Feb ०६, २०२२ १८:३० Asia/Kolkata

सूरए साद आयतें 12-19

श्रोताओ कार्यक्रम क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार की एक अन्य कड़ी लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हैं, आशा है, पसंद करेंगे। मैं हूं, ... और कार्यक्रम में मेरा साथ दे रहे हैं ...। आइए पहले सूरए साद की आयत संख्या 12 से 14 तक की तिलावत सुनते हैं।

كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ ذُو الْأَوْتَادِ (12) وَثَمُودُ وَقَوْمُ لُوطٍ وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ أُولَئِكَ الْأَحْزَابُ (13) إِنْ كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ (14)  

इन आयतों का अनुवाद हैः

उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और शक्तिशाली फ़िरऔन ने झुठलाया [38:12] और समूद और लूत की क़ौम और 'ऐकावाले' (यानी शुऐब की क़ौम) भी, ये हैं वे (विरोधी) दल। [38:13] उनमें से प्रत्येक ने रसूलों को झुठलाया, तो हमारी ओर उन पर दंड उतरा। [38:14]

 

पिछले कार्यक्रम में इस बात की ओर संकेत किया गया कि मकके के वरिष्ठ लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि पैग़म्बरे इस्लाम पर वहि यानी अल्लाह का ख़ास संदेश उतरता है। वह समझते थे कि वहि तो ख़ुद उन पर उतरनी चाहिए थी।

इन आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहा गया है कि यह पहला गुट नहीं है जो आपके मिशन के मार्ग में रुकावट पैदा कर रहा है। बल्कि पिछले पैग़म्बरों को भी इस मुश्किल का सामना करना पड़ा है। क्योंकि दौलतमंद लोगों की यह सोच थी कि वहि के हक़दार वह ख़ुद हैं। इसीलिए वह यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे कि वहि आम इंसानों पर उतरे जिनके पास बहुत अधिक धन दौलत भी नहीं है और समाज में उनका ख़ास प्रभाव भी नहीं है।

लेकिन वह लोग इस बिंदु से अनभिज्ञ हैं कि जो लोग अल्लाह के रसूल को देखते हैं और उनकी बातें सुनते हैं उन्हें पैग़म्बर की बातों की सत्यता का यक़ीन हो जाता है। अब अगर वह ज़िद, जलन और स्वार्थी स्वभाव की वजह से सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं तो अल्लाह इसी दुनिया में उन्हें सज़ा देगा। जैसा कि नूह की क़ौम सैलाब में डूब गई और आद क़ौम तेज़ हवा के तूफ़ान से तबाह हो गई। फ़िरऔन और उसका लश्कर नील नदी की लहरों में डूब गया। कुछ दूसरी कौमों का भी यही अंजाम हुआ। समूद क़ौम ने हज़रत सालेह को झुठलाया, हज़रत लूत की क़ौम अपने दुराचार और पाप पर अड़ी रही, हज़रत शुऐब की क़ौम जो बड़ी अच्छी जलवायु और हरे भरे पेड़ों वाले इलाक़े में जीवन गुज़ारती थी हज़रत शुऐब की नसीहतों को मानने पर तैयार नहीं हुई। मगर आख़िरकार इन सभी क़ौमों को अल्लाह की सज़ा भुगतनी पड़ी और वह मिट गईं।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

पिछली क़ौमों के इतिहास और उनके अंजाम के अध्ययन को क़ुरआन भी प्रोत्साहित करता है ताकि लोगों होशियार हो जाएं और पाठ लें।

सारे इंसान चाहे वह फ़िरऔन जैसे ताक़तवर शासक हों या आम इंसान, ईश्वरीय प्रकोप के सामने बेबस हैं।

सत्य का विरोध करने और उससे लड़ने का अंजाम अपमान और विनाश के अलावा कुछ नहीं है।

अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 15 और 16 की तिलावत सुनते हैं,

وَمَا يَنْظُرُ هَؤُلَاءِ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً مَا لَهَا مِنْ فَوَاقٍ (15) وَقَالُوا رَبَّنَا عَجِّلْ لَنَا قِطَّنَا قَبْلَ يَوْمِ الْحِسَابِ (16)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

इन्हें बस एक चीख की प्रतीक्षा है जिसमें तनिक भी मोहलत न होगी [38:15] वे (उपहास उड़ाते हुए) कहते है, "ऐ हमारे पालनहार! हिसाब के दिन से पहले ही शीघ्र (सज़ा में) हमारा हिस्सा दे दे।" [38:16]  

पिछली आयतों की बात को आगे बढ़ाते हुए यह आयतें कहती हैं कि नास्तिकों और अनेकेश्वरवादियों की बग़ावत और ज़िद ऐसी है कि मानों उन्हें आसमानी चीख़ का इंतेज़ार है जो अचानक उन पर टूट पड़े और उन्हें तबाह कर दे। क्योंकि वह पिछली क़ौमों का अंजाम जानते हैं लेकिन फिर भी अपनी ज़िद और अड़ियल रवैया छोड़ने पर तैयार नहीं होते।

पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में उनका रवैया पिछले ज़मानों के पैग़म्बरों के साथ उन ज़मानों के नास्तिकों जैसा था। इसलिए उन्हें चाहिए कि उन्हीं नास्तिकों को मिलने वाली सज़ा की प्रतीक्षा में रहें। वह सज़ा जिसका वक़्त आ गया तो फिर उनके पास वापसी का रास्ता नहीं होगा और सब कुछ तबाह हो जाएगा।

इन आयतों में आगे जाकर यह कहा गया है कि अनेकेश्वरवादी दुनिया में अल्लाह का प्रकोप उतरने और क़यामत में अल्लाह की अदालत स्थापित होने का इंकार करते हैं। इसलिए मजाक़ उड़ाते हुए कहते हैं कि अपने ख़ुदा से कहिए कि जितनी जल्दी हो सके हमें सज़ा दे और हमें तबाह कर दे।

क्या तुक है कि हम मरने के इंतेज़ार में बैठें फिर मर कर दोबारा ज़िंदा हों, तब अपने कर्मों की सज़ा पाएं। हम चाहते हैं कि इसी दुनिया में अपने कर्मों का बदला देख लें।

इन आयतों से हमने सीखाः

जिसे बीते लोगों के अंजाम की जानकारी है मगर फिर भी अल्लाह और उसके पैग़म्बर के मुक़ाबले में अड़े रहते हैं वह मानो प्रकोप के इंतेज़ार में हैं और अपने पांव से चलकर तबाही की ओर जाते हैं।

अनेकेश्वरवादियों और नास्तिकों का घमंड और ज़िद उन्हें ईमान वालों का मज़ाक़ उड़ाने का दुस्साहस देता है और वह तर्क और विवेक पर अमल करने के बजाए उनका मज़ाक उड़ाते हैं।

अल्लाह का प्रकोप आने से पहले तौबा और पाश्चातताप संभव है लेकिन जब अज़ाब आ गया तो फिर तौबा स्वीकार नहीं की जाएगी।

 

अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 17 से 19 तक की तिलावत सुनते हैं,

 

اصْبِرْ عَلَى مَا يَقُولُونَ وَاذْكُرْ عَبْدَنَا دَاوُودَ ذَا الْأَيْدِ إِنَّهُ أَوَّابٌ (17) إِنَّا سَخَّرْنَا الْجِبَالَ مَعَهُ يُسَبِّحْنَ بِالْعَشِيِّ وَالْإِشْرَاقِ (18) وَالطَّيْرَ مَحْشُورَةً كُلٌّ لَهُ أَوَّابٌ (19)

वे जो कुछ कहते है उसपर धैर्य से काम लो और शक्तिवाले हमारे बन्दे दाऊद को याद करो। निश्चय ही वह बहुत तौबा करने वाले थे [38:17] हमने पर्वतों को वश में कर दिया था कि सुबह शाम तसबीह करते रहें। [38:18] और पक्षियों को भी, जो एकत्र हो जाते थे। सब अल्लाह की बारगाह में लौटने वाले (और उसकी तसबीह करने वाले) थे। [38:19]

पिछले आयतों के बाद जिनमें विरोधियों की बदज़बानी और उपहास के बारे में बताया गया यह आयतें कहती हैं कि हज़रत दाऊद भी जो बहुत शक्तिशाली और व्यापक अख़तियार वाले नबी थे लोगों के ताने और व्यंग से सुरक्षित नहीं रहे। इसीलिए शुरू में आयत कहती है कि हे अल्लाह के रसूल और ईमान लाने वालो! दुश्मनों के उपहास पर संयम रखो और याद रहे कि आख़िरकार विजय तुम्हारी होने वाली है।

दूसरी बात यह कि हज़रत दाऊद हमेशा अल्लाह की बारगाह में दुआ और उपासना में लीन रहे थे। अल्लाह की मर्ज़ी से उन्हें बहुत बड़ा शासन मिला था। यहां तक कि अल्लाह ने पहाड़ों और पक्षियों को भी उनके वश में कर दिया था कि जब वह अल्लाह की तसबीह करें तो यह सारे भी उनके साथ अल्लाह का स्मरण करें।

क़ुरआन की आयतों के अनुसार सारी चीज़ें तसबीह की हालत में हैं अलबत्ता हम उनकी तसबीह को समझ नहीं पाते। इस सूरे की आयतों से पता चलता है कि जब हज़रत दाऊद अल्लाह की तसबीह और उसका स्मरण करते थे तो सारी चीज़ें उनकी आवाज़ से आवाज़ मिला देती थीं और हज़रत दाऊद सबकी तसबीह को समझते थे।

इन आयतों से हमने सीखाः

सत्य और उसके समर्थकों के ख़िलाफ़ दुश्मनों का प्रचार और उपहास बहुत कड़ा होता है और अनवरत जारी रहता है।

दुश्मनों के उपहास और व्यंग के कारण लोगों को कमज़ोरी नहीं दिखानी चाहिए बल्कि उपहास और व्यंग भरी बातों पर संयम और उदारता दिखानी चाहिए और अपनी आस्था पर अडिग रहना चाहिए।

सत्ता की ताक़त इंसान को बहकाने वाली और ख़तरनाक होती है। बस यही रास्ता है कि ऐसी स्थिति में इंसान लगातार अल्लाह की बारगाह में तौबा और दुआ करे।

नास्तिक चाहे अड़ियल रवैया अपनाएं और अल्लाह के आदेश के सामने सिर न झुकाएं  लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि सारी चीज़ें पत्थर, जानवर सब अल्लाह की तसबीह करते हैं।

अगर इंसान अल्लाह का सच्चा बंदा बन जाए तो पूरी दुनिया उसकी आवाज़ से आवाज़ मिला देती है।

श्रोताओ कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है अगली मुलाक़ात तक हमें अनुमति दीजिए।

 

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