ब्रिटिश मीडिया को मुसलमानों से क्या परेशानी है?
(last modified Sun, 11 Feb 2024 10:39:09 GMT )
Feb ११, २०२४ १६:०९ Asia/Kolkata
  • ब्रिटिश मीडिया को मुसलमानों से क्या परेशानी है?

ऑफ़कॉम कुछ तो ख़ुदा का ख़ौफ़ रखो। कई लोग ब्रिटिश टीवी एंकर जूलिया हार्टले ब्रूवर के फ़िलिस्तीनी राजनेता मुस्तफ़ा बरग़सी के ख़िलाफ़ हालिया हमले के बाद, सोशल मीडिया पर इस तरह की पोस्ट साझा कर रहे हैं।

ब्रूवर ने अनुभवी राजनयिक को फटकारते हुए अपमानजनक लहजे में कहा कि उनके अरब मेहमान को महिलाओं से बात करने की आदत नहीं है। इस घटना के बाद से ऑफ़कॉम को 15,500 से ज़्यादा शिकायतें प्राप्त हुई हैं। बहुत से लोग उम्मीद कर रहे हैं कि ऑफ़कॉम जांच करेगा और कुछ जवाबदेही तय की जाएगी। लेकिन ब्रिटिश टेलीविज़न पर इस्लामोफ़ोबिक विषयों की भरमार देखकर, शिकायकर्ताओं को निराशा हाथ लगने की संभावना है।

इस माहौल के कारण ही हार्टले-ब्रूअर को टीवी डिबेट में इतना पक्षपात करने का दुस्साहस प्राप्त हुआ। ठीक दो हफ्ते पहले, उनके टॉकटीवी सहयोगी पियर्स मॉर्गन ने कहा था कि इन दिनों इतनी सारी महिलाएं मुस्लिम बन रही हैं, क्योंकि वे उत्पीड़न का शिकार होना चाहती हैं। यहां किसी भी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है।

मुस्लिमों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार करने की अफ़वाहों को हथियार बनाना, दक्षिणपंथी टीवी एंकरों का पसंदीदा मशग़ला बन गया है। लेकिन जैसा कि टॉकटीवी पर दो पुरुष एंकरों द्वारा अनुभवी फ़िलिस्तीनी अकादमिक ग़दा करमी के साथ किए गए दुर्व्यवहार से पता चला है कि मुस्लिम महिलाएं भी इस मानसिकता का कैसे शिकार होती हैं।

हमें हमारे सवाल का उत्तर दो, हमें इस स्थिति का इतिहास मत बताओ, दोनों मेज़बानों ने करमी पर ख़िलाफ़ इस तरह की कई टिप्पणियां की, जिन्हें 1948 में नकबा के दौरान बैतुल मुक़द्दस स्थित अपने घर से भागने के लिए मजबूर किया गया था। मेज़बानों का इस बात पर ज़ोर देना कि वह उस संदर्भ को हटा दें, जो उनके लिए एक निजी अनुभव था, पश्चिमी मुख्यधारा मीडिया के अधिकांश कवरेज में फ़िलिस्तीनी मेहमानों से जो अपेक्षा की जाती है, उसकी सिर्फ़ एक झलक है।

ऑफ़कॉम से सिर्फ़ इतना सा सवाल है कि क्या आप उन मेहमानों के साथ दुर्व्यवहार कर सकते हैं, जिनके पास आपसे अलग दृष्टिकोण है, या क्या आपके पास एक वर्ग या एक धर्म के ख़िलाफ़ षड्यंत्रकारी छींटाकशी का अधिकार है?

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