क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-842
सूरए साद आयतें 5-11
श्रोताओ कार्यक्रम क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार की एक अन्य कड़ी लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हैं, आशा है, पसंद करेंगे। मैं हूं, ... और कार्यक्रम में मेरा साथ दे रहे हैं ...। आइए पहले सूरए साद की आयत संख्या 5 से 7 तक की तिलावत सुनते हैं।
أَجَعَلَ الْآَلِهَةَ إِلَهًا وَاحِدًا إِنَّ هَذَا لَشَيْءٌ عُجَابٌ (5) وَانْطَلَقَ الْمَلَأُ مِنْهُمْ أَنِ امْشُوا وَاصْبِرُوا عَلَى آَلِهَتِكُمْ إِنَّ هَذَا لَشَيْءٌ يُرَادُ (6) مَا سَمِعْنَا بِهَذَا فِي الْمِلَّةِ الْآَخِرَةِ إِنْ هَذَا إِلَّا اخْتِلَاقٌ (7)
इन आयतों का अनुवाद हैः
(नास्तिकों के सरग़नाओं ने कहा) क्या उसने अनेक ख़ुदाओं की जगह एक ख़ुदा मान लिया है? यक़ीनन यह तो बहुत अचम्भे वाली चीज़ है!" [38:5] और उनके सरदार (यह कहते हुए) चल खड़े हुए कि "चलते रहो और अपने ख़ुदाओं पर जमें रहो। निःसंदेह यही वांछिच चीज़ है] [38:6 यह बात तो हमने पिछले धर्म में सुनी ही नहीं। यह तो बस मनगढ़त है। [38:7]
पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि मक्के के अनेकेश्वरवादी लोग पैग़म्बरे इस्लाम की बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे। दूसरों को पैग़म्बर से दूर रखने के लिए वह पैग़म्बर के बारे में कहते थे कि यह जादूगर और झूठे हैं।
यह आयतें कहती हैं कि वह लोग आम इंसानों से कहते थे कि तुम्हारे पास तो वैसे ही इतने सारे ख़ुदा हैं अपने हर काम के लिए किसी एक ख़ुदा की मदद तुम ले लेते हो। मगर यह पैग़म्बर कहते हैं कि तुमसे इतने सारे ख़ुदाओं को छीन ले और उनकी जगह केवल एक ख़ुदा को रख दे वह भी ऐसा ख़ुदा जो न दिखाई देता है और न ही उसे तुम छू कर महसूस कर सकते हो।
तुम अगर चाहते हो कि तुम्हारी मुराद पूरी हो तो मूर्ति पूजा के धर्म में बने रहो, इन मूर्तियों का साथ न छोड़ो, इस व्यक्ति (पैग़म्बर) की अजीब ग़रीब बातों पर कान न धरो। क्योंकि इसकी बातें बिल्कुल अनोखी हैं। हमारे पूर्वजों ने इबादत के बारे में हमें जो कुछ बताया और सिखाया है वह यही है, हम उनके धर्म में कहीं इस तरह की इबादत नहीं देखते।
इन आयतों से हमने सीखाः
पैग़म्बरों का सबसे अहम दायित्व झूठे ख़ुदाओं का इंकार करना और अनन्य ईश्वर को दलीलों से साबित करना है। वह ख़ुदा जिसे नास्तिक और अनेकेश्वरवादी बड़ी हैरत अंगेज़ चीज़ मानते हैं।
अधिकतर लोगों को यह अच्छा लगता है कि अपने बाप दादा के तौर तरीक़े से ज़िंदगी गुज़ारें। उनके लिए पिछली आस्थाओं को छोड़ कर नया धर्म क़ुबूल करना बहुत कठिन और अस्वीकार्य होता है।
नास्तिकों के सरग़ना सत्य के बारे में भ्रम फैलाते हैं और उपद्रव की स्थिति पैदा करते हैं। वह अपने भ्रामक प्रचारों से लोगों को उन सभाओं से दूर रखते हैं जहां सत्य का उल्लेख किया जा रहा होता है। वह गुमराही पर अड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 8 की तिलावत सुनते हैं,
أَؤُنْزِلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ مِنْ بَيْنِنَا بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِنْ ذِكْرِي بَلْ لَمَّا يَذُوقُوا عَذَابِ (8)
इस आयत का अनुवाद हैः
क्या हम सबमें से (चुनकर) इन्हीं पर क़ुरआन नाज़िल हुआ है?" नहीं, बल्कि वे मेरे क़ुरआन के विषय में संदेह में है, बल्कि उन्होंने अभी तक मेरी सज़ा का मज़ा चखा ही नहीं है। [38:8]
पैग़म्बरे इस्लाम की सच्चाई के बारे में भ्रम पैदा करने के लिए मक्के के अनेकेश्वरवादियों का एक हथकंडा यह था कि वह कहते थे कि क़ुरैश में इतने बड़े सरदारों के मौजूद होने के बावजूद कैसे संभव है कि एक अनाथ व्यक्ति को जिसके पास न धन है न कोई ओहदा और रुतबा ईश्वरीय संदेश यह वहि के लिए चुन लिया गया। अगर अल्लाह किसी इंसान पर अपने फ़रिश्ते नाज़िल करना चाह रहा था तो उसे चाहिए था कि क़ुरैश के बीच से उस व्यक्ति का चयन करता जो मशहूर और प्रभावशाली होता और उसके पास धन दौलत होती।
ज़ाहिर है कि यह सोच दुनिया परस्त लोगों की है वह हर चीज़ को भौतिक संसाधनों के पैमाने पर तोलते हैं और यह समझते हैं कि जिसके पास अधिक दौलत और ताक़त है वही समाज के संचालन और नेतृत्व का हक़दार है।
यह बात साफ़ है कि ईश्वरीय मार्गदर्शन एक आध्यात्मिक विषय है इसके लिए आत्मा की पाकीज़गी और मन की प्रवृत्ति की स्वच्छता ज़रूरी है। अल्लाह बेहतर जानता है कि कौन इसका पात्र है और कौन इस दायित्व का निर्वाह कर सकता है।
आयत के आख़िर में अल्लाह ने कहा है कि जो लोग ज़िद, अड़ियलपन और जलन में सत्य को स्वीकार करने पर तैयार नहीं होते उन्हें अल्लाह की सज़ा मिलेगी और सत्य के इंकार का वह ख़मियाज़ा भुगतेंगे।
इस आयत से हमने सीखाः
सत्य का इंकार करने और उसे स्वीकार करने पर तैयार न होने की एक वजह जलन और ख़ुद को दूसरों से ऊंचा समझना है। कभी इंसान घमंड में पड़कर यह सोचने लगता है कि दूसरों के पास भी जो कुछ है वह भी उसका हक़ है और उसे दूसरों पर प्राथमिकता हासिल है।
शक एक स्वाभाविक चीज़ है। मगर शक की स्थिति में इंसान को चाहिए कि छान बीन करके हक़ीक़त का पता लगाए और संदेह दूर कर ले। केवल शक हो जाने की बुनियाद पर किसी चीज़ का इंकार नहीं किया जा सकता।
आइए अब सूरए साद की आयत संख्या 9 से 11 तक की तिलावत सुनते हैं।
أَمْ عِنْدَهُمْ خَزَائِنُ رَحْمَةِ رَبِّكَ الْعَزِيزِ الْوَهَّابِ (9) أَمْ لَهُمْ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا فَلْيَرْتَقُوا فِي الْأَسْبَابِ (10) جُنْدٌ مَا هُنَالِكَ مَهْزُومٌ مِنَ الْأَحْزَابِ (11)
इन आयतों का अनुवाद हैः
या, तुम्हारे प्रभुत्वशाली, बड़े दाता परवरदिगार की दया के ख़ज़ाने उनके पास है? [38:9] या, आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है, उन सबकी बादशाही उन्हीं की है? फिर तो चाहिए कि वे रस्सियों द्वारा ऊपर चढ़ जाएं( और उस पर वहि उतरने से रोक दें जिस पर हम वहि उतारना चाहते हैं) [38:10] वह एक साधारण सेना है उन (विनष्ट होनेवाले) दलों में से, वहाँ मात खाना जिसकी नियति है। [38:11]
यह आयतें पिछले आयतों के क्रम में पैग़म्बर पर वहि उतरने का इंकार करने वालों को संबोधित करते हुए कहती हैं कि क्या अल्लाह ने पैग़म्बरों का निर्धारण उनके हाथ में दे दिया है कि जिसे चाहें उसे नबी बना दें और जिस न चाहें उसे नबी न बनाएं?
कुछ लोग कितने स्वार्थी और घमंडी हैं जो यह समझते हैं कि उन्हें सब कुछ मालूम है और वह हर चीज़ को समझने में सक्षम हैं। यहां तक कि वह अल्लाह की ज़िम्मेदारियां भी तय करने बैठ जाते हैं। वह अल्लाह के हुक्म और निर्देशों के बारे में भी अपनी राय देने लगते हैं कि क्या दुरुस्त है और क्या ग़लत है।
इन आयतों में आगे चलकर पैग़म्बर और मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा गया है कि इन अनेकेश्वरवादियों की ग़लत बातें सुनकर आप ढीले न पड़ जाएं क्योंकि यह अनेक समूहों के भीतर से एक छोटा सा गुट है जो सत्य के सामने अड़ गया मगर पैग़म्बरों की सत्य की आवाज़ को दबा न सका।
इन आयतों से हमने सीखाः
पैग़म्बरों के ज़रिए लोगों का मार्गदर्शन अल्लाह की समावेशी रहमत की एक झलक है।
इंसान के लिए क़ानून और नियम निर्धारित करने की व्यवस्था केवल उस अल्लाह के हाथ में है जिसने ब्रह्मांड की रचना की और जो उसे चलाने वाला है।
जो गुट और समूह सत्य के सामने अड़ जाते हैं उन्हें आख़िरकार शिकस्त उठानी पड़ती है, चाहे ज़ाहिरी तौर पर उनके पास ताक़त और संसाधन की बहुतायत क्यों न हो।
श्रोताओ कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है।