Feb ०६, २०२२ १८:०४ Asia/Kolkata

सूरए साद आयतें 1-4

श्रोताओ कार्यक्रम क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार की एक अन्य कड़ी लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हैं, आशा है, पसंद करेंगे। मैं हूं, ... और कार्यक्रम में मेरा साथ दे रहे हैं ...। सूरए साफ़्फ़ात पर चर्चा समाप्त हुई तो अब हम सूरए साद का विवरण शुरू कर रहे हैं। यह क़ुरआन का 38वां सूरा है जिसमें कुल 88 आयतें हैं। आइए पहले सूरए साद की पहली और दूसरी आयतों की तिलावत सुनते हैं।

ص وَالْقُرْآَنِ ذِي الذِّكْرِ (1) بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي عِزَّةٍ وَشِقَاقٍ (2)

इन आयतों का अनुवाद हैः

साद। क़सम है, याददिहानी-वाले क़ुरआन की (जिसमें कोई कमी नहीं कि धर्मविरोधी सत्य को न समझ सकें) [38:1] बल्कि जिन्होंने इनकार किया वे घमंड और ज़िद में पड़े हुए है [38:2]

यह सूरा भी क़ुरआन दूसरे 28 सूरों की तरह रहस्यवादी अक्षर साद (ص) से शुरू हुआ है। इससे पहले हमने सूरए बक़रह की पहली आयत के विवरण में बताया था कि आम तौर पर इन अक्षरों के बाद क़ुरआन की महानता और वैभव की बात की गई है। क्योंकि क़ुरआन इन्हीं अक्षरों से मिलकर बना है जो आम इंसानों पास मौजूद हैं। मगर फिर भी यह ऐसा चमत्कार है कि कोई भी इंसान उसकी मिसाल न तो पेश कर सका और न पेश कर सकेगा।

इस सूरे में भी साद (ص) के बाद अल्लाह कहता है कि यह पूरी किताब याद दिलाने और झिंझोड़ने वाली है। यह भी मद्देनज़र रहना चाहिए कि इंसान बहुत सारे तथ्यों को अल्लाह की ओर से प्रदान की गई पाकीज़ा प्रवृत्ति की मदद से जान लेता है लेकिन ग़फ़लत, आंतरिक इच्छाओं, रुजहानों और बाहरी कारकों की वजह से इंसान उन्हें भूल जाता है। मगर जब इंसान क़ुरआन की तिलावत करता है और उसकी विषयवस्तु पर ग़ौर करता है तो निश्चेतना से बाहर आता है और तथ्यों की ओर उसका ध्यान केन्द्रित हो जाता है। इसी तरह संभव है कि इंसान ने कुछ तथ्यों को धार्मिक शिक्षाओं की मदद से सीखा और जाना हो जैसे क़यामत का आना, उन्हें भी भुला दे और ग़फ़लत में पड़ जाए। इसलिए क़ुरआन की बहुत सी आयतों में मौत के बाद इंसान को पेश आने वाले हालात का अनेक अवसरों पर ज़िक्र किया गया है और उसको झिंझोड़ा गया है।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह क़ुरआन की क़सम खाता है तो यह इस ग्रंथ की महानता और प्रतिष्ठा की निशानी है।

क़ुरआन ने इंसान की सोई हुई अंतरात्मा को जगाया है और उसे उसके भूले हुए ज्ञान की याद दिलाई है।

क़ुरआन झिंझोड़ने और सचेत करने के लिए आया है लेकिन कुछ लोग घमंड और ज़िद के चलते सत्य को स्वीकार करने पर तैयार नहीं होते।

अब आइए सूरए साद की तीसरी और चौथी आयतों की तिलावत सुनते हैं,

كَمْ أَهْلَكْنَا مِنْ قَبْلِهِمْ مِنْ قَرْنٍ فَنَادَوْا وَلَاتَ حِينَ مَنَاصٍ (3) وَعَجِبُوا أَنْ جَاءَهُمْ مُنْذِرٌ مِنْهُمْ وَقَالَ الْكَافِرُونَ هَذَا سَاحِرٌ كَذَّابٌ (4)

इन आयतों का अनुवाद हैः

उनसे पहले हमने कितनी ही पीढ़ियों को नष्ट किया, तो वे फ़रियाद करने लगे। किन्तु वह समय हटने-बचने का न था [38:3] उन्होंने आश्चर्य किया इसपर कि उनके पास उन्हीं में से एक जगाने वाला आया और इनकार करने वाले कहने लगे, "यह जादूगर है बड़ा झूठा है। [38:4]

क़ुरआन की आयतों में सबसे पहले मक्का के अनेकेश्वरवादियों को संबोधित किया गया। इन आयतों में उन्हें चेतावनी दी गई है कि अगर अगर तुम दूसरी क़ौमों के अंजाम पर ग़ौर करो तो देखोगे कि उनमें से जो क़ौम भी नास्तिकता और अनेकेश्वरवाद में लिप्त थी उस पर अल्लाह का प्रकोप उतरा और फिर उसे भागने का कोई रास्ता नहीं मिला।

आयत में आगे कहा गया है कि लेकिन जब पैग़म्बर अनेकेश्वरवादियों के सामने क़ुरआन की आयतों की तिलावत करते हैं और उन्हें चेतावनी देते हैं तो वे पिछली क़ौमों के अंजाम से पाठ लेने के बजाए, आयतों पर ग़ौर करने और मार्गदर्शन पाने के बजाए उन्हें जादूगर और झूठा कहते हैं।

हदीस और रिवायत की पुस्तकों में आया है कि क़ुरैश के सरदार पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा हज़रत अबू तालिब के पास गए और उन्होंने कहा कि तुम्हारा भतीजा हमारे बच्चों को गुमराह कर रहा है और हमारे ख़ुदाओं पर सवाल खड़े कर रहा है। अगर उसे दौलत या शोहरत चाहिए तो हम उसे क़ुरैश का सबसे धनी आदमी बना देंगे लेकिन यह शर्त है कि वह अपनी यह बातें छोड़ दे।

जब हज़रत अबू तालिब ने अनेकेश्वरवादियों का संदेश पैग़म्बर को पहुचाया तो उन्होंने कहा कि अगर यह लोग मेरे दाहिने हाथ पर सूरज और बाएं हाथ पर चांद रख दें तब भी अपने मिशन से पीछे नहीं हटूंगा। मैं या तो अपनी बातें समाज में प्रचलित कर दूंगा या इसी राह में मर जाउंगा। जब हज़रत अबू तालिब ने अल्लाह के मार्ग में पैग़म्बर की दृढ़ता को देखा तो कहने लगे भतीजे आप अपने मार्ग पर अटल रहिए मैं भी तुम्हारी मदद से हाथ पीछे नहीं खींचूंगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

अगर नास्तिक और अनेकेश्वरवादी विचारधारा पर कोई ज़िद के साथ अड़ा रहे तो दुनिया में भी वह इंसान नष्ट हो जाता है।

अल्लाह की शक्ति और इरादे के मुक़ाबले में किसी को कहीं शरण नहीं मिल सकती। तौबा उसी वक़्त तक कारगर है जब तक अज़ाब नाज़िल नहीं हुआ है। अज़ाब नाज़िल हो जाने के बाद तौबा का कोई असर और फ़ायदा नहीं होगा।

पैग़म्बर ख़ुद अपनी क़ौम के इंसानों की तरह ही एक इंसान होता है। ताकि इंसानों में जो विशेषताएं और उनकी जो ज़रूरतें हैं उनको व्यक्तिगत रूप से महसूस करे और इंसानों के लिए अच्छा नमूना बन सके।

ईमान वालों के ख़िलाफ़ नास्तिकों का सबसे प्रचलित हथियार अपमान और आरोप लगाना है। जब वे पैग़म्बरों को झूठा और जादूगर कहते हैं तो पैग़म्बरों के अनुयाइयों को भी इस तरह के आरोप और अपमान का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

श्रोताओ कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है।

 

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