Nov १५, २०२१ २०:२१ Asia/Kolkata

सूरए साफ़्फ़ात आयतें 174-182

فَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتَّى حِينٍ (174) وَأَبْصِرْهُمْ فَسَوْفَ يُبْصِرُونَ (175) أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ (176) فَإِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمْ فَسَاءَ صَبَاحُ الْمُنْذَرِينَ (177)

इन आयतों का अनुवाद हैः

अतः एक अवधि तक के लिए उनसे रुख़ फेर लो (37:174) और उन्हें देखते रहो। वे भी जल्द ही (अपना अंजाम) देख लेंगे (37:175) क्या वे हमारी सज़ा के लिए जल्दी मचा रहे हैं? (37:176) तो जब वह उनके आँगन में उतरेगी तो बड़ी ही बुरी सुबह होगी उन लोगों की, जिन्हें सचेत किया जा चुका है! (37:177)

पिछले कार्यक्रम में असत्य पर सच्चाई और नास्तिकों पर पैग़म्बरों के अनुयाइयों की विजय का ज़िक्र किया गया। इसके बाद इस आयत में पैग़म्बर को संबोधित करते हुए कहा गया है कि कुछ समय के लिए अनेकेश्वरवादियों और नास्तिकों से मुंह मोड़ लीजिए और उनको उनके हाल पर छोड़ दीजिए ताकि उनकी आंख खुले और वह अपने रास्ते से वापस आ जाएं। या फिर अल्लाह ख़ुद ही उनकी ख़बर ले और उन्हें अपने प्रकोप का निशाना बनाए।

इसके बाद आयत कहती है कि वह लोग बहुत जल्द अपने कर्मों का अंजाम देखेंगे और ईमान वाले उनकी शिकस्त और ज़िल्लत का नज़ारा देखेंगे। अलबत्ता नास्तिक हमेशा मज़ाक़ उड़ाते हुए और यक़ीन न करते हुए यह बात कहेंगे कि जिस प्रकोप की बात आप बार बार कर रहे हैं वह कब नज़र आएगा? यानी उन्हें प्रकोप का सामना करने की जल्दी है। जबकि प्रकोप आएगा तो उन्हें हक़ीक़त पता चल जाएगी लेकिन तब कुछ भी कर पाना उनके बस में नहीं होगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

आपत्ति या चेतावनी के तौर पर विरोधियों से मुंह मोड़ लेना पैग़म्बरों की शैली है। ज़िद्दी लोगों में सुधार के लिए कभी कभी यह ज़रूरी होता है कि कुछ समय के लिए उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाए ताकि शायद उन्हें होश आए और वह सच्चाई के रास्ते पर आ जाएं।

विरोधियों से मुंह मोड़ना अस्थायी और तार्किक रूप में होना चाहिए। यह क़दम स्थायी रूप से और इंतेक़ाम के लिए नहीं होना चाहिए ताकि ज़िद्दी और गुमराह लोगों के सुधार की संभावना बनी रहे।

धर्म का इंकार करने वाले और दुश्मनी बरतने वाले इसी दुनिया में शिकस्त का कड़वा मज़ा चखेंगे ताकि दूसरों को सबक़ मिले। मोमिन इंसान भी उनका अंजाम देखेंगे।

अब आइए सूरए साफ़्फ़ात की आयत संख्या 178 से 182 तक की तिलावत सुनते हैं।

وَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتَّى حِينٍ (178) وَأَبْصِرْ فَسَوْفَ يُبْصِرُونَ (179) سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ (180) وَسَلَامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ (181) وَالْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ (182)

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

एक अवधि तक के लिए उनसे रुख़ फेर लो (37:178) और देखते रहो, वे जल्द ही देख लेंगे (37:179) महान और बहुत ऊपर है तुम्हारा रब, प्रताप का स्वामी, उन बातों से जो वे कहते है! (37:180) और सलाम हो रसूलों पर; (37:181) औऱ सब प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के पालनहार के लिए है (37:182)

पिछली बातों पर ताकीद करने के उद्देश्य से एक बार फिर पैग़म्बर और ईमान लाने वालों को संबोधित करते हुए कहा गया है कि जो लोग हक़ स्वीकार करने के बजाए अड़ियल रुख़ अपनाते हैं और सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते उन्हें कुछ दिन के लिए उनके हाल पर छोड़ दीजिए और इंतेज़ार कीजिए। अल्लाह उन्हें उनके कर्मों का नतीजा देगा।

सूरए साफ़्फ़ात की आख़िरी आयतों में कहा गया है कि इज़्ज़त और ताक़त तो अल्लाह के हाथ में है। आख़िरकार ईमान वालों को सम्मान मिलेगा और नास्तिक व अनेकेश्वरवादी अपमानित होंगे।

अगर ईमान वाले अल्लाह पर भरोसा रखें और केवल उसी को अपना सहारा बनाएं तो उन्हें यक़ीन रखना चाहिए कि उन्हें अल्लाह काफ़िरों पर विजय दिलाएगा। वही अल्लाह जो हर कमज़ोरी और बेबसी से बहुत ऊपर है और जो भी इरादा करता है उसे अंजाम देने में सक्षम है।

इतिहास गवाह है कि अल्लाह ने हमेशा अपने दूतों की मदद की है और उन्हें अपनी शरण और सुरक्षा में रखा है। इसलिए दुनिया की रचना और संचालन करने वाले अल्लाह का गुणगान करना चाहिए।

इन आयतों से हमने सीखाः 

दुश्मनी बरतने वालों के बारे में अल्लाह ने जो कहा है वह ज़रूर होगा उसमें शक नहीं करना चाहिए।

हमेशा रहने वाली इज़्ज़त अल्लाह के हाथ में है जो लोग अल्लाह के नेक बंदे हैं वह प्रतिष्ठित और स्थायी होंगे।

केवल अल्लाह गुणगान का पात्र है क्योंकि वही सारी कायनात का मालिक और संभालने वाला है और वही सारे कमाल और सुंदरता का स्रोत है।

 

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