Jun २०, २०२१ १४:०१ Asia/Kolkata
  • क़ुरआनी क़िस्से

मक्के के अनेकेश्वरवादियों का ख़तरा जब समाप्त हो गया तो हुदैबिया समझौते के बाद पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने पड़ोसी देशों के शासकों को पत्र भेजकर उन्हें इस्लाम का निमंत्रण देने का फैसला किया।  इस उद्देश्य से उन्होंने "हारिस बिन उमैर अज़दी" को पत्र देकर शाम के शासक के पास भेजा।  हारिस जब शाम के निकटवर्ती नगर पहुंचे तो उस क्षेत्र के शासक "शुरहबील" ने यह जानने के बाद कि वह इस्लाम का संदेश लेकर आए हैं हारिस की हत्या का आदेश जारी कर दिया।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) को जब अपने दूत हारिस की मौत की ख़बर मिली तो इससे वे बहुत दुखी हुए।उन्होंने मुसलमानों से हत्यारों से बदला लेने की बात कही।  इस घटना के साथ ही रबीउल अव्वल सन आठ हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम ने कुछ लोगों को "ज़ातुत्तुलू" नामक क्षेत्र में इस्लाम के प्रचार के लिए रवाना किया।  वे लोग अपने दृष्टिगत क्षेत्र में पहुंचे।  इस्लाम के दूतों ने वहां के लोगों को तार्किक ढंग से इस्लाम के बारे बताना आरंभ किया।  इसी बीच वहां के कुछ लोगों ने इनका विरोध किया।  कुछ समय के बाद इस्लाम के दूतों पर हमला कर दिया गया जिसमें लगभग सारे ही लोग मारे गए।  इन लोगों में से एक व्यक्ति जो बुरी तरह से घायल हो चुके थे किसी प्रकार से वहां से बच निकलने में सफल रहे और पै़गम्बरे इस्लाम की सेवा में पहुंचकर उन्होंने सारी बात उन्हें बताई।  इन दो घटनाओं के बाद "मूता" युद्ध का आदेश जारी हुआ।  तीन हज़ार सैनिकों की सेना हत्यारों से बदला लेने के लिए निकल पड़ी।

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स) ने मुसलमानों की सेना के निकलने से पहले उनको संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग उस स्थान पर जाइए जहां पर इस्लाम के दूतों की हत्याएं की गईं।  वहां पर पहुंचकर पहले आप, लोगों को शांतिपूर्ण ढंग से इस्लाम का निमंत्रण दीजिए।  अगर वे लोग ईमान ले आएं तो फिर उनसे बदला न लिया जाए।  अगर वे एसा न करें तो फिर उनके साथ युद्ध करो और  ईश्वर के दुश्मनों को सबक़ सिखाओ।

उन्होंने कहा कि वहां के दूसरे लोगों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करो।  उनकी महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों को मत मारो।  उनके पेड़ों को न काटो और न ही नष्ट करो। उनके घरों को भी नष्ट न करना।  इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि हे मुसलमानो, तुम्हारी सेना के कमांडर मेरे चचाज़ाद भाई "जाफ़र बिन अबी तालिब" हैं।  अगर उनके लिए कोई मुश्किल पैदा हो जाए या वे मारे जाएं तो तुम्हारी सेना के कमांडर "ज़ैद बिन हारिस" होंगे।  अगर वे भी मारे जाते हैं तो बाद वाले कमांडर "अब्दु्ल्लाह बिन रवाहा" होंगे।  अगर एसा होता है कि वे भी मारे जाते हैं तो फिर एसे में तुमको यह अधिकार है कि तुम लोग मिलकर किसी एक का चयन कर लो।  

दूसरी ओर जब रोम में यह ख़बर पहुंची कि मुसलमान इस ओर आ रहे हैं तो वहां के तत्कालीन शासक "हरक़ुल" ने शाम में अपने पिट्ठुओं की सहायता से मुसलमानों की सेना का मुक़ाबला करने के लिए एक बहुत बड़ी सेना तैयार की।  तत्कालीन शाम के शासक, "शरजील" ने अकेले ही एक लाख की सेना तैयार कर ली।  इस सेना को तैयार करने बाद उसने उनको देश की सीमा पर भेजा जाए ताकि मुसलमानों को वहीं पर रोक दिया जाए।  उधर रोम का शासक भी एक लाख सैनिकों के साथ निकला।  वह "बुल्क़ा" नामक नगर के "मआब" क्षेत्र में ठहरा।  

मुसलमानों और रोमियों के बीच युद्ध बुल्क़ा के "मूता" नामक गांव के पास आरंभ हुआ।  दोनो ओर से भीषण हमले किये जाने लगे।  रोमियों के मुक़ाबले में मुसलमानों की संख्या बहुत कम थी।  युद्ध के दौरान मुसलमानों के तीनों कमांडर मारे गए।  मुसलमानों के अन्तिम कमांडर अब्दुल्लाह बिन रवाहा की मौत के बाद सैनिकों ने "ख़ालिद बिन वलीद" को अपना नया कमांडर चुना।  मुसलमानों के नए कमांडर ने युद्ध की रणनीति को थोड़ा बदला।  उन्होंने आधी रात सैनिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान जाने का आदेश दिया।  उनका कहना था कि तुम लोग शोर-शराबे के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर जाना।

कमांडर का आदेश मिलते ही सैनिकों ने वहां से पूरे शोर-शराबे के साथ जाना शुरू कर दिया।  इस सिलसिले को भोर समय तक चलना था।  इसके साथ ही कुछ सैनिकों से कहा गया कि वे कुछ दूर पर जाने के बाद भोर के समय "ला इलाहा इल्लल्लाह" के नारे लगाते हुए मुसलमानों की तरफ़ आएं।  यह सब इसलिए किया गया था क्योंकि शत्रुओं को यह संदेश दिया जाए कि मुसलमानों की सहायता के लिए नए सैनिक आ गए हैं।  संयोग से हुआ भी वही।  रोम की सेना को यही लगा कि बड़ी संख्या में नए सैनिक सहायता के लिए आ गए हैं।  उधर अपने कमांडर की मौत के कारण रोम की सेना का मनोबल गिरने लगा।  उनमे से बहुत से निराश हो गए।  बाद में मुसलमान अपने घरों को लौट गए।

आठवीं हिजरी में मक्के पर विजय हासिल हुई।  इस घटना के बाद मुसलमानों की शक्ति पहले से बहुत अधिक हो गई।  इसके कारण तत्कालीन दो सुपर पाॅवर ईरान और रोम में भय व्याप्त हो गया।  रोम साम्राज्य के मुक़ाबले में ईरानी साम्राज्य में भय कम था क्योंकि उस समय इस्लामी केन्द्र से उसकी दूरी अधिक थी।  रोमियो के भय का कारण यह था कि उनकी सीमाएं इस्लामी शासन से मिलती थीं।  रोमियों ने अपने सैनिकों को इस्लामी केन्द्र से मिलने वाली सीमाओं पर तैनात करना आरंभ कर दिया।  इस बात की ख़बर मिलने और इसके साथ ही घटने वाली कुछ घटनाओं के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों को बसीज करने का आदेश जारी किया ताकि तबूक जाने के लिए लोग तैयार हो जाएं। 

मदीने के अधिकांश लोग अपना जीवन कृषि और पशुपालन करके गुज़ारते थे।  उस समय फसल काटने और पेड़ों से फल तोड़ने का समय आ चुका था।  लोगों के लिए यह समय बहुत ही महत्वपूर्ण था।  इसका कारण यह था कि यह समय अगले वर्ष तक उनकी आजीविका को सुनिश्चित करता था।  इस बात के दृष्टिगत बहुत से लोगों के लिए तबूक जाना बहुत कठिन था क्योंकि वह मदीने से बहुत दूर था।  बहुत से लोगों का मानना था कि उस समय की महाशक्ति से टक्कर लेना कोई आसान काम नहीं था।

इन हालात में उन लोगों को बहुत अच्छा मौक़ा मिल गया जो मुसलमानों की आस्था को कमज़ोर करने के प्रयास में लगे रहते थे।  इस प्रकार के लोगों ने मुसलमानों के बीच रोम साम्राज्य की शक्ति को बढ़ा-चढाकर दिखाते हुए मुसलमानों की हिम्मतों को कमज़ोर करने के प्रयास तेज़ कर दिये।  इस्लाम विरोधियों के दुष्प्रचार अपना काम करने लगे और बहुत से सादे मुसलमान उनकी बातों में आ गए।  इसी के साथ वे लोग जिनकी आस्था कमज़ोर और डांवाडोल थी वे युद्ध में भाग लेने के बारे में दुविधा में पड़ गए।

इसी दौरान सूरे तौबा की आयत संख्या 38 और 39 नाज़िल हुई जिसमें ईश्वर कड़े स्वर में मुसलमानों को शत्रु के ख़तरे से अवगत करवाते हुए कहता हैः हे ईमान वालो! तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुम से कहा गया कि ईश्वर के मार्ग में (जेहाद के लिए) निकलो तो तुम धरती से चिपक कर रह गए? क्या तुम प्रलय के बदले सांसारिक जीवन से राज़ी (एवं प्रसन्न) हो गए हो? तो (जान लो कि) प्रलय में इस सांसारिक जीवन का लाभ अत्यंत तुच्छ है।  यदि तुम (जेहाद के मैदान की ओर) आगे न बढ़ोगे तो ईश्वर तुम्हें अत्यंत कड़े दण्ड में ग्रस्त कर देगा और तुम्हारे स्थान पर दूसरी जाति को ले आएगा और जान लो कि तुम उसे कोई क्षति नहीं पहुँचा सकते और ईश्वर निश्चित रूप से हर बात में सक्षम है।

यह आयतें लोगों को चेतावनी देते हुए कहती हैं कि क्या तुम प्रलय को भुलाकर संसार पर मोहित हो गए हो जो जेहाद का आदेश मिलने के बाद भी घरों में बैठे हुए हो और बहाने बना रहे हो? हालांकि परलोक की अनुकंपाओं की तुलना में तुम्हारा सांसारिक लाभ अत्यंत तुच्छ है। याद रखो कि यदि तुम रणक्षेत्र में न जाओ तब भी ईश्वरीय धर्म को पराजय नहीं होगी क्योंकि ईश्वर तुम्हारे स्थान पर एसे अन्य लोगों को भेज देगा जो अपने धर्म और पैग़म्बर की रक्षा करने में सक्षम है।  वह तुम्हारी सहायता पर बिल्कुल भी निर्भर नहीं है।

जेहाद को छोड़ने का परिणाम संसार में अपमान और प्रलय में कड़ा दण्ड है। यह नहीं सोचना चाहिए कि जेहाद से बचकर हमें शांति, सुरक्षा और आराम प्राप्त हो जाएगा।  ईश्वरीय आदेशों के पालन या उनकी अवहेलना से ईश्वर को कोई लाभ या हानि नहीं होती अतः यह नहीं समझना चाहिए कि उसके आदेशों का पालन करके हम ईश्वर पर उपकार कर रहे हैं या उसे हमारी उपासनाओं की कोई आवश्यकता है।

आयतें यह भी स्पष्ट करती हैं कि मुसलमान मुजाहिदों को पवित्र होना चाहिए और उनको सांसारिक मायामोह में नहीं लगना चाहिए।  इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपने काल की परिस्थितियों के कारण इस्लामी शिक्षाओं को दुआओं की शक्ल में पेश करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! जब शत्रु से मुक़ाबला हो तो एसे समय धोखा देने वाली इस दुनिया की चिंता को मन से निकाल दे और लोगों के दिलों से, मन को लुभावने वाले सांसारिक मायामोह से दूर कर दे ताकि वे लोग शुद्ध होकर निष्टा के साथ तेरा स्मरण कर सकें।

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