Nov १५, २०२१ २०:०६ Asia/Kolkata

सूरए साफ़्फ़ात आयतें 149-160

فَاسْتَفْتِهِمْ أَلِرَبِّكَ الْبَنَاتُ وَلَهُمُ الْبَنُونَ (149) أَمْ خَلَقْنَا الْمَلَائِكَةَ إِنَاثًا وَهُمْ شَاهِدُونَ (150) أَلَا إِنَّهُمْ مِنْ إِفْكِهِمْ لَيَقُولُونَ (151) وَلَدَ اللَّهُ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ (152)

इन आयतों का अनुवाद हैः

अब उनसे पूछो, "क्या तुम्हारे रब के लिए तो बेटियाँ हों और उनके अपने लिए बेटे? (37:149) क्या हमने फ़रिश्तों को औरतें बनाया और यह उनकी आँखों देखी बात है?" (37:150) सुन लो, निश्चय ही वे अपनी मनगढ़त कहते है (37:151) कि "अल्लाह के औलाद हुई है!" निश्चय ही वे झूठे है। (37:152)

सूरए साफ़्फ़ात में यहां तक कुछ पैग़म्बरों और उनकी क़ौमों की घटनाओं को बयान किया गया है। इन आयतों में मक्के के अनेकेश्वरवादियों की ग़लत आस्थाओं की ओर संकेत किया गया है और क़ुरआन कह रहा है कि यह लोग अल्लाह को इंसानों जैसा समझते थे जिनके यहां संतान होती है और फ़रिश्ते उसकी बेटियां हैं। इस तरह वह अल्लाह की तुलना इंसानों से करते थे।

यह आयतें इन ग़लत विचारों को नकारते हुए कहती हैं कि तुम अनेकेश्वरवादी बेटियों से नफ़रत करते थे और उन्हें अशुभ मानते थे, अगर तुम्हारा बस चलता था तो उन्हें ज़िंदा क़ब्र में दफ़्न कर देते थे। तो अब क्या हो गया कि तुम अल्लाह की संतान की बात करने लगे हो और यह कहते है कि अल्लाह की बेटियां हैं! यह कह रहे है कि बेटियां अल्लाह की हैं और तुम बेटों के बाप हो?

यह बात साफ़ है कि अल्लाह की नज़र में बेटे और बेटियां एकसमान हैं। किसी को भी दूसरे पर प्राकृतिक तौर पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है। लेकिन क़ुरआन ने यहां अनेकेश्वरवादियों से बात की है तो उन्हीं के अंदाज़ में अपनी बात रखी है।

इन आयतों में आगे कहा गया है कि क्या तुम्हारे इस दावे का कोई सुबूत भी है? क्या फ़रिश्तों के पैदा किए जाने के समय तुम मौजूद थे और तुमने देखा कि फ़रिश्ते स्त्रीलिंग हैं? क्यों अनुमान और शक के आधार पर अल्लाह के बारे में इस तरह की बातें करते हो? सवाल यह है कि क्या अल्लाह की संतान है भी कि यह बहस की जाए कि वह औलाद बेटी है या बेटा?

 

इन आयतों से हमने सीखाः

पैग़म्बरों की कोशिश होती थी कि नास्तिकों और अनेकेश्वरवादियों के सामने सवाल उठाकर उन्हें सोचने और चिंतन करने की दावत दें ताकि वह अपनी आस्थाओं की ग़लतियों को समझ जाएं।

कुछ धर्मों के मानने वालों के बीच फ़रिश्तों के बारे में जो तसवीरें प्रचलित हैं उनमें फ़रिश्तों को लड़कियों और महिलाओं के रूप में दिखाया गया है मगर क़ुरआन की आयतें कहती हैं कि यह कल्पना ग़लत है जो क़ुरआन के तर्क से मेल नहीं खाती।

 

अब आइए आयत नंबर 153 से 157 तक की तिलावत सुनते हैं,

 

أَصْطَفَى الْبَنَاتِ عَلَى الْبَنِينَ (153) مَا لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ (154) أَفَلَا تَذَكَّرُونَ (155) أَمْ لَكُمْ سُلْطَانٌ مُبِينٌ (156) فَأْتُوا بِكِتَابِكُمْ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (157)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

क्या उसने बेटों की अपेक्षा बेटियाँ चुन ली हैं? (37:153) तुम्हें क्या हो गया है? तुम कैसा फ़ैसला करते हो? (37:154) तो क्या तुम होश से काम नहीं लेते? (37:155) क्या तुम्हारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण है? (37:156) तो लाओ अपनी किताब, यदि तुम सच्चे हो (37:157)

 

पिछली आयतों के बाद इन आयतों में क़ुरआन कहता है कि तुम ने कैसे फ़रिश्तों को लड़कियां समझ लिया और कह दिया कि यह अल्लाह की बेटियां हैं? क्या तुम समझते है कि अल्लाह ने लड़कियों को लड़कों पर तरजीह दी और इसीलिए अपने लिए बेटों का चयन नहीं किया? क्या अब वक़्त नहीं आ गया कि इस अंधविश्वास और बेबुनियाद बातों से बाज़ आ जाओ और होश के नाख़ुन लो? इस बारे में अगल ज़रा से गहराई से सोचा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि यह कल्पना ग़लत है, इसके बारे में बहुत ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है।

क़ुरआन पहले तो नास्तिकों और अनेकेश्वरवादियों की ग़लत आस्थाओं को बौद्धिक तर्क से रद्द करता है उसके बाद कहता है कि अगर पिछले ग्रंथों के भीतर से तुम्हारे पास अपने दावे की कोई दलील है तो उसे पेश करो। किस किताब या ग्रंथ में या अल्लाह के पैग़म्बरों की तरफ़ से यह कहा गया है कि अल्लाह के संतान है और फ़रिश्ते दरअस्ल उसकी बेटियां हैं।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

नास्तिकों की नज़र में बुरी संतान यानी बेटी और अच्छी संतान यानी बेटा है इसीलिए लड़कियों को वह अल्लाह की संतान और लड़कों को अपने बेटे मानते हैं, मगर वह ग़लत और भ्रामक विचार से ग्रस्त हैं।

अल्लाह के बारे में इंसान की आस्था और अक़ीदा तार्किक बहस और उसूलों पर आधारित होना चाहिए, संदेह और काल्पनिक बातों के आधार पर ग़लत चीज़ों को अल्लाह से नहीं जोड़ा जा सकता।

 

अब आइए सूरए साफ़्फ़ात की आयत संख्या 158 से 160 तक की तिलावत सुनते हैं,

 

وَجَعَلُوا بَيْنَهُ وَبَيْنَ الْجِنَّةِ نَسَبًا وَلَقَدْ عَلِمَتِ الْجِنَّةُ إِنَّهُمْ لَمُحْضَرُونَ (158) سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ (159) إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ (160)

उन्होंने अल्लाह और जिन्नों के बीच नाता जोड़ रखा है, हालाँकि जिन्नों को भली-भाँति मालूम है कि वे अवश्य पकड़कर हाज़िर किए जाएँगे- (37:158) महान और उच्च है अल्लाह उससे, जो वे बयान करते है। (37:159) अल्लाह के उन बन्दों की बात और है, जिन्हें उसने चुन लिया (37:160)

पिछली आयतों में नास्तिकों और अनेकेश्वरवादियों की ग़लत आस्थाओं को बयान करने के बाद यह आयतें आगे कहती हैं कि वह लोग तो जिन्नों और इंसानों के बीच भी संबंध जोड़े बैठे हैं। कुछ अनेकेश्वरवादी जिन्न को अल्लाह की पत्नी मानते थे और कुछ का अक़ीदा था जिन्न अल्लाह की ख़ुदाई में शरीक हैं इसलिए वह उनकी पूजा भी करते थे।

लेकिन क़ुरआन इस विचार का खड़ाई से खंडन करता है और कहता है कि जिन्नों को अल्लाह के निकट यह स्थान कैसे प्राप्त हो गया जबकि क़यामत के दिन उन्हें अपने कर्मों की सज़ा या इनाम लेने के लिए हाज़िर होना है और अपने सारे किए का हिसाब देना है।

अल्लाह के बारे में नास्तिकों की ग़लत धारणा का खंडन करने वावली आयतों के बाद क़ुरआन कहता है कि अल्लाह इंसान के ज़रिए बयान की जाने वाली इन सारी बातों से बहुत ऊपर और महान है। पैग़म्बरों और अल्लाह के ख़ास बंदों के अलावा जिन्हें अल्लाह हर प्रकार की त्रुटियों से पाक रखा है, कोई भी अल्लाह का सही परिचय नहीं दे सकता।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

इंसान अगर बुद्धि और विवेक के दायरे से निकल जाए तो हर तरह के अंधविश्वास और ग़लत धारणा को अल्लाह या धार्म से जोड़ सकता है। वह इतना बहक सकता है कि यह भी मान बैठे कि अल्लाह की पत्नी भी है।

जिन्न भी बुद्धिमान और ज़िम्मेदार इंसानों की तरह अल्लाह की रचना हैं। वह क़यामत में अल्लाह के सामने अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए हाज़िर होंगे।

अल्लाह के ख़ास और पाकीज़ा बंदों के अलावा दूसरे इंसान उसका सही परिचय नहीं कर सकते।

 

 

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