क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-845
सूरए साद आयतें 26-28
يَا دَاوُودُ إِنَّا جَعَلْنَاكَ خَلِيفَةً فِي الْأَرْضِ فَاحْكُمْ بَيْنَ النَّاسِ بِالْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ الْهَوَى فَيُضِلَّكَ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ إِنَّ الَّذِينَ يَضِلُّونَ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ بِمَا نَسُوا يَوْمَ الْحِسَابِ (26)
इस आयत का अनुवाद हैः
"ऐ दाऊद! हमने धरती में तुम्हें ख़लीफ़ा (उत्तराधिकारी) बनाया है। अतः तुम लोगों के बीच हक़ के साथ फ़ैसला करना और अपनी इच्छा का अनुपालन न करना कि वह तुम्हें अल्लाह के मार्ग से भटका दे। जो लोग अल्लाह के मार्ग से भटकते है, निश्चय ही उनके लिए कठोर दंड है, क्योंकि वे हिसाब (क़यामत) के दिन को भूल बैठे हैं। [38:26]
पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि हज़रत दाऊद के साथ एक घटना हुई जिससे वह समझ गए कि दो भाइयों के बीच फ़ैसला करने में उन्होंने पूरी तवज्जो से काम नहीं लिया और फ़ैसला सुनाने में जल्दबाज़ी कर दी। इसलिए उन्होंने अल्लाह की बारगाह में तौबा की और माफ़ी मांगी। अल्लाह की बारगाह में हज़रत दाऊद के इस अंदाज़ की वजह से अल्लाह ने उन्हें माफ़ कर दिया और उनका वही उच्च स्थान सुरक्षित रहा।
यह आयत कहती है कि ऐ दाऊद! हमने आपको पैग़म्बरी का दायित्व दिया है तो दरअस्ल आपको धरती पर अपना उत्तराधिकारी बना दिया है तो आप हमारी शिक्षाओं के अनुसार अमल कीजिए, आपका अमल ईश्वरीय विशेषताओं का दर्पण होना चाहिए। इस बात का ख़याल रखिए कि लोगों के बीच फ़ैसला करते समय हक़ और न्याय मद्देनज़र रहे, इच्छाओं के जाल में न फंसिए, अपनी पसंद को कभी हक़ और न्याय पर प्राथमिकता न दीजिए। क्योंकि इस तरह आप सत्य के रास्ते से जो अल्लाह का रास्ता है भटक सकते हैं। ज़ाहिर है कि अल्लाह के पैग़म्बर हर गुनाह और पाप से दूर होते हैं और कभी भी अल्लाह के मार्ग से भटकते नहीं लेकिन इस आयत से समझा जा सकता है कि मासूम होने का यह अर्थ नहीं है कि पैग़म्बरों के पास अपनी इच्छा और मर्ज़ी से काम करने का अख़्तियार ही नहीं होता। वह अन्य इंसानों की तरह अपनी इच्छा और मन के इशारे पर कोई काम कर सकते हैं। इसीलिए अल्लाह उन्हें सचेत करता है कि अगर वह होशियार न रहेंगे तो संभव है कि अल्लाह के रास्ते के बजाए अपनी इच्छाओं के रास्ते पर चल पड़ें और नतीजे में अल्लाह के प्रकोप का शिकार बनें।
पिछली आयतों के क्रम में यह आयत लोगों के बीच फ़ैसला करने के विषय के बारे में बात करती है। इस आधार पर नतीजा लिया जा सकता है कि जो भी ज़मीन पर शासन कर रहा है समाज के सारे मामलों में न्याय के आधार पर काम करे। अलबत्ता इसके लिए ज़रूरी है कि वह शासक अल्लाह के बनाए हुए नियमों से पूरी तरह अवगत हो ताकि न्याय के अनुसार फ़ैसला कर सके और उसके आधार पर काम करे। अपनी पसंद और इच्छा के रुजहान के हिसाब से काम न करे। क्योंकि यह किया तो लोगों के अधिकार शक्तिशाली लोगों और शासकों की इच्छाओं की भेंट चढ़ जाएंगे।
इस आयत से हमने सीखाः
धर्म राजनीति से अलग नहीं है। पैग़म्बरों की एक ज़िम्मेदारी लोगों पर शासन करना और सामाजिक मामलों का संचालन है। हालांकि बहुत कम पैग़म्बरों के लिए सरकार और शासन की स्थापना के लिए अनुकूल हालात पैदा हुए।
न्यायिक क़ानूनों और आदेशों का आधार व पैमाना हक़ होना चाहिए शासकों या क़ाजी की इच्छा और मर्ज़ी नहीं।
अगर इच्छा को आधार बनाया गया तो सत्य और हक़ हाशिए पर चला जाएगा। क्योंकि इच्छा के अनुसरण का मतलब है हक़ व सत्य के मार्ग से भटक जाना। यही वजह है कि महान इंसान हमेशा अपनी इच्छाओं को कंट्रोल करते हैं ताकि जीवन के विभिन्न मामलों में हक़ और सत्य के आधार पर काम करें।
अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 27 और 28 की तिलावत सुनते हैं,
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاءَ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا بَاطِلًا ذَلِكَ ظَنُّ الَّذِينَ كَفَرُوا فَوَيْلٌ لِلَّذِينَ كَفَرُوا مِنَ النَّارِ (27) أَمْ نَجْعَلُ الَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ كَالْمُفْسِدِينَ فِي الْأَرْضِ أَمْ نَجْعَلُ الْمُتَّقِينَ كَالْفُجَّارِ (28)
इन आयतों का अनुवाद हैः
हमने आकाश और धरती को और जो कुछ उनके बीच है, व्यर्थ नहीं पैदा किया। यह तो उन लोगों का गुमान है जिन्होंने इंकार किया। अतः ऐसे इंकार करने वालों की बड़ी बर्बादी है जहन्नम की आग से [38:27] क्या हम उन लोगों को जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके समान कर देंगे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते हैं; या डर रखनेवालों को हम खुले पापियों जैसा कर देंगे? [38:28]
इससे पहले की आयत में अल्लाह ने हज़रत दाऊद से कहा कि ज़मीन में सत्य और हक़ को मद्देनज़र रखते हुए राज और फ़ैसला करो क्योंकि तुम ज़मीन में हमारे उत्तराधिकारी हो। इसके आगे अब इन आयतों में अल्लाह कहता है कि हमने तो दुनिया को हक़ और सत्य के आधार पर पैदा किया है, किसी असत्य के लिए उसमें गुंज़ाइश नहीं बनाई है। तो ज़मीन पर सत्य का ही राज होना चाहिए। अलबत्ता जो लोग अल्लाह को नहीं मानते, अल्लाह के वजूद और उसके द्वारा दुनिया का संचालन होने का इंकार करते हैं उनकी यह धारणा है कि ब्रहमांड को बग़ैर उद्देश्य और बग़ैर किसी कार्यक्रम के पैदा कर दिया गया है और इसका कोई स्पष्ट और निश्चित भविष्य नहीं है। लेकिन जब वह जहन्नम की आग में गिरेंगे तब उन्हें एहसास होगा कि उनकी धारणा जड़ से ग़लत है। इन आयतों में आगे यह कहा गया है कि पूरा ब्रहमांड सत्य और हक़ पर केन्द्रित है। यही नहीं सज़ा या इनाम देने की व्यवस्था भी न्याय और सत्य पर केन्द्रित रखी गई है। क्योंकि अच्छे और बुरे दोनों क़िस्म के लोग अल्लाह की नज़र में एकसमान नहीं हैं और उनसे एक जैसा बर्ताव नहीं रखता।
स्वाभाविक है कि जो लोग अल्लाह को अपना मालिक और पैदा करने वाला मानते हैं, क़यामत पर यक़ीन रखते हैं धरती पर अल्लाह और क़यामत का इंकार करने वालों के तौर तरीक़े से उनकी शैली अलग है। पहले समूह के लोग समाज की भलाई और सुधार के लिए काम करते हैं और दूसरे समूह के लोग गड़बड़ और बिगाड़ पैदा करने की कोशिश करते हैं। पहले समूह के लोग अल्लाह की ओर से निर्धारित नियमों और पैमाने के अनुसार काम करते हैं और दूसरे समूह के लोग भौतिक और व्यक्तिगत स्वार्थों के आधार पर काम करते हैं। पहले समूह के इस ख़ास दृष्टिकोण का नतीजा उनकी पवित्रता और तक़वा है और दूसरे समूह के ख़ास दृष्टिकोण का नतीजा समाज में बिगाड़ और फ़साद का प्रसार है।
इन आयतों से हमने सीखाः
धार्मिक दृष्टिकोण में हर चीज़ की पैदाइश का ख़ास लक्ष्य और उद्देश्य है। जबकि ग़ैर धार्मिक विचारधारा का मानना है कि चीज़ों को उद्देश्यहीन पैदा कर दिया गया है और इनके लिए कोई कार्यक्रम नहीं बनाया गया है।
चूंकि पूरा ब्रहमांड सत्य और हक़ पर केन्द्रित है इसलिए ज़रूरी है कि मानव समाजों में स्थापित होने वाले सिस्टम और नियम भी सत्य और हक़ पर केन्द्रित हों ताकि दोनों में तालमेल रहे।
हक़ और सत्य की मांग यह है कि दुनिया और परलोक में दोनों जगह न्याय हो। समाज में अच्छों और बुरों को एक नज़र से देखना न्याय से मेल नहीं खाता।
अल्लाह के आदेशों की अवमानना से ज़मीन में बिगाड़ और गड़बड़ी फैलती है।
श्रोताओ कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है। अगली मुलाक़ात तक अनुमति दीजिए।