें विस्थापित करके ग़ज़ा पट्टी भेजा गया है। इन लोगों को टू स्टेट समाधान भी पसंद नहीं वो चाहते हैं कि फ़िलिस्तीन की पूरी धरती फ़िलिस्तीनियों को वापस मिले।

ग़ज़ा वासियों को हमास के शासन के बदले अगर कुछ चाहिए तो वह इस्राईल के मल्बे पर तैयार होने वाली नई सरकार की सत्ता है।

फ़िलिस्तीनी मूल के वरिष्ठ अरब टीकाकार अब्दुल बारी अतवान

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